बाल मजदूरी पर प्रतिबंध क्या है | बाल मजदूरी के कानून किसे कहते है bal majduri act in hindi law

bal majduri act in hindi law बाल मजदूरी पर प्रतिबंध क्या है | बाल मजदूरी के कानून किसे कहते है ?

बाल मजदूरी पर प्रतिबंध
भारत में बाल मजदूर प्रथा को जारी रखा जाए या बंद किया जाए इसके बारे में दो राय हैं। लोगों के एक समूह का विचार है कि बाल मजदूरी को समाप्त कर दिया जाए क्योंकि एक तो यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, दूसरा यह भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतो के विरुद्ध है। दूसरे समूह के लोगो के विचार से बाल मजदूर प्रथा के उन्मूलन से पहले गरीबी का उन्मूलन आवश्यक है। उनका निवेदन है कि बाल मजदूरी को नियंत्रित किया जाना चाहिए जिससे कि बच्चे खतरनाक कामों में नियुक्त न किए जाएँ। भारत सरकार एक तकनीकी कमेटी बनाने की दिशा में कदम उठा रही है जिसके द्वारा उन व्यवसायों की पहचान की जाएगी जो बच्चों के लिए खतरनाक हैं।

कोष्ठक 1 रू दक्षिण अफ्रीका में बाल श्रम (मजदूर) रू वेश्यावृत्ति और एड्स के मुद्दे
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार रू ष्बाल वेश्यावृत्ति दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से विद्यमान है लेकिन इस पर चर्चा कभी-कभार ही होती है। व्यापक गरीबी और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा के कारण बच्चों के पास कोई विकल्प शेष नहीं बचता और वे अपनी देह को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं, जिनकी संख्या काफी अधिक है।

इस रिपोर्ट के अनुसार लगभग 1,00,000 बच्चे वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं। लेकिन रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों के अनुसार यह संख्या और ज्यादा ही होगी।

रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष लगभग 7,000 बच्चे भारत में वेश्यावृत्ति के लिए लाए जाते हैं। एक नेपाली गैर-सरकारी संगठन के अनुसार रिपोर्ट का कथन है कि 1,00,000 से 2,00,000 नेपाली लड़कियाँ भारत में वेश्याओं का काम कर रहीं हैं। नेपाल में किशोरियाँ गंभीर निर्धनता, दहेज और अन्य समस्याओं का सामना कर रही हैं और हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाली लड़कियों की संख्या भी अत्यधिक है। इन कारणों से भी ये लड़कियाँ वेश्यावृत्ति की ओर उन्मुख हो जाती हैं। बंगलादेशी लड़कियाँ भी भारत व पाकिस्तान में लाई जाती हैं, जबकि भारतीय लड़कियों को वेश्यावृत्ति के लिए अन्य देशों में भेजा जाता है। 30,000 श्रीलंकाई बच्चों को विदेशी पर्यटकों के लिए देह-व्यापार करने वालों के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। इसमें उत्तरी श्रीलंका के सिविल युद्ध में पकड़े गए बच्चों की दुर्दशा का वर्णन है। जब जीविका उपार्जकों की हत्या कर दी जाती है तो अनाथ बच्चे उन भ्रष्ट व्यापारियों को अपनी देह बेचने के लिए विवश हो जाते हैं जो युद्ध क्षेत्र से उनकी पलायन की इच्छा का शोषण करते हैं। बच्चों का नियमित रूप से सामूहिक बलात्कार किया जाता है, उन्हें पीड़ित किया जाता है और खतरनाक यौन क्रियाएँ करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें एड्स और यौन संचारित रोग हो जाते हैं। आगे दी गई रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘हाल ही में हुए सर्वेक्षण के अनुसार हर वर्ष भारत से वापस लौटने वाले नेपाली सेक्सवर्कर में से 65ः एच. आई. वी. पॉजिटिव होते हैं। उनके अपने समुदाय ही अक्सर उन लोगों को स्वीकार नहीं करते जो भाग कर वापस अपने घरों को लौट आते हैं‘‘।
स्रोत रू वल्र्ड सोशियलिस्ट वेबसाइट

1992 में भारत ने बाल अधिकार विषयक औपचारिक समझौते का अनुसमर्थन किया है जिसके अनुसार भारत विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों के बीच बच्चों के मुद्दों पर व्यापक जागरूकता सुनिश्चित करेगा। भारत ने बच्चों की उत्तरजीविता, सुरक्षा और विकास विषयक विश्व घोषणा पर भी हस्ताक्षर किए हैं और तदन्तर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना तैयार की है। इसके मद्देनजर बाल श्रम पर भारत की नीति ने एक ओर अंतर्राष्ट्रीय मानकों और दायित्वों और दूसरी ओर भारत की बुनियादी वास्तविकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है। अतः यहाँ अनेक विधान नजर आते हैं।

बाल श्रम निषेध एवं नियंत्रण अधिनियम, 1986 के अनुसार फैक्टरियों, खानों और अन्य खतरनाक रोजगारों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बाल श्रम के रोजगार पर रखने की मनाही है और यह अधिनियम अन्य रोजगारों में बच्चों की कार्य-स्थितियों को विनियमित करता है। 1993 में तदन्तर की सरकारी अधिसूचना के अनुसार अपने कानून के तहत सरकार ने कसाईखाने, छापेखाने, काजू छिलाई एवं प्रसंस्करण और (टंकाई) सोलडरिंग जैसे उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर निषेध है। 1994 में श्रम मंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय बाल-श्रम उन्मूलन प्राधिकरण स्थापित किया गया जिसका दायित्व बाल मजदूरी के उन्मूलन के लिए सरकार के विभिन्न विभागों के प्रयासों के बीच समन्वय लाना था।

संवैधानिक अधिदेश और बाल मजदर पर प्रचलित कानून के अनुसार भारत सरकार ने 1987 में राष्ट्रीय बाल मजदूर नीति भी अपनाई। इन नीति में तीन सम्पूरक उपाय हैं रू
ऽ बाल श्रम (निषेध एवं नियंत्रण) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को अत्यधिक सख्ती से लागू करने के लिए कानूनी कार्य योजना।
ऽ जहाँ कहीं संभव हो वहाँ बच्चों को लाभ प्रदान करने वाले सामान्य विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना। जिन बच्चों को काम से हटा लिया गया है ऐसे कामकाजी बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यापक पद्धति को विकसित करने और उनके अभिभावकों के लिए रोजगार और आय-सृजक योजनाएँ तैयार किए जाने की कल्पना करता है। स्वयंसेवी संगठनों को अनौपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण स्वास्थ्य देखभाल बच्चों के लिए पोषण और शिक्षा के प्रावधान, जैसी गतिविधियाँ प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु विशेष ‘‘बाल श्रमिक प्रकोष्ठ‘‘ की स्थापना की गई।
ऽ क्षेत्र-विशिष्ट परियोजनाएँ रू बाल मजदूरों की उच्च सघनता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने और कामकाजी बच्चों को, उन्हें काम से हटाने और उनके पुनर्वास के लिए परियोजना अभिगम अपनाने के लिए (http://www- indianembassy .org).