गुटनिरपेक्षता किसे कहते हैं | गुटनिरपेक्षता का क्या तात्पर्य है | what is the meaning of non alignment in hindi
what is the meaning of non alignment in hindi गुटनिरपेक्षता किसे कहते हैं | गुटनिरपेक्षता का क्या तात्पर्य है |?
गुटनिरपेक्षता की अवधारणा (Concept of Non-Alignment)
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मजबूती लाने हेतु कृतसंकल्प गुटनिरपेक्षता की नीति मूलतः भारत की देन है। अंतरिम प्रधानमंत्री का प्रभार संभालने के तुरंत बाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने जिस विदेश नीति की घोषणा की थी वही आगे चलकर गुट-निरपेक्षता की अवधारणा के रूप में विकसित हो गई। यह अवधारणा प्रत्यक्षतः शीतयुद्ध से संबंधित है। वस्तुतः शीतयुद्ध उस तनाव की स्थिति का नाम है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच उत्पन्न हो गयी थी। ये दोनों देश 1939-1945 के महायुद्ध में मित्र रोष्ट्रों के रूप में भागीदारी थे।परिणामतः युद्ध के दौरान जो विद्वेष धीरे-धीरे पनप रहा था वह अब खुलकर सामने आगया था। ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा अन्य मित्र राज्यों की युद्ध में स्पष्ट विजय हुई थी। भले ही मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी, इटली और जापान को पराजित किया, हो. परंतु वे अपने वैचारिक मतभेद स्थायी रूप से भुला नही पाए थे। शीतयुद्ध इन्हीं मतभेदों की परिणाम था। एक अनोखा युद्ध था जिसे दो विराधी गुटों के बीच राजनयिक रूप से लड़ा गया।
विश्व के देश जिन दो गुंटो में बंट गए थे वे थे-
1. अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी गुट या पश्चिमी गुट या लोकतांत्रिक गट और
2. सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी गुट या समाजवादी गुट या सोवियत गुट।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है गुट निरपेक्षता की नीति का उद्देश्य गुटों को राजनीति से दूर रहना दोनों गुटों के साथ मैत्री रखना, किसी के साथ भी सैनिक सांधियाँ न करना और एक स्वतंत्र विदेश नीति का विकास करनी थी। नेहरू ने 7 सितम्बर 1946 को कहा था कि- ‘हम अपनी इच्छा से इतिहास का निर्माण करेगे।’ उन्होंने आगे यह भी कहा था कि हमारा प्रस्ताव है कि जहां तक संभव होगा हम समूहों की शक्ति राजनीति (Power Politics) से दूर रहेंगे क्योंकि इस प्रकार को गुटबंदी से पहले दो विश्व युद्ध हो चुके हैं और यह हो सकता है कि एक बार फिर अधिक भयकर दुर्घटना हो जाए। भारत ऐसी किसी भी आशंका के प्रति सचेत था तथा किसी भी प्रकार का कोई युद्ध नहीं चाहता था।
1947 में नेहरू ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा था कि भारत किसी भी शक्ति गुट में शामिल नहीं है। भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति को एक सकारात्मक तटस्थता कहां जा सकता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत देश स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय प्रश्न पर गुण दोष के आधार पर ही किसी नतीजे पर पहुँचता है। गुट-निरपेक्षता अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की एक ऐसी घटना है जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद घटी। आज की तिथि में गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाती है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संचालन में और विशेषकर दो महाशक्तियों के प्रति अपनाई गई नीतियों के परिप्रेक्ष्य में पूरी तरह स्वतंत्र होना गुटनिरपेक्षता की अभिव्यक्ति करता है। पं. नेहरू के अनुसार ‘गुटनिरपेक्षता’ शक्ति की राजनीति से दूर रहने, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए कार्य करने तथा गुटों में शामिल तथा गुटनिरपेक्ष, सभी देशों के आपसी सहयोग का नाम है।
कोई भी गुटनिरपेक्ष देश अपनी नीतियाँ बनाने और कार्य विधि तय करने के लिए स्वतंत्र होता है। इस नीति से अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और सहयोग को प्रोत्साहन मिलता है। गुटनिरपेक्षता के लिए असंलग्नता शब्द का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि कोई भी गुटनिरपेक्ष देश किसी महाशक्ति के साथ स्थायी रूप से नहीं जुड़ा था।
जैसा कि हमने ऊपर वर्णन किया है, गुटनिरपेक्षता का सीधा संबंध शीतयुद्ध से था। गुटनिरपेक्षता शीतयुद्ध के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी। एक ओर जहाँ महाशक्तियाँ आक्रामक रूप से गुट निर्माण में संलग्न थीं वहीं दूसरी ओर नवोदित देश किसी भी सैनिक गठबंधन से दूर रहना चाहते थे और गुट नेताओं से आदेश प्राप्त करने के विरुद्ध थे। इसलिए अब जब कि शीतयुद्ध समाप्त हो गया है, यह विचार बार-बार व्यक्त किया जा रहा है कि गुटनिरपेक्षता का औचित्य ही नहीं रह गया है। फिर भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन आज भी सक्रिय है।
अपनी नवीन राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भारत ने तथा उसका अनुसरण करते हुए बाद में कई देशों ने विदेश नीति के साधन के रूप में गुटनिरपेक्षता को अपनाया। औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता यद्यपि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि तो थी लेकिन इसे अपने आप में पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। सामाजिक, आर्थिक विकास के द्वारा ही भारत के राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि हो सकती थी। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का यह विश्वास था कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय शांति एक आवश्यक शर्त हो गई थी। गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध, गुटों को राजनीति, शक्ति की राजनीति आदि को सामाजिक-आर्थिक विकास के मार्ग में बाधाओं के रूप में स्वीकारते थे और इनसे दूर रहने में ही अपना विकास देखते थे।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि गुटनिरपेक्षता या असंलग्नता सोची समझी कार्यनीति का परिणाम था। इसका अंतिम उद्देश्य भारत की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा, राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि और भारत तथा अन्य विकासशील देशों का आर्थिक विकास करना था। अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा भी गुटनिरपेक्षता से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए थे।
गुटनिरपेक्षता की अवधारणा इतनी मूल्यवान हो गई कि जो भी देश इस काल में स्वतंत्र हुए उन्होंने अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा और आर्थिक विकास के लिए गुटनिरपेक्षता का,मार्ग ही चुना। साथ ही साथ गुटनिरपेक्षता भारत की विदेश नीति का तर्कसंगत सिद्धांत बन गया था। एक स्वतंत्र विदेश नीति जन साधारण की इच्छाओं और अपेक्षाओं का प्रत्युत्तर थी। इसने जनमानस में गौरव की भावना विकसित की और देश की एकता का निर्माण करने में सहायता की। गुटेनिरपेक्षता का यह सिद्धांत एक ऐसे महान राष्ट्र का प्रत्युत्तर था जो उपनिवेशवाद से बाहर निकलकर शीतयुद्ध के दबाव को रोकना चाहता था। यह द्विध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में स्वायत्तता की एक सुनिश्चित अवधारणा थी। गुटनिरपेक्षता वास्तव में एक ऐसा. आंदोलन था, जिसमें उपनिवेशवाद के उन्मूलन के लिए, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए तथा एक ऐसी विश्व व्यवस्था के लिए वचनबद्धता थी जिसमें न तो किसी प्रकार का शोषण होगा, न जाति-भेद या रंग-भेद होगा और जिसमें सभी स्वाधीन लोगों को एक समान अवसर उपलब्ध होंगे।
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