WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

विद्युत ऋणता या विद्युत ऋणात्मकता , विद्युत ऋणात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक , अनुप्रयोग

विद्युत ऋणता या विद्युत ऋणात्मकता : सहसंयोजक बंध के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता को विद्युत ऋणता कहते है। इसे E.N (electronegativity) से व्यक्त करते है।

जिस परमाणु की विद्युत ऋणात्मकता अधिक होती है , उस पर आंशिक ऋण आवेश व जिस परमाणु की विद्युत ऋणात्मकता कम होती है उस पर आंशिक धनावेश पाया जाता है।

विद्युत ऋणात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक

1. परमाण्विक त्रिज्या : परमाण्विक त्रिज्या बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन व नाभिक के मध्य की दूरी बढती जाती है जिससे उस इलेक्ट्रॉन पर नाभिकीय आकर्षण बल कम होता जाता है अर्थात इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृति बढती जाती है अत: विद्युत ऋणात्मकता कम होती जाती है।
अर्थात परमाण्विक त्रिज्या , विद्युत ऋणात्मकता के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
2. प्रभावी नाभिकीय आवेश : आवर्त में बाएं से दायें जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ता जाता है , साथ ही साझित इलेक्ट्रॉन युग्मों के बीच आकर्षित करने की क्षमता बढती जाती है अत: विद्युत ऋणता का मान भी बढ़ता जाता है , अर्थात विद्युत ऋणात्मकता का मान प्रभावी नाभिकीय आवेश के समानुपाती होता है।
3. ऑक्सीकरण अवस्था : धनात्मक ऑक्सीकरण क्षमता बढ़ने पर परमाणु का आकार छोटा होता जाता है जिससे विद्युत ऋणता का मान भी बढ़ता जाता है जबकि ऋणात्मक ऑक्सीकरण क्षमता बढने पर परमाणु का आकार बढ़ता जाता है अत: विद्युत ऋणता का मान कम होता जाता है।
4. ‘s’ गुणों की प्रतिशत मात्रा : ‘s’ गुणों की प्रतिशत मात्रा बढने पर साझित इलेक्ट्रॉन उस परमाणु के नाभिक के पास आ जाते है अर्थात आकर्षण बढ़ता है जिससे विद्युत ऋणात्मकता भी बढती है।
आवर्त सारणी में तत्व फ्लुओरिन [F] की विद्युत ऋणात्मकता सबसे अधिक होती है।

विद्युत ऋणात्मकता के अनुप्रयोग

1. धात्विक व अधात्विक गुण :आवर्त में बाएं  से दायें जाने पर विद्युत ऋणात्मकता बढती जाती है , अत: लक्षण बढ़ता जाता है जबकि वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर धात्विक गुण बढ़ता है व विद्युत ऋणात्मकता का मान कम होता है।
2. अणुसूत्र लिखने में : द्विगंशीय अकार्बनिक यौगिक का अणुसूत्र लिखते समय कम विद्युत ऋणी तत्व का प्रतीक पहले लिखा जाता  जबकि अधिक विद्युत ऋणी तत्व का प्रतिक बाद में लिखा जाता है।
उदाहरण : NaCl
अपवाद : NH3
N3H में अधिक विद्युत ऋणी परमाणु पहले व कम विद्युत ऋणी परमाणु बाद में उपस्थित है जो कि इनके प्रचलित नाम के कारण है।
3. बंध लम्बाई का परिकलन : दो आबन्धित असमान एकल परमाणुओं के मध्य की दूरी निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते है –
dA-B = rA + rb – 0.09 (XA – XB)
जहाँ = XA अधिक विद्युत ऋणी परमाणु की विद्युत ऋणता
XB = कम विद्युत ऋणी परमाणु की विद्युत ऋणता
4. बंध सामर्थ्य : सह संयोजक बंध में बंधित परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता  अंतर बढने पर बंध सामर्थ्य व स्थायित्व दोनों बढ़ते है।
बंध व स्थायित्व का बढ़ता क्रम :-
H-F > H-Cl > H-Br > H-I
5. ऑक्साइड की अम्लीय या क्षारीय प्रकृति : आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों की ऑक्साइड की अम्लीय प्रकृति बढती है जबकि वर्ग में ऊपर  से नीचे जाने पर तत्वों के ऑक्साइड की क्षारीय प्रकृति बढती है।
नोट : [Xe – Xm] ≥ 2. 3 है तो ऑक्साइड क्षारीय और [Xe – Xm] <= 2. 3 है तो ऑक्साइड अम्लीय है।
6. यौगिकों के जल अपघटन की क्रियाविधि : विद्युत ऋणता की सहायता से यौगिको के जल अपघटन की क्रिया विधि को समझाया जा सकता है।
उदाहरण : BCl3 के जल अपघटन से बोरिक अम्ल व Cl2O के जल अपघटन से हाइपो फ्लोरस अम्ल और जल बनता है।
7. सहसंयोजक बंध में आंशिक आयनिक गुण : जब भिन्न भिन्न परमाणुओं के मध्य सहसंयोजक बन्ध बनता है तो उस बंध मे आंशिक आयनिक गुण आ जाते है।
इस आयनिक गुणों वाली प्रतिशतता को विद्युत ऋणता के आधार पर “हैने” व “स्मिथ” ने निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया –
% आयनिक गुण = 16[XA – XB] + 3.5[XA – XB]2
यहाँ XA = अधिक विद्युत ऋणी परमाणु की विद्युत ऋणता
 XB = कम विद्युत ऋणी परमाणु की विद्युत ऋणता
tags in english : electronegativity in 11th in hindi ?

संयोजकता : कोई परमाणु जितने इलेक्ट्रॉन त्यागता या ग्रहण करता है या साझा करता है वह उसकी संयोजकता कहलाती है।

प्रथम वर्ग के तत्वों की संयोजकता = 1
द्वितीय वर्ग के तत्वों की संयोजकता = 2
(13 , 14 , 15 , 16 , 17) वें वर्ग के तत्वों की संयोजकतायें क्रमशः 3 , 4 , 3 , 2 , 1 होती है।
(n – 1)d व ns कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अंतर कम होने के कारण संक्रमण तत्व अलग अलग संयोजकता प्रदर्शित करते है।
लैन्थेनाइड की सामान्य संयोजकता = 3
एक्टिनाइड  की सामान्य संयोजकता = 3
विकर्ण सम्बन्ध : s और p खंड के कुछ तत्व अपने वर्ग के तत्वों से उतनी समानता प्रदर्शित नहीं करते है जितनी की वह अपने से आगे आने वाले वर्ग के निचले तत्व से समानता प्रदर्शित करते है , इस सम्बन्ध को विकर्ण सम्बन्ध कहते है। विकर्ण सम्बन्ध s और p खण्ड के हल्के तत्व ही प्रदर्शित करते है , आगे के तत्व यह गुण प्रदर्शित करते नही करते क्योंकि इनकी विद्युत ऋणात्मकता का मान उच्च होता है।

विद्युत ऋणता ले मापक्रम

1. पॉलिंग मापक्रम : वर्तमान में इसी मापक्रम का उपयोग सर्वाधिक किया जाता है।
अणु A-B के लिए विद्युत ऋणता का अंतर के लिए सूत्र है –
XA – XB = 0.208 √△AB
यहाँ ; △AB अनुनादी ऊर्जा = EAB (प्रेक्षित)
EAB (परिकलित )
AB
= [ EAB – (EA-A  EB-B)1/2]
2. मुलिकन मापक्रमE.N = (△iH + △eg H)/2
यहाँ 
△iH = आयनन एन्थैल्पी 
△eg H = इलेक्ट्रॉन लब्धि एंथैल्पी , ev में व्यक्त करते है।  
Xपोलिंग = Xमुलिकन/2.8

Xपोलिंग = (iH + egH)/5.6

3. ऑलरेड और रोशो विधि :
विद्युत ऋणात्मकता = = 0.744 + 0.359Zeff/r2
यहाँ ;
r = सहसंयोजक त्रिज्या
Zeff = प्रभावी नाभिकीय आवेश
4. सेन्डरसन मापक्रम :
SR = D/Di
यहाँ
SR = स्थायित्व अनुपात
D = परमाणु का इलेक्ट्रॉन घनत्व
Di = समइलेक्ट्रॉनिक अक्रिय गैस का इलेक्ट्रॉन घनत्व
 सैंडरसन व पोलिंग के मानों में सम्बन्ध –
Xपोलिंग = 0.2/SR + 0.77
नोट : विद्युत ऋणात्मकता , आयनन एन्थैल्पी व egH के समान मापन योग्य नहीं है और न ही इसकी कोई इकाई होती है।