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Categories: chemistrychemistry

सक्रियता किसे कहते हैं , सक्रियता गुणांक की परिभाषा क्या है Activity and Activity Coefficient in hindi

Activity and Activity Coefficient in hindi सक्रियता किसे कहते हैं , सक्रियता गुणांक की परिभाषा क्या है ?

सक्रियता एवं सक्रियता गुणांक (Activity and Activity Coefficient) एक-एक संयोजी विद्युत अपघट्य का वियोजन निम्न प्रकार से होता है- AB — A + B

इस साम्य का वियोजन स्थिरांक निम्नानुसार दिया जाता है।

सामान्यतया प्रायोगिक कार्य में सक्रिय द्रव्यमान को मोलर सान्द्रता में ही व्यक्त किया जाता है, अतः K के मान को निम्न प्रकार भी लिखा जा सकता है-

यहाँ CA+ CB_ तथा CAB क्रमश: A, B तथा AB की मोलर सान्द्रताऐं है। यह पाया गया है कि समीकरण (43) द्वारा प्राप्त K के मान स्थिर नहीं आते हैं, बल्कि सान्द्रता वृद्धि के साथ K के मानों में भी कुछ वृद्धि पायी जाती है। K के मानों में वृद्धि का मुख्य कारण धनायनों एवं ऋणायनों के मध्य अन्तरा-आयनी (inter ionic) आकर्षण बल है। इन अन्तरा – आयनी आकर्षण बलों के कारण विद्युत अपघट्य का विलयन इस प्रकार आचरण करता है कि मानों सान्द्रता, वास्तविक सान्द्रता से कम हो । इस प्रकार विद्युत अपघट्य के विलयन की प्रभावी सान्द्रता (effective concentration) उसकी वास्तविक सान्द्रता से कम होती है। लुइस ने इस प्रभावी सान्द्रता के लिए सक्रियता (activity) पद का प्रयोग किया है। यदि समीकरण (43) में सान्द्रता पदों के स्थान पर सक्रियता (a) का प्रयोग किया जाये… तो K का मान निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है-

सक्रियता का उपयोग करते हुए यदि K के मान ज्ञात किये जाते हैं तो वे बिल्कुलं स्थिर प्राप्त होते हैं। सक्रियता (प्रभावी सान्द्रता) तथा वास्तविक सान्द्रता में सम्बन्ध निम्न समीकरण द्वारा ज्ञात किया जाता है-

a = fC  ………….(45)

यहाँ f एक स्थिरांक है जिसे सक्रियता गुणांक (Activity coefficient) कहते हैं।

अथवा    f = a/C …………………(46)

अतः सक्रियता गुणांक, प्रभावी सान्द्रता (सक्रियता) एवं वास्तविक सान्द्रता का अनुपात है। यदि सान्द्रता को मोललता (m) में अर्थात् मोल प्रति 1000 ग्राम विलायक के रूप में व्यक्त किया जाता है तो सक्रियता गुणांक को (gamma) द्वारा प्रदर्शित करते हैं अतः

जैसे-जैसे विलयनों को तनु किया जाता है धनायनों एवं ऋणायनों के मध्य अन्तरा – आयनिक आकर्षण बल कम होते जाते हैं तथा fका मान 1 की ओर बढ़ता है (f – 1)। इस प्रकार a का मान C के निकट होता जाता है। अनन्त तनु विलयनों में fका मान 1 के अत्यन्त निकट होता है अतः a = C होगा। अतः f तथा y के मान समान होते हैं। f तथा  y के कोई मात्रक नहीं होते हैं। सान्द्र वि में f का मान 1 से दूर होता जाता है। अतः वास्तविक सान्द्रता व प्रभावी सान्द्रता में अन्तर अधिक हो

जाता है।

 विद्युत अपघट्य की माध्य सक्रियता तथा माध्य सक्रियता गुणांक (Mean activity and Mean Activity coefficient of Electrolytes)

समीकरण (44) में आयनों की सक्रियताओं का उपयोग किया गया है। परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि आयनों की सक्रियतायें प्रयोग द्वारा ज्ञात नहीं की जा सकती क्योंकि एक ही प्रकार के आयनों का विलयन बनाना सम्भव नहीं है। परन्तु आयनों की सक्रियताओं को विद्युत अपघट्य की सक्रियता से सम्बनि जात किया जा सकता है। माना कि विद्युत अपघट्य AB का वियोजन निम्न प्रकार से होता है-

AB = A+ + B

यदि AB की सक्रियता a हो तथा धनायन एवं ऋणायन की सक्रियताऐं क्रमश: a तथा a हों तो

a = a + a ….(48)

चूँकि a तथा a_ के प्रायोगिक मान ज्ञात नहीं किये जा सकते अतः धनायन एवं ऋणायन की एक माध्य सक्रियता (mean activity) या माध्य आयनिक सक्रियता (mean ionic acitivity) a+ मान ली जाती है।

चूँकि विद्युत अपघट्य की सक्रियता a ज्ञात होती है, अतः आयनों की माध्य सक्रियता (a_) का मान ज्ञात किया जा सकता है।

इस प्रकार यदि, तथा f_ क्रमशः धनायन एवं ऋणायन के सक्रियता गुणांक हो तो माध्य सक्रियता गुणांक (mean activity coefficient) का मान निम्न समीकरण द्वारा दिया जाता है-

सक्रियता एवं आयनों की माध्य सक्रियता में सम्बन्ध भी इसी प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।

 माध्य सक्रियता तथा माध्य सक्रियता गुणांक में सम्बन्ध (Relation between mean activity and mean activity coefficient)

यदि C+ तथा C_क्रमशः धनायनों एवं ऋणायनों की सान्द्रताऐं हों तो इनकी सक्रियताओं के मान निम्न प्रकार से लिखे जा सकते हैं-

ये मान समीकरण (53) में प्रतिस्थापित करने पर

सान्द्रता के साथ माध्य सक्रियता गुणांक में परिवर्तन (Variation of Mean Activity Coefficient with Concentration) : विभिन्न विद्युत अपघटयों के लिए भिन्न-भिन्न सान्द्रताओं पर माध्य सक्रियता गुणांक (f+  या Y+ ) के मान सारणी में दिए गए है

सारणी 5.10 में दिए गए मानों को देखे तो स्पष्ट होता है कि 

(i) बहुत कम सान्द्रता पर विद्युत अपघट्य की सक्रियता गुणांक का मान लगभग इकाई होता है। तथा जैसे-जैसे विद्युत अपघट्य विलयन की सान्द्रता बढ़ती है माध्य सक्रियता गुणांक का मान कम होता जाता है और न्यूनतम पर पहुँचता है तथा सान्द्रता में ओर अधिक वृद्धि करने पर माध्य सक्रियता गुणांक पुनः बढ़ने लगता है तथा कुछ के लिए इसका मान एक ईकाई से भी अधिक हो जाता है। (चित्र 5.9)

चित्र 5.9 में विभिन्न विद्युत अपघट्यों के लिए माध् य सक्रियता गुणांक को मोललता के वर्गमूल (m) के विपरीत आलेखित किया गया है। (ii) अन्नत तनुता पर सभी विद्युत अपघटयों के माध्य सक्रियता गुणांक के मान एक के समीप होते हैं।

(iii) सारणी से स्पष्ट है कि अत्यन्त तनु विलयनों में एक ही प्रकार के विद्युत अपघट्य जैसे- HCI, NaCl KCI जैसे एक-एक संयोजी विद्युत अपघट्य के माध्य सक्रियता गुणांकों के मान समान सान्द्रताओं पर लगभग समान होते हैं।

(iv) किसी दी हुई सान्द्रता पर दोनों आयनों की संयोजकता का गुणनफल जितना अधिक होगा सक्रियता गुणांक का विचलन भी एक से उतना ही अधिक होगा। उदाहरणार्थ : सान्द्रता 0.5m पर KCI, CaC2व ZnSO4 के क्रमशः मान 0.651, 0.457,0.063 है।

आयनिक सामर्थ्य ( lonic Strength) विलयनों के कुछ गुण उपस्थित आयनों के मध्य अन्तरा – आयनी आकर्षण बलों पर निर्भर करते हैं। यदि इन गुणों को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों का अध्ययन करना हो तो विलयन में इन अन्तरा आयनी आकर्षण बलों को समान रखना आवश्यक है। इन आकर्षण बलों को मापने के लिए लुइस (Lewis ) और रेण्डल (Randall) ने एक नये पद आयनिक सामर्थ्य की धारणा प्रचलित की है। विलयन में आयनों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न विद्युत तीव्रता (electrical intensity) का माप विलयन की आयनिक सामर्थ्य कहलाती है। इसे द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। “यह उन सभी पदों के योग का आधा होता है, जो विलयन में उपस्थित प्रत्येक आयन की सान्द्रता तथा संयोजकता के वर्ग के गुणनफल से प्राप्त होता है। इसे गणितीय रूप में निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता

यहाँ C1, C2, C3…. आदि विभिन्न आयनों की सान्द्रतायें तथा Z1, Z2, Z3… आदि उनकी संगत संयोजकतायें (आवेश) है । यदि सान्द्रताओं को मोललता (m) में व्यक्त किया जाता है तो-

लुइस एवं रेण्डल के अनुसार समान आयनिक सामर्थ्य के तनु विलयनों में विद्युत अपघट्यों माध्य सक्रियता गुणांक समान रहता है। यह लूइस-रेण्डल का नियम कहलाता है।

यहाँ ध्यान देने योग्य है कि आयनिक सामर्थ्य विलयन का गुण है न कि विलयन में उपस्थित किसी आयन विशेष का। . एक–एक संयोजी (Uni-univalent) विद्युत अपघट्यों जैसे HCl, NaCl, NaBr आदि के लिए तनु विलयनों में आयनिक सामर्थ्य का मान उनकी सान्द्रताओं के समान ही होता है। इन विद्युत अपघट्यों के का मान निम्न समीकरण द्वारा दिया जा सकता है

विलयन में दो प्रकार के आयन (धनायन एवं ऋणायन) उपस्थित है । जिन पर आवेश +1 तथा -1 है। यदि C सान्द्रता हो तो C1 = C2 = C है।

ये मान समीकरण (63) में प्रतिस्थापित करने पर

डेबाई-हुकेल सीमान्त नियम (Debye-Huckel Limiting Law) जैसा कि पूर्व में बताया गया है, माध्य सक्रियता गुणांक का मान तनु विलयनों में इकाई नहीं होता f के इकाई से विचलन को डेबाई – हुकेल सिद्धान्त द्वारा समझाया जा सकता है। डेबाई–हुकेल ने माध्य सक्रियता गुणांक एवं आयनिक सामर्थ्य में मात्रात्मक सम्बन्ध (Quantitative relation) व्युत्पन्न_ किया है जिसे सीमान्त नियम समीकरण (Limiting Law Equation) कहते हैं। यह समीकरण निम्न प्रकार है-

यहाँ A एक स्थिरांक है जो विलायक की प्रकृति एवं ताप पर निर्भर करता है। 25°C ताप पर जल के लिए A का मान 0.509 होता है

यहाँ Z+ तथा Z_ क्रमशः विद्युत अपघट्य के धनायन एवं ऋणायन पर आवेश है तथा अपघट्य की आयनिक सामर्थ्य है। इस समीकरण को अनन्त तनुं विलयनों तक की सीमा तक उपयोग किया जा सकता है। अतः इसके साथ सीमान्त शब्द का उपयोग किया गया है। समीकरण (65) डेबाई- हुकेल का सीमान्त समीकरण कहलाता है। समीकरण (65) द्वारा f. के परिकलित मान, विभिन्न सान्द्रताओं पर प्रायोगिक रूप से प्राप्त मानों के अनुरूप प्राप्त होते हैं।

डेबाई-हुकेल सीमान्त समीकरण द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं जिनकी पुष्टि सारणी में दिये f के मानों द्वारा की जा सकती है।

1. log f का ऋणात्मक मान दर्शाता है कि f का मान 1 से कम है।

2. किसी विद्युत अपघट्य के लिये चूंकि Z, तथा Z स्थिरांक होते हैं अतः f का मान केवल आयनिक सामर्थ्य पर निर्भर करेगा ।

3. दो विद्युत अपघट्यों के Z तथा Z_ के मान समान हो तो समान आयनिक सामर्थ्य के विलयनों ‘ में f के मान समान होने चाहिये। यही लुइस और रेण्डल का नियम है। सारणी (5.9) में तनु विलयनों के लिए f के मान भी इस बात की पुष्टि करते हैं।

4. यदि का मान समान रखा जाता है तो f का मान Z,Z_ पर निर्भर करेगा, अर्थात् के मान का इकाई से विचलन अधिक होगा। सारणी (5.9) में दिये f के मानों से यह स्पष्ट है ।

5. आलेख से स्पष्ट है कि सान्द्रता बढ़ने के साथ विचलन भी बढ़ता है अर्थात् यह नियम तनु विलयनों पर ही लागू होता है। चित्र (5.10) में ठोस रेखा प्रायोगिक मान को प्रदर्शित करती है जबकि टूटी रेखा अपेक्षित व्यवहार को दर्शाती है।

6. समीकरण ( 65 ) का प्रायोगिक सत्यापन भी सम्भव है। समीकरण के अनुसार यदि logf को Vu के विरूद्ध आलेखित किया जाये तो एक सरल रेखा प्राप्त होती है जो कि मूलबिन्दु से गुजरती है। चित्र (5.10) में इस प्रकार का आलेख दिखाया गया है।

प्राप्त सरल रेखाओं का ढ़ाल (Slope) Z, तथा Z_ के गुणनफल पर निर्भर करेगा। एक-एक संयोजी विद्युत अपघट्य के लिये ढ़ाल का मान 0.509 एक द्विसंयोजी तथा द्वि-एक संयोजी के लिये 2 x 0.509 होगें । अत्यन्त तनु विलयनों में ये मान प्रायोगिक मानों के निकट पाये जाते हैं चित्र 5.10 से यह भी स्पष्ट है कि जैसे-जैसे विलयन तनु होता जाता है अर्थात् u का मान uघटता है, समीकरण (65) की वैधता (Validity) बढ़ती जाती है।

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