अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन की उपलब्धियां क्या है , ahmedabad mill strike 1918 in hindi

ahmedabad mill strike 1918 in hindi अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन की उपलब्धियां क्या है ? अहमदाबाद मिल स्ट्राइक date सूती मिल श्रमिकों का सत्याग्रह कहाँ हुआ ?

प्रश्न: अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन के बारे में विस्तार से जानकारी दीजिये ?
उत्तर: अहमदाबाद के मिल मजदूरों और मिल मालिकों के बीच फरवरी-मार्च, 1918 को प्लेग बोनस को लेकर विवाद आरम्भ हुआ। प्लेग बोनस गुजरात में मजदूरों को मालिकों की ओर से प्लेग फैलनं के कारण दिया जाता था, जिसे कालांतर में बंद कर दिया गया, मजदूरों का कहना था कि जो बोनस (प्लेग) उन्हें मिल रहा है वह प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद बढ़ी महंगाई की तुलना में बहुत कम है इसलिए इसे समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। मिल मालिकों में एक अंबालाल साराभाई जो गांधी जी के मित्र थे, इन्होंने साबरमती आश्रम के निर्माण में अधिक मात्रा में दान दिया था, इनकी बहन अनुसूइया बेन अहमदाबाद मजदूर आंदोलन में गांधी के साथ थी। मजदूरों ने अपनी मजदूरी में 50 प्रतिशत वृद्धि की मांग की जबकि मिल मालिकों ने मजदूरों को 20 प्रतिशत बोनस देने का निर्णय लिया और धमकी दी की जो यह बोनस स्वीकार नहीं करेगा उसे नौकरी से बाहर कर दिया जायेगा। गांधीजी ने मजदूरों को 35 प्रतिशत बोनस दिये जाने का समर्थन किया, मार्च 1918 में मजदूर हड़ताल पर चले गये, 15 मार्च को गांधी जी खुद भूख हड़ताल पर बैठ गये। गांधी जी के अनशन पर बैठने के बाद मिल मालिक सारे मामलों को ट्रिब्यूनल को सौंपने के लिए तैयार हो गये। ट्रिब्यूनल ने श्रमिकों को 35 प्रतिशत बोनस देने का फैसला लिया इस तरह आंदोलन समाप्त हो गया। तत्पश्चात् गांधीजी ने श्रम-विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने तथा श्रमिकों में चेतना उत्पन्न करने के लिए ‘‘अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन‘‘ की स्थापना की। अहमदाबाद सत्याग्रह के दौरान ही गांधीजी ने अपना प्रसिद्ध ‘ट्रस्टीशिप (प्रन्यास) सिद्धांत‘ दिया।

प्रश्न: ‘महात्मा गांधी के आंदोलनों का मुख्य आधार ग्रामीण भारत था‘ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का 1919-47 का काल गांधी युग के रूप में जाना जाता है। भारत में विदेशी सत्ता से उनका प्रथम संघर्ष भी 1917 में चम्पारण के नील उपजाने वाले कृषकों की समस्या को लेकर हुआ। क्षेत्रीय स्तर के किसानों की समस्या को उन्होंने राष्ट्रव्यापी पृष्ठभमि प्रदान की। वस्तुतः गांधीजी मानते थे कि स्वतंत्रता संघर्ष केवल शहरी मध्य वर्ग से नहीं जीता जा सकता, बल्कि इसमें ग्रामीण जन की भागीदारी अपरिहार्य है। इसी प्रकार 1918 में गुजरात में खेडा के कृषकों की समस्या का समाधान किया। उनका मानना था कि ‘भारत की आत्मा गांवो में बसती हैं।‘ गांधीजी ने खादी, ग्रामों में रचनात्मक कार्य हरिजन कल्याण, छूआछत मिटाना, हिन्दू-मुस्लिम एकता, स्थानीय भाषा में बोलना तथा सादा एवं आध्यात्मिक जीवन जीना. लंगोटी पहनना. रामराज्य शब्द का प्रयोग करना आदि के माध्यम से अपने को ग्रामीण जनता एवं रचनात्मक कार्यों से जोडा और राष्ट्रीय आंदोलनों का सामाजिक आधार संपूर्ण भारतीय ग्रामीण जनता तक विस्तृत कर दिया। परिणामस्वरूप 1919 के बाद के सभी आंदोलनों यथा असहयोग, सविनय अवज्ञा तथा भारत छोड़ो आंदोलनों में भारतीय जनता की भागीदारी क्रमशः बढ़ती गयी। इन आंदोलनों के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जनता की प्रमुख समस्याओं जैसे बढ़ती हुई भू-राजस्व की दरें, मंहगाई, आर्थिक एवं प्रशासनिक शोषण आदि को उठाया।
प्रश्न: चंपारन सत्याग्रह पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर: यह गांधीजी का भारत में पहला (1917) सत्याग्रह था। यहां तिनकठिया (3/20) प्रणाली प्रचलित थी, जहां पर किसान को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था। सरकार ने गांधी के चंपारन आगमन पर रोक लगा दी उसके बावजूद गांधी वहां पहुंचे। गांधी ने राजेन्द्र प्रसाद, जे.बी. कृपलानी आदि सहयोगियों के साथ चंपारन का दौरा किया और सरकार से इसे वापस लेने के लिए कहा अन्ततः सरकार इनसे सहमत हुई। सरकार ने तीनकठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया। भारत में यह गांधी जी की पहली जीत थी।

प्रश्न: अनार्कीयल एण्ड रिवोल्युशनरी क्राईम एक्ट (रोलेट एक्ट)
उत्तर: इस समय देश में क्रांतिकारी व उग्रवादी घटनाएं बहुत बढ़ गई थी, सरकार ने रोलेट कमेटी 1917 के सुझाव अनुसार एक अधिनियम पारित किया, जिसे अनार्कीयल एण्ड रिवोल्युशनरी क्राईम एक्ट 1919 कहते है तथा रोलेट के नाम पर इसे रोलेट एक्ट कहा जाता है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को कभी भी, कहीं से भी गिरफ्तार कर व कहीं भी व कितने समय के लिए नजरबंद किया जा सकता था। अर्थात हर भारतीय की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। इसके लिए प्रायः एक वाक्य काम लिया जाता है। ‘‘न वकील न अपील न दलील‘‘। भारतीयों द्वारा इसे काला कानून कहा गया। सभी दलों ने इसका विरोध किया, गांधी ने इसके विरोध में देश में रोलेट सत्याग्रह शुरू किया, लेकिन इसको आक्रमकता को देखते हुए दिल्ली, पंजाब आदि केन्द्रों में गांधी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
प्रश्न: जलियावाला बाग हत्याकाण्ड
उत्तर: पंजाब के स्थानीय नेता डॉ. सतपाल व डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। स्थानीय सत्याग्रहियों ने इसका घोर विरोध किया। 12 अप्रैल, 1919 को सरकार ने पंजाब में निषेधाज्ञा (धारा 144) लागू की। 13 अप्रैल बैसाखी के दिन हजारों लोग अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग नामक स्थान पर अपने लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में एकत्रित हुए। जहां जनरल डायर ने बिना पूर्व सूचना के शांति सभा पर गोलिया बरसाई जिसमें सैकड़ों व्यक्ति मारे गए। गांधीजी ने इसे विभत्स हत्याकाण्ड की संज्ञा दी।
प्रश्न: “असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोतन को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की।‘‘ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में आरंभ किया गया। वास्तविक अर्थों में यह प्रथम अखिल भारतीय आंदोलन था, जिसमें समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया। अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता था कि वह मुट्ठी भर लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। अब इसके साथ किसान, मजदूर, दस्तकार, व्यापारी, व्यवसायी, कर्मचारी, पुरूष, महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी लोग थे। इस आंदोलन ने यह दिखाया कि हिंदुस्तान की वह जनता, जिसे सिर्फ मूर्ख, दीन-हीन समझते थे, आधुनिक राष्ट्रवादी राजनीति की वाहक हो सकती है। भारतीय जनता के न्याय और बलिदान ने दमनकारी सत्ता को बता दिया कि देश की आजादी की भूख पढ़े-लिखें को ही नहीं, निरक्षर जनता को भी सताती है। आजादी के लिए गुलाम देश का हर नागरिक संघर्ष करेगा।
प्रश्न: पान इस्लामिक आंदोलन
उत्तर: जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो भारत सरकार ने भारतीय मुसलमानों से युद्ध में यह कहकर सहयोग मांगा कि विजयी होने के पश्चात वे तुर्की के खलीफा के पद एवं उसके साम्राज्य को बनाया रखा जायेगा। लेकिन सेब्रे की संधि के तहत ती साम्राज्य का विखण्डन कर दिया। इसी के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा जो आंदोलन चलाया वह खिलाफत आंदोलन कहलाया। हालांकि तुर्की साम्राज्य को तोड़ने के संकेत वर्साय की संधि में दे दिए गए थे।
प्रश्न: गांधीजी के असहयोग आंदोलन के क्या कारण थे?
उत्तर: गांधीजी प्रारंभिक दिनों में ब्रिटिश भारत सरकार के सहयोगी थे लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद वे असहयोगी हो गये जिसके निम्नलिखित कारण थे –
प्रथम विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियां
(1) मंहगाई
(2) बेरोजगारी
(3) विभिन्न वर्गों में असंतोष
(4) गांधीजी की भावनाओं पर कुठाराघात
(5) रोलेट एक्ट
(6) जलियावाला बाग हत्याकांड
(7) 1919 के अधिनियम की अपर्याप्तता आदि।
प्रश्न: गांधीजी का भारत में पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह खेड़ा आंदोलन था। विवेचना कीजिए?
उत्तर: यह गांधीजी द्वारा भारत में चलाया गया पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह था। खेड़ा (गुजरात) आंदोलन प्लेग फैलने और अतिवृष्टि के कारण फसल नष्ट होने व अकाल पड़ने के कारण किसानों के लगान अदा करने में असमर्थ होने और राज्य के प्रति उनमें असंतोष होने के परिणामस्वरूप हुआ। फसल खराब हो जाने पर भी कुनबी-पाटीदार किसानों से लगान की वसूली की जा रही थी। वल्लभ भाई पटेल व इन्दुलाल याज्ञनिक ने किसानों को लगान न अदा करने का सुझाव दिया। स्थानीय आंदोलनकारी मोहनलाल पंड्या और शंकरलाल पारीख ने गांधीजी को पत्र द्वारा खेड़ा आकर वहां की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने हेतु बुलाया 22 मार्च, 1918 को गांधीजी ने खेड़ा आकर आंदोलन की बागडोर संभाली। विठल भाई पटेल, सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी एवं गुजरात सभा ने गांधीजी की सहायता की। सरकार ने लाचार होकर हार मान ली और यह गोपनीय दस्तावेज जारी किया कि लगान उसी से वसूल किया जाये जो सक्षम हो। हार्डीमन के अनुसार गांधीजी के नेतृत्व में भारत में चलाया गया ‘यह पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह था।‘
प्रश्न: काकोरी काण्ड
एच.आर.ए. के रोशन लाल, अशफाक उल्लाह खां, राजेन्द्र लाहिडी सहित 10 क्रांतिकारियों ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त, 1925 को काकोरी (सहारनपुर) नामक स्थान पर 8 डाउन ट्रेन से सरकारी खजाने को लूट लिया जिसे ‘काकोरी काण्ड‘ के नाम से जाना जाता है। काकोरी काण्ड में 29 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया जिनमें रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन लाल, अशफाक उल्लाह खां, राजेन्द्र लाहिडी को 1927 में क्रमशः गोरखपुर जेल में, फैजाबाद जेल में तथा गोंडा जेल में फांसी दे दी गई। चन्द्रशेखर आजाद को छोड़कर भ्त्। के सभी सदस्य काकोरी काण्ड में गिरफ्तार हुए इससे भ्त्। का अस्तित्व समाप्त हो गया।
प्रश्न: 1920 के दशक में 1922 से 1930 ई. तक के भारतीय क्रान्तिकारी आंदोलन की विवेचना कीजिए।
उत्तर: 1922-30 ई. के प्रारम्भिक दशकों के बीच इन्होंने व्यापक लक्ष्यों को रखा था (व्यापक सामाजिक रूपान्तरों की बात रखी था) लेकिन यह केवल सिद्धान्तों में ही थे। ये एक समाजवादी व्यवस्था को लाने, जनक्रान्ति, मजदूरों की क्रांति की बात करते थे, लेकिन इनका आधार निम्न मध्यम वर्ग तक ही सीमित था। स्पष्ट है कि ये अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में असफल रहे। साथ ही इनका सामाजिक आधार-व्यापक नहीं था। जनाधार संकीर्ण होने से इनका ब्रिटिश सरकार द्वारा आसानी से दमन किया जा सका। इसके अलावा इनको एक उचित नेतृत्व न मिल पाना, एकीकृत प्रयासों के अभाव आदि सभा य असफल हुए। इसके अतिरिक्त इस समय के राष्ट्रीय आन्दोलन को केवल कांग्रेस के साथ जोड़ा जाता था। इससे भी क्रान्तिकारी आतंकवादियों को पर्याप्त जनाधार नहीं मिला सका। वास्तव में कांग्रेस आन्दोलन पूर्णरूपेण स्थापित हो चका था। अतः क्रान्तिकारी आतंकवादियों को उनके द्वारा किये गये बलिदानों का लाभ नहीं मिल पाया।
इसके बावजूद क्रांतिकारी आतंकवाद का योगदान था
1. बलिदान की भावना, देशभक्ति की भावना, राष्ट्रीयता की भावना को जगाया।
2. क्रान्तिकारी भावना को जगाया।
3. विशेष रूप से युवकों में राष्ट्र के लिए स्वयं को बलिदान करने की प्रेरणा को जगाना।
द्वितीय चरण का क्रान्तिकारी आतंकवाद समाजवादी आदर्शों से प्रेरित था। इस संदर्भ में यह वामपक्ष की एक लघुधारा का भी प्रतिनिधित्व करता था।