जावा जानजाति के लोग कहाँ पाए जाते है java tribe indonesia in hindi जावा जाति क्या है किसे कहते है
जावा जाति क्या है किसे कहते है java tribe indonesia in hindi जावा जानजाति के लोग कहाँ पाए जाते है ?
परिवेश (The Setting)
प्रागैतिहासिक काल से जावा में मानव का वास है। वस्तुतः 1891 में यहां आदिम मानव (‘‘पिथेकैन्थ्रोपस इनेक्टस‘‘ या ‘‘जावा मानव) के अवशेष पाये गये। आइये इस प्राचीन सभ्यता का संक्षेप में पुनरावलोकन करें।
जावा का इतिहास-एक संक्षिप्त विवरण (Java’s History A Summary)
जावा द्वीप इंडोनेशिया राष्ट्र का एक भाग है। इसे इंडोनेशिया का सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक केंन्द्र माना जाता है। दरअसल इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता, जावा का सबसे बड़ा शहर है। पांचवी शताब्दी में हिन्दू जाति के लोग जावा के पूर्वी और मध्य भाग में जा कर बस गए। हिन्दू जावाई राज्य माजापोहित (1293 में स्थापित) जावाई इतिहास में स्वर्ण युग का द्योतक है। 13वीं शताब्दी में इस्लाम का उद्भव हुआ और मुस्लिम राज्य मातरम की स्थापना हुई। समकालीन जावाई संस्कृति में हिन्दुत्व और इस्लाम दोनों के अंश हैं। जावा की 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है। 1596 में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में डच व्यापारी जावा आए और उन्होंने जावाई साम्राज्य की बीच खुदे चिह्न भी समाप्त कर दिए।
इंडोनेशिया के स्त्री/पुरुष अपने धान के खेतों में मिलजुल कर काम करते हुए
1798 में कम्पनी को समाप्त कर दिया गया और तब से 1949 तक जावा, डच शासक के अधीन रहा। जिसके बाद इंडोनेशिया स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। 1950 में सुकातो के नेतृत्व में यह एक गणराज्य बना। अब हम जावा के पूर्व मध्य के शहर पर विचार करेंगे जहाँ ग्यर्ट्स ने अपना शोध कार्य किया था।
मोदजोकूटो का समाज (Society in Modjokuto)
मोदजोकूटो, आस-पास के 18 गाँव का एक व्यापारिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक केन्द्र है। यहां की आबादी 20,000 के लगभग थी, जिसमें अधिकांश जावाई लोग थे, साथ मैं छिट पुट चीनी, अरबी और भारतीय मूल के लोग भी थे। यहां धान की खेती अधिक होने से मोदजोकूटो की अर्थव्यवस्था खेती और व्यापार पर निर्भर थी। जावाई व्यापार का केन्द्र एक बाजार था जहां सैकड़ों जावाई स्त्री, पुरुष अपनी आजीविका कमाने के लिए सूत कपास से लेकर और मछली से लेकर दवाई तक जैसे तरह-तरह के सामान खरीदते बेचते थे। ग्यर्ट्स के शब्दों में “मोदजोकूटो जावाइयो के लिए चाहे ग्राहक हो या विक्रेता सबसे व्यावसायिक जीवन का आदर्श यही बाजार है, आर्थिक व्यवहार में हर संभव और उचित धारणाओं (विचारों) का स्रोत है।” (पृष्ठ -3) खेती और व्यापार के अलावा कार्यालयों में काम करना यहां जीविका का तीसरा सबसे बड़ा साधन था। ऐसे लोगों में शिक्षक और सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लोग थे जो मोदजोकूटो के बुद्धिजीवी और समाज के विशिष्ट वर्ग के लोग थे । ग्यर्ट्स के अनुसार ये लोग………..राजनीतिक परंपरा के उत्तराधिकारी हैं, और शासन करने के लिए लिखने-पढ़ने का अधिकार सिर्फ इन्हें विरासत में मिला है।‘‘ (पृष्ठ -3) शिक्षितों के प्रति अशिक्षितों के मन में आदर और आज्ञाकारिता का भाव सामान्य था। ग्यट्र्स ने जावाई समाज संरचना के तीन मुख्य केन्द्र रेखांकित किये-गांव, बाजार और सरकारी नौकरशाही। इनमें से प्रत्येक का धर्म, आस्था और राजनीति के प्रति अपना अलग दृष्टिकोण है। संक्षेप में, ये तीन प्रकार की विशिष्ट संस्कृतियों को गठित करते हैं। आइए इनसे जुड़ी जानकारी का अध्ययन करे।
जावा की प्रमुख संस्कृतियां (Cultural Types in Java)
जावा में तीन प्रकार की संस्कृतियां हैं जो अपने-अपने समाज संरचना केन्दों से जुड़ी हुई हैं।
प) ‘‘एंबगन‘‘ परम्परा (Abangan Tradition)- गांवों से जुड़ी है। जावाई गावों के लोग मूल रूप से वे हैं जो जीववादी विचारों में आस्था रखते थे। बाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के आ जाने से जीववाद, हिन्दुत्व और इस्लाम तीनों का समन्वय हुआ । ग्यर्ट्स इसे ……..इस द्वीप की सच्ची लोकपरम्परा, सभ्यता का मूलाधार……..मानते हैं । (पृष्ठ 5)
पप) ‘‘सांत्री परम्परा” (Santri Tradition) बाजार से जुड़ी है। सांत्री परम्परा इस्लाम के शुद्धतावादी दृष्टिकोण से संबंद्ध है। इसमें इस्लाम के अनुष्ठानों जैसे दैनिक नमाज, रोजा, मक्का में हज आदि का नियमित पालन किया जाता है। इस परम्परा में सामाजिक, खैराती और राजनीतिक इस्लामिक संगठन का महत्वपूर्ण स्थान है।
पपप) ‘‘प्रिजाजी‘‘ परम्परा (‘Prijaji Tradition) का संबंध बुद्धिजीवियों से है। ये बुद्धिजीवी वस्तुतः उस अभिजात वर्ग (शिक्षा का अधिकर केवल उन्हें ही था) के वंशज हैं जिनकी जड़े उपनिवेश से पूर्व हिन्दू जावाई दरबारियों में थी। अतः प्रिजाजी परम्परा का झुकाव हिन्दुत्व और बौद्ध तत्वों की ओर है। विकसित नृत्य, नाटक, कविता और रहस्यवाद आदि इसकी पहचान हैं। किन्तु उपनिवेषवाद और पाश्चात्य प्रभाव के कारण यह वर्ग धर्मनिर्पेक्ष पहचानाना और विरोधी हो गए। फिर भी प्रिजाजी जीवन संक्षेप में एबंगन परम्परा मुख्य रूप से कृषक वर्ग से संबद्ध है जो कि जावाई समन्वय पर बल देता है। सांत्री परम्परा जो कि व्यावसायिक वर्ग से संबद्ध है। इस्लाम पर जोर देता है जब कि प्रजाजी परम्परा जो कि बुद्धिजीवी/अभिजात वर्ग से संबद्ध है मुख्य रूप से हिन्दुत्व और रहस्यवाद पर जोर देती है । ग्यर्ट्स का कहना है कि इस अनेकता का अर्थ यह नहीं है कि जावा के धर्मों में एकता नहीं है। उसका मन्तव्य यह है कि ‘‘……उन्हें धार्मिक जीवन की विविधता गहराई और सम्पन्नता की वास्तविकता स्पष्ट होनी चाहिए।‘‘
इस इकाई में हम मुख्य रूप से एबंगन परम्परा के अनुष्ठानों का वर्णन करेंगे। किन्तु उससे पहले, आइए बोध प्रश्नों के उत्तर दें।
बोध प्रश्न 1
प) जावाई लोक धर्म में जिन आस्था पद्धतियों का योगदान रहा, उनके नाम बताएँ। अपना उत्तर लगभग पाँच पंक्तियों में दीजिए।
पप) ‘‘प्रिजाजी‘‘ परम्परा के मुख्य तत्व क्या हैं ? अपना उत्तर लगभग पाँच पंक्तियों में दीजिए।
पपप) जावाई अभिजात वर्ग पर उपनिवेशवाद का क्या असर रहा? अपना उत्तर लगभग पाँच पंक्तियों में दीजिए।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) जवाई लोक धर्म में जीववाद हिन्दुत्व और इस्लाम अर्थात सभी ने योगदान दिया है।
पप) प्रिजानी परम्परा का अधिक झुकाव इस्लाम के नमाज, रोजा, हज आदि की ओर है। इनमें इस्लाम की राजनीतिक, सामाजिक और परामार्थ की संस्थाएं भी शामिल हैं।
पपप) उपनिवेश और पाश्चात्य प्रभावों ने अभिजात वर्ग को पाश्चात्य धर्मनिर्पेक्ष और गैर-परम्परावादी बना दिया है।
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