अतिरिक्त मूल्य की अवधारणा किसने दी | अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत की परिभाषा surplus value theory given by in hindi
surplus value theory given by in hindi अतिरिक्त मूल्य की अवधारणा किसने दी | अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत की परिभाषा ?
उत्तर : अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत कार्ल मार्क्स ने दिया था कार्ल मार्क्स के अनुसार यह सिद्धान्त निम्नलिखित है –
अतिरिक्त मूल्य (surplus value) जब श्रमिक अपनी श्रम शक्ति कच्चे माल पर खर्च करता है तो वस्तुओं का निर्माण होता है। इस प्रकार, श्रमिक द्वारा माल के मूल्य में वृद्धि की जाती है। श्रमिक द्वारा पैदा किया गया यह मूल्य उसे दिए गए वेतन से कहीं अधिक होता है। पैदा किए गए मूल्य तथा प्राप्त वेतन के बीच अंतर “अतिरिक्त मूल्य‘‘ कहलाता है। मार्क्स का कहना है कि इस ‘‘अतिरिक्त मूल्य‘‘ को पूंजीपति हड़प जाता है।
शब्दावली
असेम्बली लाइन यह आधुनिक फैक्टरी प्रणाली का एक तत्व है, जिसमें श्रमिक किसी वस्तु के विभिन्न हिस्सों पुणे को “एसेम्बल‘‘ करते अर्थात् जोड़ते हैं अथवा उनपर कुछ काम करते हैं, इसमें प्रत्येक श्रमिक का अपना निश्चित काम होता है। इससे उत्पादन में गति आती है।
प्रतिमानहीनता (anomie) दर्खाइम ने इस शब्द का इस्तेमाल ऐसी स्थिति के लिए किया है, जिसमें व्यक्ति अपने आपको समाज में रचा-बसा हुआ महसूस नहीं करते।
पूरक (complementary) ऐसा काम जिससे सहायता या समर्थन मिलता है। उदाहरण के लिए नर्स की भूमिका डाक्टर की भूमिका की पूरक है।
समाज का “संघर्ष‘‘ मॉडल यह समाज के प्रति एक दृष्टिकोण है, जिसमें व्यवस्था की बजाय उसके तनावों और संधर्षों पर बल दिया जाता है। मार्क्स के अनुसार, उत्पादन के सामाजिक संबंध तनाव एवं संघर्ष का आधार हैं।
समाज का “प्रकार्यात्मक‘‘ मॉडल इस दृष्टिकोण में समाज व्यवस्था तथा इस तथ्य पर बल दिया जाता है कि किस प्रकार विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ और उप-प्रणालियां सक्रिय रहती हैं और सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने में योगदान देती हैं।
विषमरूपी यह ‘‘समरूपी” का विलोम है। इसका अर्थ है विविधता, अलग-अलग प्रकार । उदाहरण के लिए, भारत की जनसंख्या विषमरूपी है। यहां अलग-अलग जातियां, भाषाएं, धर्म, परम्पराएं आदि मौजूद है।
श्रम विभाजन पर मार्क्स के विचार
अगले उप-भागों में हमने निम्नलिखित पक्षों को मार्क्स की दृष्टि से समझने का प्रयास किया है
प) सामाजिक श्रम विभाजन तथा उद्योग अथवा निर्माण में श्रम विभाजन के बीच मार्क्स द्वारा किया गया भेद
पप) औद्योगिक श्रम विभाजन के विभिन्न पक्ष
पपप) श्रम विभाजन से उत्पन्न समस्याओं के लिए मार्क्स के समाधान अर्थात् क्रांति और परिवर्तन।
सारांश
हमने सबसे पहले यह पढ़ा कि “श्रम विभाजन‘‘ शब्द से क्या तात्पर्य है। इसके पश्चात् हमने श्रम विभाजन पर एमिल दर्खाइम के विचारों का अध्ययन किया। उसने ये विचार अपनी पुस्तक डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी में व्यक्त किए। इस पुस्तक में व्यक्त मुख्य बातों को निम्नलिखित शीर्षकों में वर्गीकृत किया गया।
प) श्रम विभाजन के कार्य
पप) श्रम विभाजन के कारण
पपप) असामान्य रूप
इसके पश्चात् श्रम विभाजन पर कार्ल मार्क्स के विचारों की व्याख्या की गई। हमने सामाजिक श्रम विभाजन तथा औद्योगिक श्रम विभाजन के बीच मार्क्स द्वारा बताए गए अंतर को समझा। हमने औद्योगिक श्रम विभाजन के विभिन्न पक्षों का भी अध्ययन किया, जो इस प्रकार है।
प) लाभ पूँजीपति के हिस्से में जाता है।
पप) श्रमिकों का अपने उत्पादों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता।
पपप) श्रमिक वर्ग का अमानवीकरण होता है।
पअ) सभी स्तरों पर अलगाव महसूस किया जाता है।
इसके उपरांत हमने इन समस्याओं के लिए मार्क्स के समाधान अर्थात क्रांति के बारे में पढ़ा जिससे साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना होगी, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सृजनात्मक क्षमता का विकास करने का अवसर मिलेगा।
अंत में हमने निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत दर्खाइम और मार्क्स के विचारों की तुलना की।
प) श्रम विभाजन के कारण
पप) श्रम विभाजन के परिणाम
प) श्रम विभाजन से संबंधित समस्याओं का समाधान
पअ) समाज के बारे में दर्खाइम का “प्रकार्यात्मक” मॉडल और मार्क्स का “संघर्ष‘‘ मॉडल ।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
आरों, रेमों 1970. मेन करंट्स इन सोशियोलॉजिकल थॉट. भाग 1 और 2 (मार्क्स और दर्खाइम से संबंधित भाग देखिए), पेंगुइन बुक्सः लंदन
बॉटोमौर, टॉम (संपा.) 1983. डिक्शनरी ऑफ मार्क्ससिस्ट थॉट. ब्लैकवैलः ऑक्सफोर्ड
गिड्डनस, एन्थनी 1978. दर्खाइम. हार्वेस्टर प्रेसः हैसॉक्स
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 3
प) क) सामाजिक श्रम विभाजन समाज में उपयोगी श्रम के सभी रूपों का बंटवारा करने की एक जटिल प्रक्रिया है। कुछ लोग अनाज पैदा करते हैं तो दूसरे हस्तशिल्प की वस्तुएं बनाते हैं। इसमें वस्तुओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के संचालन के लिए यह अनिवार्य है।
ख) निर्माण में श्रम विभाजन से श्रमिक उत्पादन प्रक्रिया का छोटा सा हिस्सा बन जाते हैं। उत्पादों से श्रमिक का कोई सरोकार नहीं रहता। वह उसे बेच नहीं सकते और प्रायरू उसे खरीद पाने की स्थिति में भी नहीं होते। वे वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया के स्वामी बनने के बजाय गुलाम बन जाते हैं।
पप) क) पप) ख) प) ग) पपप)
बोध प्रश्न 4
प) निम्नलिखित कथनों की क्रम संख्याओं को निम्नलिखित तालिका के अ तथा ब में उपयुक्त शीर्षक के अंतर्गत लिखिए।
1) श्रम विभाजन शोषण पर आधारित है।
2) श्रम विभाजन से सहयोग पैदा होता है।
3) श्रम विभाजन सामाजिक एकता में सहायक है।
4) श्रम विभाजन श्रमिक को सब प्रकार के नियंत्रण से वंचित कर देता है।
5) श्रम विभाजन आधुनिक पूँजीवाद की विशेषता है।
6) औद्योगिक जगत की समस्याएं श्रम विभाजन का असामान्य रूप हैं।
7) पूँजीवाद स्वयं ही औद्योगिक जगत की समस्या है।
8) असमानता पर आधारित श्रम विभाजन समाज में समस्याएँ पैदा करता है।
अ ब
दर्खाइम का दृष्टिकोण
……………………………………………….
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
मार्क्स का दृष्टिकोण
……………………………………………….
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
………………………………………………..
पप) श्रम विभाजन विषय पर विचार के संदर्भ में दर्खाइम के ‘‘प्रकार्यात्मक मॉडल‘‘ और मार्क्स के “संघर्ष मॉडल” की तुलना कीजिए। अपना उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए।
बोध प्रश्न 4
प) दर्खाइम का दृष्टिकोण मार्क्स का दृष्टिकोण
(2) (1)
(3) (4)
(6) (5)
(8) (7)
पप) एमिल दर्खाइम के समाज के “प्रकार्यात्मकष् मॉडल से हमारा अभिप्राय उस विधि से है, जिसमें उसने सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने में सामाजिक संस्थाओं के योगदान का अध्ययन किया। इस मॉडल के अनुरूप उसने श्रम विभाजन का केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक प्रक्रिया के रूप में अध्ययन किया। उसने यह दिखाने का भी प्रयास किया कि किस तरह यह प्रक्रिया सामाजिक सामंजस्य में योग देती है।
दूसरी ओर, कार्ल मार्क्स ने समाज का अध्ययन विरोध, संघर्ष और परिवर्तन के संदर्भ में किया। मानव इतिहास में एक समूह दूसरे समूह के शोषण का शिकार होता रहा है। श्रम विभाजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए पूँजीपति श्रमिकों का शोषण करते हैं। यह दृष्टिकोण मार्क्स के “संघर्ष‘‘ मॉडल को व्यक्त करता है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics