लिंग अनुपात किसे कहते है | स्त्री-पुरुष अनुपात का क्या अर्थ है क्या है sex ratio in hindi in india
sex ratio in hindi in india लिंग अनुपात किसे कहते है | स्त्री-पुरुष अनुपात का क्या अर्थ है क्या है परिभाषा प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को क्या कहते है |
लिंग अनुपात
मानव जीव विज्ञान के नियमानुसार लड़के व लड़कियाँ दोनों ही समान अनुपात में जन्म लेते हैं। परंतु जनगणना रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत में लड़कियों की संख्या 13 करोड़ 17 लाख थी, जबकि लड़कों की संख्या 14 करोड़ 3 लाख थी। दूसरे शब्दों में, प्रति हजार लड़कों पर 938 लड़कियाँ थीं। सन् 2001 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 15 करोड़ 66 लाख लड़के और 14 करोड़ 95 लाख लड़कियाँ थीं – जो कि लिंग अनुपात में गिरावट को दर्शाते हैं।
स्त्री-पुरुष के बीच का यह असमान वितरण जन्म से ही शुरू होकर लगभग पूरे जीवन भर जारी रहता है। 1951 में स्त्रियों का अनुपात प्रति हजार पुरुषों पर 946 था जो कि 1981 में घटकर 933 रह गया है। यह तथ्य बड़ा ही उलझन भरा है। जनगणनाओं के अनुसार इस स्त्री-पुरुष असंतुलन के अनेक कारण हैं, जैसे कि माता की मृत्यु, पुरुषों का आप्रवासन और स्त्रियों की पूर्ण रूप से गणना न करना। परंतु ये तथ्य इस घटना को आंशिक रूप से ही स्पष्ट करते हैं। लड़कियों के प्रति सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत उपेक्षा दृष्टि और उदासीनता ही इसके प्रमुख कारण हैं। जन्म से ही पहले भ्रूण हत्या के रूप में उसके साथ भेदभाव किया जाता है। उसे वंचना, अस्वास्थ्य व शोषण से भरा जीवन जीने के लिए बाध्य किया जाता है।
तालिका 1 रू लिंग और आवास के अनुसार 0-14 वर्ष तक आयु-वर्ग में जनसंख्या का
प्रतिशत भारत और उसके मुख्य राज्य, 1994
कुल ग्रामीण शहरी
भारत और
मुख्य राज्य व्यक्ति पुरूष महिला व्यक्ति पुरूष महिला व्यक्ति पुरूष महिला
भारत 36.5 36.8 36.1 37.5 37.9 37.0 33.3 33.3 33.4
आंध्र प्रदेश 33.8 34.0 33.5 33.6 34.0 33.3 34.1 34.1 34.2
असम 39.6 39.0 40.4 40.6 40.1 41.1 31.8 30.0 3.8
बिहार 41.2 41.0 40.8 41.6 42.1 41.0 37.9 36.9 39.1
गुजरात 33.8 34.4 33.2 34.1 34.7 33.5 33.2 33.7 32.8
हरियाणा 37.7 37.9 37.5 38.6 38.7 38.5 35.0 35.6 34.4
हिमाचल प्रदेश 34.6 36.2 33.0 35.1 37.0 33.3 28.8 28.4 29.2
कर्नाटक 34.0 34.3 33.7 35.1 35.4 34.8 31.7 31.9 31.4
केरल 28.8 30.3 27.4 29.4 31.0 27.9 27.1 28.3 26.0
मध्य प्रदेश 378.9 38.0 37.7 38.4 38.6 38.1 36.0 35.8 36.2
महाराष्ट्र 34.4 34.7 34.1 35.6 36.7 34.6 33.1 32.6 33.6
उड़ीसा 34.2 34.5 34.0 34.4 34.8 34.0 33.1 32.6 33.6
पंजाब 33.6 34.1 32.9 33.3 33.8 32.7 34.3 34.9 33.5
राजस्थान 39.1 39.6 38.5 39.6 40.1 39.0 37.0 37.6 36.2
तमिलनाडु 31.0 31.5 30.5 32.2 32.7 31.7 28.8 29.3 28.3
उत्तर प्रदेश 39.6 39.8 39.4 39.9 40.1 39.7 38.0 38.1 38.0
पश्चिम बंगाल 35.3 34.8 35.7 37.8 37.6 38.0 28.2 27.4 29.2
ऽ जम्मू-कश्मीर और मिजोरम को छोड़कर
स्रोत: प्रतिदर्श पंजीकरण प्रणाली, 1995 कार्यालय मुख्य पंजीयक, भारत
तालिका 2: वर्ष 1996-2016 के दौरान भारत में आयु-वर्ग के अनुसार बच्चों की
संख्या
क्र.सं. वर्ष 0-4 वर्ष 5-9 वर्ष 10-14 वर्ष 0-14 वर्ष
1. 1996 1,19,546 1,23,686 1,09,545 3,52,777
2. 2001 1,08,494 1,16,145 1,22,905 3,47,544
3. 2006 1,13,534 1,05,744 1,15,488 3,34,766
4. 2011 1,19,530 1,10,968 1,05,206 3,35,704
5. 2016 1,22,837 1,17,099 1,20,461 3,50,397
स्रोत: भारतीय जनगणना, 1991, भारत और उसके राज्यों के लिए जनसंख्या परिकल्पना, 1996-2016
प्राथमिकता क्षेत्र
विभिन्न क्षेत्रों में कार्यक्रम बनाते समय इन विषयों से संबंधित कार्यक्रमों को वरीयता दी जानी चाहिए:
प) बच्चों के स्वास्थ्य के निवारक तथा संवर्धक पहलू
पप) गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के साथ-साथ शिशुओं तथा विद्यालय जाने से पूर्व आयु-वर्ग के बच्चों के लिए पोषण
पपप) अनाथ तथा बेघर बच्चों के अनुरक्षण, शिक्षा तथा प्रशिक्षण
पअ) कामकाजी तथा बीमार माताओं के बच्चों की देखभाल के लिए शिशु-गृह तथा अन्य सुविधाएँ
अ) विकलांग बच्चों की देखभाल, शिक्षा, प्रशिक्षण तथा पुनर्वास।
बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और कल्याण की जरूरतों को पूरा करने के लिए योजना, समीक्षा तथा कार्यों की विविधता के समुचित तालमेल के लिए एक मंच प्रदान करने की दृष्टि से, राष्ट्रीय बाल नीति ने राष्ट्रीय बाल मंडल (छंजपवदंस ब्ीपसकतमदे ठवंतक) का गठन करने की व्यवस्था की है। राज्य स्तर पर भी इसी प्रकार के मंडलों का गठन किया जा सकता है।
स्वैच्छिक प्रयास
बच्चों की राष्ट्रीय नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाली स्वैच्छिक संस्थाओं को राज्य की सहायता से अथवा स्वयं अपने आप शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन तथा समाज-कल्याण सहायताएँ विकसित करने के उचित अवसर प्राप्त होते रहेंगे। राज्यों को यह आदेश दिया गया है कि वे स्वैच्छिक कार्यवाही को बढ़ाएँ जिससे बाल-कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ाने और विकसित करने में राज्य तथा स्वैच्छिक संस्थाएँ, न्यासों, धार्मिक तथा धर्मदाय संस्थाओं को अधिक से अधिक काम में लाया जा सके।
उपर्युक्त लक्ष्यों को पाने के लिए राज्य अनिवार्य वैधानिक और प्रशासनिक सहायता प्रदान करेगा। बढ़ते हुए कार्यक्रमों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने तथा सेवाओं की प्रभावकारिता में सुधार करने के लिए कार्मिकों के प्रशिक्षण तथा अनुसंधान सुविधाओं का विकास किया जाएगा।
राष्ट्रीय बाल नीति के अनुसरण में देश में एक समेकित बाल विकास सेवा योजना (आई.सी.डी.एस.) प्रारंभ की गई है। इस योजना का लक्ष्य गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाओं तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को छः सेवाओं का एक पैकेज प्रदान करना है। ये सेवाएँ हैं- सम्पूरक आहार, प्रतिरक्षण, माताओं को स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी शिक्षा। ये सेवाएँ गाँवों, शहरों तथा जनजातीय क्षेत्रों में स्थित आंगनवाड़ी केंद्रों में प्रदान की जाती हैं। 1974 में यह योजना 33 विकास खंडों में एक प्रयोगात्मक आधार पर शुरू की गई थी तथा वर्ष 1989-90 तक यह संख्या देश के 2438 खंडों तक पहुंच गई है।
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