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जलीय पारितंत्र किसे कहते हैं |  वन पारितंत्र की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब aquatic ecosystem in hindi

aquatic ecosystem in hindi जलीय पारितंत्र किसे कहते हैं |  वन पारितंत्र की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब ?

पारितंत्रों के प्ररूप (Types of Ecosystems)
पारितंत्रों को मोटे तौर पर दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – स्थलीय पारितंत्र तथा जलीय पारितंत्र। स्थलीय पारितंत्र (Terrestrial ecosystems) थल पर पाए जाते हैं। इनको और आगे घास स्थल पारितंत्र, वन पारितंत्र तथा कृषि-पारितंत्र आदि में वर्गीकृत किया जा सकता है। जलीय पारितंत्र (Aquatic ecosystems) जल के भीतर पाए जाते है। इन्हें और आगे अलवणजलीय (नदी) पारितंत्र, समुद्री, पारितंत्र अथवा ज्वारनदमुख (estuarine) पारितंत्रों में विभाजित किया जा सकता है।
ज्वारनदमुख वहां बनते हैं जहां नदी समुद्र में आकर मिलती है।

 जलीय पारितंत्र (Aquatic ecosystems)
जलीय पारितंत्रों में आते हैं तालाब, झील, नदी अथवा महासागर। इसके अजैविक पदार्थों में ये आते हैं मूलभूत अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिक जैसे जल, कार्बन डाइआक्साइड, ऑक्सीजन, मृदा, कैल्शियम, नाइट्रोजन, गंधक, फॉस्फोरस, ऐमीनो अम्ल, आदि। कुछ जीवनावश्यक पोषक विलयन में पाए जाते हैं और जीवधारियों को तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। मगर उनका एक बहुत बड़ा अंश निर्जीव पदार्थ में और साथ ही साथ स्वयं जीवों के भीतर भी सुरक्षित रहता है। जलीय पारितंत्र के विविध जैविक घटक इस प्रकार हैंरू

क) स्वपोषी (Autotrop s) पद
तालाब पारितंत्र में उत्पादक जीव दो मुख्य प्रकार के होते हैं –

प) बृह्तपादप (Macrophytes) – ये जड़युक्त पौधे होते हैं अथवा बड़े तिरते पौधे । ये केवल उथले जल में उगते हैं।
पप) पादपप्लवक (Playtoplankton) – ये सूक्ष्म तिरते हुए पौधे होते हैं जिनमें प्रायरू शैवाल (algae) होते हैं जो जल की उन गहराइयों तक फैले रहते हैं जहाँ तक प्रकाश पहुंचता जाता है। प्रचुरता होने पर पादपप्लवक से जल हरा दिखायी पड़ने लगता है, अन्यथा सहसा देखने पर ये उत्पाद जीव दिखाई नहीं पड़ते। गहरे तालाबों, झीलों तथा समुद्रों में जड़युक्त वनस्पति की अपेक्षा पादपप्लवक अधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे ही पारितंत्र के लिए आधारभूत भोजन बनाते हैं।

ख) विषमपोषी (Heterotropis)
जलीय पारितंत्र के शाकभक्षी अथवा प्राथमिक उपभोक्ताओं को दो वर्गों में बांटा जा सकता है रू

प) प्राणिप्लवक (j~ooplankton) – ये जल के ऊपर तैरने वाले प्राणी होते हैं।
पप) नितलक (Bentims) रू ये जीव जल राशियों की तली में रहते हैं।

ये दो प्राणी रूप (विषमपोषी) दो स्वपोषी स्वरूपों अर्थात् पादपप्लवक एवं बृहतपादप के अनुरूप होते हैं। इन्हें एक अन्य नाम बृहत्उपभोक्ता (imacroconsumers) भी दिया जाता है क्योंकि ये उच्चतर प्राणी होते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण उपभोक्ता वर्ग सूक्ष्मजीवों का है जिन्हें सूक्ष्मउपभोक्ता (microconsumers) अथवा अपरदभक्षी (detritivores) कहते हैं। ये मृत जैविक पदार्थ का आहार करते हैं। इनकों तथा इनके साथ-साथ शाकभक्षियों को द्वितीयक उपभोक्ता अथवा प्राथमिक मांसभक्षी खाते है जैसे कि परभक्षी कीट अथवा मछलियां। छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां और बड़ी मछलियों को उनसे भी बड़ी मछलियां खाती हैं और इस प्रकार खाद्य श्रृंखला आगे तृतीयक एवं चतुर्थक स्तर तक चलती जाती है।

 वन पारितंत्र (Forest ecosystems)
वन पारितंत्र में अलग-अलग वृद्धि स्वरूपों वाले नानाविध वृक्ष तथा झाड़ियां एवं शाक आते हैं। वन का सबसे ऊपरी स्तर वितान (canopy) कहलाता है। यह सूर्य के प्रकाश एवं हवाओं के लिए पूरी तरह खुला रहता है। वृक्षों की ऊँचाई 3 मीटर से शुरू होकर 25-30 मीटर तक जाती हैं। विश्व के वनों को प्रधान जीवोमों में विभाजित किया जा सकता है जैसे कि उष्णकटिबंधीय वन (tropical forests), शीतोष्ण वन (temperate forests) तथा शंकुधर वन (coniferous forests) आदि ।

उष्णकटिबंधीय वन भारत, मलेशिया, उत्तर आस्ट्रेलिया, तथा दक्षिण अमेरिका के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है — उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (tropical rain forests) तथा उष्णकटिबंधीय ऋतुनिष्ठ वन (tropical sesaonal forests)। उष्णकटिबंधीय वर्षा वन वहां पाए जाते हैं जहां वर्षा घनी होती एवं वर्षपर्यंत होती रहती है। उधर दूसरी ओर उष्णकटिबंधीय ऋतुपरक वन उन क्षेत्रों में पाए जाते है जहां एक सूखी ऋतु आती है जिसमें पत्तियां झड़ जाती हैं।

शीतोष्ण वन उष्णकटिबंधीय वनों की अपेक्षा शीतलतर होते हैं। शीतोष्ण पर्णपाती वन उत्तर अमेरिका, यूरोप, पूर्वी एशिया, चिली आदि में पाए जाते हैं। संसार के सर्वाधिक ऊँचे वृक्ष जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के यूकैलिप्टस, इन वनों में 100 मीटर से भी अधिक ऊँचाई तक के हो सकते हैं।

शंकुधर वन उतर अमेरिका तथा यूरेशिया के उत्तरी भागों में टुण्ड्रा तथा शीतोष्ण पर्णपाती वनों के बीच पाए जाते हैं। ये अत्यंत ठंडे जलवायु में होते हैं। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतुएं अत्यंत छोटी तथा शीत ऋतुएं ज्यादा लम्बी होती हैं।

कृषि-पारितंत्र (Agro ecosystems)
कृषि-पारितंत्र का अंग्रेजी नाम agroecosystem, agricultural system का ही छोटा नाम है। कृषि-पारितंत्रों की विशेषता है कि इनसे अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु मानव इनमें सक्रिय रूप में हेर-फेर करता रहता है।

कृषि-पारितंत्र अर्थात् उगाए गए खेत प्राकृतिक पारितंत्रों (जैसे वन, घासस्थल अथवा झील) से भिन्न होते हैं क्योंकि इनमें अनेक प्राकृतिक तौर पर होने वाली प्रक्रियाओं को मानव-माध्यमित प्रक्रियाओं द्वारा बढ़ाया जाता है अथवा पूरी तरह बदल दिया जाता है। कृषि-पारितंत्रों को प्राकृतिक पारितंत्रों से निम्नलिखित बातों में अलग पहचाना जा सकता है –
.
ऽ प्राकृतिक पारितंत्र में पौधों से बीजों का प्राकृतिक प्रकीर्णन (natural dispersal fo seeds) होता हैं। जहां कहीं बीज गिर जाते हैं वहीं पर नए पौधे बन जाते हैं। कृषि-पारितंत्र में, प्राकृतिक बीज प्रकीर्णन के स्थान पर बीजों का बोया जाना हाथों से अथवा मशीनों से किया जाता है। मनुष्य धरती को बैलों अथवा ट्रैक्टर से जोतता है और फिर बीज बोता है।
ऽ प्राकृतिक पारितंत्र में, पौधों को अपने पोषक तत्व खनिजों के प्राकृतिक चक्र से प्राप्त होते हैं। पौधों की पत्तियां, शाकभक्षियों तथा

मांसभक्षियों के मृत शरीर विघटित हो जाते हैं और उनसे निकलने वाले पोषक तत्वों को पौधे सोख लेते हैं। कृषि पारितंत्र में कृषकगण फार्मयार्ड खाद और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम जैसे अकार्बनिक उर्वरक लगाते हैं जिनसे प्राकृतिक खनिज चक्रों में बढ़ोतरी होती है।
ऽ प्राकृतिक पारितंत्र में बहुत सी संख्या में पौधे एक साथ पाए जाते हैं और इस प्रकार प्राकृतिक पारितंत्र अधिक विविध होते हैं। प्रतिस्पर्धा के माध्यम से दुर्बल प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं। कृषि-पारितंत्र में फसल के पौधों को छोड़कर सभी अन्य पौधों (खरपतवार) को निकाल दिया जाता है और इस प्रकार यह एक अत्यन्त सरल समुदाय होता है।
ऽ कृषि-पारितंत्र में मिट्टी की जुताई होती है और उसे बीज बोने के लिए तैयार किया जाता है। इससे मृदा बनाने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है। मगर इससे मृदा अपरदन (soil erosion) भी होता है।
ऽ प्राकृतिक पारितंत्र में पादप विविधता के कारण अनेक मांसभक्षी प्रजातियां होती हैं। ये प्राकृतिक शत्रु पीड़कों की समष्टियों को नियंत्रण में रखती हैं। कृषि-पारितंत्र में सरल समुदाय के कारण प्राकृतिक शत्रु प्राणिता (natural enemyf auna) कम होती है। प्राकृतिक शत्रुओं के अभाव में पीड़कों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। अतरू पीड़कनाशियों का अथवा अन्य नियंत्रण उपायों का अपनाया जाना आवश्यक होता है।
ऽ कृषि-पारितंत्र में उच्च उपज किस्मों को उगाया जाता है और उनमें अधिक मात्रा में उर्वरक लगाए जाते हैं एवं सिंचाई की जाती है ताकि अधिक उपज मिल सके। पीड़कनाशियों के अनुप्रयोग से इन्हें बचाया जाता है। आनुवंशिक चयन के द्वारा फसलों की ऐसी किस्में पैदा की जाती हैं जिनमें वंशागत रूप में कीटों तथा रोगों के लिए प्रतिरोध पैदा हो गया हो। इस प्रकार आनुवंशिक चयन ने उस चयन प्रक्रिया जो इससे पहले स्वयं ही प्रकृति में होती थी, का स्थान ले लिया।

चूंकि कृषि-पारितंत्र में बहुत ही सरल समुदाय संरचना पायी जाती है इसलिए इनमें पीड़कों का महामारी के रूप में फैलना बहुत साधारण सी बात है। अतरू इनका प्रबंधन पारिस्थितिकी की दृष्टि से बहुत ही सही तरीके से किया जाना जरूरी है।

जीवन तंत्र (Life systems) – जीवन तंत्र की संकल्पना सबसे पहली बार क्लार्क (ब्संता) और अनेक साथियों ने 1967 में प्रस्तुत की थी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि किसी भी समष्टि को उस पारितंत्र से जिसके साथ वह परस्पर क्रिया करती है पृथक करके नहीं देखा जा सकता। जीवन तंत्र में पीड़क समष्टि और साथ में ष्प्रभावशाली पर्यावरण” दोनों साथ आते हैं। प्रत्येक कीट समष्टि (अथवा अन्य कोई समष्टि) नानाविध पर्यावरण कारकों से घिरी रहती है जिनका इस पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। तो प्रभावकारी पर्यावरण में आते हैं -खाद्य आपूर्ति, परभक्षी, रोगजनक, प्रतिस्पर्धी, छिपने के स्थान – यूं कहें कि कोई भी ऐसी चीज जिससे पीड़क प्रजाति की उत्तरजीविता, उसका जनन तथाध्अथवा उसका प्रक्रीर्णन बढ़ सकता है या सीमित हो सकता है।

बोध प्रश्न 4
प) पादप प्लवक किसे कहते हैं?
पप) नितलक शब्द से क्या अभिप्राय हैं?
पपप) वन पारितंत्र से किस प्रकार की वनस्पति पायी जाती है?
पअ) कृषि-पारितंत्र की परिभाषा लिखिए।

उत्तरमाला

4) प) ये सूक्ष्म प्लवी (तिरने वाले) पौधे होते हैं जो प्रायरू शैवाल होते हैं, और ये समस्त जल में जहां तक भी प्रकाश पहुंचता है,
पाए जाते हैं।
पप) जल राशियों की तली में रहने वाले जीवों को नितलक (benthos) कहते हैं।
पपप) वन पारितंत्र में वृक्ष, झाड़ियां तथा शाक आते हैं।
पअ) कृषि पारितंत्र एक ऐसा पारितंत्र होता है जो मानव द्वारा प्रचलित होता है ताकि उससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके।

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