परासरण (osmosis) , परासरण दाब (π) (osmotic pressure) , प्रयोग , मोलर अवनमन स्थिरांक (Kf)

मोलर अवनमन स्थिरांक (Kf) : 1 मोल अवाष्पशील विलेय ठोस को 1000 ग्राम द्रव विलायक में घोला जाता है , तो उत्पन्न हिमांक में अवनमन ही मोलल अवनमन स्थिरांक कहते है।
Kf की इकाई : K.Kg.mol-1
जल के लिए Kf  : 1.86 K.Kg.mol-1
△Tf = K.WB/mBWA  समीकरण-3
समीकरण K =
1000 Kf
 में रखने पर –
अत: △Tf = 1000 Kf.WB/mBWसमीकरण-4
समीकरण-4 में 1000.WB/mBWA = m (मोललता) रखने पर –
△Tf = Km   समीकरण-5
समीकरण-5 से स्पष्ट है कि हिमांक अवनमन विलेय की मोल संख्या पर निर्भर करता है अत: यह एक अणुसंख्य गुणधर्म है।
अवाष्पशील विलेय ठोस का मोलर द्रव्यमान (mB) ज्ञात करना :-
समीकरण-4 से –
△Tf = 1000 Kf.WB/mBWA से –
mB = 1000 Kf.WB/△TfWसमीकरण-6
समीकरण-6 से अवाष्पशील विलेय ठोस का मोलर द्रव्यमान ज्ञात कर सकते है।

परासरण दाब (π)

परासरण (osmosis) : अर्द्धपारगम्य झिल्ली से विलायक के कणो का कम सांद्रता के विलायक से अधिक सान्द्रता के विलयन की ओर गमन करना , परासरण कहलाता है।
या
अर्द्ध पारगम्य झिल्ली से विलायक के कणों का शुद्ध द्रव विलायक से विलयन की ओर गमन करना , परासरण कहलाता है।
परासरण की क्रिया तब तक होती है जब तक दोनों विलयनो की सांद्रता बराबर न हो जाए , जब दोनों विलयनो की सान्द्रता बराबर हो जाती है तो उस समय परासरण की क्रिया रुक जाती है।  यह अवस्था साम्य अवस्था कहलाती है।
परासरण दाब (π) (osmotic pressure) : विलयन पर प्रयुक्त वह बाह्य दाब जो परासरण की क्रिया को रोकने या तल में साम्यावस्था स्थापित करने के लिए आवश्यक हो।  परासरण दाब कहलाता है।

परासरण दाब से सम्बन्धित प्रयोग

प्रयोग-I : इस प्रयोग में एक घिसिल किप लेकर इसके मुख पर अर्द्धपारगम्य झिल्ली बाँध देते है।  अब इस कीप में शर्करा का रंगीन विलयन भरकर इसे शुद्ध जल से भरे पात्र में उल्टा लटका देते है।
परासरण की क्रिया के कारण विलायक के कण अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा शुद्ध जल से शर्करा विलयन में आने लगते है। इस कारण कीप में शर्करा विलयन का स्तर बढ़ने लगता है।
कुछ समय बाद शर्करा विलयन का स्तर स्थिर हो जाता है अर्थात परासरण की क्रिया रुक जाती है।  इस समय विलयन द्वारा अर्द्धपारगम्य झिल्ली पर डाला गया दाब परासरण दाब के बराबर होता है।
परासरण दाब (π) = hdg
प्रयोग – II : इस प्रयोग में पिस्टन युक्त दो आयताकार पात्र अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा आपस में जुड़े हुए है।  P1 पिस्टन वाले पात्र में शुद्ध द्रव विलायक एवं P2 पिस्टन वाले पात्र में कोई विलयन भरा हुआ है।
परासरण क्रिया के कारण विलायक के कण अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा शुद्ध द्रव विलायक से विलयन में जाने लगते है।  इस कारण पिस्टन P1 नीचे की ओर व पिस्टन P2 ऊपर की ओर गति करता है।  यदि पिस्टन P2 पर इतना दाब लगाया जाए की परासरण की क्रिया रुक जाए तो यह लगाया गया दाब परासरण दाब (π) के बराबर होता है।

परासरण दाब से सम्बन्धित नियम

(i) वांट हाफ बॉयल नियम : इस नियम के अनुसार स्थिर ताप पर विलयन का परासरण दाब (π) विलयन की सांद्रता (C) के समानुपाती होता है।
π ∝ C
सांद्रता (C) = 1/तनुता(V)
π ∝ 1/V   [समीकरण-1]
यह वांटहाफ बॉयल नियम है।
(ii) वान्ट होफ दाब-ताप नियम : इस नियम के अनुसार एक निश्चित सान्द्रता पर विलयन का परासरण दाब (π) परम ताप (T) के समानुपाती होता है।
π ∝ T  [समीकरण-2]
यह वांट हाफ दाब-ताप नियम है।
उपरोक्त दोनों समीकरण को संयुक्त रूप से लिखने पर –
π ∝ T/V
∝ का चिन्ह हटाने पर –
 π = S.T/V
S = विलयन स्थिरांक
πV = S.T (1 मोल विलेय के लिए)
πV = nS.T (n मोल विलेय के लिए)
उपरोक्त समीकरण आदर्श गैस समीकरण PV = nRT के समान है।
यहाँ S का मान गैस स्थिरांक R के बराबर है अत: S के स्थान पर R रखने पर –
πV = nR.T  [समीकरण-3]
समीकरण-3 परासरण दाब की समीकरण है।
परासरण दाब समीकरण πV = nR.T से –
π = nR.T/V   [समीकरण-1]
विलेय के मोल n को nB भी लिख सकते है।
π = nB.R.T/V
nB = WB/mB रखने पर –
π =WBR.T/Vm[समीकरण-2]
समीकरण-1 व समीकरण-2 से परासरण दाब की गणना ज्ञात कर सकते है।
अवाष्पशील विलेय ठोस का अणुभार (mB) ज्ञात करना : समीकरण-2 से –
π =WBR.T/VmB
mWBR.T/Vπ
समीकरण-3 से अवाष्पशील विलेय गैस का मोलर द्रव्यमान ज्ञात कर सकते है।
परासरण दाब एक ऐसा अणुसंख्य गुणधर्म है जिसमे मोलरता (M) इकाई का उपयोग होता है।
इस अणुसंख्यक गुणधर्म से उच्च अणुभार वाले प्रोटीन बहुलको एवं वृहदणुओ का मोलर द्रव्यमान ज्ञात कर सकते है।
परासरण दाब के आधार पर विलयन के प्रकार : इस आधार पर विलयन तीन प्रकार के होते है –
(i) समपरासरी विलयन (Isotonic solution) : अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक दो ऐसे विलयन जिनका परासरण दाब आपस में समान हो , समपरासरी विलयन कहलाते है।
(ii) अल्पपरासरी विलयन (Hypotonic solution) : दो भिन्न परासरण दाब वाले विलयनो में से वह विलयन जिसके परासरण दुसरे विलयन के सापेक्ष कम हो वह अल्प परासरी विलयन कहलाता है।
(iii) अतिपरासरी विलयन (Hyper tonic solution) : दो भिन्न परासरण दाब वाले विलयनो में से वह विलयन जिसका परासरण दाब दुसरे विलयन के सापेक्ष अधिक हो वह अतिपरासरी विलयन कहलाता है।

परासरण का महत्व

(i) सूखे चने , सूखे मटर , किशमिश आदि को पानी में डालने पर यह अन्त परासरण के कारण कुछ समय बाद फूल जाती है।
(ii) अचार बनाने के लिए कच्चे आमो को काटकर जब लवणीय विलयन में रखते है तो यह बाह्य परासरण के कारण जल का क्षरण कर देते है।
(iii) रुधिर कोशिकाओ में लवणों की सांद्रता 0.9% W/V होती है।  यदि रुधिर कोशिका को इससे अधिक सान्द्रता के लवणीय विलयन में रख दिया जाए तो बाह्य परासरण के कारण यह कोशिका सिकुड़ जाती है।  लेकिन यदि रुधिर कोशिका को इससे कम सांद्रता के लवणीय विलयन में रख दिया जाये तो अन्त परासरण के कारण यह कोशिका फुल जाती है।

व्युत्क्रम परासरण / प्रतिलोम परासरण / reverse osmosis / R.O.

यह परासरण की विपरीत प्रक्रिया है , इस प्रक्रिया में यदि विलयन पर परासरण दाब से अधिक दाब लगाया जाए तो विलायक के कण अर्द्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा विलयन से शुद्ध द्रव विलायक की की ओर जाने लगते है , यह घटना ही व्युक्रम परासरण कहलाती है।
व्युत्क्रम परासरण में सेल्युलोज एसिटेट से बनी हुई मजबूत अर्द्धपारगम्य झिल्ली काम में लेते है क्योंकि विलयन द्वारा इस झिल्ली पर डाला गया दाब बहुत अधिक होता है।
उपयोग : समुद्री जल के विलवणीकरण में।
प्रश्न 1 : अर्द्धपारगम्य झिल्ली किसे कहते है ? यह किसकी बनी होती है ?
उत्तर : ऐसी झिल्ली जिसमे से विलायक के कण तो गुजर जाते है लेकिन विलेय के कण नहीं गुजर पाते है , वह अर्द्धपारगम्य झिल्ली कहलाती है।
यह झिल्ली प्राकृतिक रूप से सूअर के ब्लैडर की बनी होती है।
कृत्रिम रूप से सेल्युलोज एसिटेट की बनी होती है।
इसे झिल्ली को फिनोल पोटेशियम फैरो साइनाइड से भी बनाया जा सकता है।