फ्रैंक कमेनी कौन थे ? Frank Kameny in hindi information फ़्रैंक कैमिनी के बारे में जानकारी

फ़्रैंक कैमिनी के बारे में जानकारी  दीजिये Frank Kameny in hindi information फ्रैंक कमेनी कौन थे ?

उत्तर : फ्रेंक कमेनी एक “समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता” थे अर्थात वे समलैंगिक लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले और उनके अधिकारों के लिए लड़ने वाले व्यक्ति थे | he was a gay activitist , means he was also a gay and was fighting for rights for gays in his whole life.

अमेरिका में हुए समलैंगिक आन्दोलन में यदि किसी ने बड़ी भूमिका निभाई थी तो श्रीमान फ्रैंक कमेनी के नाम सर्वप्रथम लिया जा सकता है |

ये स्वयं एक समलैंगिक व्यक्ति थे और उनके इस समलैंगिकता के कारण उनके साथ भेदभाव किया गया और वे पहले जब अमेरिकन आर्मी में किसी पद पर कार्यरत थे तो इन्हें वहां से केवल इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि ये एक समलैंगिक व्यक्ति थे |

उनके साथ हुए इस प्रकार के व्यवहार से उन्होंने सोचा कि यदि मेरे साथ ऐसा हो सकता है तो एक आम आदमी के साथ तो बहुत अधिक अत्याचार होता होगा , उसे न जाने समाज किस किस प्रकार के दुःख देती होगी और यही सोचकर उन्होंने समलैंगिक लोगों के अधिकारों को लेकर आन्दोलन चलाया और अंततः जीत हासिल की और आज के समाज में अमेरिका में ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी देशों में समलैंगिक लोगों के लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान किया गया है और उन्हें विशेष अधिकारों के तहत साथ में रहने , शादी करने आदि का स्वतंत्र अधिकार दिया गया है |

और उसके बाद जून 2009 में अमेरिकन सरकार ने अपनी गलती मानी कि सरकार को उनके साथ इस प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए था और इस समय उन्हें नौकरी से निकाले हुए लगभग 50 वर्ष हो चुके थे और 2010 में वाशिंगटन डी सी में उनके सम्मान में एक सर्कल का नाम उनके नाम पर रखा गया | और इसका नाम Frank Kameny Way (फ्रैंक कामनी वे) रखा गया था |

निंबधात्मक प्रश्न
प्रश्न: कौटिल्य के अर्थशास्त्र की प्रकृति के बारे में बताइए। अर्थशास्त्र में कुल कितने अधिकरण हैं और उनका विषयवस्तु क्या है?
परिशिष्टीपर्वन जैन परम्परानुसार कौटिल्य गोल्य प्रदेश के चाणय नामक ग्राम का निवासी था। उसके पिता का नाम चणक था जो जाति से ब्राह्मण परंतु धर्म से जैन था। पुराणों में कौटिल्य को द्विजर्षभ (श्रेष्ठ ब्राह्मण) कहा गया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र की पाण्डुलिपि को सर्वप्रथम आर. शाम शास्त्री द्वारा खोजा गया। जब शाम शास्त्री मैसूर रियासत के पुस्तकालय के अध्यक्ष थे तब 1905 ई. में तन्जौर के एक ब्राह्मण ने अर्थशास्त्र की हस्तलिखित पाण्डुलिपि उन्हें भेंट की। शाम शास्त्री ने जिसे 1909 में संस्कृत में एवं 1915 में अंग्रेजी में प्रकाशित करवाया। शाम शास्त्री के अनुसार वर्तमान ग्रन्थ में भी इतने ही श्लोक हैं। राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में अर्थशास्त्र का वही स्थान है, जो व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि के अष्टाध्यायी का कौटिल्यकत अर्थशास्त्र एक धर्मनिरपेक्ष रचना है। उसका मुख्य विषय सामान्य राज्य एवं उसके शासनतंत्र का विवरण देय है। बांग्लादेश के महास्थान अभिलेख से कौटिल्य के अर्थशास्त्र की लिपि ‘काकीनी‘ का उल्लेख है। कौटिल्य अर्थशास्त्र को ज्ञान की ऐसी शाखा के रूप में परिभाषित करता है जो शिक्षा देती है कि किस प्रकार एक राज्य को प्राप्त (अथवा उसका निर्माण) करना चाहिए तथा सहेजना चाहिए।
कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र को भारत की राजनीति का पहला ग्रन्थ माना जाता है। अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। इस ग्रन्थ में श्लोकों की संख्या 4000 बतायी गयी है।
अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकरण हैं, जिनकी विषय वस्तु निम्नलिखित है।
प्रथम अधिकरण – राज्य की समस्याओं, ज्ञान की शाखाओं आदि का सैद्धान्तिक विवेचन है।
दूसरा अधिकरण – राज्य के प्रशासनिक विभागों, संगठनों और पदाधिकारियों का विवेचन है।
तीसरा अधिकरण – दीवानी न्यायालय
चैथा अधिकरण – फौजदारी न्यायालय
पाँचवा अधिकरण – राजकीय कर्मचारियों के अनुशासन, अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन है।
छठा अधिकरण – राज्य का सात प्रतियों या अंगों (सप्तांग सिद्धान्त) व मण्डल सिद्धान्त का विवेचन है।
सातवाँ अधिकरण – षड्युग नीति के उद्देश्यों व प्रकारों पर विचार किया गया है ताकि शत्र, मध्यम व उदासीन राज्यों को वश में किया जा सके।
आठवाँ अधिकरण – व्यसनों के निरूपण संबंधी व्यवस्थाओं का विवेचन है।
नवा अधिकरण – विभिन्न आपत्तियों (आक्रमण) से राज्य के बचाव की नीतियों का वर्णन है।
दसवाँ अधिकरण – युद्ध नीति के बारे में है।
ग्यारहवाँ अधिकरण – शत्रु को भेद डालकर नष्ट करने व उसे वश में करने के बारे में है।
बारहवाँ अधिकरण – राजा द्वारा अपनाये जाने वाले रक्षा उपायों पर है।
तेरहवें अधिकरण – दुर्ग प्राप्ति के उपायों का निरूपण है।
चैदहवें अधिकरण – शत्रु के नाश के लिए विषैली औषधियों, मंत्रों आदि का वर्णन है।
पन्द्रहवाँ अधिकरण – मुख्यतः पारिभाषिक है। इसमें अर्थशास्त्र के अर्थ की सामान्य विवेचना प्रस्तुत की गई है तथा यह भी बताया गया है कि नन्द राजा को नष्ट करने वाले कौटिल्य ने इस अर्थशास्त्र ग्रन्थ की रचना की है।
मेगस्थनीज व पतंजलि कौटिल्य के नाम का उल्लेख नहीं करते हैं।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में दुर्भिक्ष पड़ते थे और दुर्भिक्ष के समय राज्य द्वारा जनता की भलाई के लिय उपाय किये जाते थे। कौटिल्य का दृढ मत था कि राजत्व बिना सहायता से सम्भव नहीं है, अतः राजा को सचिवों की नियुक्ति करनी चाहिए तथा उनसे मन्त्रणा लेनी चाहिए। राज्य के सर्वोच्च अधिकारी मंत्री कहलाते थे। इनका चयन अमात्य वर्ग से होता था। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख है संस्था और संचरा। अर्थशास्त्र में कृषि की पद्धति का उल्लेख नहीं मिलता। मौर्यकाल में शासन कार्य का भार मुख्यतः एक विशाल वर्ग पर था, जो साम्राज्य के विभिन्न भागों से शासन का संचालन करते थे। अर्थशास्त्र में सबसे ऊँचे स्तर के कर्मचारियों को ‘तीर्थ‘ कहा गया है। ऐसे अठारह तीर्थों का उल्लेख है जिनमें अन्तपाल भी शामिल है। अन्तपाल का कार्य सीमावर्ती दुर्गों की रक्षा करना व मार्गों की सुरक्षा तथा रख-रखाव होता था। अर्थशास्त्र अपराध एवं दण्ड का विवरण देता है तथा मृत्युदण्ड के विभिन्न प्रकार सुझाता है।
भारत के विभिन्न व्यापारिक मार्गों के तुलनात्मक गुणों का बुद्धिमतापूर्वक गुण-विवेचन कौटिल्य के अर्थशास्त्र में किया गया है। कौटिल्य ने हिमालय की ओर जाने वाले मार्ग की तुलना दक्षिण को जाने वाले मार्ग से करते हुए दक्षिण मार्ग को अधिक लाभदायक बताया है, क्योंकि दक्षिण से बहुमूल्य व्यापार की वस्तुएं जैसे मुक्ता, मणि, हीरे, शंख इत्यादि आते थे। कौटिल्य ने राजा के जीवन की सुरक्षा के निम्न उपाय बताए हैं राजकीय भोजन के निर्विष होने की जाँच। शयनागार एवं रानी का अच्छी तरह से परीक्षण। रात्रि में सोने के कमरे बदलना। राजाप्रसाद के गुप्त रास्तों, सुरंगों, भल-भलैया आदि से पूर्ण परिचित। आखेट यात्राओं के सय सतर्कता एवं महिला सैनिकों की नियुक्ति।
भारत दन्तपर्ण लौकिक साहित्यों में कौटिल्य का अर्थशास्त्र विशेष स्थान रखता है। यह राजनीति एवं लोक प्रशासन पर लिखी गई पहली प्रामाणिक पुस्तक है। इसीलिए कौटिल्य को भारत का मैकियावली भी कहा जाता है। यह मुख्यतः निर्देशित करने वाला ग्रन्थ है अर्थात् इसमें राजा और राज्य के कर्तव्य को निर्देशित किया गया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में न तो किसी मौर्य शासक के नाम का वर्णन है और न ही मौयों की राजधानी पाटलीपत्र का। इसमें सैन्य प्रशासन और नगर प्रशासन का भी सांगोपांग वर्णन प्राप्त नहीं होता है। यह राजनीतिशास्त्र पर लिखी गई सामान्य पुस्तक मानी जाती है।
कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धान्त के द्वारा राज्य की सुदृढ़ अवस्था को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया है। उसके अनसार बिना सप्तांग सिद्धांत के कोई भी राज्य पल्लवित नहीं हो सकता है।
कौटिल्य ने सर्वप्रथम 18 तीर्थ, 26 अध्यक्ष, गुप्तचर विभाग, जहाजरानी और भू-राजस्व तथा दासप्रथा का विस्तत उल्लेख किया है।
इन सबके बावजद अर्थशास्त्र के तिथिक्रम में विभिन्न इतिहासकारों में मतभेद है। वे इसे मौर्यकाल की रचना मानने में भी अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं। उनके अनुसार, यह कौटिल्य की प्रामाणिक रचना भी नहीं है। चूँकि इसका लेखन अन्य पुरूष की शैली में हुआ है इसलिए इसे किसी अन्य के द्वारा लिखित बताया गया है तथा इसमें क्षेपकों का योगदान । अधिक व्यक्तियों का योगदान स्वीकार करते हैं। इन आलोचनाओं के बावजूद भी कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है तथा इसमें प्रस्तत राजनीतिक सिद्धान्त एवं विचारधाराएँ मौर्य साम्राज्य के अतिरिक्त अन्य शासकों की सफलता एवं समद्धिक जा सकती है।
प्रश्न: मेगस्थनीज की इण्डिका को मौर्ययुगीन इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कौटिल्य के अर्थशास्त्र के समान मेगस्थनीज की इण्डिका जिसे. एक अन्य यूनानी लेखक एरियन की भी कृति माना जाता है, मौर्य साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण लक्षणों पर प्रकाश डालती है। यह ग्रन्थ अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। फिर भी इसके उद्धरण विभिन्न यूनानी लेखकों जैसे एरियन, स्ट्रेबो, प्लूटॉर्क, जस्टिन, डायोडोरस आदि के उदाहरणों में प्राप्त होते है। परन्तु स्ट्रेबो ने मेगस्थनीज के वृत्तान्त को पूर्णतः असत्य एवं अविश्वसनीय कहा है।
मेगस्थनीज की ‘इण्डिका‘ में शासक के व्यक्तिगत जीवन, सैन्य प्रशासन, राजस्व प्रशासन, उत्तरापथ तथा दर्दिस्तान की है। की खान का वर्णन किया गया है, परन्तु इन विवरणों के अतिरिक्त उसके कुछ भ्रामक विवरण भी प्राप्त होते हैं, जैसेजातियों का वर्णन, दास प्रथा का अभाव, अकाल न पड़ने और लेखन कला के अभाव का वर्णन प्रस्तुत किया।
मेगस्थनीज का विवरण जैसा है, जहां है के आधार पर वर्णित किया गया है। इससे इतिहास लेखन में सहायता प्राप्त हो परन्तु वह यूनानी था इसलिए कुछ वर्णन यूनान की तुलनात्मक अवस्था के आधार पर किये। इसलिए ये भारतीय मर भ्रामक प्रतीत होते हैं लेकिन इसमें अनजाने में ही यूनान की सामाजिक एवं आर्थिक दशा का विवरण प्राप्त हो जाता है।
चूँकि कौटिल्य का अर्थशास्त्र निर्देशित करने वाला ग्रन्थ है और इण्डिका को प्रत्यक्षदर्शी तरीके से लिखा गया है इसलिए मौर्ययुगीन इतिहास के महत्त्वपूर्ण साक्ष्य के लिए इसे मुख्य आधार बनाया जा सकता है।
प्रश्न: दक्षिण भारत के राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से अधिक उपयोगी न होते हुए भी संगम साहित्य उस समय की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का अत्यन्त प्रभावी शैली में वर्णन करता है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: सुदूर दक्षिण भारत के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने का कार्य संगम साहित्य ने किया है। संगम साहित्य दक्षिण भारत के तीन संगमों (सम्मेलनों) के दौरान रचा गया, जिसका रचना काल 100 ई. से 250 ई. के मध्य माना गया है। संगम साहित्य की रचना पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में हुई। इस साहित्य में दक्षिण भारतीय समाज के प्राचीनतम रूप का विशद् वर्णन है। इस समय का समाज युद्धोपजीवी व पशुचारक प्रतीत होता है। संगम साहित्य दो भागों में बंटा है।
1. अहूम प्रेम आख्यान से संबंधित 2. पुरम युद्ध आख्यान से संबंधित है।
इस साहित्य की मदद से तत्कालीन साहित्य, धर्म, अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति एवं यहां तक कि भौगोलिक स्थिति का भी भलीभांति पता चलता है। अतः दक्षिण के राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से भले ही इसमें अधिक जानकारी न हो, किन्तु तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक व भौगोलिक स्थिति की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है।
पल्लव कालीन भाषा एवं साहित्य
पल्लव नरेशों का शासन संस्कृत तथा तमिल दोनों ही भाषाओं के साहित्य की उन्नति का काल रहा। कुछ पल्लव नरेश उच्चकोटि के विद्वान् थे तथा उनकी राजसभा में प्रसिद्ध विद्वान् एवं लेखक निवास करते थे। महेन्द्रवर्मा प्रथम ने ‘मत्तविलासप्रहसन‘ नामक हास्य-ग्रंथ की रचना की थी। इसमें कापालिकों एवं बौद्ध भिक्षुओं की हँसी उड़ाई गयी है। कुछ विद्वानों के मतानुसार किरातार्जुनीय महाकाव्य के रचयिता भारवि उसी की राजसभा में निवास करते थे महेन्द्रवर्मा का उत्तराधिकारी नरसिंहवर्मा भी महान् विद्या-प्रमी था। उसकी राजसभा में दशकुमारचरित एवं काव्यादर्श के लेखक दण्डी निवास करते थे। पल्लव शासकों के अधिकांश लेख विशुद्ध संस्कृत में लिखे गये हैं। संस्कृत के साथ-साथ इस समय तमिल भाषा की भी उन्नति हुई। शैव तथा वैष्णव सन्तों द्वारा तमिल भाषा एवं साहित्य का प्रचार-प्रसार हुआ। पल्लवों की राजधानी काञ्ची विद्या का प्रमुख केन्द्र थी जहां एक संस्कृत महाविद्यालय (घटिका) था। इसी के समीप एक मण्डप में महाभारत का नियमित पाठ होता था तथा ब्राह्मण परिवार वेदाध्ययन किया करते थे। कदम्बनरेश मयूरशर्मा विद्याध्यन के लिये काञ्ची विद्या का प्रमुख केन्द्र थी जहां एक संस्कृत महाविद्यालय (घटिका) था। इसी के समीप एक मण्डप में महाभारत का नियमित पाठ होता था तथा ब्राह्मण परिवार वेदाध्ययन किया करते थे। कदम्बनरेश मयूरशर्मा विद्याध्ययन के लिये काञ्ची के विद्यालय (घटिका) में ही गया था।
चोलकालीन साहित्य
चोल राजाओं का शासनकाल तमिल भाषा एवं साहित्य के विकास के लिये प्रसिद्ध है। तमिल लेखकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध जयन्गोन्दार था। वह चोल शासक कुलोत्तुंग प्रथम का राजकवि था और उसने ‘कलिंगत्तुपर्णि‘ नामक ग्रंथ की रचना की।
इसमें कुलोत्तुंग के कलिंग-युद्ध की घटनाओं का वर्णन है। कलोत्तंग ततीय के शासन काल में प्रसिद्ध कवि कम्बन् हुआ जिसन ‘तमिल रामायण‘ अथवा ‘रामावतारम‘ की रचना की। यह तमिल साहित्य का महाकाव्य है। इसकी कथा बाल्मीकि रामायण का कथा से मिलती-जुलती है। अन्य ग्रंथों में शेक्किल्लार का ‘पेरियपराणम्‘ पुलगेन्दि का लिवेम्ब, तिरुक्तद् का ‘जीवक चिन्तामणि‘, तोलामोल्लि का शूलामणि आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। चोला ने अमृतसागर बुद्धमित्र जैसे प्रसिद्ध जैन तथा बौद्ध विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया था। अमृतसागर ने याप्परुंगलम् तथा याप्परुंगलक्कारिगे नामक दो प्रामाणिक ग्रंथ छन्दशास्त्र (च्तवेवकल) पर लिखा। बदमित्र की प्रमख कति वीर-शोल्लियम है। वह चोल शासक वरीराजेन्द्र को महान् तमिल विद्वान् बताता है। चोल काल में वैष्णव लेखकों ने अपने ग्रंथ संस्कृत में लिखे। ऐसे लेखकों में नाथमुनि, यामुनाचार्य तथा रामानुज के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।