असामान्य आण्विक द्रव्यमान (असामान्य अणुभार) : अणुसंख्यक गुणधर्मो मे से विलेय ठोस के अणुभार के मान तभी सही प्राप्त होते है जब –
(i) विलयन तनु हो तथा राउल्ट के नियम का पालन करे।
(ii) विलयन में विलेय कणों का वियोजन या संगुणन नहीं हो।
यदि विलयन में विलेय कणों का वियोजन या संगुणन होता है तो विलयन में विलेय कणों की संख्या परिवर्तित हो जाती है। इस कारण अणुसंख्य गुणधर्म का मान भी परिवर्तित हो जाता है तथा विलेय का अणु भार भी परिवर्तित हो जाता है अर्थात विलेय का अणुभार वास्तविक अणुभार से भिन्न प्राप्त होता है , इसे ही असामान्य अणुभार कहते है।
इसमें दो स्थिति बनती है –
(A) विलेय कणों का वियोजन होने पर : विलयन में विलेय कणों का वियोजन होने पर विलेय कणों की संख्या बढती है। विलेय कणों की संख्या बढ़ने से अणुसंख्य गुणधर्म के मान बढ़ते लेकिन विलेय का अणुभार कम हो जाता है क्योंकि विलेय का अणुभार अणु संख्यक गुणधर्म के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
उदाहरण :-
NaCl → Na+ + Cl– (1 + 1 = 2)
BaCl2 → Ba2+ + 2Cl– (1 + 2 = 3)
AlCl3 → Al3+ + 3Cl– (1 + 3 = 4)
NaCl , BaCl2 व AlCl3 के वियोजन से विलेय का अणुभार , वास्तविक अणुभार के क्रमशः 1/2 , 1/3 ,1/4 भाग प्राप्त होता है।
(B) विलेय कणों का संगुणन होने पर : विलयन में विलेय कणों का संगुणन होने पर विलेय कणों की संख्या घटती है। विलेय कणों की संख्या घटने से अणुसंख्या गुणधर्म के मान भी घटते है लेकिन विलेय का अणुभार बढ़ जाता है क्योंकि विलेय का अणु भार अणु संख्यक गुण के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
उदाहरण : CH3COOH को बेंजीन में घोलने पर इसका दो अणु संगुणित होकर द्वितयाणु बनाते है।
बेंजीन में CH3COOH अणुओं के पूर्ण संगुणन से विलेय कणों की संख्या आधी हो जाती है , इस कारण विलेय के अणुसंख्यक गुणधर्म के मान भी आधे हो जाते है और विलेय का अणुभार दुगुना प्राप्त होता है।
वांट हाफ गुणांक (van’t hoff factor)
विलेय के अणुभार में असामान्यता को स्पष्ट करने के लिए वांट हाफ नामक वैज्ञानिक ने एक गुणांक दिया जिसे वांट हाफ गुणांक कहते है।
इसे आयोटा (i) से दर्शाते है।
आयोटा का मान निम्न प्रकार प्राप्त करते है –
i = अणुसंख्य गुणधर्म का प्रेक्षित मान/अणुसंख्य गुणधर्म का सैद्धांतिक मान
i = △P (प्रेक्षित)/△P (सैद्धांतिक)
i = △Tb (प्रेक्षित)/△Tb (सैद्धांतिक)
i = △Tf (प्रेक्षित)/△Tf (सैद्धांतिक)
i = π (प्रेक्षित)/π (सैद्धांतिक)
अणुसंख्य गुणधर्म के मान विलेय के कणों की संख्या के समानुपाती होता है।
i = विलेय कणों की संख्या का प्रेक्षित मान/विलेय कणों की संख्या का सैद्धांतिक मान
i = वियोजन या संगुणन के पश्चात् विलेय कणों की संख्या/वियोजन या संगुणन से पूर्ण विलेय कणों की संख्या
अणुसंख्य गुणधर्म के मान विलेय के अणुभार के व्युत्क्रमानुपाती होते है।
i = विलेय के अणुभार का सैद्धांतिक मान / विलेय के अणुभार का प्रेक्षित मान
या
i = विलेय का वास्तविक अणुभार/विलेय का असामान्य अणुभार
i का मान : विलेय कणों का वियोजन होने पर : i > 1 अर्थात 1 से अधिक।
विलेय कणों का संगुणन होने पर : i<1 अर्थात 1 से कम
विलेय कणों का वियोजन / संगुणन नहीं होने पर : i = 1 अर्थात 1 के बराबर।
विलेय कणों का वियोजन / संगुणन होने पर अणुसंख्य गुणधर्म के सूत्र :
(1) वाष्पदाब के आपेक्षिक अवनमन के लिए : △P/PA0 = I WB mA/mB WA
(2) क्वथनांक उन्नयन के लिए : △Tb = I Kb WB 1000/mB WA
(3) हिमांक अवनमन के लिए : △Tf = I Kf WB 1000/mBWA
(4) परासरण दाब के लिए :
वांटहाफ गुणांक (i) व वियोजन की मात्रा (α) में सम्बन्ध : इस समझने के लिए निम्न उदाहरण लेते है –
माना विलेय पदार्थ A के 1 कण के वियोजन से B के n कण बनते है।
i = वियोजन के पश्चात् विलेय की मोलो की संख्या/वियोजन से पूर्व विलेय की मोल संख्या
i = 1 – α + nα/1
α = i-1/n-1
ये i व वियोजन की मात्रा α में सम्बन्ध है।
वांट हाफ गुणांक (i) व संगुणन की मात्रा (α) में सम्बन्ध : इसे समझने के लिए निम्न उदाहरण लेते है –
माना विलेय पदार्थ A के n कण संगुणित होकर एक कण बनाते है।
nA → An
1 0 (प्रारंभ में मोल संख्या)
1-α α/n (t समय पर α मोल संगुणित हो तो)
i = संगुणन के पश्चात् विलेय के मोलो की संख्या/संगुणन से पूर्व विलेय के मोलो की संख्या
i = [(1-α) + α/n]/1
α = n(i-1)/(1-n)
ये i व संगुणन की मात्रा α में सम्बन्ध है।
प्रश्न 1 : विसरण (diffusion) किसे कहते है ? उदाहरण भी दीजिये।
उत्तर : ऐसा प्रक्रम जिसमे पदार्थ के कणों का अधिक सांद्रता के विलयन से कम सान्द्रता के विलयन की ओर गमन होता है विसरण कहलाता है।
उदाहरण : जल से भरे पात्र में सान्द्र KMnO4 विलयन की दो चार बुँदे डालने से इसका बैंगनी रंग सर्वत्र फ़ैल जाता है यह विसरण क्रिया है।
प्रश्न 1 : क्या गर्मियों में कार के रेडियेटर में एथिलीन ग्लाइकोल के प्रयोग की सलाह दी जाती है ?
उत्तर : इसकी सलाह गर्मियों में नहीं दी जाती है लेकिन सर्दियों में इसकी सलाह दी जाती है क्योंकि सर्दी के दिनों में कार के रेडियेटर में जल जम सकता है लेकिन इसमें एथिलीन ग्लाइकोल मिलाने से बने विलयन का हिमांक जल की तुलना में कम हो जाता है। इस कारण कार के रेडियेटर में पानी नहीं जमता है।