WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

प्रतिष्ठा किसे कहते हैं | प्रतिष्ठा की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए हिंदी में pratishtha meaning in hindi

pratishtha meaning in hindi प्रतिष्ठा किसे कहते हैं | प्रतिष्ठा की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए हिंदी में ?

शब्दावली
अंतर्लयन: वह प्रक्रिया जिसके जरिए जनजातियां अन्य समूहों और समुदायों में जा मिलीं, और उनका हिस्सा बन गई।
जातीयता: यह आदतों, विशेषताओं और उत्पत्ति की सांस्कृतिक परतों से मिलकर बनती है, जो एक विशेष जातीय वंश-कुल से संबंध रखने वाले एक समूचे समुदाय को एकात्मता में बांधती है।
पहचान: किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय विशेष के विशिष्ट लक्षण।
सत्ताधिकार: किसी व्यक्ति या समूह को उनकी इच्छा के विपरीत भी उन्हें प्रभावित करने की शाक्ति ।
प्रतिष्ठा: एक तरह का दर्जा जो किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय से जुड़ जाता है।
जनजाति: ऐसे समूहध्समुदाय को उसके विशिष्ट लक्ष्णों से अलग पहचाना जा सकता है।

जनजातीय जातीयता और पूर्वोत्तर भारत
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
जनजातियां और जातीयता
जनजातियों की विभेदी विशिष्टताएं
जनजातियों का रूपांतरण
पूर्वोत्तर की जातीय संरचना
पूर्वोत्तर की जनजातीय आबादी
पूर्वोत्तर में जनजातियों का सामाजिक स्तरीकरण
मिजो की प्रशासन प्रणाली
नागानों में सत्ताधिकार और प्रतिष्ठा
जैतिया और खासी
पारंपरिक श्रेणीकरण प्रणाली
पूर्वोत्तर में जनजातीय आंदोलन
नगा आंदोलन
त्रिपुरा में जनजातीय नीति
मणिपुर में जनजातीय आंदोलन
10.6 मिजोरम
मिजो पहचान
बोडो आंदोलन
स्तरीकरण के आधार के रूप में जनजातीय जातीयता
जातीय आंदोलन
गतिशीलता और जातीय समूह
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपः
ऽ जनजातियों और जातीयता के बीच संबंध है स्पष्ट कर सकेंगे,
ऽ उत्तर-पूर्व की जातीय संरचना की रूपरेखा बता सकेंगे,
ऽ उत्तर-पूर्व में जनजातियों में स्तरीकरण किस तरह से होता है, यह बता सकेंगे, और
ऽ स्तरीकरण के आधार के रूप में जनजातीय जातीयता के बारे में बता सकेंगे।

पूर्वोत्तर की जातीय संरचना
पूर्वोत्तर भारत एक सुस्पष्ट भूभाग है। इसकी बहुविध और विषमांगी, भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान है। यह भूभाग एक जातीय-सांस्कृतिक सीमांत है जो अपने में भारत की समृद्ध मगर अज्ञात मंगोल विरासत को समेटे है, जो भाषायी, नस्लीय और धार्मिक धाराओं का एक जटिल संक्रमण क्षेत्र है। यह एक अनूठा जैव-भौगोलिक सीमांत भी है, जहां भारतीय, चीनी और मलेशियाई-बर्मी नस्लों के संगम ने जैव विविधता के एक अकूत भंडार का सृजन किया है।

देश के विभाजन के बाद एक ‘सेतु और मध्यवर्ती‘ (ब्रिज ऐंड बफर) अंचल के रूप में इसकी भूमिका भी बदल गई क्योंकि विभाजन ने उत्तर-पूर्व को समग्र मुख्य भारत से अलग कर दिया। आज इसकी 3,000 किमी लंबी सीमा चीन, म्यानमार (बर्मा), बांग्लादेश, भूटान इत्यादि देशों से मिलती है और यह एक संकीर्ण गलियारे के जरिए भारत से जुड़ा है। वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार, इस प्रदेश की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 14 लाख थी जो देश की जनसंख्या का 3.70 प्रतिशत अंश है।

यह भूभाग सात राज्यों से मिलकर बना है। ये राज्य हैंरू अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा। भूभाग की दृष्टि से हम इस क्षेत्र को दो उप-प्रदेशों में बांट सकते हैंः (क) ब्रह्मपुत्र, बरक, इम्फाल नदियों के मैदान और (ख) विशाल पर्वतीय भूभाग जो पूरे क्षेत्र का 72 प्रतिशत भाग है। अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय और असम अमूमन पहाड़ी हैं लेकिन असम, मणिपुर और त्रिपुरा का कुछ भाग मैदानी हैं । जनजातीय और गैर जनजातीय आबादी के बीच विभाजन भी इसी आधार पर होता है। साठ लाख की आबादी वाली जनजातियां मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्यों के 80 प्रतिशत भूभाग में रहती हैं (असम इसका अपवाद है)। गैर जनजातीय लोग मैदानी इलाकों में रहते हैं। अधिकांश जनजातीय लोग मंगोल मूल के हैं जबकि मैदानवासी अपने को काकेशियाई मूल का मानते हैं जो विभिन्न युगों में वहां आ बसे थे।

पूर्वोत्तर की जनजातीय आबादी
पूर्वोत्तर की जनजातीय आबादी में भारी विषमता और विविधता देखने में आती है। यहां सौ से ज्यादा जनजातियां समूह है जिनकी अपनी अलग भाषा, अनुष्ठान, विश्वास, धर्म और सांस्कृतिक पैटर्न हैं । इसी प्रकार पीपुल ऑफ इंडिया भाग प्ग् के अनुसार जो 325 भाषाएं भारत में बोली जाती हैं, उनमें से सबसे ज्यादा भाषाएं तिब्बती-बर्मी कुल की हैं और इनमें से 175 भाषाएं पूर्वोत्तर के समुदाय बोलते हैं। यह विषमता हमें प्रचलित रीति-रिवाजों, विशेषकर मातृवंशीय और पितृवंशीय जनजातियों में मौजूद अंतर में भी दिखाई देती है। विभिन्न जनजातीय समूहों में पाई जाने वाली समानताएं उनके पांरपरिक आर्थिक पैटर्नो के संरक्षण, झूम खेती, सामाजिक और सांस्कृतिक पैटों में नजर आती हैं। इसी प्रकार आधुनिकीकरण के प्रति उनकी प्रतिक्रिया और उनमें जातीय चेतना का विकास, ये दोनों उन्हें एक दूसरे से एक प्रकार के बंधन में बांधते हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की बनावट इस प्रकार हैः

प) मिजोरम की 94.26 प्रतिशत आबादी जनजातीय है। मिजो इतिहास की श्रुति पंरपरा के अनुसार उनके पूर्वजों ने दूर चीन में चुनढुंग नामक कंदरा या चट्टान में जन्म लिया था, जहां से वे तिब्बत के रास्ते होते हुए बर्मा की हुकवांग घाटी में आ बसे और अंततः 18वीं सदी में लुशाई पहाड़ियों में प्रवेश कर गए। मगर मिजो लोगों में लंबे समय तक बाहरी दुनिया से अपनी दूरी बनाए रखी। अट्ठारहवीं सदी में वे ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बने। मिजो शब्द का अर्थ पहाड़ी लोग है, जिसमें तुशाई राल्टे, हुमार, पावी, पोल, लाकर्मी समेत पंद्रह जनजातियां आती हैं जो मिलकर मिजो पहचान बनाती हैं। इस प्रक्रिया को दो महत्वपूर्ण कारकों ने सहज बनाया। ये थेः ईसाई धर्म और लुएसी भाषा की डबलीन बोली का अपनाया जाना। इस बोली की लिपि रोमन थी। मिजोरम के दो उपप्रदेश हैं। पहला उपप्रदेश ईसाई धर्म से प्रभावित लुशाई पहाड़ियां हैं। इसमें अधिकांश मिजो समूह आते हैं। दूसरा उपभाग बौद्ध चकमा और माघ और हिन्दु धर्म से प्रभावित रियांग जनजातियों का है, जो चिटगांव पहाड़ियों से सटी पश्चिमी पट्टी में रहती हैं।

पप) नागालैंड राज्य की 88.61 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय है। नागा एक सामान्य जातिगत शब्द है जिसका अर्थ योद्वा होता है। यह 32 जनजातियों के समूह के लिए प्रयोग होता है जिनमें से पांच बर्मा में बसी हैं। शेष नागालैंड (16), मणिपुर (सात), अरुणाचल प्रदेश में तिरुपुरा और असम के उत्तरी कछार और कार्बी अंगलोंग जिले में पाई जाती हैं। नागाओं में महत्वपूर्ण जनजातियां अंगामी, आओल चाकेसंग, संगटम, मोतीकुमी, यिमचुंगे हैं। ये जनजातियां अपनी अलग तिब्बती-बर्मी बोलियां बोलते हैं और आपस में नगमी भाषा का प्रयोग करते हैं। ये ईसाई धर्म मानते हैं जिसने इनमें एकता की भावना पैदा करने में महत्वपर्ण भमिका निभाई। इस प्रकार जातीय-भाषाई और सांस्कतिक दष्टि से नागा जनजातियां अपनी आंतरिक एकरूपता और अंतरा सामुदायिक समांगता को बनाए रखती हैं मगर इनमें बड़ा समूह बनाने का रुझान देखने में आया है। जैसेः 1974 में जेमी, लैंगमेई और रोंगमेई जैसी समान विशेषताओं वाली जनजातियों ने मिलकर जेलियांगोंग समह बनाया और सापो केछू और खूरी जनजातियां पोछुरी बन गई।

पपप) मेघालय राज्य की सबसे बड़ी विशेषता इसका मातृवंशीय समाज है। यह पूर्वोत्तर का अपेक्षतया अधिक शांतिपूर्ण राज्य है। राज्य की 80.84 प्रतिशत आबादी जनजातियों की हैं। इनमें गारो, खासी और जैन्टिया जनजातियां मुख्य हैं । लोडो तिब्बती-बर्मी मूल की गारो जनजाति पिछले चार सौ वर्षों से गारो पहाड़ियों में रह रही हैं। गारो लोग पांच मातृवंशी गोत्रों में बंटे हैं। इनमें संगमा और मराक सबसे प्रमुख हैं। गोत्र का मुखिया या परिवार का नोकमा.सबसे छोटी बेटी होती है जिसका पति संपत्ति की देख-रेख, उसका संचालन करता है।

खासी लोग मोन खमेर समूह के हैं। ये भी मातृवंशी हैं। इनमें मामा का भारी नियंत्रण और प्रभुत्व रहता है। 25 खासी प्रदेशों को सोलह लीमा या क्षेत्रों में बांटा गया था। प्रत्येक लीमा का एक सियाइम या सरदार था। लीमा के बाद तीन अर्द्ध-स्वायत्त इकाइयां आती हैं जो लिंडोह, पांच सूबेदारों और एक वहादार के अधीन होती हैं। जैन्तिया भी सिन्टैक्स या पनार लोगों के लिए प्रयोग होने वाला सामान्य शब्द है ये भी मातृवंशी जनजातियां हैं और इनमें उत्तराधिकार मामा से भांजे को मिलता है। जैंतियों पर हिन्दुत्व और इस्लाम को बड़ा प्रभाव है, लेकिन इनमें ईसाई धर्म के अनुयायियों की संख्या सबसे ज्यादा 47 प्रतिशत है। वहीं सेंग-खासी जैसे पुनरुत्थानवादी आंदोलनों ने समाज को पारंपरिक जनजातीय रीति-रिवाजों, धर्म और त्योहारों की ओर लौटाने का प्रयास भी किया है।

पअ) मणिपुर उत्तर-पूर्व का एक प्राचीन राज्य है। इस राज्य को अठारहवीं सदी के राजा गरीब नवाज के शासनकाल में ख्याति मिली। तब यहां का राज्य धर्म वैष्णव था। इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण जनजातियां मैती, मरांग, लुयांग, खुमान, हैं। इनमें हिन्दू मैती सबसे शक्तिशाली और प्रभावी जनजाति है। यह संभवतः तिब्बती-बर्मी मूल की है और इसमें सात गोत्र हैं जिन्हें सलई-निंगयाउजा, लुवांग, खुमान, मोइरंग, अंगोम, खाबानगानिया और चेंगलेई के स्थानीय नामों से जाना जाता है। मणिपुर की अन्य महत्वपूर्ण जनजातीय समुदाय ऐमोल, अनाल, अंगामी, चीरू, गंगटे, हमार, कबुई, काचा, कोइराओ, कियोरेंग, कोम, लामगांग, मर्रम, मारिंग, माओ मोनसंग, मोयोन, सेमा, टंगखुल इत्यादि हैं। मगर इन जनजातियों को मोटे तौर दो समूहों में बांटा जाता है। ये हैं- नागा और कुकी या कुकी चिन क्योंकि इन्हें वहां इन्हीं नामों से जाना जाता है और ये मणिपुर के पहाड़ी भागों, कछार, लेठा और बर्मा की अरकान पहाड़ियों में बसी हुई हैं । मणिपुर की 60 प्रतिशत आबादी हिन्दू है, शेष ईसाई और कुछ मुस्लिम है।

अ) अरुणाचल प्रदेश को पहले ‘नेफा‘ कहा जाता था, जिसकी आबादी का 79.02 प्रतिशत जनजातियां हैं। इसमें लगभग 110 जनजातियां हैं जिनमें 26 जनजातियां अधिक ज्ञात हैं। इनमें मुख्य जनजातीय समूह बफला और बंगनी, मिन्योंग, मिशमी, नोक्टे, अपाटानी, मिरी, अका, श्रोदुकपेन, मिकिर, टेगिया हैं। शेष पूवोत्तर की तुलना में अरुणाचल प्रदेश अधिक दूर और अलग है।

अप) असम बड़ा राज्य है जिसमें जनजातियों की संख्या कुल 10.99 प्रतिशत है जो ब्रह्मपुत्र के मैदानों में रहती हैं। यहां की महत्वपूर्ण जनजातियां अहोम, बोडो-कचारी, रबा, मेच, जोजई, लेलुंग, मिकिर इत्यादि हैं। इनमें से अधिकांश जनजातियों का हिन्दू धर्म में अतंर्लयन हो गया है और वे जनजाति से जाति की ओर संक्रमण को दर्शाती हैं।

अपप) त्रिपुरा राज्य पश्चिमोत्तर से दक्षिणोत्तर में छोटी पहाड़ियों की छह श्रृंखलाओं से घिरा है जिनकी ऊंचाई 100 से 3000 फुट तक है। इन पहाड़ियों की ऊंचाई दक्षिण-पश्चिम दिशा से पूर्वोत्तर की ओर बढ़ती है, जबकि इन पहाड़ियों के छोरों पर मैदानी पट्टियां हैं। यहां कुल अट्ठारह जनजातियां रहती हैं जो अमूमन तिब्बती-बर्मी मूल की हैं। इनमें ज्यादातर जनजातियां हिन्दू हैं और दो बौद्ध जनजातियां चकमा और माघ तथा छह बागानों में रहने वाली जनजातियां हैं। इनमें मुख्य त्रिपुरी (जो बोडो मूल के हैं), रियांग, नाओतिया और हलाम जनजातियां हैं।

पूर्वोत्तर की जनजातीयों में सामाजिक स्तरीकरण
यहां सामाजिक स्तरीकरण के दो मुख्य आयाम हैं । इनमें एक आयु, लिंग, नातेदारी इत्यादि पर आधारित स्तरीकरण की पांरपरिक व्यवस्था है और दूसरा है आधुनिकीकरण की अनेक प्रक्रियाओं के प्रभाव के फलस्वरूप समाज में उभरता स्तरीकरण । जैसेः शिक्षा, औद्योगीकरण, व्यावसायिक विभेदन, स्थिति क्रम परंपराएं जिनके मूल में संसदीय लोकतंत्र, सरकारी नौकरी इत्यादि कारक हैं जो समाज को नए वर्गों और स्थिति कम परंपराओं में स्तरित करते हैं। पारंपरिक दृष्टि से पूर्वोत्तर की जनजातियां समरूप समतावादी इकाइयां नहीं रही हैं। यहां कि विभिन्न जनजातियों में स्तरीकरण उत्पन्न होने के पीछे अनेक कारकों का योगदान रहा है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वंशावली, जमीन से संबंध, आनुष्ठानिक स्थिति, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व की स्थिति हैं। अब ये कारक जिस रूप में मौजूद होंगे उसी के अनुसार विभिन्न जनजातीय समूहों में क्रम परंपराएं बनेंगी और उनका शाश्वतीकरण होगा और एक जनजातीय समूह का अन्य समह पर प्रभुत्व भी तय होगा। उदाहरण के लिए, गारो जनजाति में झूम खेती की जमीन और गृहभूखंड को सात वंशों (महारियों) की संपत्ति माना जाता था, जिन्हें राजा का दर्जा प्राप्त था।

बॉक्स 10.01
राजा के बंदोबस्ती का अधिकार एक खास कुल को प्राप्त होता है। इसी प्रकार खासी लोगों में कबीले का हर सदस्य कबीले की सामूहिक जमीन राई पर अपना हक मांग सकता था। लेकिन राई क्यांति भूमि कुछ विशिष्ट कुलों के उपयोग के लिए होती थी जिस पर उन्हें मालिकाना, आनुवंशिक और हस्तांतरणीय अधिकार होता था। एक अध्ययन में यह देखने में आया है कि 22.2 प्रतिशत परिवारों का गांव की 70 प्रतिशत जमीन पर नियंत्रण था, शेष 30 प्रतिशत जमीन पर 54 प्रतिशत परिवारों का अधिकार था और बाकी के जो 24 प्रतिशत परिवार थे उनके पास कोई जमीन नहीं थी।