कश्मीर विवाद क्या था | भारत और पाकिस्तान के मध्य कश्मीर विवाद को समझाये kashmir conflict in hindi
kashmir conflict in hindi with pakistan india कश्मीर विवाद क्या था | भारत और पाकिस्तान के मध्य कश्मीर विवाद को समझाये ?
कश्मीर विवाद
८६,०२४ वर्ग मील के क्षेत्रा वाले तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य की आबादी में मुस्लिमों का वर्चस्व था और वहां एक हिंदू राजा महाराजा हरि सिंह का शासन था। १५ अगस्त १९४७ को मिली आजादी के पहले और ठीक बाद भी उन्होंने राज्य के परिग्रहण संबंधी कोई भी निर्णय नहीं लिया था। महाराजा की योजना थी कि वह अपने राज्य को एक स्वतंत्रा राष्ट्र घोषित करें। महाराजा के इस ढुलमुलपन का फायदा पाकिस्तान ने उठाया और उसने उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत के कबीलाई लोगों की मदद से राज्य पर हमला बोल दिया। २२ अक्टूबर १९४७ को किए गए इस हमले के सिर्फ पांच दिन के भीतर ही हमलावर श्रीनगर से २५ मील दूर बारामूला तक आ पहुंचे। इस हमले से अतिविस्मित हरि सिंह ने भारत से मदद लेने का निर्णय किया और भारत सरकार से विनती कि राज्य की रक्षा करने के एवज में वे परिग्रहण के कागजात पर दस्तखत करने को तैयार हैं। २७ अक्टूबर १९४७ तक जम्मू-कश्मीर के परिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो गई और सेना को हमलावरों से क्षेत्रा खाली कराने की अनुमति दे दी गई। जम्मू-कश्मीर का परिग्रहण करने के वक्त भारत ने कहा था कि राज्य को हमलावरों से खाली कराने के बाद जनता की राय क्या है, इसे सुनिश्चित किया जाएगा। पाकिस्तान ने इस परिग्रहण को स्वीकार नहीं किया और इसे भारत का आक्रमण माना। इस दौरान पाकिस्तान ने आक्रमणकारियों द्वारा कब्जाए गए परिक्षेत्रा में आजाद कश्मीर नामक सरकार की स्थापना कर दी। इस मुद्दे पर भारत ने अनुच्छेद ३५ के अंतर्गत सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटाया। वास्तव में, जम्मू-कश्मीर की जनता की राय जानने के लिए नेहरू सरकार द्वारा जनमत संग्रह करवाने का निर्णय एक ऐसी गंभीर गलती थी, पाकिस्तान जिसका फायदा उठाकर अभी तक इस विवाद को खींचने में कामयाब रहा है।
सुरक्षा परिषद ने इस मसले पर कई फैसले किए। सबसे पहले २० जनवरी १९४८ को एक तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। बाद में इसका विस्तार होता रहा और इसका नामकरण किया गया भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी)। आयोग ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात और जाँच के बाद अंततः ११ दिसंबर १९४८ को अपनी रिपोर्ट जमा की। इस रिपोर्ट में दोनों देशों के बीच कटुता को समाप्त करने और जनमत संग्रह के संबंध में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं। सर्वप्रथम, संघर्ष विराम के बाद पाकिस्तान अपनी सैन्य टुकड़ियां जम्मू-कश्मीर से जल्द से जल्द हटाए तथा उन कबीलाई और पाकिस्तानी नागरिकों को वापस बुलाए जो जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं हैं। दूसरे, पाकिस्तानी टुकड़ियों द्वारा खाली किए गए क्षेत्रों का प्रशासन आयोग की देखरेख में स्थानीय अधिकारी करें। तीसरे, इन दो शर्तों के पूरी हो जाने और भारत को इसकी सूचना दिए जाने के बाद वह भी अपनी अत्यधिक सैन्य टुकड़ियों को वहाँ से हटा ले। अंतिम सिफारिश थी कि अंतिम समझौते के तहत भारत सीमित संख्या में वहाँ अपनी टुकड़ियां स्थापित करे जो सिर्फ कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हों। शुरू में आनाकानी करने के बाद पाकिस्तान ने इन प्रस्तावों को मंजूर कर लिया और दोनों देशों के सैन्य प्रमुखों ने जनवरी १९४९ को आधी रात में एक संघर्ष विराम पर दस्तखत किए। युद्ध समाप्त हो गया और संघर्ष विराम लागू हो गया। यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि संघर्ष विराम ऐन उस वक्त लागू हुआ जब भारतीय सेनाएं घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने और पूरे राज्य को मुक्त करा पाने की स्थिति में थीं।
जिस स्थान पर युद्ध समाप्त हुआ, वहीं पर संघर्ष विराम रेखा (अब नियंत्राण रेखा) खींच दी गई। २७ जुलाई १९४९ को कराची में संघर्ष विराम रेखा पर एक समझौता हुआ। इसके मुताबिक जम्मू-कश्मीर का ३२००० वर्ग मील परिक्षेत्रा पाकिस्तान के कब्जे में ही रखा गया, जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर पुकारता है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने कई आयोगों का गठन किया और प्रस्ताव पारित किए, लेकिन इनमें से किसी से भी कश्मीर समस्या का हल नहीं हो सका। इस दौरान वयस्क मतदान के आधार पर चुनी गई एक संविधान सभा ने ६ फरवरी १९५४ को भारत सरकार द्वारा राज्य के परिग्रहण पर मुहर लगा दी। १९ नवंबर १९५६ को स्वीकृत राज्य के संविधान में जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा घोषित किया गया। भारत का पक्ष है कि सीधे चुनी गई कश्मीर की संविधान सभा द्वारा राज्य के परिग्रहण की अभिपुष्टि से राज्य की जनता की इच्छा का सम्मान किया गया है। भारत ने इस परिग्रहण को २६ जनवरी १९५७ को अंतिम मंजूरी दी।
कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान द्वारा कई बार संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समय-समय पर उठाया गया है। कश्मीर को पाकिस्तान का अंग बनाए जाने के पीछे उसका तर्क वहाँ की बहुसंख्य आबादी की समान धार्मिकता है। लेकिन भारत का मानना है कि राजनीतिक कार्रवाइयों का आधार धर्म को नहीं बनाया जा सकता। पाकिस्तान लगातार सीमा पार आतंकवाद में संलग्न है और वह कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या को अंजाम दे रहा है। भारत द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के हरसंभव बेहतरीन प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान राजनीतिक प्रतिशोध के चलते अब तक चार युद्ध थोप चुका है।
पाकिस्तानः भारत का सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी
भारत के विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान के परस्पर संबंधों के इतिहास का विश्लेषण उन समस्याओं और विवादों के चरित्रा की समीक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है, जिन्होंने दोनों देशों को युद्ध के दौरान और बाद में भी तनावपूर्ण, आक्रामक और संघर्षपूर्ण संवादों में जकड़े रखा है। इन प्रतिकूल संबंधों की परिणति अब तक चार युद्धों के रूप में हो चुकी है और भारत अभी भी पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में चलाए जा रहे उस छद्म युद्ध की चुनौती का सामना कर रहा है, जिसका उद्देश्य कश्मीर को शेष भारत से अलग करना है। जनता की नजर में, और खासकर हमारी सेनाओं की नजर में पाकिस्तान की पहचान अभी भी एक शत्रा के रूप में की जाती रही है, हालांकि इतिहास, संस्कृति, भाषा, धर्म तथा भूगोल के मामले में दोनों देशों के बीच तमाम समानताएं हैं।
एक ओर जहां भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक-सांस्कृतिक समानताओं तथा जातीय और भाषाई संबद्धता के चलते दोनों देशों के बीच संघर्षपूर्ण के बजाय सौहार्दपूर्ण संबंध होने चाहिए, आखिर क्या वजह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अभी भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ कायम हैं? आइए, इस सवाल को हम समझने की कोशिश करें।
दोनों देशों की एक दूसरे के प्रति असहमति के कारणों में संवादहीनता, परस्पर आशंका की स्थिति और इन आशंकाओं को सायास बढ़ावा देने वाले कदमों को गिनाया जा सकता है। पहले पाकिस्तान की आशंकाओं को समझ लेना बेहतर होगा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा विभाजन के विरोध के फलस्वरूप मुस्लिम लीग के समक्ष जो चुनौती पैदा हुई, उसकी कड़वी स्मृतियाँ अभी भी पाकिस्तानियों के मन में बसी हुई हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम लीग अपनी आकांक्षाओं के मुताबिक जिस भौगोलिक परिक्षेत्रा में पाकिस्तान का गठन चाहती थी, वह नहीं हो सका। इतिहास की विडम्बनाओं में से एक यह है कि पाकिस्तान में रहने वाले कई लोग अभी भी दो राष्ट्रों के सिद्धांत से सहमत नहीं हैं। पाकिस्तान के पक्ष में खड़े किए गए आंदोलन की मुख्य ताकत बंगाल और उत्तर-मध्य भारत के मुस्लिम थे। यह समर्थन भी मुस्लिम जनता की ओर से नहीं था, बल्कि मुस्लिम अभिजात्य वर्ग का था। हमें यह याद रखना चाहिए कि जिन्ना को तब हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता रहा जब तक कि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता के रूप में उनकी छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया। पाकिस्तान का अब भी यही दृष्टिकोण है कि लॉर्ड माउंटबैटन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मिलीभगत ने एक ऐसा पाकिस्तान बनने की राह में अवरोध पैदा किया जहां भारत की सारी मुस्लिम आबादी रहे। यह कड़वाहट आज भी पाकिस्तानी सत्ता और उसकी संरचना की मानसिकता पर व्याप्त है।
जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ में भारत के कठोर कदमों ने इस कटुता को बढ़ाने का ही काम किया। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इन कदमों ने ऐसी आशंका पैदा कर दी कि भारत विभाजन के प्रभाव को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को नष्ट कर देगा, चाहे उसे तोड़ कर अथवा उसके प्रांतों का वापस उस हिंदू योजना में विलय कर, जिसे पाकिस्तानियों ने ‘अखंड भारत‘ का नाम दिया था। सामरिक संसाधनों के वितरण और विदेशी मुद्रा भंडार पर भारत के पक्ष ने पाकिस्तान की इस आशंका को मजबूत किया कि भारत की योजनाएँ विघटनकारी हैं। दोनों देशों के आकार, आबादी और संसाधनों में असमानता ने इन आशंकाओं में ईंधन का काम किया।
बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में भारत की भूमिका ने पाकिस्तान की इस भयाक्रांत मानसिकता को और बल दिया। लेकिन अगर ऐसा है, तो फिर १९४८ और १९६५ में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयाँ क्यों की? इसका जवाब संभवतः उस अर्धचेतन इच्छा में तलाशा जा सकता है जो विभाजन से पैदा हुई अव्यवस्था को नए सिरे से दुरुस्त करना चाहती थी। १९७१ के संघर्ष ने भारत के संदर्भ में भी पाकिस्तान का रूझान सैन्य कार्रवाइयों की ओर कर दिया। पाकिस्तानी सत्ता की वही मानसिकता आज भी यथावत है।
भारत-पाक संबंधों से जुड़े उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में आइए उन महत्वपूर्ण घटनाओं की पड़ताल करें जो दोनों देशों के बीच घटी। विभाजन की शुरुआती समस्या के अलावा पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर के प्रांतों का भारत में विलय तथा रावी, सतलुज और ब्यास के जल बँटवारे की समस्या भी रही, जिसका समाधान १९ सितंबर १९६० को दोनों देशों के बीच हुए एक शांतिपूर्ण समझौते से हो गया। लेकिन दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास पैदा करने वाली मुख्य समस्या कश्मीर से जुड़ी है। इसलिए यह जरूरी है ‘कश्मीर विवाद‘ की विस्तार से चर्चा की जाए, चूंकि दोनों देशों के बीच यही इकलौती विवाद की हड्डी है।
भारत और उसके पड़ोसी
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
पाकिस्तान- भारत का सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी
भारत और श्रीलंका
भारत और नेपाल
भारत और बांग्लादेश
सारांश
संदर्भ
बोध प्रश्नों के लिए उत्तर
उद्देश्य
इस अध्याय का उद्देश्य भारत और उसके दक्षिण-एशियाई पड़ोसियों पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के बीच संबंधों की आलोचनात्मक पड़ताल करना है। इन देशों के साथ भारत के संबंधों की जांच राजनीतिक, आर्थिक और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों समेत अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में की गई है। इस पाठ से गुजरने के बाद आप निम्नलिखित कार्यों में सक्षम होंगेः
ऽ अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत की नीति का आलोचनात्मक विश्लेषण,
ऽ भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों की पहचान।
प्रस्तावना
दक्षिण एशिया में राज्यों की वर्तमान स्थिति भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजी राज की समाप्ति का ही परिणाम है। भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से सटे ये सभी देश जिस एक भौगोलिक इकाई का हिस्सा हैं वह भारतीय उपमहाद्वीप है। यहाँ तक कि समुद्री विस्तार के कारण इस इकाई से भिन्न जान पड़ने वाले मालदीव और श्रीलंका भी दूसरे कारणों से भारतीय उपमहाद्वीप से संबद्ध हैं- जैसे समान सभ्यता और विरासत, जातीयता, धार्मिक और भाषाई सामीप्य। इसके अलावा भौगोलिक निकटता तथा क्षेत्रीय ध्रुव, भारत से सान्निध्य के कारण परस्पर करीबी और टिकाऊ संवाद भी इसमें अहम भूमिका अदा करता है।
इस संवाद का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण यह रहा है कि उपमहाद्वीप में भारत की केंद्रीय स्थिति और वर्चस्व की वजह से पड़ोसियों के साथ उसके संबंधों में हमेशा विषमता रही है। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है कि भारत अपने पड़ोसियों की तुलना में भौगोलिक दृष्टि से विशाल और अधिक आबादी वाला देश है। ऐसा इसलिए भी नहीं है कि सैन्य और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रा में भारत की उपलब्धियाँ पाकिस्तान समेत अन्य देशों से कहीं ज्यादा हैं। बल्कि इस क्षेत्रीय संवाद की यह अभिलाक्षणिकता रही है कि पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को तय करने में भारत को मानक के तौर पर लिया जाता है, न कि संबंधों में एकरूपता की बात होती है।
क्षेत्रीय संघर्ष और तनाव भी इस क्षेत्रा के देशों के द्विपक्षीय संबंधों के बीच बहुत मायने रखते हैं। इनका कारण वही विषमतापूर्ण संवाद है। इसके अलावा इन देशों के बुनियादी रणनीतिक दृष्टिकोण में भारी फर्क भी तनाव को बढ़ावा देता है। ब्रिटिश राज की उपमहाद्वीपीय सामरिक दृष्टि भारत को विरासत में मिली है जो इस क्षेत्रा के देशों के बीच भौगोलिक सान्निध्य पर आधारित है। लेकिन इसके ठीक उलट, भारत के पड़ोसी भारत के प्रति भयबोध की भावना से ग्रसित रहते हैं और उसे एक ऐसी इकाई के रूप में देखते हैं जिसके खिलाफ सामरिक सुरक्षा अनिवार्य है।
इन राज्यों को कुछ समस्याएँ तो सीधे ब्रिटिश राज से वसीयत में मिली हैं। उसके अतिरिक्त कुछ इनकी अपनी नीतियों के कारण भी हैं। पहली कोटि में जो समस्याएं रखी जा सकती हैं, वे हैं अपरिभाषित सीमाएं, इन पड़ोसी राज्यों में रह रहे भारतीयों की संवैधानिक अवस्थिति और इससे जुड़ी आव्रजन की समस्याएँ इत्यादि । दूसरी कोटि में वे समस्याएं आती हैं जो इन राज्यों द्वारा स्वतः प्रसूत हैं। मसलन, पाकिस्तान में चुने गए प्रधानमंत्रियों की बर्खास्तगी के बाद सरकारों का लगातार बदलना और फिर सैन्य तख्तापलट । श्रीलंका जातीय समस्याओं से ही जूझ रहा है, जिसके कारण वहां गृह युद्ध की सी स्थिति पैदा हो गई है। नेपाल में शाही परिवार का खात्मा १ जून २००१ को हो गया। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाए जा रहे हिंसक आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में इन राजनीतिक हत्याओं को अंजाम दिया गया। १९९० में वहां लोकतंत्रा की बहाली के बाद अब तक दस सरकारें बदली जा चुकी हैं। बांग्लादेश में अत्यधिक हिंसा तथा बदहाल कानून व्यवस्था के साये में २००१ में चुनाव करवाए गए थे। भूटान में वहां रह रहे नेपालियों के असंतोष और उत्तर-पूर्व में भारतीय सीमा पर अलगाववादी आंदोलनों के मद्देनजर नई चुनौतियाँ सिर उठा रही हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो पिछले कई वर्षों के दौरान भारत को उसके पड़ोसियों के साथ एक स्थायी और व्यावहारिक संबंध कायम रखने में कई जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। खासकर, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि प्रत्येक पड़ोसी देश के साथ भारत के कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका हल अभी तक ढूंढा नहीं जा सका है चाहे वह कश्मीर का सवाल हो, गैरकानूनी घुसपैठ की समस्या या बांग्लादेश के साथ कुछ परिक्षेत्रों पर अधिकार का मामला हो।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics