अढ़ाई दिन का झोपड़ा किसने बनवाया था | where is adhai din ka jhonpra constructed by in hindi

where is adhai din ka jhonpra constructed by in hindi अढ़ाई दिन का झोपड़ा किसने बनवाया था ?
कुतुब मीनार (Qutub Minar)
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के परिसर में बनी, कुतुबमीनार की नीव कुतुबुद्दीन ऐबक ने बारहवीं शताब्दी के अन्त में नमाज पढ़ने का आह्वान करने वाले मुअज्जिन (ऐलान करने वाले) के लिए रखवाई और पहली मंजिल का निर्माण करवाया था जिस पर तीन और मंजिलों का निर्माण उसके उत्तराधिकारी और दामाद, शम्मसुद्दीन इल्तुतमिश (121-1-1236/ई.) ने करवाया था। कुतुब मीनार का निर्माण संभवतया सूफी ‘ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार, काकी‘ की स्मृति में कराया गया था। लाल और हल्के पीले रंग के बलुआ पत्थर से निर्मित कुतुब मीनार भारत की सबसे ऊंची मीनार है। कुल 379 सीढ़ियों वाली इस इमारत के आधार पर इसका व्यास 14.32 मोटर शीर्ष लगभग 2.75 मीटर और इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है। सभी मंजिलें बाहर की ओर निकले छज्जों से घिरी हैं जो मोनार के चारों ओर हैं और इनको छत्तेदार डिजाइन से अलंकृत पत्थर के ब्रेकटों द्वारा सहारा दिया गया है। पहली मंजिल पर यह डिजाइन अधिक सुस्पष्ट है। मीनार के विभिन्न स्थानों पर अरबी और नागरी लिपि में अनेक अभिलेख मौजूद हैं। इसकी मरम्मत फिरोजशाह तुगलक और सिकंदर लोदी ने करवाई थी। मेजर आर. स्मिथ ने भी इसकी मरम्मत और इसका पुनरूद्धार करवाया था। यह देश का पहला स्मारक है जहाँ ई-टिकट की सुविधा उपलब्ध कराई गयी है।

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा (Adhai Din Ka Jhonpra)
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा‘ नामक मस्जिद का निर्माण अजमेर में करवाया। माना जाता है कि यहाँ चलने वाले ढाई दिन के उर्स के कारण इसका यह नाम पड़ा। यह मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की तुलना में अधिक बड़े आकार का एवं आकर्षक है। इस मस्जिद के आकार को कालान्तर में इल्तुतमिश द्वारा विस्तार दिया गया। इस मस्जिद में भारतीय शैली में अलंकृत स्तम्भों का प्रयोग किया गया, जिस पर ऊँची छत का निर्माण किया गया है। इसमें मुख्य दरवाजे सहित सात मेहराबदार दरवाजे बनाये गये हैं। मुख्य दरवाजा सर्वाधिक ऊँचा है। मस्जिद के प्रत्येक कोने में चक्राकार एवं बांसुरी के आकार की मीनारें निर्मित हैं।

सुल्तान गारी का मकबरा या सुल्तान गढ़ी (Tomb of Nasiru’d Din Mahmud, Sultan Gadhi)
सुल्तान गारी या सुल्तान गढ़ी मकबरे का निर्माण इल्तुतमिश ने अपने ज्येष्ठ पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की याद में दिल्ली में कुतुब मीनार के निकट 1231 ई. में करवाया था। यह सल्तनत काल का पहला मकबरा है। यह भवन आकार में किले जैसा प्रतीत होता है। इसकी चाहरदीवारी के बीच में बड़ा आंगन है और उसमें एक अष्टकोणीय चबूतरा बना हुआ है जो नीचे बने मकबरे की छत भी है। इसमें भूरे पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है। मस्जिद में निर्मित मेहराबों में मुस्लिम कला एवं पूजास्थान तथा गुम्बद के आकार की छत में हिन्दू कला शैली का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस मकबरे के पास दो अन्य कब्रे इल्तुतमिश के दो अन्य बेटों रूकनुद्दीन फिरोज और मुईनुद्दीन फिरोज की हैं।

इल्तुतमिशं का मकबरा (Tomb of Iltutmish)
इस एक कक्षीय मकबरे का निर्माण इल्तुतमिश द्वारा कुव्वत-उल-मस्जिद के समीप लगभग 1235 ई. में करवाया गया था। इस इमारत के तीन तरफ पूर्व, दक्षिण एवं उत्तर में प्रवेश द्वार बने हैं। इस ऊँची छत वाले मकबरे की दीवारों पर कुरान की आयतें खुदी हैं। मकबरे में बने गुम्बदों में घुमावदार पत्थर के टुकड़ों का प्रयोग किया गया है। गुम्बद के चैकोर कोने में गोलाई लाने के लिए विशेष शैली का प्रयोग किया गया है। इल्तुतमिश ने इसके अलावा दिल्ली में हौज-ए-शम्सी या शम्सी तालाब, गंधक की बावली और मदरसा-ए-नासीरिया, बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में जामी मस्जिद और नागौर (राजस्थान) में अतारकिन का दरवाजा का निर्माण कार्य करवाया। उसके बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठी रजिया की कब्र दिल्ली के बाबुलीखाना में बनी है पर कुछ विद्वान मानते हैं कि उसकी कब्र कैथल (करनाल, हरियाणा) में है।

बलबन का मकबरा (Tomb of Ghiyasuddiri Balban)
दिल्ली में कुतुब परिसर में स्थित सुल्तान बलबन का मकबरा वास्तुकला की दृष्टि से इसलिए महत्त्वपूर्ण रचना मानी जाती है क्योंकि इस वर्गाकार मकबरे में सर्वप्रथम वास्तविक मेहराब का रूप मिलता है। कुछ विद्वान इसे पहले गुम्बद वाली इमारत भी मानते हैं। यद्यपि यह गुम्बद अब गिर चुका है। बलवन के मकबरे के पास उसके पुत्र खा शहीद का भी मकबरा बनाया गया है। माना जाता है कि बलबन ने 1255 में दिल्ली में ही लाल महल (कुश्के लाल) और किला मर्गजन बनवाया। बलबन के पोते कैकुबाद ने दिल्ली के किलोखड़ी इलाके में किला (किलघेेरी या कस्त्रे मौइज्जीया नया शहर) बनवाया जिसे बाद में जलालुद्दीन खिलजी ने पूरा किया।

खिलजी वास्तुकला (ज्ञीपसरप ।तबीपजमबजनतम)
खिलजी सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अनेक निर्माण कार्य शुद्ध इस्लामी शैली के अन्तर्गत करवाये। इसलिए उसके युग का स्थापत्य एक तरह से स्थापत्य के इतिहास में एक नया प्रस्थान बिंदु है। उसके काल की इमारतों का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है-

सीरी का किला (Siri Fort)
अलाउद्दीन ने सीरी में 1303 में तत्कालीन पुरानी दिल्ली यांनी पृथ्वीराज चैहान के रायपिथौरा किले के स्थान को छोड़ कर ‘सीरी‘ नामक नगर की स्थापना की। सीरी को मुस्लिम शासनकाल का पहला शहर (नौ-शहर) और दारुल खिलाफ़त भी कहा जाता है। इसके भीतर उसने कस्ने हजार सितून (हजार खंभों का महल) भवन बनवाया। इसके अहाते में तोहफेवाला गुम्बद आज भी मौजूद है। इस नगर के बाहर अलाउद्दीन खिलजी ने एक तालाब हौज-ए-अलाई या हौज खास का निर्माण करवाया था। इस झीलनुमा तालाब की मरम्मत फीरोज तुगलक ने करवाई। बाद में इस किले के अधिकांश मलबे का इस्तेमाल शेरशाह सूरी ने खुद के बसाए नये शहर में किया।

अलाई दरवाजा (Alai Darwaza)
इसका निर्माण कार्य अलाउद्दीन खिलजी ने 1310-1311 ई. में करवाया। यह पहली इमारत है जो पूरी तरह इस्लामिक वास्तुकला के सिद्धांतों पर बनी। इसमें सेल्जक स्थापत्य कला की विशेषताएं भी मिलती हैं। प्रवेश द्वार का प्रयोग होने वाली यह इमारत नीचे से चैकोर है लेकिन ऊपर की तरफ अष्टकोणीय हो गई है। चारों दिशाओं में मेहराब वाले दरवाजों वाली इस इमारत में लाल पत्थर एवं संगमरमर का प्रयोग किया गया है, साथ ही आकर्षक ढंग से कुरान की आयतें लिखी गयी हैं। बेहद सधन अलंकरण, संगमरमर की बारीक काम वाली जालियाँ, खिडकियों पर आले, घोडे़ के नाल के आकार की मेहराब, कमल कली जैसा अलंकरण इस इमारत की विशेषताएँ हैं। पहली बार वास्तविक गुम्बद का स्वरूप अलाई दरवाजा में ही दिखाई देता है।
इन दो प्रमुख इमारतों के अलावा अलाउद्दीन ने कुतुब मीनार के निकट उससे आकार में दोगुनी बड़ी मीनार बनवाने का कार्य प्रारंभ किया लेकिन इसकी अधुरी पहली मंजिल ही बन पाई। अलाउद्दीन ने चोरों को दंड देने के लिए कुतुब मीनार के पास एक छोटे आकार की ‘चोर-मीनार‘ बनवाई। अलाउद्दीन खिलजी को कुतुब परिसर में दफनाया गया है। उसके मकबरे के पास एक मदरसा भी चलाया जाता था। मदरसा और मकबरा एक साथ होने का यह पहला प्रमाण है जो कि संभवतया सेल्जुक वास्तुकला से प्रेरित है। खिलजी काल में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास पूरी तरह से इस्लामी परंपरा में निर्मित पहली मस्जिद जमात खां मस्जिद तथा मुबारक खिलजी द्वारा भरतपुर के बयाना में ऊखा (ऊषा) मस्जिद बनवाई गयी।