बैण्ड स्पेक्ट्रम की परिभाषा , क्या है band spectrum in hindi

band spectrum in hindi किसी अणु की कुल ऊर्जा  = इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा  + कम्पन्न ऊर्जा  + घूर्णन ऊर्जा

किसी अणु में प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक स्तर बहुत से कम्पन्न उर्जा स्तरों में तथा प्रत्येक कंपन्न ऊर्जा स्तर बहुत से घूर्णन उर्जा स्तरों में विभाजित रहते है।

फलस्वरूप किसी अणु में इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण के साथ साथ बहुत से कम्पन्न एवं घूर्णन संक्रमण पाए जाते है।  जिससे अणु का अवशोषण बैंड लाइन के रूप में न होकर एक चौड़े बैण्ड के रूप में प्राप्त होता है , ऐसे स्पेक्ट्रम को बैण्ड स्पेक्ट्रम कहते है।

संक्रमण धातु संकुलों में इलेक्ट्रॉनिक स्पेक्ट्रम प्रकाश के निकट IR एवं दृश्य या पराबैंगनी क्षेत्र में प्राप्त होते है।

दृश्य एवं IR क्षेत्र के स्पेक्ट्रम दुर्बल होते है।  क्योंकि इनका सम्बन्ध d-d संक्रमण से होता है।

पराबैंगनी स्पेक्ट्रम तीव्र होते है क्योंकि इनमे electron एक परमाणु से दूसरे परमाणु पर स्थानांतरित हो जाते है।  अत: इन्हें आवेश स्थानान्तरण स्पेक्ट्रम भी कहते है।

किसी संक्रमण की उर्जा △E को निम्न समीकरण से दर्शाते है –

E = hv = hc/λ  = hcv

यहाँ △E = E – E1

E= उत्तेजित अवस्था की उर्जा

E= निम्नतम अवस्था की उर्जा

h = प्लांक स्थिरांक

v = आवृति

c = प्रकाश का वेग

अणुओ में निम्नतम उर्जा अवस्था सामान्यत भरे हुए बंधी σ , π आण्विक कक्षक होते है या non bonding अणु कक्षक होते है।  जबकि उच्च ऊर्जा स्तर के रूप में σ* , π* अणुकक्षक होते है।

किसी अवशोषण बैण्ड की मुख्य दो विशेषताएं होती है –

1. स्थिति

2. तीव्रता

किसी अवशोषण बैण्ड की स्थिति अवशोषित विकिरणों की तरंगदैध्र्य द्वारा निर्धारित होती है।

अवशोषण बैंड की तीव्रता इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण की प्रायिकता पर निर्भर करती है।