अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान में विलय कब हुआ | अजमेर – मेरवाड़ा का विलय कब और कैसे हुआ ajmer merwada in hindi

ajmer merwada in hindi अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान में विलय कब हुआ | अजमेर – मेरवाड़ा का विलय कब और कैसे हुआ ?

राजस्थान के एकीकरण के किसी भी चरण पर यदि लघुत्तर में प्रश्न पूछा जाता है तो चरण की संख्या और उसका नाम , निश्चित तिथि , सम्मिलित राज्य और ठिकाने , राजधानी , राजप्रमुख , प्रधानमंत्री गुंजाइश हो तो उद्घाटनकर्ता और विशिष्ट तथ्य अवश्य याद होने चाहिए परन्तु तथ्य मात्र देना ही उत्तर नहीं होता बल्कि वह तो सूचना मात्र हो जाती है , अत: इन तथ्यों को क्रमबद्धता के साथ जोड़ना चाहिए।

प्रश्न : संयुक्त राजस्थान के बारे में जानकारी दीजिये। 
उत्तर : 18 अप्रैल 1948 ईस्वीं को मेवाड़ राज्य को पूर्व राजस्थान में मिलाकर ‘वृहद राजस्थान’ का निर्माण कर राजस्थान के एकीकरण का तीसरा चरण पूरा हुआ। इसका उद्घाटन पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया। उदयपुर को इसकी राजधानी बनाया गया। मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह को राजप्रमुख , कोटा महाराव भीमसिंह को उपराजप्रमुख और माणिक्य लाल वर्मा को संयुक्त राजस्थान का प्रधानमंत्री बनाया गया। इस प्रकार भारत के प्राचीनतम राजवंश के शासन का समापन हो गया।
प्रश्न : वृहद् राजस्थान किसे कहते है बताइए ?
उत्तर : 30 मार्च 1949 ईस्वीं को राज्य की चार बड़ी रियासतों जयपुर जोधपुर , बीकानेर और जैसलमेर को संयुक्त राजस्थान में मिलाकर “वृहद राजस्थान” का निर्माण कर राजस्थान के एकीकरण का चतुर्थ और महत्वपूर्ण चरण पूरा हुआ। जयपुर को राजधानी बनाया गया , हाईकोर्ट जोधपुर में और शिक्षा विभाग बीकानेर में स्थापित किये गए। जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राजप्रमुख , महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख और पं. हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। 30 मार्च अब “राजस्थान दिवस ” के रूप में मनाया जाता है।
प्रश्न : राजस्थान के एकीकरण में सिरोही के विलय की समस्या क्या थी ?
उत्तर : सरदार पटेल ने सिरोही को नवम्बर 1947 में बम्बई प्रान्त के अंतर्गत कर दिया जो गोकुल भाई भट्ट की जन्मभूमि था। शास्त्री जी ने कहा सिरोही और गोकुल भाई भट्ट का अर्थ एक ही है। गोकुल भाई के बिना हम राजस्थान नहीं चला सकते। राजस्थान के एकीकरण के छठे चरण में जनवरी 1950 को देलवाडा और आबू बम्बई प्रान्त में और शेष सिरोही (गोकुल भाई भट्ट सहित) राजस्थान में मिला दिया गया। सिरोही की जनता ने गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में एक लम्बा आन्दोलन इस निर्णय के विरुद्ध छेड़ा। यह आंदोलन तब समाप्त हुआ जब 1 नवम्बर 1956 को सिरोही को देलवाडा और आबू सहित राजस्थान में मिलाया गया।
प्रश्न : अजमेर – मेरवाड़ा का विलय कब और कैसे हुआ ?
उत्तर : अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की राजपूताना प्रान्तीय सभा की सदैव यह मांग रही थी कि वृहद् राजस्थान में न केवल प्रान्त की सभी रियासतें वरन अजमेर का इलाका भी शामिल हो। पर अजमेर का कांग्रेस नेतृत्व कभी इस पक्ष में नहीं रहा। सन 1952 के आम चुनावों के बाद वहाँ श्री हरिभाऊ उपाध्याय के नेतृत्व में कांग्रेस मंत्रीमंडल बन चूका था। अब तो वहां का नेतृत्व यह दलील देने लगा कि प्रशासन की दृष्टि से छोटे राज्य ही बनाये रखना उचित है। राज्य पुनर्घठन आयोग ने अजमेर के नेताओं के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया तथा सिफारिश की कि उसे राजस्थान में मिला देना चाहिए। तदनुसार ता. 1 नवम्बर 1956 को माउंट आबू क्षेत्र के साथ ही साथ अजमेर मेरवाडा भी राजस्थान में मिला दिया गया।
प्रश्न : राजस्थान के एकीकरण का अंतिम अथवा सप्तम चरण क्या है ?
उत्तर : 1 नवम्बर 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राजस्थान में केंद्र शासित प्रदेश अजमेर मेरवाड़ा , आबू देलवाड़ा और मध्यप्रदेश का सुनेल टप्पा क्षेत्र को मिलाया और कोटा का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में विलय कर राजस्थान के एकीकरण की पूर्णहुति की। 1 नवम्बर “राजस्थान स्थापना दिवस” के रूप में मनाया गया। इसी दिन राजशाही के अंतिम अवशेष “राजप्रमुख पद” समाप्त कर राज्यपाल पद सृजित कर लोकतंत्र की स्थापना हुई। राजस्थान ‘अ’ श्रेणी के राज्य में वर्गीकृत हुआ।
प्रश्न : ‘सरदार’ हरलालसिंह खर्रा ?
उत्तर : सरदार हरलाल सिंह का जन्म झुंझुनू जिले के हनुमानपुरा गाँव में 1902 ईस्वीं में हुआ था। सरदार हरलाल सिंह अशिक्षित थे। हरलालसिंह ने रियासती और जागीरदारी जुल्मों का डटकर विरोध किया। किसान और प्रजामंडल आन्दोलन में इन्होनें सक्रीय भूमिका निभाई। ‘विद्यार्थी भवन झुंझुनू’ की स्थापना कर उसे राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। इसी केन्द्र से उन्होंने किसान आन्दोलन का सञ्चालन किया। कुशल नेतृत्व के कारण उनके सहयोगियों ने उसे ‘सरदार’ की उपाधि दी।
प्रश्न : रामनारायण चौधरी , नीम का थाना के बारे में जानकारी दीजिये। 
उत्तर : इन्होने बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व भी किया। 1919 में उनकी केसरी सिंह बारहठ तथा विजयसिंह पथिक से मुलाकात हुई और उन्हीं के साथ साप्ताहिक ‘राजस्थान केसरी’ के सम्पादन में सहायता करने लगे। इनके सहयोग से ही वर्धा में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना की गयी। जिसके अध्यक्ष श्री विजय सिंह पथिक और मंत्री श्री रामनारायण चौधरी को बनाया गया। 1920 में उन्होंने अजमेर में “राजस्थान सेवा संघ” का मुख्यालय स्थापित किया। 1930 ईस्वीं के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में इन्होने सक्रीय भाग लिया तथा जेल गए। 1932 ईस्वीं में ‘हरिजन सेवक संघ’ की राजपूताना शाखा का कार्यभार सम्भाल। गाँधी जी और नेहरु जी पर इन्होने अनेक पुस्तकें लिखी। ‘बीसवीं सदी का राजस्थान’ पुस्तक इनके द्वारा ही लिखी गयी। पत्रकार के रूप में चौधरी जी ने ‘राजस्थान केसरी’ , ‘राजस्थान केसरी’ , ”तरुण राजस्थान” , ‘नवीन राजस्थान का संपादन किया।  ‘आजादी के बाद ये भारत सेवक समाज के सूचना मंत्री बनाये गए।