जाने ऑक्सिन के दो कार्य लिखिए , ऑक्सिन की भूमिका एवं प्रभाव (Role and effects of auxins in hindi) ?
ऑक्सिन की रासायनिक प्रकृति (Chemical nature of auxins)
कॉल (Kogl, 1931) के अनुसार ‘जई’ प्रांकुर चोल में वक्रता प्रेरित करने में सक्षम सभी पदार्थों को ऑक्सिन मानना चाहिये। इस प्रकार के तीन पदार्थ अलग किये गये। सबसे पहले कॉल एवं हागन स्मिट (Kogl and Haagen Smit, 1931) मूत्र से ऑक्सिन – A अलगकर क्रिस्टल बनाये। यह एक चक्रिक, ट्राइडहाइड्रोक्सी काबोक्सीलिक अम्ल ने मनुष्य के (monocyclic trihydroxy carboxylic acid C18 H 32 O6) है। एक अन्य ऑक्सिन भी कॉल एवं साथियों (Koglelal. 1934) ने मनुष्य मूत्र से अलग किया था इसे हेटेरोआक्सिन एवं B इन्डोल एसिटिक अम्ल (C10H9 O2 ) अथवा इन्डोल – 3 एसिटिक अम्ल भी कहते हैं।
ऑक्सिन A एवं ऑक्सिन B की उपस्थिति बाद में प्रयोगों द्वारा सिद्ध नहीं की जा सकी है। अतः हैटेराआक्सिन ही सर्वाधि क पाया जाता है ।
बाद में मक्का के भ्रूण तेल (germ oil) से ऑक्सिन B अलग किया गया जो एक चक्रिक हाइड्रॉक्सी कीटों कार्बोक्सीलिक अम्ल (monocyclic hydroxy keto carboxylic acid, C18H 30 O4) है।
प्राकृतिक ऑक्सिन (Natural auxins)
ये प्रादपों में प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं । इन्डोल – 3 एसिटिक अम्ल ( Indole – 3 – acetic acid) सर्वाधिक पाया जाता है। इन्डोल-3 एसिटाल्डिहाइड (Indole-3-acetaldehyde) एवं इन्डोल-3-इथेनोल (Indole-3-ethanol) भी पाये जाते हैं। इसके
अतिरिक्त पादपों में उसी के समान प्रभाव डालने वाले यौगिक 4- क्लोरो इन्डोल एसिटिक अम्ल (4-chloroindole acetic acid) तथा फिनाइल एसिटिक अम्ल (Phenyle acetic acid PAA ) है।
पादपों में आक्सिन मुक्त अवस्था में (free state) अथवा आबद्ध अथवा संयुग्मित ( bound or conjugated) अवस्था में पाये जाते हैं। संयुग्मित ऑक्सिन अन्य यौगिकों से सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े रहते हैं | IAA ग्लूकोसाइड (IAA glucoside). IAA इनोसिटोल (IAA inositol) आदि आबद्ध ऑक्सिन के कुछ उदाहरण हैं। आबद्ध आक्सिन के जल अपघटन से आक्सिन मुक्त हो जाते हैं। कोशिका में दोनों ही अवस्थाऐं साम्यावस्था में होती हैं एवं आवश्यकता होने पर जलापघटन द्वारा आक्सिन मुक्त हो सकते हैं।
संश्लेषित ऑक्सिन (Synthetic auxins)
ऑक्सिन के समान कार्यिकी प्रभाव वाले अनेक रासायनिक यौगिक’ बनाये गये हैं इन्हें संश्लेषित ऑक्सिन कहते हैं इनके कुछ उदाहरण हैं— इन्डोल ब्यूटारिक अम्ल (Indole butryic acid, IBA ) 2,4. – डाइक्लोरोफीनोक्सी एसिटिक अम्ल (2,4-Dichloro phenoxyacetic acid), 2, 4, 5 ट्राइक्लोरोफीनोक्सी ऐसीटिक अम्ल (2.4, 5 – Trichlorophenoxy acetic acid 2,4,5-T) 2-मिथाइल 4- क्लोरोफीनॉक्सी एसिटिक अम्ल (2- Methyl 4-chlorophenoxy acetic acid) इत्यादि ।
ऑक्सिन का विनाश (Destruction of auxins)
वेंट (Went, 1928) द्वारा किये गये प्रयोग में अगार ब्लाक में कुल ऑक्सिन 84% ही होता है इससे लगता है कि कुछ ऑक्सिन नष्ट हो जाता है अथवा निष्क्रिय हो जाता है। ऑक्सिन दो प्रकार से नष्ट हो सकते हैं-
- एन्जाइम से आक्सीकरण द्वारा 2. प्रकाशीय ऑक्सीकरण द्वारा
IAA का एन्जाइमी ऑक्सीकरण IAA ऑक्सीडेज (IAA oxidase) के कारण होता है। विभिन्न पादपों में IAA ऑक्सीडेज के आइसोमर पाये जाते हैं। यह परॉक्सीडेज (peroxidase) की तरह कार्य करता हैं तथा IAA का आक्सीकरण कर एक CO2 अणु मुक्त करता है इस प्रकार 1AA सक्रिय नहीं रहता । आबद्ध आक्सिन IAA ऑक्सीडेज के प्रति प्रतिरोध होते हैं अतः इस एन्जाइम से उन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता ।
1AA का पराबैंगनी प्रकाश (UV light) तथा आयनीकारी विकिरण (ionising radiation) के कारण आक्सीकरण होता है तथा वह निष्क्रिय हो जाता है। यह प्रक्रिया प्रकाशीय ऑक्सीकरण कहलाती है
ऑक्सिन का जैव आमापन (Biossay of Auxins )
पादप वृद्धि हार्मोनों की उपस्थिति प्रदर्शित करने के लिये किये जाने वाले संवेदी जैविक परीक्षण (biological tests) जैव आमापन (bio-assay) कहलाते हैं।
ऑक्सिन के जैव आमापन के लिये प्रांकुर चोल वक्रता परीक्षण (Avena coleoptile curvature test) किया जाता है। जिसका उपयोग सर्वप्रथम वेंट (F. W. went, 1926) ने किया था।
सर्वप्रथम जई के बीजों को 2 दिन तक अंधकार में अंकुरित कर नवोद्भिद बनाये जाते हैं। इनकी लम्बाई कम रखने के लिये इन्हें 2-3 घंटे लाल प्रकार में रखते हैं। अब प्रांकुर चोल का लगभग 1 mm शीर्षस्थ भाग काट दिया जाता है। जिस ऊतक अथवा प्ररोह शीर्ष में ऑक्सिन का जैव आमापन किया जाना है उन्हें अलग कर अगर- खण्ड की सतह पर लगभग । घंटा रखा जाता है ताकि अगार में ऑक्सिन स्थानांतरित हो जायें। फिर अगर को शीर्ष कटे हुये (decapitaed) प्रांकुर चोल पर असमान रूप से (एक पार्श्व की ओर) रखा जाता है। इस सेट को अंधकार में रखते हैं। अगार खंड से ऑक्सि स्थानांतरित होते हैं तथा उस ओर वृद्धि होती है अतः असमान वृद्धि के कारण प्रांकुर चोल वक्रता प्रदर्शित करता है। वक्रता के कोण को मापा जाता है। प्रांकुर चोल में वक्रता ऑक्सिन की मात्रा के समानुपाती होती हैं।
इसके अतिरिक्त मूल वृद्धि संदमन विधि द्वारा भी आक्सिन का जैव आमापन किया जाता है।
क्रियाविधि (Mechanism of action)
ऑक्सिन विभिन्न प्रक्रियाओं को किस प्रकार संतुलित व प्रभावित करते हैं इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है। ऑक्सिन तीन स्तरों पर कार्य कर सकते हैं ।
- जीन अभिव्यक्ति (Gene expression)- कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार ऑक्सिन संबंधित जीन के अनुलेखन (transcrip- tion) को प्रेरित करते हैं। ऑक्सिन सीधे ही अथवा उपयुक्त निष्क्रिय अनुलेखन कारकों (transcription factors) के साथ जुड़ कर उन्हें सक्रिय कारक (active form) में परिवर्तित कर देते हैं जो अनुलेखन (transcription) को प्रेरित करते हैं। IAA की उपस्थिति में कैलस में वृद्धि के साथ mRNA की मात्रा में वृद्धि तथा प्रति ऑक्सिन (anti auxins) की उपस्थिति में mRNA में कमी इस तथ्य को इंगित करते हैं।
- विकरों की सक्रियता में वृद्धि (Enhanced enzyme activity) – ऑक्सिन विकरों की सक्रियता में वृद्धि करते हैं । संभवतः वे विकर के निष्क्रिय स्वरूप को परिवर्तित कर उसे सक्रिय करते हैं।
स्कूग एवं साथियों (Skoog et al. 1942 ) ने सुझाया कि संभवतः ऑक्सिन सहएन्जाइम के रूप में कार्य करते हैं एवं वृद्धि को नियंत्रित करने वाले एन्जाइम को नियंत्रित करते हैं ।
- कोशिका पारगम्यता (Cell Permeability) – ऑक्सिन कोशिका झिल्ली में उपस्थित Ht ATP एज प्रोटॉन पम्प को सक्रिय कर देते हैं तथा इसकी पारगम्यता को बढ़ा देते हैं। इससे कोशिका में परासरण द्वारा जल अवशोषण में वृद्धि होती है जो कोशिका की वृद्धि में सहायक होती है ।
ऑक्सिन द्वारा प्रेरित विभिन्न प्रक्रियाओं में इनमें से एक अथवा अधिक प्रक्रियाएँ शामिल हो सकती हैं।
ऑक्सिन की भूमिका एवं प्रभाव (Role and effects of auxins)
- शीर्ष प्रभुता (Apical dominance) : मुख्यतः पादपों की पार्श्व कलिकाओं (lateral buds) की क्रिया शीर्षस्थ कलिका द्वारा संदमित होती है। इस स्थिति को शीर्ष प्रभुता अथवा प्रभाविता (apical dominance) कहते है। शीर्ष कलिका के हटाने पर पार्श्व कलिकाएँ तीव्रता से वृद्धि करती हैं। इसकी खोज थीमेन एवं स्कूग (Thimann and Skoog. 1933) ने की थी। पार्श्व कलिकाएं IAA के कारण मुख्य तने से संवहन संबंध (vasscular connections) विकसित नहीं कर पातीं अतः उन्हें कलिका से शाखा परिवर्धन हेतु वांछित पोषक पदार्थ वांछित मात्रा में नहीं मिल पाते। इसके अतिरिक्त अधिकांश पदार्थों का चालन शीर्ष में केन्द्रित वृद्धि के कारण शीर्ष की ओर होता है। इसी कारण पार्श्व कलिकाओं का प्रवर्धन नहीं हो पाता ।
- कोशिका विभाजन (Cell division) : संहवन एधा (cambium) में कोशिका विभाजन की दर IAA एवं मौसमी क्रियाओं (seasonal activity) द्वारा नियंत्रित होती है। कलम रोपण (grafting) एवं क्षति के दौरान कैलस निर्माण IAA के कारण होता है।
- कोशिका विवर्धन (Cell enlargement) : ऑक्सिन का एक प्रबल प्रभाव कोशिकाओं का दीर्घीकरण एवं विवर्धन (cell elongation and expansion) होता है जिसके फलस्वरूप स्तम्भ एवं फल के आयतन में वृद्धि होती है। कोशिका दीर्घीकरण परासरण सान्द्रता के बढ़ने, भित्ति दाब कम होने, भित्ति की जल के प्रति पारगम्यता के बढ़ने, कोशिका भित्ति के अधिक निर्माण एवं अधिक प्लैस्टिकता (plasticity) के कारण होता है।
पादप कोशिका का विवर्धम मुख्यतः तीन कारणों से होता है ।
- जल विभव के कारण जल का परासरणी अवशोषण होता है
- कोशिका भित्ति की दृढ़ता (rigidity) के कारण स्फीति दाब बढ़ जाता है ।
3.कोशिका भित्ति को रासायनिक रूप से कमजोर (अणुओं के बीच बन्ध को कमजोर करने से ) करके कोशिका को स्फीति दाब के अनुसार प्रसार करने में मदद मिलती है ।
ऑक्सिन इन तीनों को प्रभावित करते हैं ।
ऑक्सिन के कुछ प्रभाव जैसे प्रांकुर चोल दीर्घीकरण (coleoptile elongation) बहुत कम समय में होते हैं। जबकि कुछ प्रक्रियाएं जैसे कोशिका दीर्घीकरण को प्रारंभ करने की प्रक्रिया के लिए mRNA एवं प्रोटीन संश्लेषण की आवश्यकता होती है ।
ऑक्सिन दो प्रकार से कार्य करता है-
(i) कोशिका झिल्ली में उपस्थित H+ ATP एज प्रोटोन पम्प के सक्रियण द्वारा । (ii) कोशिका झिल्ली में नये प्रोटॉन पम्प का संश्लेषण प्रेरित करके ।
क्लीलैंड (Cleland, 1995) के अनुसार इन दोनों के ही प्रमाण देखे गए हैं।
(i) बहुत कम समय में होने वाली प्रक्रियाओं में यह परिकल्पना दी गई है कि ऑक्सिन एक द्वितीयक वाहक को सक्रिय कर देते हैं जिसके कारण प्लाज्मा झिल्ली में पहले से उपस्थित प्रोटॉन पम्प सक्रिय हो जाते हैं तथा प्रोटॉन बाहर कोशिका भित्ति में धकेल दिये जाते हैं।
ऑक्सिन के कारण कोशिका में प्रोटान पम्प के सक्रियण के फलस्वरूप कोशिका भित्ति का pH कम हो जाता है तथा कोशिका भित्ति नरम ( loose) हो जाती है। जिससे कोशिका भित्ति दाब में कमी आती है तथा जल का अवशोषण होता है फलस्वरूप कोशिका आयतन बढ़ जाता है। कोशिका भित्ति में खिचाव आता है तथा नये अणु इसमें जुड़ जाते हैं व कोशिका का विवर्धन होता है ।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार ऑक्सिन (IAA) सबसे पहले द्वितीयक वाहक को प्रेरित करते हैं। वे विशिष्ट पदार्थ केन्द्रक में DNA के साथ क्रिया कर कुछ विशेष एन्जाइम से सबंधित जीनों को सक्रिय करता है। ऑक्सिन सीधे ही DNA से भी क्रिया कर सकता है व एन्जाइम का सक्रियण करता है। इनके द्वारा कोशिका झिल्ली पर नये प्रोटॉन पम्प जुड़ जाते हैं जिसके कारण H+ कोशिका भित्ति में प्रवेश कर जाते हैं। इन एन्जाइम के कारण कोशिका भित्ति के कुछ बन्ध टूट जाते हैं। अत: कोशिका भित्ति की प्लास्टिकता बढ़ जाती है तथा वह खिंच सकती है। बीच में कोशिका भित्ति के अणु सैलुलोज इत्यादि इसमें निक्षेपित (deposit) हो जाते हैं तथा कोशिका भित्ति बढ़ जाती है ।
- अनुवर्तनी गतियाँ (Tropic movements) : स्तम्भ में उच्च IAA सान्द्रता अधिक वृद्धि को प्रेरित करती है जिससे स्तम्भ प्रकाश की ओर चलन दर्शाता है (धनात्मक प्रकाशानुवर्तन) । मूल में ऑक्सिन की उच्च सान्द्रता इसकी वृद्धि को बाधित करती है इसलिए यह प्रकाश के विपरीत वृद्धि करती है (ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन) ।
- मूल आरम्भीकरण (Root initiation ) : स्कन्ध (scion) के आधारी (basal) भाग को NAA अथवा IBA के घोल में डुबो कर रोपित करने पर इनमें मूल तीव्रता से उत्पन्न होती है। पार्श्व मूल IAA के कारण उत्पन्न होती है। मूल वृद्धि के लिए ऑक्सिन की कम सान्द्रता की आवश्यकता होती है ।
- प्रसुप्ति (Dormancy) : आलू में कलिका अंकुरण को IBA, NAA अथवा मैलिक हाइड्रेजाइड (MH) के छिड़काव से रोका जा सकता है। इससे यह दीर्घ काल (लगभग तीन वर्ष ) तक संग्रहित किये जा सकते हैं।
- विलगन को रोकना (Inhibition of abscission) : पादप से विभिन्न पार्श्व अंगों जैसे पत्तियों, पुष्प फल एवं शाखा इत्यादि का अलग होना विलगन (abscission) कहलाता है। इस प्रक्रिया में पार्श्व अंगों के वृन्त के आधार पर पृथक्कारी विलगन क्षेत्र (abscission zone) बनते है जिसमें वाहिकीय तत्व (vascular elements) अवरूद्ध हो जाते है। इस परत में जलअपघटनी विकर ( पेक्टीनेस, सेलुलेज इत्यादि) होते हैं जिनकी क्रिया से कोशिकाएं विलग हो जाती है। विलगन ऑक्सिन की कमी के कारण होता हैं परिपक्व पत्ती में ऑक्सिन की उत्पादकता कम होने के कारण वृन्त में आक्सिन की कमी हो जाती है व विलगन को प्रेरित करती है ।
अनेक पादपों जैसे नाशपाती, सेब, आम नीबूं इत्यादि में परिपक्वन से पूर्व ही विलगन स्तर के निर्माण के कारण उनके वृन्त से गिर जाते हैं। संतरा, सेब नाशपाती, को 2-4D. 2-4-T (0.001%) की उपलब्धता से अपरिपक्व अवस्था में इनका गिरना रुक सकता है। टमाटर में इसके लिए NAA प्रभावी होता है।
- अन्नानास में पुष्पन एंव फलन प्रेरण (Induction of flowering and fruiting in pineapple) : अन्नानास में भी वर्ष भर पुष्पन एवं फलन के लिए फल निर्माण के समय अन्तराल को कम किया जा सकता है। इस कार्य के लिए NAA एवं 2-4-D प्रयुक्त होते हैं। NAA एवं 2-4-D लीची में पुष्पन को प्रेरित कर सकते हैं।
ऑक्सिन की सांद्रता पुष्पों में लिंग की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करती है। भांग (Cammabis sativus) में ऑक्सिन देने से नर पादपों पर मादा पुष्प बनने लगते हैं ।
- स्पर का निर्माण एवं फलों का मीठा होना (Formation of spurs and sweetening of fruit) : – NAA के कारण सेब के पादप में स्पर (छोटी शाखायें) का निर्माण अधिक संख्या में होता है जिससे इन पर अधिक फल उत्पन्न होते हैं। सेब के पादपों में दीर्घ शाखाओं पर फल उत्पन्न नहीं होते हैं। ऑक्सिन के कारण फलों में मंड शर्करा में परिवर्तित हो जाता `है। इससे फल मीठे हो जाते हैं । गन्ने की मिठास 2-4D, IBA एवं मैलिक हाइड्रेजाइड के प्रभाव से होती है।
- अनिषेकफलन (Parthenocarpy) : बीजरहित फलों के निर्माण को अनिषेकफलन (parthenocarpy) कहते हैं। IAA, IBA, NAA इत्यादि के प्रभाव से अण्डाशय भित्ति फल भित्ति में रूपान्तरित हो जाती है। उपरोक्त वर्णित पदार्थ अंजीर, अमरूद, टमाटर, तरबूज एवं बैंगन में अनिषेकफलन को प्रेरित करते हैं।
- खरपतवारनाशी (Weedicide) : खरपतवार खेतों में स्वतः उगने वाले पादप होते है जिनमें अधिकांशत द्विबीजपत्री होते हैं। कुछ संश्लेषित ऑक्सिन उच्च सांद्रता पर द्विबीजपत्री पादपों के लिए हानिकारक (toxic) होते हैं परन्तु एक बीजपत्री पादपों पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता है। इसी आधार पर इन्हें धान्य फसलों (जो एक बीज पत्री होते हैं) में खरपतवार नाशी (weedicide) के रूप में उपयोग किया जाता है। यह इनके मूल तंत्र को हानि पहुचाते है। फीनॉक्सी यौगिक जैसे 2,4 D एवं 2,4,5-T संकरी पत्तियों युक्त फसली पादपों के साथ उगने वाली चौड़ी पत्ती युक्त खरपतवार ( weed) को नष्ट कर देती है ।
- प्रकाशानुवर्तन एवं गुरुत्वानुवर्तन (Phototropism and geotropism) : पादपों को एक तरफा प्रकाश देने पर पादप का प्रकाश की दिशा में मुड़ना प्रकाशानुवर्तन कहलाता है जो छाया वाले भाग में कोशिकाओं के तीव्र एवं अधिक दीर्घीकरण (elongation) के कारण होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रकाशित क्षेत्र से ऑक्सिन छाया वाले क्षेत्र में चले जाते हैं जहाँ इनकी अधिक सांद्रता के कारण अधिक वृद्धि होती है ।
ऑक्सिन के नीचे की ओर इकट्ठा होने के कारण तने के उस भाग में अधिक वृद्धि से वह ऊपर की ओर तथा मूल में कम वृद्धि के कारण मूल नीचे की ओर मुड़ जाते हैं। यह गति गुरूत्वानुवर्तन कहलाती है
- जायलम विभेदन (Xylem differentiation) : ऑक्सिन की उच्च सान्द्रता से जायलम का विभेदन प्रारम्भ हो जाता
ऑक्सिन का कृषि में उपयोग (Use of auxins in agriculture)
ऑक्सिन की पादप वृद्धि को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करने की प्रवृत्ति के कारण अनेक प्राकृतिक एवं संश्लेषित ऑक्सिनों का विभिन्न प्रकार से कृषि में उपयोग किया जाता है।
- धान्य फसलों में खरपतवार नाशी के रूप में 2,4-D, 2, 4, 5-T तथा MCPA का उपयोग किया जाता है।
- पादपों में पुष्पन को प्रेरित करने के लिए – तम्बाकू कपास, लीची व अन्नानास में NAA, IAA एवं 2.4 D का उपयोग किया जाता है ।
3.तने की कटिंग में मूलारंभन हेतु – NAA एवं IBA का उपयोग करते हैं ।
- बीजांकुरण प्रेरण के लिए बीजों को IAA, IBA अथवा 2,4-D के विलयन में भिगोया जाता है। इससे प्रसुप्तावस्था को खत्म किया जा सकता है।
- अनिषेक फलन प्रेरण के लिए बैंगन के IBA उपचार के द्वारा अनिषेकफलन प्रेरित किया गया है। अंजीर तरबूज, नींबू माल्टा व अमरूद में भी IAA, IBA उपचार से बीजरहित फल प्राप्त किये जा सकते हैं ।
- आलू में कन्द (tuber) अंकुरण रोकने के लिए NAA का उपयोग किया जाता है।
- IBA, IPA तथा NAA द्वारा अनेक पादपों में फलन (fruit set) प्रेरित किया गया है।
8.IAA, IBA, 2,4–D,2,4. 5 – T इत्यादि के उपयोग से सेब, नाशपाती, अंगूर, नींबू, आम, संतरा इत्यादि फलों को समय पूर्व झड़ने से रोका जा सकता है।
- आम के पौधों पर NAA का छिड़काव करने से प्रतिवर्ष लगभग समान रूप से फलों की प्राप्ति होती है।