संप्रभुता का अर्थ क्या है , संप्रभुता क्या है इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए , संप्रभुता का अर्थ प्रकार एवं लक्षणों का वर्णन कीजिए
संप्रभुता का अर्थ प्रकार एवं लक्षणों का वर्णन कीजिए संप्रभुता का अर्थ क्या है , संप्रभुता क्या है इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए ?
संप्रभुता
राजनीतिविज्ञान तथा न्यायशास्त्र के शब्दों में, संप्रभुता को राज्य का एक अनिवार्य गुण माना जाता है तथा यह एक ऐसी परिशद्ध तथा सर्वोच्च सत्ता की द्योतक है, जिस पर आंतरिक या बाह्य सत्ता का कोई नियंत्रण नहीं होता। ‘कूले‘ ने संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य की परिभाषा एक ऐसे राज्य के रूप में की है, “जहां स्वयं उसके भीतर एक ऐसी सर्वोच्च तथा परम सत्ता विद्यमान होती है जो किसी को भी अपने से वरिष्ठ नहीं मानती।‘‘
संप्रभुता के इस पारंपरिक अर्थ में आज के किसी भी राज्य को पूरी तरह प्रभुत्व सपन्न नहीं कहा जा सकता। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय आर्थिक समिति आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता और अंतर्राष्ट्रीय संधियां, समझौते, अभिसमय आदि उस पर बहुत से दायित्व डाल देते हैं और कई तरह के अंकुश लगा देते है जिनसे सप्रभुता पर थोडी बहुत आंच आती ही है।
भारत के संविधान में सपूर्ण प्रभुत्व सपन्न शक्तिया निहित करने के संबंध में कोई विशिष्ट उपबंध नहीं है। एक ही स्थान ऐसा है जहां से संप्रभुता की विद्यमानता तथा संविधान के स्रोत का सुनिश्चय किया जा सकता है और वह है उद्देशिका । ‘हम भारत के लोग‘ शब्द हमें अमरीकी संविधान की उद्देशिका के आरंभिक शब्दो की याद दिलाते है। किंतु अमरीकी संविधान की उद्देशिका, ‘हम, संयुक्त राज्यो के लोग‘ का उल्लेख करती है। इसके पहले के प्रारूप तथा इतिहास इस बात को अच्छी तरह स्पष्ट कर देते हैं कि अमरीकी सविधान निर्माताओ ने अनेक (13) स्वतत्र राज्यों के लोगों का उल्लेख किया था जो ‘अपेक्षाकृत अधिक परिपूर्ण संघ‘ चाहते थे। उन्होंने राष्ट्र के अखंड लोगो का उल्लेख नहीं किया। दूसरी ओर, भारत के संविधान की उद्देशिका में भारतीय संघ के राज्यों के लोगों की बात नहीं कही गई है। अमरीकी सविधान के विपरीत, हमारे संविधान को राज्यों के अनुसमर्थन की कोई जरूरत नहीं है। यह कहकर कि ‘हम, भारत के लोग‘ इस संविधान को स्वीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते है, संविधान निर्माताओं ने इस बात की निष्ठापूर्वक पुष्टि की कि हम लोग, भारत के लोग, एक हैं, और हम विभिन्न राज्यो आदि के लोग नहीं हैं, संप्रभुता भारत के सभी लोगो की है, न कि अलग अलग राज्यों के लोगो कीय और यह कि संविधान को राज्यो के लोगों द्वारा नहीं बल्कि भारत के सभी लोगों द्वारा अविभाज्य प्रभुत्व संपन्न इकाई के रूप में उनकी सामूहिक हैसियत में निर्मित तथा स्वीकृत किया गया है। इस बात पर जोर देने का प्रयास किया गया था कि हमारा राष्ट्र एक है, हमारा संविधान एक है तथा हमारी राज्य व्यवस्था एक है।
सयुक्त राज्य अमरीका तथा आस्ट्रेलिया में संप्रभुता संघ अथवा कामनवेल्थ तथा राज्यों के बीच बटी हुई है और प्रत्येक राज्य संविधान द्वारा सौंपे गए क्षेत्र मे प्रभुत्व सपन्न हैं। कितु इसके विपरीत, भारत में संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन के बावजूद,इसमें संप्रभुता का कोई विभाजन नहीं है। आपात स्थितियों के दौरान संघ राष्ट्रीय हित मे राज्यों के अधिकार क्षेत्र को लांघ सकता है। सामान्य स्थिति के दौरान भी वह अनुच्छेद 249 के अधीन राज्य सूची में समाविष्ट विषयों पर कानून बनाकर राज्यों के क्षेत्र का अतिक्रमण कर सकता है। हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता अखंड तथा अविभाज्य है। कोई भी राज्य या राज्यों का समूह संविधान को रद्द नहीं कर सकता या संविधान द्वारा स्थापित संघ से बाहर नहीं जा सकता। अमरीका में, सघ की अनश्वरता स्थापित करने के लिए गृहयुद्ध छेड़ना तथा जीतना पड़ा था। किंतु हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रारंभ में ही संघ की अनश्वरता का उपबंध कर दिया और राज्यों को संघ से अलग होने का कोई अधिकार नहीं दिया। संविधान के अनुच्छेद 1(3) (ग) में स्पष्ट कर दिया गया कि भारत संघ विदेशी राज्य क्षेत्र अर्जित कर सकता है। संघ कतिपय सवैधानिक अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए, अपने क्षेत्र का त्याग भी कर सकता है। ख्मगनभाई ईश्वरभाई पटेल बनाम भारत संघ (1970) 3 एस सी सी 100, । संविधान के अनुच्छेद 2, 3 और 4 के अधीन, सघ की ससद साधारण विधान के द्वारा नये राज्यों को संघ में शामिल कर सकती है या उनकी स्थापना कर सकती है, वर्तमान राज्यों के नाम, क्षेत्र और उनकी सीमाओ में परिवर्तन कर सकती है। जागरिकता सबधी उपबधों के अधीन, भारत के समस्त लोगों को इकहरी नागरिकता प्रदान की गई है; अमरीका की भांति संघ तथा राज्यों की दोहरी नागरिकता नहीं है।
इस प्रकार, हमारे संविधान की उद्देशिका के उपबध पारंपरिक सघवाद, विभाजित सप्रभुता, राज्यों की स्वायत्तता आदि की सभी सकल्पनाओ का अत कर देते है। इसके अलावा, संविधान निर्माताओं ने हमेशा के लिए यह स्पष्ट कर देने का प्रयास किया कि हमारे देश की कार्यप्रणाली में सप्रभुता स्वयं लोगो मे निहित है और यह कि संघ तथा राज्यो के सभी अग तथा कर्मी अपनी शक्ति भारत के लोगों से ही प्राप्त करते हैं।
उद्देशिका
संविधान के आधार-तत्व तथा उसका दर्शन
किसी संविधान की उद्देशिका’ से आशा की जाती है कि जिन मूलभूत मूल्यो तथा दर्शन पर सविधान आधारित हो, तथा जिन लक्ष्यो तथा उद्देश्यो की प्राप्ति का प्रयास करने के लिए सविधान निर्माताओ ने राज्य व्यवस्था को निर्देश दिया हो, उनका उसमे समावेश हो।
हमारे सविधान की उद्देशिका मे, जिस रूप में उसे मविधान सभा ने पास किया था, कहा गया है: “हम, भारत के लोग‘‘ भारत को एक ‘‘प्रभुत्व सपन्न लोकतात्रिक गणराज्य‘‘ बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिको को न्याय, स्वनत्रता और समानता दिलाने और उन सबमे बधुता वढाने के लिए दृढ सकल्प करते है। न्याय की परिभाषा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के रूप में की गई है। स्वतंत्रता से विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतत्रता सम्मिलित है और समानता का अर्थ है प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता।
वास्तव में, न्याय, स्वतत्रना, समानता आर बधना एक वास्तविक लोकतत्रात्मक व्यवस्था के अन्यावश्यक सहगामी तत्व है, इसलिए उनके द्वारा केवल लोकतत्रात्मक गणराज्य की सकल्पना स्पष्ट होती है। अतिम लक्ष्य है व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करना। इस प्रकार, उद्देशिका यह घोपणा करने का काम करती है कि ष्भारत के लोग” संविधान के मूल स्रोत है, भारतीय गन्य व्यवस्था मे प्रभुता लोगो मे निहित है और भारतीय राज्य व्यवस्था लोकतंत्रात्मक है जिसमे लोगो को मूल अधिकारो तथा स्वतत्रताओ की गारी दी गई है तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चित की गई है।
हमारे संविधान की उद्देशिका मे बहुत ही भव्य और उदात्त शब्दों का प्रयोग हुआ है। वे उन सभी उच्चतम मूल्यों को साकार करते हैं जिनकी प्रकल्पना मानव-बुद्धि, कौशल तथा अनुभव अब तक कर पाया है। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के राजनीतिविज्ञान के प्रसिद्ध प्रोफेसर सर अर्नेस्ट बार्कर हमारे संविधान की उद्देशिका के मूल पाठ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने इसे अपने शोधग्रंथ के प्राक्कथन के रूप में उद्धृत करते हुए कहा:
जब मैंने इसे पढ़ा तो मुझे ऐसा लगा कि मैंने अपनी सारी पुस्तक में जो कुछ कहने का प्रयास किया है वह इसमें बहुत थोड़े से शब्दो में रख दिया गया है और इसे मेरी पुस्तक का मूल स्वर माना जा सकता है।
बेरुबाड़ी के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने इस बात से सहमति प्रकट की थी कि उद्देशिका संविधान निर्माताओं के मन की कुजी है। जहां शब्द अस्पष्ट पाए जाएं या उनका अर्थ स्पष्ट न हो, वहा संविधान निर्माताओ के आशय को समझने के लिए उद्देशिका की सहायता ली जा सकती है और पता लगाया जा सकता है कि उस शब्द विशेष का प्रयोग व्यापक सदर्भ मे किया गया है या संकीर्ण सदर्भ में। तिस पर भी, न्यायमूर्ति गजेन्द्र गडकर ने कहा था कि उद्देशिका संविधान का अग नही है। यह विधानमंडलों या राज्य के अन्य अंगो को कोई महत्वपूर्ण शक्तिया प्रदान नहीं करती। निश्चय ही कोई भी शक्ति या अधिकार केवल संविधान के उपबधों द्वारा अभिव्यक्त अथवा निहित रूप में दिए जा सकते हैं।
सज्जन सिह बनाम राजस्थान राज्य के मामले में, न्यायमूर्ति मधोलकर ने कहा था कि उद्देशिका पर “गहन विचार-विमर्श‘‘ की छाप है, उस पर सुस्पष्टता का ठप्पा है और उसे संविधान निर्माताओ ने विशेष महत्व दिया है। उद्देशिका संविधान की विशेषताओं का निचोड़ है अथवा यो भी कहा जा सकता है कि संविधान उद्देशिका में निर्धारित संकल्पनाओं का परिवर्दि्धत अथवा मूर्त रूप है। उद्देशिका के संविधान का अग न होने के बारे में उच्चतम न्यायालय की राय पर संभवतया पुन. विचार किए जाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ने भी उद्देशिका के बारे में कहा था कि वह संविधान के उपबंधों को समझने मे और उनकी सही व्याख्या करने में सहायक हो सकती है। यह महसूस किया गया कि संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका के माध्यम से जो आशय व्यक्त किया है, उसकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिए था। गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के मामले में, न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ने विचार व्यक्त किया कि संविधान की उद्देशिका उन सिद्धांतों का निचोड़ है जिनके आधार पर सरकार को कार्य करना है। वह “संविधान की मूल आत्मा है, शाश्वत है, अपरिवर्तनीय है।‘‘ उन्होंने कहा कि हमारी उद्देशिका हमारे राष्ट्रीय जीवन के कतिपय मूलाधारों के प्रति हमारी आस्था तथा हमारे विश्वास की घोषणा है। वह एक अनिवार्य आदर्श स्तर है। वह एक अडिग संकल्प है।
जैसा कि बाद में भारतीचन्द्र भवन बनाम मैसूर राज्य (ए आई आर (1970) एस सी 2042) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया, निदेशक तत्वों तथा मूल अधिकारों को भी उद्देशिका मे प्रतिष्ठित उद्देश्यों के प्रकाश में अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है।
बेरुबाड़ी के मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया कि किसी अधिनियम की उद्देशिका पर विधानमंडलो के सदनों में बहस नहीं की जाती या मतदान नहीं होता, कितु इसके विपरीत हमारे संविधान की उद्देशिका पर संविधान सभा में संविधान के किसी भी अन्य भाग की तरह पूरी बहस हुई थी। उसे विधिवत अधिनियमित तथा अंगीकृत किया गया था। उद्देशिका पर अंतिम मतदान कराते समय संविधान सभा के अध्यक्ष ने कहा था: “प्रस्ताव यह है कि उद्देशिका संविधान का अंग बने‘‘, अतः यह उचित ही था कि उच्चतम न्यायालय ने बाद में अपने निर्णय में संशोधन कर दिया।
केशवनानन्द भारती बनाम केरल राज्य के मामले में, अधिकांश न्यायाधीशों ने संविधान सभा के वाद-विवाद का हवाला देते हुए निर्णय दिया कि उद्देशिका संविधान का अग है। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि संविधान की उद्देशिका का विधायी इतिहास इसके महत्व को उचित ठहराता है। उद्देशिका संविधान का केवल एक अंग ही नहीं है बल्कि ‘‘वह अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा संविधान को उद्देशिका में अभिव्यक्त महान तथा उदात्त भविष्य-निरूपण के प्रकाश में पढ़ा जाना चाहिए तथा उसका निर्वचन किया जाना चाहिए।‘‘ संविधान के किसी भी उपबध में केवल अनुच्छेद 368 के अधीन “उद्देशिका तथा संविधान की मोटी मोटी रूपरेखा के अतर्गत रहते हुए” संशोधन किया जा सकता है। वस्तुतया उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अपरिवर्तनशील बुनियादी तत्वों का स्रोत उद्देशिका के शब्दो में खोजने का प्रयास किया और निर्णय दिया कि संविधान के उपबंधों में कोई ऐसा संशोधन नहीं किया जा सकता जिससे उसके बुनियादी स्वरूप में परिवर्तन हो जाए। हालांकि बुनियादी तत्वों की सूक्ष्म परिभाषा नहीं की गई, फिर भी उद्देशिका में वर्णित बुनियादी तत्वों का विशिष्ट रूप से उल्लेख किया गया।
उच्चतम न्यायालय के शब्दों में “हमारे संविधान का प्रासाद उद्देशिका में वर्णित बुनियादी तत्वों पर खड़ा है। यदि इनमें से किसी भी तत्व को हटा दिया जाए तो सारा ढांचा ही ढह जाएगा और संविधान वही नहीं रह जाएगा अर्थात अपना व्यक्तित्व और पहचान खो देगा।ष् इस प्रकार, अब यह मान लिया गया है कि उद्देशिका में समाविष्ट संविधान के बुनियादी तत्वों या उसकी विशेषताओं को अनुच्छेद 368 के अधीन किसी संशोधन द्वारा उल्टा नहीं जा सकता।
किंतु, भले ही उद्देशिका को अब संविधान का एक अभिन्न अंग माना जाता है, फिर भी यह भी अपनी जगह सत्य है कि यह न तो किसी शक्ति का कोई स्रोत है और न ही उसको किसी प्रकार सीमित करता है। सबसे पहले इस बात की घोषणा बेरुबाड़ी के मामले में की गई थी। न्यायमूर्ति मैथ्यू ने इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (ए आई आर 1975 एस सी 2291) के मामले मे इसे दोहराया।
आपात स्थिति के दौरान, 1976 के 42वे सविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा ‘समाजवादी‘ तथा ‘पंथ निरपेक्ष‘ शब्द उद्देशिका मे जोड़ दिए गए। इसके अलावा राष्ट्र की एकता ‘शब्दो के स्थान पर‘ राष्ट्र की एकता तथा अखंडता शब्द रख दिए गए। यह महसूस किया गया कि ये विशेषक शब्द स्थिति का स्पष्टीकरण मात्र करते थे तथा इनसे राज्य व्यवस्था या राज्य के स्वरूप में कोई ठोस अंतर नहीं पड़ता था क्योंकि कानून-निर्माताओं के अनुसार समाजवाद, पथ निरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता उद्देशिका में तथा मूल रूप में निर्मित संविधान के शेष भागो मे पहले से अतनिर्हित थे।
बोम्मई वाले मामले मे, उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति रामास्वामी ने कहा:
उद्देशिका संविधान का अभिन्न अग है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, सधात्मक ढाचा, राष्ट्र की एकता और अखडता, पथ निरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय तथा न्यायिक पुनराविलोकन संविधान के बुनियादी तत्वों मे है।
42वे संशोधन के बाद जिस रूप में उद्देशिका इस समय हमारे संविधान में विद्यमान है, उसके अनुसार, संविधान निर्माता जिन सर्वोच्च या मूलभूत सवैधानिक मूल्यों में विश्वास करते थे, उन्हे सूचीबद्ध किया जा सकता है। वे चाहते थे कि भारत गणराज्य के जन जन के मन में इन मूल्यो के प्रति आस्था और प्रतिबद्धता जगे-पनपे तथा आने वाली पीढ़ियां, जिन्हे यह सविधान आगे चलाना होगा, इन मूल्यों से मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें। ये उदात्त मूल्य है
ऽ संप्रभुता
ऽ समाजवाद
ऽ लोकतंत्र
ऽ गणराज्यीय स्वरूप
ऽ न्याय
ऽ स्वतंत्रता
ऽ समानता
ऽ बंधुता
ऽ व्यक्ति की गरिमा, और
ऽ राष्ट्र की एकता तथा अखंडता।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics