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जरायुज और अण्डयुज जन्तु या प्राणी किसे कहते है ? Ovoviviparity & Oviparity in hindi अण्ड जरायुज क्या है

Ovoviviparity & Oviparity in hindi meaning and definition अण्ड जरायुज क्या है , जरायुज और अण्डयुज जन्तु या प्राणी किसे कहते है ? जरायुजता अर्थ बताइये ?

जन्तु विज्ञान

जीवन

जीवन की उत्पत्ति समुद्र से हुई। प्रथम संभावित स्वगुणक अणु थे। यह के समान ही एक न्यूक्लिक अम्ल हैं। इसका स्वय को गुणित करने का गुण जीवन के निर्माण में महत्वपूर्ण है। इसे विश्व परिकल्पना कहा जाता है।

सभी सजीवों के पूर्वज संभवतः को जैन पदार्थ के रूप में प्रयोग करते थे। इससे जीवन के तीन मुख्य वंश परम्परा को बल मिला। ये हैंः प्रोकॅरियोट (साधारण जीवाणु). आकाई जीवाणु और यूरियोट।

* जीव-जंतुओं के नामकरण एवं वर्गीकरण के अध्ययन को वर्गिकी कहा जाता है।

* अरस्तु ने प्राकृतिक समानताओं एवं विषमताओं के आधार पर जन्तुओं को दो प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया है।

  1. 1. ऐनैइमा: इस समूह के जंतुओं में लाल रुधिर का अभाव होता है, जैसे-स्पंज, सीलेन्ट्रेटा, मेलस्का, आर्थोपोडा, इकाइनोडर्मेटा आदि।
  2. 2. इनैइमाः ऐसे जंतुओं में लाल रुधिर मौजूद होता है। इसमें कशेरुकी जंतुओं को शामिल किया गया, जिनको दो उपसमूहों में वर्गीकृत किया गया है:

उपसमूहों में वर्गीकृत किया गया हैः

जरायुज: इसके अन्तर्गत स्तनधारी प्राणियों (पशु. मनुष्य व अन्य स्तनी) को शामिल किया गया।

अण्डयुजः इस उपसमूह के अन्तर्गत अण्डे देने बाले जंतुओं (उभयचर, मतस्य, सरीसृप, उभयचर आदि) को सम्मिलित किया गया।

आधुनिक जैविक खोज का संक्षिप्त इतिहास

* 1838: कोशिका सिद्धांत से आधुनिक कोशिका जीव विज्ञान की शुरूआत

* 1865: आनुवंशिकत्ता के मूल नियमों (मैडल) से आधुनिक आनुवंशिकी की शुरूआत

* 1875: विकासवादी सिद्धांत (डार्विन)

* 1953: डीएनए की संरचना का निर्धारण (वाटसन एवं क्रिक

* 1960: प्रोटीन की पहली क्रिस्टलीय संरचना

* 1972: डीएनए अणु (वर्ग, कोहेन, बोयर) का पहली बार पुनः संयोजन

* 1977: तीन अनुक्रमण तकनीक (गिल्बर्ट एवं सेंगर)

* 1994-95: डीएनए सारणियों की शुरूआत

* 1995: जीयों के लिए पहला पूर्ण जीनोम अनुक्रम 2001: मानव जीनोम अनुक्रम का पहला मौसदा पेश किया गया।

जन्तु-जगत का वर्गीकरण

जीव संरचना के स्तर

  1. 1. कोशिकीय स्तर
  2. 2. ऊतक स्तर
  3. 3. अंग स्तर
  4. 4. अंग तंत्र स्तर

आधुनिक वर्गीकरण

मेटाजोआ जगत या पोरीफेरा

* रॉबर्ट ग्राण्ट ने 1825 ई. में पोरीफरा शब्द का प्रयोग किया था। बहुकोशिकीय जलीय, द्विस्तरीय, शरीर पर असख्य छिट, अनियमित आकृति एवं पुनरूद्भवन की क्षमता वाले जीव होते हैं। इनका शरीर ऊतकहीन और संवेदनहीन होता है। उदाहरण: साइकन, यूरपंजिया, स्पंजिला, यूप्लेक्टेला आदि ।

* यूप्लेक्टेला को ‘वीनस के फूलों की डलिया’ कहा जाता है।

* स्पंजिला मीठे पानी में पाया जाने वाला स्पंज है।

* यूस्पांजिया स्नान स्पंज कहलाता होता है।

सीलेन्ट्रेटा या निडेरिया

* इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लूकर्ट ने 1847 में किया था। ये द्विस्तरीय, जलीय प्राणी होते हैं।

* इनके शरीर में थैले जैसी एक ही गुहा (पाचन) पाई जाती है, जिसे अंतरगुहा कहते हैं।

* इनमें नेत्रबिन्दु या स्टेटोसिस्ट पाये जाते हैं।

* पॉलिपॉएड चूनेदार अस्थि का निर्माण करते हैं जिसे कोरल कहते हैं। इसके लार्वा को ‘प्लेनुला’ कहते हैं।

उदाहरणः हाइड्रा, ओबीटिया, सी एनीमोन, फंजिया, मीण्डा आदि

हाइड्रा में अमरत्व का गुण पाया जाता है।

* ऑरेलिया को जेलीफिश कहा जाता है।

* मेट्रीडियम को सी-एनीमोन भी कहते हैं।

* गोोनिया को समुद्री पंखा कहा जाता है।

* फाइसेलिया को आमतौर पर पुर्तगाली युद्धपोत कहा जाता है।

प्लेटीहैल्मन्थीज

* इस शब्द का प्रयोग गीगेनबार ने 1899 में किया था।

* ये प्राणी त्रिस्तरीय, अंतःपरजीवी और उभयलिंगी होते हैं।

* इनमें उत्सर्जन क्रिया ज्वाला कोशिका द्वारा होती है।

उदाहरणः टीनिया, प्लेनेरिया, सिस्टोसोमा, फैसिओला आदि।

* टीनिया सोलियम एक फीताकृमि है जो मनुष्य की आंत में रहने वाला अन्तः परजीवी होता है।

* सिस्टोसोमा को रक्त पर्णाभ भी कहा जाता है।

एस्केल्मिन्थीज या निमेटोडा

* इन्हें गोलकृमि या सूत्रकृमि भी कहा जाता है।

* ये जलीय, स्थलीय, परजीवी होते हैं और इनमें कृत्रिम देहगुहा होती है।

* ये अधिकतर परजीवी होते हैं तथा अपने पोषकों में रोग उत्पन्न करते हैं।

उदाहरणः एस्केरिस, ट्राइकिनेला, ऐंकाइलोस्टोमा, वूचेरिया आदि।

* ऐस्केिरिस मनुष्य की छोटी आंत में पाया जाता है।

* वूचेरिया से मनुष्य में फाइलेरिया रोग उत्पन्न होता है।

ऐनीलिडा

* ऐनेलिडा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क ने किया था।

* इनमें जन्तुओं का शरीर खण्डित, लंबा एवं कृमि के आकार का होता है।

* वास्तविक देहगुहा की उत्पत्ति सर्वप्रथम इन्हीं जंतुओं में ही हुई

* थी।

* ये स्वतंत्रजीवी, बहुकोशिकीय, त्रिस्तरीय, सीलोममुक्त होते हैं।

* गति के लिए इनमें शूक और चूषक पाये जाते हैं।

* इनमें तंत्रिका रज्जू उपस्थित होती है।

उदाहरणः केंचुआ, जोंक, बेरिस, पॉलीगोर्डियस, नेरीस, एफ्रोडाइट आदि ।

* जोंक बाह्य परजीवी तथा रक्ताहारी होती है। वह खून चूसते समय एक प्रकार का प्रतिस्कन्दक निकालती है जो खून को जमने से रोकती है।

* एफ्रोडाइट को समुद्री चूहा कहा जाता है।

* केंचुआ को मृदा उर्वरता का बैरोमीटर, प्रकृति का हलवाहा, एवं पृथ्वी की आंत कहते हैं।

* नेरीस को सीपीकृमि कहते हैं।