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संश्लेषित रेशे किसे कहते हैं | संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक कक्षा 8 | प्रकार गुण , synthetic fibers in hindi

(synthetic fibers in hindi class 8th) संश्लेषित रेशे किसे कहते हैं | संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक कक्षा 8 | प्रकार गुण ? कृत्रिम या मानव निर्मित रेशें की परिभाषा क्या है ?

मानव सेवा में रसायन


 प्लास्टिकः प्लास्टिक उच्च अणुभार वाले बहुलक होते हैं। बहुत-से असंतृप्त हाइड्रोकार्बनय जैसे- एथिलीन, प्रोपिलीन आदि बहुलीकरण की क्रिया के पश्चात् जो उच्च बहुलक बनाते हैं, उसे प्लास्टिक कहा जाता है। प्लास्टिक आधुनिक जीवन का उपयोगी पदार्थ है।

 प्लास्टिक दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक प्लास्टिक एवं  कृत्रिम प्लास्टिक।

(प)  प्राकृतिक प्लास्टिक गर्म करने पर मुलायम तथा ठण्डा करने पर पर कठोर हो जाती है। उदाहरण- टैफ्लॉन।

(पप)  कृत्रिम प्लास्टिक रसायनिक विधि से तैयार की जाती है। उदाहरण- पॉलिथीन, टैफ्लॉन, बैकलाइट आदि।

 प्लास्टिक उत्पाद की गुणवत्ताय, जैसे- श्यानता, लचीलापन आदि को बढ़ाने के लिए जिन पदार्थों को मिलाया जाता है, उन्हें सुघट्यताकारी या प्लास्टिसाइजर कहते हैं।

प्लास्टिकों के कुछ उदाहरण

 पॉलिथीनः पॉलिथीन, एथिलीन के उच्च ताप व दाब पर बहुलीकरण के फलस्वरूप प्राप्त किया जाता है।

 पॉलिथीन पर अम्ल, क्षार आदि का प्रभाव नहीं पड़ता। इसका उपयोग खिलौने, बोतल, बाल्टी, पाइप व पैकिंग की पन्नी आदि बनाने में किया जाता है।

 पॉलिवाइनिल क्लोराइडः यह वाइनिल क्लोराइड के बहुलीकरण से प्राप्त होती है। इसका उपयोग पतली चादरें, बरसाती, सीट कवर, चादरें, फर्श, पर्दै आदि बनाने में किया जाता है।

 पॉलिस्टाइरीनः स्टाइरीन के बहुत-से अणु आपस में जुड़कर बहुलक पॉलिस्टाइरीन बनाते हैं। इसका उपयोग बोतलों की टोपियों, गर्म पदार्थ पीने के कपों, खिलौनों, कंघों तथा संचालक सेलों के निर्माण में होता है।

 टेफ्लानः यह टेट्राफ्लुओरोएथिलीन के बहुलीकरण द्वारा बनाया जाता है। यह ताप, अम्ल एवं क्षार की क्रिया के प्रति प्रतिरोधी है। यह विद्युत धारा का कुचालक है। इसका उपयोग ताप एवं रासायनिक प्रतिरोधी पदार्थ बनाने में, बर्तनों एवं अन्य सामानों को बिना चिपकने वाला बनाने के लिए पम्प, पैकिंग आदि में किया जाता है।

 बैकेलाइटः यह फीनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड को सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में गर्म करके बनाया जाता है। इसका उपयोग रेडियो, टी. वी. के केस, गीयर, प्लाई की लकड़ी जोड़ने में करते हैं। यह बिजली के सामान, रेडियो व टेलीविजन के कैबिनेट, कंघे आदि बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।

रबड़

 प्राकृतिक रबड़ भूमध्यरेखीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले एक प्रकार के वृक्ष के दूध से प्राप्त होता है। यह दूध लेटेक्स कहलाता है। यह वस्तुतः आइसोप्रीन का बहुलक है। पॉलिआइसोप्रीन का समपक्ष रूप प्राकृतिक रबड़ तथा विपक्ष रूप गट्टा-परचा कहलाता है।

 प्राकृतिक रबड़ में तिर्यक बन्धों का अभाव होता है, अतः इसमें प्रत्यास्थता का गुण कम होता है। इसमें प्रत्यास्थता का गुण बढ़ाने के लिए इसकी क्रिया गन्धक से कराते हैं, जिससे रबड़ में के तिर्यक बन्ध बन जाते हैं। इससे रबड़ अधिक कठोर, तापरोधी एवं उपयोगी हो जाती है। यह प्रक्रिया वल्कनीकरण कहलाती है।

 कृत्रिम स्रोतों से प्राप्त रबड़ को संश्लेषित रबड़ कहा जाता है। इसके तहत ब्यूना- ब्यूना-, ड्यूप्रीन रबड़, निओपीन रबड़, थायोकॉल रबड़, पॉलिस्टाइरीन आदि आते हैं।

 पॉलिस्टाइरीन का उपयोग बिजली के तारों में रोधी के रूप में किया जाता है। ड्यूप्रीन ऊष्मा एवं तैलीय पदार्थों के प्रभाव का प्रतिरोधी होता है, अतः इससे मीटर टायर बनाये जाते हैं।

संश्लेषित रेशे

 वे शृंखला-युक्त ठोस जिनकी लम्बाई, चैड़ाई की अपेक्षा सैकड़ों या हजारों गुना अधिक हो, रेशे कहलाते हैं। कृत्रिम तरीके से तैयार किये गये रेशों को संश्लेषित रेशा कहा जाता है।

 वस्त्र उद्योगों में वस्त्रों के अधिक निर्माण के लिए कृत्रिम रेशों का निर्माण किया जाता है। औद्योगिक स्तर पर सर्वप्रथम कृत्रिम रेशों के निर्माण के लिए 1885 ई. में फ्रांस में सेलुलोस नाइट्रेट का प्रयोग किया गया था।

 नायलॉन नायलॉन शब्द न्यूयॉर्क शहर के तथा लंदन के को मिलाकर बनाया गया है। नायलॉन-66 ऐडिपिक अम्ल तथा हेक्सा मेथिलीन एमाइड समूह प्रत्येक इकाई पर होता है। नायलॉन का उपयोग मछली पकड़ने के जाल में, पैराशूट के कपड़े में, टॉयर, दाँत ब्रश, पर्वतारोहण के लिए रस्सी आदि बनाने में होता है।

 विस्कॉस रेयॉनः इसका निर्माण प्राकृतिक कपास की कार्बन डाइसल्फाइड तथा कॉस्टिक सोडे की क्रिया द्वारा पर प्रवाहित करके किया जाता है।

 ऐसीटेट रेयॉनः इसका निर्माण प्राकृतिक कपास पर ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड की क्रिया द्वारा किया जाता है।

 रेयॉनः इसे सेलुलोस से प्राप्त किया जाता है। इसे नवीनीकृत रेशम भी कहते हैं। इसका उपयोग कपड़ा, कालीन, टायर तथा शल्य चिकित्सा सम्बन्धी पट्टियाँ बनाने में किया जाता है।

 रेक्सिनः यह कृत्रिम चमड़ा है। इसका निर्माण सेलुलोस या वनस्पति से होता है। अच्छा रेक्सिन मोटे कैनवास पर पाइरोक्सिलिन का लेप देकर बनाया जाता है।

 टेरिलीनः यह एथिलीन ग्लाइकॉल तथा टेरीथेलिक अम्ल की क्रिया से बनाया जाता है। यह एक पॉलिएस्टर है। यह डेक्रॉन के नाम से भी जाना जाता है। इसके रेशे बहुत कम पानी सोखते हैं, अतः जल्दी सूख जाते हैं। इसका उपयोग वस्त्र निर्माण में किया जाता है।

 ऑरलानः  इसे वाइनिल सायनाइड (ऐक्रिलोनाइटाइल) के बहुलीकरण से बनाया जाता है। इसके धागों से सिल्क एवं ऊन जैसे कपड़े बनाए जाते हैं।

 कार्बन फाइबरः ये कार्बन परमाणुओं की लम्बी श्रृंखला से बने होते हैं। इनका निर्माण नवीनीकृत या संश्लिष्ट रेशे से किया जाता है। इसके लिए इन रेशों को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गर्म किया जाता है, जिससे रेशे अपघटित होकर कार्बन फाइबर उत्पन्न करते हैं। ये अत्यन्त सामर्थ्यशाली होते हैं तथा इनका संरक्षण नहीं होता है। इसका प्रयोग अन्तरिक्ष यान तथा खेलकूद की सामग्री बनाने में होता है।

 विस्फोटकः वे पदार्थ जो ताप, घर्षण या उचित प्रहार के फलस्वरूप अपघटित होकर प्रकाश, ध्वनि तथा अत्यन्त तेजी से फैलने वाली गैसों को उत्पन्न कर तीव्र विस्फोट उत्पन्न करते हैं, विस्फोटक कहलाते हैं। एक अच्छे विस्फोटक पदार्थ में निम्न गुण होते हैं- (प) विस्फोटक पदार्थ वाष्पशील नहीं होना चाहिए। (पप) यह आर्द्रताग्राही नहीं होना चाहिए। (पपप) यह सस्ता तथा स्थायी होना चाहिए। (पअ) यह तीव्र विघटित होना चाहिए।

 दाइनाइट्रो टॉलूईनः इसे टॉलूईन पर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल व सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह हल्का पीला क्रिस्टलीय ठोस है। यह अत्यन्त उच्च कोटि का विस्फोट है। का उपयोग बम तथा तारपिंडों को बनाने में करते हैं। इसका उपयोग अमोनियम नाइट्रेट के साथ मिलाकर ऐमेटॉल विस्फोटक बनाने में करते हैं।

 ट्राइनाइट्रो ग्लिसरीनः यह एक रंगहीन तैलीय द्रव है। इसे नोबल का तेल भी कहा जाता है। यह ग्लिसरीन पर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल एवं सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसकी सहायता से डायनामाइट जैसे महत्त्वपूर्ण विस्फोटक बनाए जाते हैं। यह स्वयं भी एक महत्त्वपूर्ण विस्फोटक है।

 ट्राइनाइट्रो फीनॉलः इसे पिक्रिक अम्ल भी कहा जाता है। यह फीनॉल व सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है। यह हल्का पीला, क्रिस्टलीय ठोस होता है। यह भी एक प्रचण्ड विस्फोटक है।

 डायनामाइटः इसका आविष्कार अल्फ्रेड नोबेल ने 1863 ई. में किया था। इसे अक्रिय पदार्थय जैसे- लकड़ी के बुरादे या कीजेलगूर में नाइट्रोग्लिसरीन को अवशोषित कराकर प्राप्त किया जाता है। इसका प्रयोग कुएँ खोदने, सड़क बनाने, बाँध बनाने, सुरंग बनाने, चट्टानें तोड़ने आदि के लिए होता है। आधुनिक डायनामाइट में नाइट्रोग्लिसरीन के स्थान पर सोडियम नाइट्रेट का प्रयोग किया जाता है।

 ब्लास्टिंग जिलेटिनः यह 7 प्रतिशत नाइट्रोसेलुलोस तथा 93 प्रतिशत नाइट्रोग्लिसरीन का मिश्रण है। इसका प्रयोग खान खोदने व सुरंग बनाने में किया जाता है।

 आर डी एक्सः इसका रासायनिक नाम साइक्लोनाइट या साइक्लो ट्राइमेथिलीन ट्राइनाइट्रेमीन है। इसमें प्लास्टिक पदार्थय जैसे- पॉलीब्यूटाइन, एक्रिलिक अम्ल या पॉलीयूरेथेन को मिलाकर ‘प्लास्टिक बाण्डेड विस्फोट‘ बनाया जाता है। यह एक प्रचण्ड विस्फोटक है। इसके तापमान व आग फैलाने की गति को बढ़ाने के लिए इसमें एल्युमिनियम चूर्ण को मिलाया जाता है। इसकी विस्फोटक ऊष्मा 1510 किलोकैलोरी प्रति किलोग्राम होती है।

 इस विस्फोटक को जर्मनी में ‘हेक्सोजन‘, इटली में ‘टी-4‘ तथा सयुंक्त राज्य अमेरिका में ‘साइक्लोनाइट‘ के नाम से जाना जाता है। इसके एक रूप को ‘सी-4‘ भी कहते हैं।

 गन कॉटनः रूई या लकड़ीे रेशों पर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा नाइट्रोसेलूलोस (गन-कॉटन) प्राप्त होता है, जो एक महत्त्वपूर्ण विस्फोटक पदार्थ है।