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निएन्थीस या नेरीस (Nereis or neanthes meaning in hindi) निएंथिस क्या होती है , चित्र संरचना , प्रकार

Nereis or neanthes meaning in hindi , निएन्थीस या नेरीस , निएंथिस क्या होती है , चित्र संरचना , प्रकार किसे कहते है ?

नेरीस या निएन्थीस (Nereis or neanthes)

वर्गीकरण

संघ – ऐनीलिडा

वर्ग – पॉलीकीटा

उपवर्ग – इरैन्शिया

कुल – नेरिडी

वंश – नेरीस

जाति – वाइरेन्स

स्वभाव और आवास : पॉलीकीटा वर्ग के जंतुओं का नेरीस एक प्रारुपी वंश है। इस वंश के जन्तु सामान्यतया समुद्रतल के छिछले जल में पत्थरों के नीचे रेत या कीचड़ में सुरंग बनाकर रहते है। 

ह संसार में सभी जगह पाया जाता है। यह प्राणी स्वभाव से छिपकर रहना पसंद करता है। 

इसके शरीर से श्लेष्म का स्त्रावण होता है जिससे इसके बिल की दिवार के रेत के कण परस्पर चिपक जाते है। यह रात्रिचर और माँसाहारी प्राणी है एवं छोटे छोटे क्रस्टेशियन , मोलस्क और एनीलिड जन्तुओ का शिकार करता है। 

इसकी ग्रसनी बहिर्सारित तथा काइटिन के बने दांतों से युक्त होती है। यह ग्रसनी को बाहर फैलाकार शिकार पकड़ता है। इसका शरीर गुलाबी रंग का पतला , ऊपर नीचे कुछ चपटा और 80 से 200 समखण्डो का बना होता है। इसके शरीर के तीन स्पष्ट भाग होते है –

सिर , धड़ और गुदाखण्ड या पाइजीडियम। 

इसके सिर के दो भाग – पेरीस्टोमियम और प्रोस्टोमियम होते है। 

पेरीस्टोमियम एक सामान्य देहखंड की अपेक्षा लम्बाई में बड़ा , पैरापोडिया विहीन तथा प्रत्येक ओर धागे के समान दो जोड़ी पेरीस्टोमियल सिरई युक्त होता है। 

प्रोस्टोमियम की पृष्ठ सतह पर दो जोड़ी सरल और वर्णकित नेत्र आगे की ओर दो छोटे स्पर्शक और अधर पाशर्व में एक जोड़ी छोटे , दृढ माँसल और दो मोटे पैल्प होते है। 

स्पर्शक , पैल्प तथा सिरई सभी संवेदी अंगो की भांति कार्य करते है। 

सिर और गुदाखण्ड को छोड़कर शरीर का शेष सम्पूर्ण भाग धड बनाता है। इसके हर खंड में पाशर्वो में एक एक पाशर्वपाद होता है।  ये खोखले और द्विशाखी होते है। पाइजीडियम शरीर का सबसे अंतिम खण्ड होता है जिसे पुच्छ या गुदीयखण्ड भी कहते है। 

इस खण्ड पर अन्तस्थ गुदा , एक जोड़ी लम्बे तन्तुरूपी अधर उपांग गुदा सिरई तथा अनेक छोटी छोटी सम्वेदी पैपीलियाँ पायी जाती है। 

यह माँसाहारी होता है और इसकी आहारनाल पूर्णतया विकसित होती है। 

पाचन बाह्यकोशिकीय होता है। इसमें श्वसन के लिए विशेष अंगो का अभाव होता है। श्वसन सामान्यतया शरीर की सतह और मुख्य रूप से पाशर्वपादों की पतली और चपटी पालियो द्वारा होता है। 

इसके शरीर में सुविकसित रुधिर परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है। उत्सर्जन क्रिया वृक्कों के द्वारा होती है जो कुछ अग्र और पश्च खण्डो को छोड़कर शेष सभी खंडो में पाए जाते है। 

इसके शरीर में तंत्रिका तन्त्र पूर्ण रूप से विकसित होता है और केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र , परिधीय तंत्रिका तंत्र और आंतरांग तंत्रिका तंत्र में बंटा होता है। 

कुछ अलवण जलीय नेरीस उभयलिंगी होते है परन्तु नेरिस की अधिकांश जातियाँ एकलिंगी होती है। 

इसकी जनन ग्रन्थियां वृषण और अंडाशय अलग अलग नहीं पहचाने जा सकते। 

ये स्थायी नहीं होते है। इन जन्तुओं में जनन वाहिनियों का अभाव होता है। 

लैंगिक रूप से परिपक्व हो जाने पर कृमि के अधिकांश पश्च खण्ड युग्मकों से भरे होने के कारण आकारिकी में भिन्नता प्रकट करते है। 

इन जन्तुओ के ये खण्ड कृमि के लैंगिक भाग या एपिटोक का निर्माण करते है आगे के थोड़े से खण्ड , जिनमें युग्मकों का निर्माण नही होता अलैंगिक भाग या एटोक कहलाते है। 

लैंगिक रूप से परिपक्व एक ऐसा कृमी जिसमे एटोक और एपिटोक दोनों भाग होते है हेटेरोनेरीस कहलाता है। 

यह अलैंगिक प्रावस्था से लैंगिक प्रावस्था में परिवर्तन की घटना एपीटोकी कहलाती है। 

ये लैंगिक रूप से परिपूर्ण जन्तु अपने शुक्राणु या अंडाणु विसर्जित करने के लिए समुद्री जल की सतह पर रात्री के समय आते है। इसके इस व्यवहार को वृन्दन कहते है। इसके जीवन चक्र में सामान्यतया तीन लार्वा प्रावास्थाएं होती है –

लारवा पूर्वी , लारवा और लारवा पश्च देखने को मिलती है। 

इसका लार्वा ट्रोकोफोर या ट्रोकोस्फीयर कहलाता है।