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सिख धर्म की स्थापना किसने की थी और कब की | सिख धर्म के संस्थापक कौन है गुरु कौन थे who founded sikhism religion

who founded sikhism religion and when in hindi सिख धर्म की स्थापना किसने की थी और कब की | सिख धर्म के संस्थापक कौन है गुरु कौन थे ?

सिक्ख धर्म की उत्पति व विकास (The Origin and Growth of Sikhism)
इस अनुभाग में हम सिक्ख धर्म के विकास की सामाजिक पृष्ठभूमि तथा उन धारणाओं का उल्लेख करेंगे जो सिक्ख धर्म का आधार हैं।

सामाजिक व सांस्कृतिक संदर्भ (Socio-Cultural Context)
सिक्ख धर्म का जन्म उस समय हुआ जब भारत में दो प्रमुख धर्मों अर्थात हिन्दू और मुसलमानों में संघर्ष तेजी से बढ़ रहा था। सिक्ख मत के संस्थापक गुरू नानक को दो परस्पर विरोधी परंपराओं को मानने वालों में शांति दूत के रूप में देखा जाता है। निम्न पंक्ति दर्शाती है कि पंजाब में गुरू नानक को किस तरह आज भी श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है:

‘‘नानक शाह फकीर, हिन्दू का गुरू, मुसलमान का पीर‘‘
(बाबा नानक परमात्मा का सच्चा बंदा हिन्दुओं का गुरू और मुसलमानों का पीर है)

जबकि सिक्खों के पुराने वर्णनकारों ने इस मत को भक्ति आंदोलन की एक शाखा बताया है, वहीं कुछ आधुनिक पश्चिमी विद्वान इसे भारतीय संत परंपरा की एक शाखा के रूप में वर्णित करते हैं। इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि गुरू नानक तथा उनके द्वारा चलाया मत, भक्ति आंदोलन-जिसमें उन्होंने जन्म लिया था-से अत्यधिक प्रभावित था पर सिक्ख धर्म व दर्शन का अध्ययन करने पर यह परिलक्षित होता है कि इसमें अपनी कुछ भिन्न विशिष्टताएं भी थीं। यही कारण है कि उत्पति के तुरंत बाद इसका विकास एक संपूर्ण धार्मिक आंदोलन के रूप में हो गया। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस भाग में एक इकाई सिक्ख धर्म की शिक्षाओं को समर्पित है। इसमें सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से तथा अन्य लोगों के लिए सामान्य रूप से उन शिक्षाओं की प्रासंगिकता का भी उल्लेख किया गया है।

सिक्ख शब्द की उत्पति संस्कृत के शब्द ‘‘शिष्य‘‘ से हुई है जिसका अर्थ है विद्यार्थी अथवा सीखने वाला। इसलिए सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरू नानक के अनुयायियों को ‘‘सिक्ख‘‘ नाम से जाना जाने लगा। सिक्ख मत की गुरू (ज्ञान कराने वाले) के प्रति श्रद्धा मूल विशेषता है और शिक्षाओं के प्रति निष्ठा एक पवित्र कर्तव्य । सिक्ख मत के अनुसार चलने वालों में नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों के पालन पर अत्यधिक जोर दिया गया है। इन मूल्यों का संबंध मुख्य रूप से ईमानदारी, आपसी बंटवारे तथा ऊंच-नीच/अमीर-गरीब के भेदभाव को मिटाने से है।

गुरू नानक का जीवन व संदेश (Guru Nanak’s Life and Message)
सिक्ख मत की परंपरा की स्थापना गुरू नानक (1469-1539) द्वारा की गई। समय से पूर्व ही परिपक्व हो जाने वाले बालक नानक का झुकाव बौद्धिक रूप से आध्यात्मिक मूल्यों की ओर था। इसलिए उन्हें सांसारिक क्रियाओं में लगाने के सभी प्रयास विफल रहे। गुरू नानक तीन लोदी शासकों के समकालीन थे-बाबर लोदी (1451-1489), सिकंदर लोदी (1489-1517) और इब्राहीम लोदी (1517-1526)। गुरूजी के सामने बाबर ने मुगल शासन की नींव रखी थी तथा गुरू नानक के ही जीवनकाल में उसका उत्तराधिकारी हुमायूं गद्दी पर बैठा। गुरू नानक ने अपनी वाणी (स्रोतों) में उस समय का उल्लेख किया है तथा लोदी व मुगल शासकों द्वारा की गई गलतियों का भी स्पष्ट उल्लेख किया है। गुरू नानक ने बाहर से आने वाले लुटेरों की सेना के बारे में उल्लेख करते हुए उन्हें “बारात के रूप में आने वाले पापों का झुंड‘‘ बताया है जो दुल्हन के रूप में भारत की मांग करते हैं। गुरू नानक बचपन से ही आध्यात्मिक खोज के कार्य में डूबे हुए थे। उस समय धर्म के नाम पर प्रचलित पाखंडों ने उन्हें अत्यधिक विचलित किया। नानक को निर्धन व जरूरतमंद लोगों की सेवा में परमसुख मिलता था। उनसे संबंधित एक कहानी के अनुसार उनके पिता ने एक बार उन्हें कुछ धन दिया और पास के शहर जाकर कोई अच्छा व लाभकारी सौदा करने के लिए कहा। रास्ते में नानक को कुछ साधु मिले जिन्होंने कई दिनों से कुछ खाया नहीं था। नानक ने पिता द्वारा दिये गये धन से खाने का सामान खरीदा और साधुओं को भोजन करा दिया। वापसी पर जब उनके पिता ने उनसे सौदे के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अत्यंत लाभकारी व सच्चा सौदा किया है। यह समझने पर कि नानक की व्यापार में कोई रुचि नहीं है उनके पिता ने उन्हें पंजाब के कपूरथला जिले में सुल्तानपुर लोदी नामक स्थान पर भेजा। यहाँ नानक को स्थानीय शासक द्वारा भंडारक की नौकरी पर रख लिया गया। अपने कर्तव्य का पालन उन्होंने पूर्ण निष्ठा के साथ किया।

प) नानक को प्रबोध-प्राप्ति (Enlightenment of Nanak)
सुल्तानपुर में प्रवास के दौरान नानक को ज्ञान की प्राप्ति हुई। प्रचलित धारणाओं के अनुसार एक सुबह जब वे पास में बहती बेन नदी में स्नान के लिए गये तब वे परमात्मा के चिंतन में डूबे थे और जैसा कि जीवनी-लेखक द्वारा वर्णित है, इसी अवस्था में वें ईश्वरीय उपस्थिति में प्रवेश कर गये। सर्वशक्तिमान द्वारा आशीर्वाद प्राप्त कर, नानक उस छोटी-सी नदी से परमात्मा के नाम का प्रचार करने के लिए बाहर निकले। ज्ञान प्राप्त होने पर उनके सबसे पहले शब्द थे ‘‘कोई हिन्दू नहीं है, कोई मुसलमान नहीं है‘‘। ऐसे समय में जब हिन्दू और मुसलमान आपसी मतभेदों के कारण संघर्ष में लिप्त थे, इन शब्दों के द्वारा नानक ने दोनों के बीच संधि के अभियान की उद्घोषणा की।

पप) नानक का संदेश (Message of Nanak)
नानकं जब प्रेम और सत्य के संदेश का प्रचार करने लंबी यात्राओं पर निकलते तब उनके साथ एक मुसलमान संगीतकार मर्दाना होता था। उन्होंने भारत व अन्य कई देशों की यात्राएं की तथा वे हिन्दुओं तथा मुसलमानों के विभिन्न धार्मिक केन्द्रों पर भी गये। चर्चाओं द्वारा उन्होंने यह समझाया कि केवल अच्छे कर्म ही मुक्ति सुनिश्चित कर सकते हैं। जब वें मक्का में थे, उनसे पूछा गया कि कौन श्रेष्ठ है हिन्दू अथवा मुसलमान । जिस पर गुरूजी ने उत्तर दिया कि बिना अच्छे कर्मों के दोनों में से कोई श्रेष्ठ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘सच उत्तम है पर उससे भी उत्तम है सत्य से पूर्ण जीवन जीना।‘‘

गुरू नानक जन-सामान्य की पीड़ाओं से इतना अधिक विचलित हुए कि अपने आपको असमर्थ पाकर उन्होंने पीड़ाओं को कम करने के लिए परमात्मा का आह्वान किया:
यद्यपि खुरशन आप द्वारा संरक्षण है,
यद्यपि आतंक ने हिन्दुस्तान के हृदय पर पंजे गाड़ दिये हैं, है,
सब समस्त चराचर के रचियता,
तुम अपने ऊपर कोई दोष न लो,
तुमने यमराज को बाबर के भेस में भेज दिया है।
भयभीत कर देने वाला था नरसंहार,
शोक करने वालों का चीत्कार दिल दहलाने वाला था।
क्या इससे तुम्हारे मन में दया नहीं जागी,
हे रचियता, तुम सब वस्तुओं में समान रूप से निहित हो,
तुम्हें समस्त मानव जाति तथा सब देशों के बारे में समान रूप से महसूस करना चाहिए।
यदि कोई शक्तिशाली किसी दूसरे शक्तिशाली पर आक्रमण करे, तो इसमें पीड़ा क्या है और किसे है।
पर जब एक खतरनाक बाघ निरीह गायों पर टूट पड़े, तो चरवाहे को जवाब देना ही होगा‘‘।

गुरू उन नवयुवतियों की दयनीय अवस्था से विशेष रूप से विचलित हुए थे जिन्हें आक्रमणकारी सेना द्वारा गुलाम बना दिया गया था तथा इस स्थिति का उल्लेख उन्होंने अपनी वाणी में भी किया है:

जहाँ पहले सुंदर लटें सिरों को सजाए हुए थी,
जहां पहले सिंदूर भरा हुआ था,
उन्हें क्रूर हाथों ने कतर दिया है।
उनके मुंड हुए सिरों पर धूल डाल दी गई है।
इन सुंदरियों ने अपनी सेजों की शोभा बढ़ाई थी।
पर अब उनके गले में रस्सी डाल उन्हें घसीटा जाता है।
बर्बर सिपाहियों ने उन्हें कैदी बना लिया है।
और उनके सम्मान को कुचल डाला है।
‘‘माझ-दी-वार‘‘ में गुरू नानक का यह श्लोक ज्यादा अच्छे तरीके से उस समय का वर्णन करता हैः
कलयुग एक कटार है शासक हैं कसाई
धर्म पंख फैलाकर कहीं उड़ गया है।
झूठ की अंधेरी रात हर ओर फैली है, और
सच का चांद कहीं भी निकला दिखाई नहीं देता।

पप) गुरू नानक का दर्शन (Guru Nanak’s Philosophy)
गुरू नानक ने कट्टर तौर पर अद्वैतवाद का उपदेश दिया तथा सृजनकार को ‘‘इक्क‘‘ (एक) बताया जिसके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं । गुरू नानक का परमात्मा के बारे में दर्शन स्पष्ट रूप से ‘‘जपुजी‘‘ साहिब में मिलता है जो कि मुख्य विश्वास है। उनकी शिक्षाएं विशिष्ट रूप से अद्वैतवादी थीं तथा उनमें किसी मूर्ति अथवा इसकी शिक्षक की पूजा के लिए कोई स्थान नहीं था।

आध्यात्मिक उन्नति के लिए संसार को त्यागने की मध्ययुगीन रीति के विपरीत गुरू नानक का विश्वास था कि संसार जीने तथा भोगने लायक है। ‘‘यह संसार परमात्मा का डेरा है और सच्चा इसमें निवास करता है। गुरू नानक का विश्वास था कि जीवन की अपवित्रताओं के मध्य भी पवित्र रूप में रहा जा सकता था‘‘। जैसे कमल पानी में रहते हुए भी इससे अलग रहता है, जैसे बतख बेपरवाह पानी पर विचरण करती है, उसी तरह इन्सान भी अस्तित्व के सागर को पार कर सकता है, अपने मन को सच की ओर लगाकर। इन्सान इसी तरह सब में रहते हुए भी सबसे अलग रहे, मन में उस एक ईश्वर को धारण करे रहे, आशाओं के बीच में रहते हुए भी आशा से दूर रहे।

पअ) नानक की शिक्षा के तीन सिद्धांत (Three Principles of Nanak’s Teaching)
गुरू नानक की शिक्षाओं को पंजाबी के तीन सरल शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है-नाम जपना, कीरत करनी, और वंड छकना । अनुवाद करने पर इनका अर्थ होगा सदैव परमात्मा का ध्यान करना, निष्कपट माध्यम से जीविका कमाना, तथा अपनी मेहनत से प्राप्त फल को दूसरों के साथ बांटना। गुरू नानक ने समानता संबंधी अपनी शिक्षाओं को व्यावहारिक रूप देने के लिए संगत व पंगत नामक दो परंपराएं आरंभ की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी एक साथ बैठें तथा सामूहिक रसोई से खाना लेते समय ऊंच-नीच अथवा छोटे-बड़े का भेदभाव भुलाकर एक पंक्ति में बैठे।

बोध प्रश्न 1
प) ‘‘सिक्ख‘‘ शब्द की उत्पति ‘‘शिष्य‘‘ शब्द से हुई है जो कि इस भाषा से लिया गया है,
क) संस्कृत
ख) पारसी
ग) पाली
घ) पंजाबी
पप) गुरू नानक की ज्ञान-प्राप्ति पर लगभग छह पंक्तियों में एक टिप्पणी लिखें।.
पपप) गुरू नानक की शिक्षा के तीन सिद्धांत क्या हैं?

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) क)
पप) गुरू नानक बचपन से ही आध्यात्मिक क्रियाओं में लीन थे। एक प्रातः जब गुरू नानक देव नदी में स्नान करने गये, उस समय वे परमात्मा के विचारों में डूबे हुए थे। उसी अवस्था में वे पारलौकिक दृश्य में चले गयें । ज्ञान-प्राप्ति के बाद जो पहले शब्द उन्होंने कहे, वे थे-कोई हिन्दू नहीं है, कोई मुसलमान नहीं है।

पपप) तीन सिद्धांत हैं-सदैव परमात्मा का स्मरण करना, निष्पाप माध्यमों से अपनी आजीविका उत्पन्न करना, अपनी मेहनत की कमाई को दूसरों के साथ बांटना ।

उद्देश्य
इस इकाई में सिक्ख धर्म, इसकी धार्मिक मत प्रणाली, भारत में इसके विकास व कार्यप्रणाली पर चर्चा की गई है। इस इकाई के अध्ययन के बाद, आपः
ऽ सिक्ख धर्म के उद्भव की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कर सकेंगे,
ऽ गुरू नानक द्वारा दिखाए गए सिक्ख समाज के ढांचे का वर्णन कर सकेंगे,
ऽ समय के साथ विकसित होने वाले सिक्ख धर्म की चर्चा कर सकेंगे,
ऽ सिक्खों में पूजा की पद्धति व कर्मकांड की व्याख्या कर सकेंगे, और
ऽ सिक्ख धर्म में उपजे विभिन्न धार्मिक-सुधार आंदोलनों की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कर सकेंगे।

प्रस्तावना
हमारे पाठ्यक्रम ई.एस.ओ. -12 की इकाई 19 में हमने भारत में सिक्ख समाज की समाज-व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया। सिक्ख धर्म पर इस इकाई के अध्ययन से पहले उस इकाई का स्मरण वांछनीय होगा। समाजशास्त्र के छात्र के रूप में, आप उस सामाजिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में जानना चाहेंगे जिसमें सिक्ख धर्म की उत्पति हुई। साथ ही इसके विकास व कार्य पद्धति में भी आपकी रुचि होगी। आप सिक्ख धर्म में उत्पन्न हुए धार्मिक-सुधारों संबंधी आंदोलनों के बारे में भी जानना चाहेंगे। इस इकाई में भारतीय संस्कृति की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए इन सभी पहलुओं पर चर्चा की गई है।

इस इकाई को सामाजिक व ऐतिहासिक दृष्टि के आधार पर तैयार किया गया है। इसका आरंभ उस सामाजिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की संक्षिप्त चर्चा से होता है जिसमें सिक्ख धर्म की उत्पति हुई। प्रारंभ के खंड के अनुभाग (23ः2) में सिक्ख धर्म के उस दार्शनिक आधार की भी चर्चा की गई है जिसकी झलक गुरू नानक के जीवन और संदेश में मिलती है। गुरू नानक ने सिक्ख समाज के ढांचे की संस्थापना की। उस ढांचे की चर्चा अनुभाग 23.3 में की गई है। सिक्ख धर्म विकास के विभिन्न चरणों से गुजरा है। हम यहाँ उस क्रमबद्ध विकास की चर्चा करेंगे। सिक्ख धर्म में गुरुओं के आगमन के संदर्भ में हम इन विकासात्मक चरणों की चर्चा करेंगे। इस धर्म में विशिष्ट अनुष्ठानों और अमृत छक कर सिक्ख बनने की परंपरा है। इन पहलुओं की चर्चा अनुभाग 23.4 में की गई है। अंत में सिक्खों की आचार संहिता व सिक्खवाद में धार्मिक सुधार संबंधी आंदोलनों की चर्चा की गई है। यहाँ उदाहरण के तौर पर निरंकारी, नामधारी तथा अकाली आंदोलनों की चर्चा की गई है।