पुनर्जागरण काल किसे कहते हैं | पुनर्जागरण काल की विशेषताएं अर्थ परिभाषा क्या है Renaissanc in hindi
Renaissanc in hindi meaning definition पुनर्जागरण काल किसे कहते हैं | पुनर्जागरण काल की विशेषताएं अर्थ परिभाषा क्या है ?
धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का सामाजिक संदर्भ
(The Social Context of Secularisation Process)
इस अनुभाग में हम सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे। यूरोप में धर्मनिरपेक्षीकरण के समय, समाज अपनी मध्ययुगीन तंद्रा को भंग कर परिवर्तन के नये क्षेत्रों की ओर अपनी आँखें खोल रहा था। प्रश्नों के लिए तर्कसंगत व प्रयोगसिद्ध उत्तरों की मांग बढ़ रही थी। चर्च में सुधारवाद की प्रक्रिया चल रही थी तथा कला-कौशल व विद्या के संबंध में नवजागरण चल रहा था।
नवजागरण काल (Renaissance)
14वीं तथा 16वीं शताब्दी में यूरोप में कई व्यक्ति जो पढ़ना-लिखना जानते थे, उन्होंने इस बात की ओर ध्यान देना कम कर दिया कि उनके शासक तथा पादरी उन्हें क्या बताते हैं। उन्होंने अपने लिये नये विचारों पर कार्य करना आरंभ किया। उनकी रुचि प्राचीन यूनानियों तथा रोमनों की कला तथा ज्ञान के प्रति भी बढ़ी। सोच के इस नये तरीके तथा प्राचीन ज्ञान की पुनःखोज ने इतिहास में एक ओजस्वी काल को जन्म दिया, जिसे श्रेनेसाश् के नाम से जाना जाता है। इस फ्रांसीसी शब्द का अर्थ है- नवजागरण ।
तर्कसंगत ज्ञान इस आंदोलन का मूल था, तथा यह बात कला, भवन निर्माण, संगीत, साहित्य आदि में प्रकट हुई। नवजागरण काल में विचार तथा शिक्षा के प्रति योगदान के रूप में प्राचीन संपदा पर बल दिया गया । नवजागरण काल में लोगों की उत्सुकता उस संसार के बारे में बढ़ी जिसमें वे रह रहे थे। धनी लोगों ने पुस्तकालयों तथा विश्वविद्यालयों का निर्माण किया। छापेखाने के आविष्कार के कारण पुस्तकें केवल पादरियों व विद्वानों को ही नहीं वरन जनसामान्य को भी सरलता से उपलब्ध होने लगी। 16वीं शताबदी के अंत तक नवजागरणजिसका आरंभ इटली में हुआ था-कला व ज्ञान के प्रति जागृति के कारण यूरोप के अन्य भागों में फैल गया। यही वह काल था जिसमें विज्ञान की भी उन्नति हुई।
विज्ञान की उन्नति (Growth of Science)
जैसा कि हमने पहले बताया, मध्ययुगीन यूरोपीय समाज की विशिष्टता चर्च का हर मामले पर बढ़ा प्रभाव थी। यहां तक कि ज्ञान-प्राप्ति भी धार्मिक किस्म की ही थी। ‘नवजागरण‘ अथवा ‘पुनर्जागरण‘ के काल में तर्कसंगत खोज का आरंभ देखने को मिला। इसने ज्ञान के क्षेत्र में व्याख्या तथा आलोचना के क्षेत्र को चिह्नित किया।
देखने तथा परीक्षण व प्रयोग करने के इस विकास ने विश्व की प्रकृति के संबंध में नई धारणाओं को जन्म दिया। तर्कसंगत तथा पद्धतिबद्ध, प्रयोगसिद्ध ज्ञान ने विश्व संबंधी पारलौकिक धारणाओं के बारे में प्रश्न उठाए तथा मानव के प्रकृति से जूझने व उस पर काबू पाने की योग्यता के बारे में जागृति पैदा की।
यही काल था जिसने कोपरनिकस क्रांति को भी देखा। इससे पहले यह विश्वास प्रबल था, कि पृथ्वी अपनी जगह स्थिर है तथा सर्य व अन्य अंतरिक्ष ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं। कोपरनिक्स ने विस्तारपूवर्क व्याख्या करते हुए इसका प्रदर्शन किया कि पृथ्वी एक स्थिर सूर्य के चारों ओर घूमती है। कोपरनिक्स की इस खोज ने उन मूल आधारों को ही ध्वस्त कर दिया जिस पर पुरानी दुनिया चल रही थी। स्वर्ग, पृथ्वी तथा जीवन के पवित्र उद्गम स्रोतों के बारे में ही अब प्रश्न चिहन उठाए जाने लगे थे। इसी काल में विज्ञान की अनेकों विद्याओं का विकास सामने आया। विलियम हारवे ने रक्त के संचार के बारे में खोज की। इसने मानव शरीर के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता पैदा की। भौतिकी में गैलिलीयो गैलीली, जॉन केपलर तथा बाद में आइजक न्यूटन ने पूर्व से चले आ रहे आध्यात्मिक-विद्या पर आधरित ब्रह्मांड संबंधी विचारों को हिला कर रख दिया। संक्षेप में, विज्ञान की उन्नति व प्रयोग ने मानव की धर्म तथा विश्व के बारे में धार्मिक विचारधारा पर निर्भरता को कम कर दिया।
व्यापार व वाणिज्य का विकास (Expansion of Trade and Commerce)
15वीं शताब्दी ने जीविका आधारित तथा स्थिर अर्थव्यवस्था को गतिशील तथा विश्वव्यापी व्यवस्था को और मोड़ने में भी दिशा प्रदान की। व्यापार का विकास कुछ हद तक यूरोपीय राज्यों द्वारा उनकी आर्थिक व राजनीतिक शक्ति को विकसित तथा स्थापित करने के लिए उठाये गये कदमों के कारण भी हुआ। पुर्तगाल, स्पेन, हालैंड तथा इंग्लैंड की राजशाही ने समुद्र पार खोजों, व्यापार तथा राज्यों को जीतने की क्रियाओं को प्रायोजित किया।
बॉक्स 2
पूर्व के साथ व्यापार अब तक केवल सड़क मार्ग द्वारा होता था तथा इतालवी शहरों का इस पर एकाधिकार था । इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए तथा पूर्व तक पहुँचने के रास्ते खोजने के उद्देश्य से पुर्तगाली व अन्य प्रमुख नाविकों ने समुद्री यात्रा का मार्ग अपनाया। आपने वास्को-डि-गामा की ऐतिहासिक समुद्री यात्रा के बारे में अवश्य सुना होगा जो 1498 में भारत के पश्चिमी तट पर उतरा। क्रिस्टोफर कोलम्बस ने भी भारत तक समुद्री मार्ग खोजने के उद्देश्य से ऐसी ही यात्रा आरंभ की पर वह भारत के स्थान पर उत्तरी अमेरिका के तट पर पहुँच गया।
ब्रिटेन व हालैंड ने भी स्पेन तथा पुर्तगाल का अनुसरण किया। शीघ्र ही भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, वेस्ट इंडीज तथा दक्षिण अमेरिका इन देशों के आर्थिक घेरे में आ गए।
यूरोपीय बाजारों में नयी वस्तुओं, मसालों, कपड़ों, तम्बाकू कोको, हाथी दांत, सोना, चांदी और इन सबसे बढ़ कर अफ्रीका से लाए मानव गुलामों की बहुतायत हो गई थी। व्यापार व वाणिज्य के इस विकास का महत्वपूर्ण परिणाम था-मध्यम वर्ग का विकास। यह वर्ग, जिसमें व्यापारी, बैंकर, समुद्रीपोत के स्वामी शामिल थे, प्रभावशाली तथा राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली वर्ग बन गया।
इन क्रांतिकारी परिवर्तनों के साथ ही, विचाधारा तथा धर्म-संस्था संगठन में विच्छेद उत्पन्न हुआ जिसे ‘सुधारीकरण‘ के रूप में पहचाना जाता है।
सुधारीकरण (Reformation)
16वीं शताब्दी में, ईसाई धर्म के अंदर ही एक आंदोलन चल रहा था जिसका उद्देश्य मध्ययुगीन कुरीतियों को समाप्त कर उस सिद्धांत तथा रीतियों का पुनर्स्थापन करना था जो सुधारवादियों के अनुसार बाइबिल के अनुरूप थे। इसके कारण रोमन कैथोलिक चर्च तथा सुधारवादियों में विच्छेद हो गया। सुधारवादियों के सिद्धांत व रीतियों को ‘प्रोटेस्टैंटवाद‘ का नाम दिया गया।
इस आंदोलन के मुख्य प्रवर्तकों में से एक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की रीतियों पर प्रश्न चिह्न लगाया तथा शास्त्रार्थ की मांग की। पोप ने इसे बगावत का सूचक माना तथा लूथर के खिलाफ उसे नास्तिक मानते हुए कार्यवाही करने के लिए कदम उठाए। मार्टिन लूथर ने झुकने से तब तक के लिए इनकार कर दिया जब तक उसे बाइबिल के अनुसार अथवा स्पष्ट कारणों के आधार पर गलत साबित न किया जा सके-लूथर का विश्वास था कि पापों से मुक्ति सभी लोगों को सामान्य रूप से मुफ्त उपहार के रूप में उपलब्ध थी जो ईश्वर की कृपा द्वारा अपराधों की माफी के रूप में प्राप्त थी। उसके अनुसार ईश्वर की यह कृपा ईसा मसीह में आस्था के द्वारा सभी को उपलब्ध थी। लूथर का बचाव राजाओं व राजकुमारों ने आंशिक रूप से अपनी धार्मिक विचारधारा व प्रतिबद्धता के कारण किया पर मुख्यतः ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य चर्च की संपति हथियाना तथा अपनी राजकीय स्वतंत्रता की पुनर्स्थापना था।
सुधारवाद का स्पष्ट परिणाम हैय ईसाईयत का कैथोलिक व प्रोटेस्टैंट संप्रदायों अथवा मतों में विभाजन । इन्होंने आधुनिक राष्ट्रीय राज्यों के विकास को मजबूती प्रदान की । सुधारवाद ने चर्च के संगठन तथा विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रस्तुत किया। इस प्रकार, धर्म निरपेक्षीकारण की प्रवृति आरंभ हुई। पारलौकिक के संबंध में प्रोटेस्टैंट विचारधारा ने ईश्वर को व्यक्तिगत बना दिया। इस प्रकार ईश्वर को व्यक्तिगत धरातल तक लाया गया। व्यक्तिगत सांसारिक क्रिया को ईश्वर में आस्था के प्रतीक के रूप में प्रोत्साहित किया गया। जैसा कि हमने ऊपर उल्लेख किया है, उस समय कारकों का ऐसा जटिल जाल बना हुआ था जिससे धर्मनिरपेक्षीकरण प्रक्रिया के उद्भव को सहायता मिली । उपर्युक्त चर्चा में, हमने संदर्भ को ध्यान में रखकर कुछ ऐसी प्रवृत्तियों या घटनाओं का उल्लेख किया है जिसमें धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया पनपी।
जैसा कि अब हमने धर्मनिरपेक्षीकरण की अवधारणा और इसके पीछे के इतिहास को खोज लिया है, आइए देखें कि समकालीन जगत में इसका क्या अर्थ है । (इस प्रकार चर्चा के लिए देखें इकाई 10, धर्म तथा आर्थिक व्यवस्था)।
समकालीन जगत में धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularisation in Contemporary World)
यह सच है कि धर्म का अब वैसा नियंत्रण नहीं रहा जैसा मध्ययुगीन समाज में था। हम संसार को अब रहस्यमयी धार्मिक विचारों के आधार पर परिभाषित नहीं करते । ऐसा प्रतीत होता है कि धार्मिक संस्थाएं समाज के केंद्र के रूप में नहीं रहीं। पर यह धर्मनिरपेक्षीकरण पूरे विश्व में समान रूप से नहीं उभरा । हमें ध्यान रखना चाहिए कि जिन घटनाओं का हमने वर्णन किया है वे विशिष्ट रूप से यूरोप के संदर्भ में हैं तथा उन परिर्वतनों का कुछ प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ा। पर भावनामय धर्म की संवेदनशीलता तथा धर्म के नए रूप धर्मनिरपेक्षीकरण की इस प्रक्रिया से अलग रहें। धार्मिक भावनाओं के प्रतिरूप भिन्न हो सकते हैं। तथा धर्म निरपेक्षीकरण के सूचकों के बावजूद आध्यात्मिक जीवन तथा नए धार्मिक विचार उभरते रहे हैं।
अनगिनत नए धार्मिक आंदोलन पिछले दशकों में उभरे हैं तथा ये सामान्य धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रतिक्रियाओं के रूप में भी प्रतीत हो सकते हैय क्योंकि ये लोगों के एक समूहविशेष को अर्थ, उद्देश्य, पारस्परिक संबंध तथा सहारा प्रदान करते है। धर्मनिरपेक्षीकरण, जैसा हमने कहा, पश्चिमी समाज में लंबे समय में उभरी जटिल ऐतिहासिक घटना है।
कार्यकलाप 1
भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण और धर्मनिरपेक्षता किस सीमा तक मौजूद हैं? इसके लिए समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को पढ़िए और नोटबुक में अपना उत्तर लिखने से पहले इस संदर्भ में अन्य विद्यार्थियों और ज्ञानवान व्यक्तियों से बातचीत कीजिए।
अन्य धार्मिक पद्धातियों ने रहस्यमयी तथा मूर्तिपूजक विश्वासों को संगठित व प्रणालीबद्ध अवश्य किया, पर ऐसा भिन्न प्रकारों से किया गया । ब्रायन विलसन के अनुसार हिंदू तथा बौद्ध धर्म ने आदिकालीन पारलौकिकवाद को हटाने से अधिक उसे सहन किया। साथ ही, धर्म निरपेक्षीकरण की लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया तथा सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में तर्क संगत सिद्धांत का विस्तार गैर- पश्चिमी देशों जैसे एशिया अथवा मध्य-पूर्व में इतना तीव्र नहीं था। उद्योगीकरण तथा तकनीकी विस्तार कुछ हद तक सामाजिक जीवन के ताने-बाने को तर्कसंगत व नियमित बनाता है। फिर भी, अनेकों धार्मिक तथा चमत्कारी रीतियों के परिष्कृत औद्योगिक तकनीकों के साथ-साथ रहने का विरोधाभास भी एक वास्तविकता है।
उद्योगीकरण की प्रक्रिया ने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं तथा पश्चिम में उपलब्ध उदाहरण से अलग-अलग रूप अपनाए हैं। अपने अगले अनुभाग में हम धर्मनिरपेक्षीकरण तथा धर्मनिरपेक्षता के भारतीय अनुभव की चर्चा करेंगे।
बोध प्रश्न 2
प) ………………………………………ने रोमन कैथोलिक चर्च की रीतियों पर प्रश्न चिह्न लगाया।
पप) निम्नलिखित का मिलान कीजिए:
क ख
वास्को-डि-गामा भौतिक के क्षेत्र में क्रांति
विलियम हार्वे भारत के लिए जलीय मार्ग
कोपरनिक्स प्रोटेस्टैंटवाद
मार्टिन लूथर रक्त- संचार
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 2
प) मार्टिन लूथर
पप) क ख
वास्को-डि-गामा भारत के लिए जलीय-मार्ग
विलियम हार्वे रक्त-संसार
कोपरनिक्स भौतिकी के क्षेत्र में क्रांति
मार्टिन लूथर प्रोटेस्टैंटवाद
उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद, आपः
ऽ धर्मनिरपेक्षता व धर्मनिरपेक्षीकरण जैसे शब्दों का अर्थ समझ सकेंगे,
ऽ ऐसी सामाजिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा कर पाएंगे जिसमें धर्मनिरपेक्षीकरण सामाजिक रचना के रूप में उभरा,
ऽ धर्म निरपेक्षता की ऐसी विशिष्ट प्रकृति का विश्लेषण कर सकेंगे जिसे भारत में अपनाया गया है, और
ऽ भारत में धर्मनिरपेक्षता के चलन में आने वाली समस्याओं तथा कठिनाइयों को समझ सकेंगे।
प्रस्तावना
पिछली इकाई में हमने कट्टरपंथ को इसके दो उदाहरणों सहित पढ़ा। ईरान में इस्लाम का पुनर्जागरण तथा अमेरिका का धार्मिक अधिकार आंदोलन दो अलग-अलग उदाहरण हैं। पर दोनों ही दर्शाते है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की घुसपैठ तथा धर्मनिरपेक्ष राज्य के विचार को स्वीकार करने के बाद भी समाज धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता आया है।
इस इकाई में हम धर्मनिरपेक्षीकरण की सामाजिक प्रक्रिया को तथा धर्मनिरपेक्ष शब्द को समझने का प्रयास करेंगे, जो इस प्रक्रिया से उभरा है।
पहले अनुभाग में हम आपका परिचय धर्मनिरपेक्ष तथा धर्मनिरपेक्षीकरण के अर्थ से कराएंगे। यह समझने के लिए यह शब्द प्रचलन में कैसे आए, हम आपको इन प्रक्रियाओं की ऐतिहासिक व सामाजिक पृष्ठभूमि में ले जाना चाहेंगे। अगले अनुभाग में हम समकालीन समाज में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रकृति के बारे में भी बताएंगे। अंत में, हम भारत में धर्मनिरपेक्षता की प्रकृति की भी चर्चा करेंगे । इन विशिष्टताओं तथा संबंधित कठिनाइयों के बारे में समझाने के लिए हम आपको धर्मनिरपेक्षता के व्यवहारीकरण में विभिन्न ऐतिहासिक तथा समकालीन संक्रियाओं से भी अवगत कराएंगे।
सारांश
इकाई 16 का मुख्य उद्देश्य, धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव व प्रक्रिया को समझना था। ‘धर्मनिरपेक्षता‘ इसी धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में से उभरी है। धर्मनिरपेक्षता को राज्य की आदर्श विचारधारा के रूप में आधुनिक राज्यों द्वारा अपना लिया गया है।
भारत ने भी धर्मनिरपेक्षता को राज्य-विचारधारा के रूप में अपनाया है। ऐसा भारतीय समाज में व्याप्त अनेकता तथा परिणामस्वरूप वर्गों के बीच उपजे संघर्ष को ध्यान में रखते हुए किया गया है। ‘भारत में धर्मनिरपेक्षता‘-अनुभाग के अंतर्गत धर्मनिरपेक्षता की प्रकृति व इसके व्यावहारीकरण का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। हमने उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा की है जिसने भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के विचार को उभरते हुए देखा। अपने अंतिम अनुभाग में हमने धर्मनिरपेक्षता के व्यावहारीकरण में गतिशीलता की चर्चा की है। भारत जैसे देश में जहाँ धर्म की जड़ें हमारे समाज में गहराई से बैठी हुई हैं, धर्मनिरपेक्षता को आदर्श विचारधारा के रूप में व्यवहार में ला पाने में कठिनाई है तथा हमारा प्रजातंत्रिक स्वरूप वर्गों की इस धार्मिक आवश्यकता के प्रति छूट का नजरिया अपनाता है।
शब्दावली
आनुभाविक (Empirical) ः ऐसा ज्ञान जो जांच-परख व प्रयोगों पर आधारित हो, किसी आस्था व अंधविश्वास पर नहीं ।
रूढ़िवाद (Orthodoxy) ः ऐसा विश्वास जिसे सच के रूप में माना व स्वीकार किया जाता है, विशेषरूप से धर्म में इसे आधिकारिक रूप से प्रस्तावित किया जाता है।
तर्कसंगत (Rational) ः आस्था के स्थान पर समझ-बूझ पर आधारित विचार। जिसे सिद्ध न किया जा सके, उसे अस्वीकार करना।
पाप-मुक्ति (Salvation) ः आत्मा को पापों से मुक्त करना तथा परिणामस्वरूप स्वर्ग में प्रवेश प्राप्त करना।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
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