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लोक संगीत क्या है , लोक संगीत की विशेषताएं pdf किसे कहते है प्रकार folk music of india in hindi names list

folk music of india in hindi names list लोक संगीत क्या है , लोक संगीत की विशेषताएं pdf किसे कहते है प्रकार ?

लोक संगीत
भारत भौगोलिक दृष्टि से विविधतापूर्ण राष्ट्र है और यह विविधता भारतीय संस्कृति में भी विद्यमान है। हमारे देश में प्रत्येक राज्य में संगीत का अपना ही रूप है। यह उनके सांस्कृतिक प्रतिज्ञान का आधार है। जहां शास्त्रीय संगीत में नाट्यशास्त्र में दिए गए नियमों का पालन किया जाता है और गुरु-शिष्य (छात्र-गुरु) परंपरा का पोषण किया जाता है नदी लोक संगीत लोगों का संगीत है और इसका कोई कठोर नियम नहीं हैं।
लोक संगीत विविध विषयों पर आधारित होते हैं और संगीत की लय से भरपूर होते हैं। यह तालों पर भी टीके हो सकते है। राज्य विशेष से जुड़े कई प्रकार के लोक संगीत होते हैंः

बाऊल
यह न केवल संगीत का एक प्रकार है बल्कि बंगाली धार्मिक संप्रदाय भी है। बाऊल का संगीत यानी बाऊल संगीत एक विशेष प्रकार का लोक गीत है। इसके गीतों पर हिंदू भक्ति आंदोलन का खासा प्रभाव दिखाई देता है।
यह संगीत बंगाल में गीतों के माध्यम से रहस्यवाद का उपदेश देने की लंबी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है जिसके उदाहरण साहेब धोनी या बोलाहादी संप्रदाय हैं। इस संगीत के वर्तमान प्रतिपादक हैं: योतिन दास, पूर्णो चंद्र दास, लालोन फकीर, नबोनी दास और सनातन दास ठाकुर बाऊल।

वनावन
यह कश्मीर राज्य का लोक संगीत है। इसे विशेष रूप से विवाह समारोहों के दौरान गाया जाता है और बहुत ही शुभ माना जाता है।

पंडवानी
यह लोक संगीत महाकाव्य महाभारत पर आधारित है। इसमें गायन और वादन (वाद्य यंत्र बजाने) दोनों का समावेश है। सामान्यतः गीत तम्बूरे की ताल पर आधारित होते हैं। इसके सुविदित कलाकारों में से एक छत्तीसगढ़ राज्य की ताजनबाई हैं। संगीत के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

आल्हा
यह मध्य प्रदेश राज्य से संबंधित है और यह जटिल शब्दों वाला वीर गाथा गीत है। इसे सामान्यतः ब्रज, अवधी और भोजपुरी जैसी अलग-अलग भाषाओं में गाया जाता है। यह प्रकार भी महाकाव्य महाभारत से संबंधित है क्योंकि इसमें उन नायकों का महिमामंडन करने का प्रयास किया जाता है जिन्हें पांडवों के पुनः अवतार के रूप में देखा जाता है। पांच पांडव भाइयों को आल्हा, ऊदल, मलखान, लखन और देवा के रूप में इन वीर गीतों में प्रतिस्थापित किया जाता हैं।

पनिहारि
यह लोक गीत राजस्थान राज्य से है और विषयगत रूप से पानी से संबंधित है। यह गीत सामान्यतः पास के कुएं से पानी लाने वाली और वापस अपने घरों में अपने सिर पर मटकों में पानी ले जाने वाली महिलाओं के विषय में होता है। यह गीत सामान्यतः पानी की कमी और कुएं और गांव के बीच की लंबी दूरी के विषय में होता है। कभी-कभी इन गीतों में गांव के कुएं के पास झुण्ड लगाए गांव की महिलाओं की दैनिक चिंताओं के विषय में भी चर्चा होती है।
अन्य अवसरों पर, गीत, प्रेमियों के बीच संयोगिक मिलन पर भी केंद्रित होते हैं, इसलिए ये श्रृंगार रस को साँझा करते हैं। इनमें कभी-कभी सास और बहू के बीच विवादास्पद संबंधों के विषय में भी चर्चा होती है।

ओवी
यह संगीत महाराष्ट्र और गोवा से संबंध रखता है। सामान्यतः यह महिलाओं का गीत है जिसे उनके द्वारा अवकाश के समय या जब वे अपने घर का काम कर रही होती हैं, गाया जाता है। इनमें सामान्यतः कविता की चार छोटी पंक्तियां होती हैं। ये सामान्यतः विवाह गर्भधारण के लिए और बच्चों के लिए लोरी के रूप में लिखे जाने वाले गीत होते है।

पई गीत
यह गीत अधिकांशतः मध्य प्रदेश से हैं। इसे त्योहारों, विशेष रूप से वर्षा ऋतु के दौरान पड़ने वाले त्योहारों के दौरान गाया जाता है। सामान्यतः इन गीतों के माध्यम से अच्छे मानसून और अच्छी फसल‘ के लिए प्रार्थना होती हैं क्योंकि यह किसान समुदायों द्वारा गाये जाते है। सामान्यतः पाई संगीत पर सायरा नृत्य किया जाता है।

लावणी
यह महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह महाराष्ट्र में लोक संगीत की सबसे लोकप्रिय शैलियों में से भी एक है।
यह पारंपरिक नृत्य और गीत का संयोजन है। सामान्यतः ढोलकी की ताल पर इसका प्रदर्शन किया जाता है। शक्तिशाली लय और ताल के कारण यह संगीत पूर्ण रूप से नृत्य के लिए उपयुक्त हैं तथा सुनिश्चित करता है कि हर कोई आनंद के साथ इसका लुत्फ उठाए।

मांड
यह राजस्थान राज्य का लोक संगीत है। कहा जाता है कि इसका विकास राजदरबारों में हुआ था और इसलिए यह शास्त्रीय परिधि में मान्यता प्राप्त है। इसे न तो पूर्ण राग के रूप में स्वीकार किया जाता है और न ही इसे स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत लोक गीतों में गिना जाता है। सामान्यतः इन गीतों का विषय राजपूत शासकों की महिमा का गान करना होता है।

डांडिया
रास या डांडिया रास गुजरात का पारंपरिक लोक नृत्य रूप है और इसे वृंदावन में होली और कृष्ण और राधा की लीला के दृश्यों के साथ जोड़ा जाता है। गरबा के साथ यह पश्चिमी भारत में नवरात्रि की संध्या का विशेष नृत्य है।
रास के कई रूप होते हैं, लेकिन गुजरात में नवरात्रि के दौरान किया जाने वाला ‘डांडिया रास‘, सबसे अधिक लोकप्रिय रूप है। रास के अन्य रूपों में राजस्थान की डांग लीला है जिसमें केवल एक लंबी छड़ी का उपयोग किया जाता है और उत्तर भारत से ‘रासलीला‘ सम्मिलित है। रास लीला और डांडिया समान हैं। डांडिया रास में पुरुष और महिलाएं अपने हाथों में छड़ी लेकर, दो वृत्तों में नृत्य करते हैं।

पोवाडा
यह भी महाराष्ट्र राज्य में उभरने वाले लोक गीत का एक प्रकार है। ये सामान्यतः शिवाजी जैसे नायकों के लिए गाऐ जाने वाले वीरगाथा गीत हैं। इन गीतों में उनके गौरवशाली अतीत की घटनाओं और उनके वीरतापूर्ण कृत्यों का वर्णन होता है।

खोंगजोम पर्व
यह मणिपुर राज्य का महत्वपूर्ण लोक संगीत है। यह लोकप्रिय वीरगाथा गीत शैली से सम्बंधित है। यह 1891 में ब्रिटिश सेना और मणिपुरी प्रतिरोध बलों के बीच लड़ी गई खोंगजोम की लड़ाई का संगीतात्मक वर्णन है।

भगवती
ये कर्नाटक और महाराष्ट्र में आम जनता के बीच बहुत ही लोकप्रिय भावनात्मक गीत हैं। संगीत के रूप में, ये गजल के बहुत समीप हैं और इन्हें धीमे स्वरमान पर गाया जाता है। इसकी रचना के विषय प्रेम तथा दर्शन से संबंधित हैं।

देश भर के अन्य प्रमुख लोक गीत
संगीत का नाम उत्पत्ति राज्य प्रमुख विषय
सोहर बिहार बच्चे के जन्म के दौरान गाया जाता है
टिकिर असम इस्लाम की शिक्षाओं से सम्बंधित है।
जा-जिन-जा अरुणाचल प्रदेश विवाह के दौरान गाया जाता है
नीयोगा अरुणाचल प्रदेश विवाह समारोह के अंत में गाया जाता है
हेलियाम्लियू नागालैंड नृत्य गीत
नियूलियू नागालैंड किवदंतियों और मिथकों के विषय में गीत
हीरील्यू नागालैंड युद्ध गीत
हेकाईल्यूथ नागालैंड अपने विषय में गीत

शास्त्रीय और लोक गीत का समागम
समय के साथ, शास्त्रीय और लोक संगीत के परस्पर मिलन से और अन्य रूपों का उद्भव हुआ जिसने शास्त्रीय और लोक गीत दोनों के तत्वों को ग्रहण किया। इन दोनों का संयोजन भक्ति संगीत के माध्यम से हुआ क्योंकि देवी देवताओं को जन-साधारण तथा कुलीन वर्ग दोनों द्वारा संरक्षण दिया जाता था। इसकी कुछ शैलियां इस प्रकार हैं:

सुगम संगीत
ये ऐसा भक्ति संगीत है जिसमें शास्त्रीय तथा लोक गीत दोनों के अंश प्राप्त होते हैं। यह प्रबंध संगीत और ध्रुपद जैसे संगीतों के पहले के रूपों से संकेत ग्रहण करती है क्योंकि इनका विषय भक्तिपरक था। इस शैली की उप-श्रेणियां हैं:

भजन
यह उत्तर भारत में वर्तमान भक्ति गायन का सबसे लोकप्रिय प्रकार है। यह अपनी उत्पत्ति के लिए भक्ति आंदोलन का ऋणी है क्योंकि भक्ति संत मौखिक साधनों के माध्यम से, यानी भजन गायन के माध्यम से लोगों तक ईश्वर का संदेश पहुंचाते थे। ये गीत सरल धुनों पर सामान्यतः एक या एक से अधिक रागों पर आधारित थे। देवी या देवताओं के जीवन और महाभारत व रामायण की कहानियां भजन का लोकप्रिय विषय हैं।
भजन के साथ सामान्यतः चिमटा, ढोलक, ढपली, मंजीरा जैसे संगीत वाद्य यंत्रों की संगत होती है। मध्यकाल में भजनों के प्रमुख प्रतिपादक मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास, कबीर, आदि थे। वर्तमान में, लोग भक्तिमय संगीत गाने के लिए मंदिरों में या यहां तक कि घर पर समारोहों जैसे संगीत कार्यक्रमों में एक साथ एकत्र होते हैं । वर्तमान में सबसे अधिक प्रसिद्ध सदाबहार भजन गायकों में अनूप जलोटा और अनुराधा पौडवाल हैं।

शबद
सिख धर्म के उदय के साथ, गुरुओं को समर्पित कई भक्ति गीतों को हम गुरुद्वारों में गाए जाते हुए देखते हैं। इतिहासकारों क अनुसार शबद के विकास और लोकप्रियता के लिए गुरु नानक और उनके शिष्य मर्दाना, उतरदाई थे। वर्तमान में. तान प्रकार के शबद गायन होते हैं-राग-आधारित ‘शबद गायन‘ आदि ग्रंथ में उल्लखित पारंपरिक शबद और प्रकाश शबद। वर्तमान में सिंह बंधु – तेजपाल सिंह, सुरिंदर सिंह और भाई संता सिंह सबसे प्रसिद्ध शबद गायक हैं।