इस विधि में मिश्रण को एक पृथककारी कीप में डाला जाता है , चूँकि हमने ऊपर पढ़ा है कि ऐसे मिश्रण में पदार्थ आपस में नहीं मिलते है बल्कि अलग अलग परत के रूप में होते है अत: कीप में डालकर जब इस कीप का स्टॉप कॉक खोला जाता है तो जो परत नीचे होती है वह पदार्थ बाहर आने लगता है और जब नीचे परत वाला पदार्थ पूरा बाहर आ जाता है तो कॉक का मुंह बंद कर देते है अब दुसरे पात्र में पुन: इसके मुंह को खोला जाता है तो जिस पदार्थ की परत ऊपर बनी हुई थी वह पदार्थ बाहर आने लगता है इस पदार्थ को अलग पात्र में निकाल लेते है और इस प्रकार अलग अलग पदार्थो को पृथक कर लिया जाता है।
चित्रानुसार मान लीजिये की किसी जल में तेल को मिलाया गया है और इसे कूपी में रखा गया है , माना पीले रंग का पदार्थ जल है और नील रंग का पदार्थ तेल है।
तो चित्रानुसार दोनों पदार्थो की परत बन जाती है , अब इन दोनों को पृथक करने के लिए इसका वाल्व खोल दिया जाता है और नीचे एक पात्र रख दिया जाता है , पहले पानी आने लगता है अर्थात वाल्व खोलते ही पिला पदार्थ बाहर आने लगता है और बाहर रखे पात्र में इक्कठा हो जाता है।
जब यह पिला पदार्थ पूर्ण रूप से आ जाता है तो वाल्व को बंद कर दिया जाता है और दूसरा पात्र रख दिया जाता है और वाल्व को पुन: खोल देते है और चूँकि अब कूपी में केवल अब नीला पदार्थ बचा हुआ है अत: वाल्व खोलने पर यह नीला पदार्थ बाहर आने लगता है और बाहर रखे पात्र में इक्कठा हो जाता है और इस प्रकार दोनों पदार्थ अर्थात नीला और पिला पदार्थ अलग अलग हो जाते है और दुसरे शब्दों में कहे तो जल और तेल अलग अलग प्राप्त हो जाते है , इस संपूर्ण विधि को विभेदी निष्कर्षण कहा जाता है।
इसी विधि द्वारा दो से अधिक पदार्थो के अमिश्रणीय पदार्थो या द्रवों को भी पृथक पृथक आसानी से किया जाता है।