मूल अवतरण किसे कहते है ? मूल अवतरण की परिभाषा क्या है , उदाहरण सहित लिखिए

मूल अवतरण की परिभाषा क्या है , उदाहरण सहित लिखिए मूल अवतरण किसे कहते है ?

स्वतंत्र विषयमूलक संक्षेपण-

इसके अंतर्गत किसी लेखय वक्तव्य, भाषण, पत्र आदि स्वतंत्र विषयों का संक्षेपण किया जाता है। यह पत्र व्यवहार के संक्षेपण से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए नीचे एक स्वतंत्र विषयमूलक संक्षेपण प्रस्तुत किया जा रहा है-

मूल अवतरण

‘‘चाहे विद्यार्थियों से किसी अंश का अर्थ करने के लिए कहा जाय, चाहे व्याख्या करने के लिए, चाहे सारांश लिखने के लिए, चाहे स्पष्टीकरण करने के लिए और चाहे इसी प्रकार के कुछ और कार्यो के लिएय परन्तु उन सबका उत्तर बिल्कुल एक-सा होता है । वे अर्थ, आशय, व्याख्या, सारांश, . स्पष्टीकरण सरीखे शब्दों में कोई अन्तर ही नहीं समझते-सबको एक ही लाठी से हाँकते चलते हैं। मैं क्षमायाचनापूर्वक और बहुत ही नम्र भाव से इतना और निवेदन कर देना चाहता हूँ कि भाषा की इस दुर्दशा के लिए बेचारे विद्यार्थी ही उत्तरदायी नहीं हैं। मैं अच्छे-अच्छे लेखकों और वक्ताओं की भाषा में ही नहींय हिन्दी की उच्च कक्षाओं के अध्यापकों तथा प्राध्यापकों की भाषा में भी प्रायः नित्य ऐसी त्रुटियाँ और दोष देखता हूँ जो यह सिद्ध करते हैं कि हिन्दी की प्रकृति से परिचित होना तो दूर रहा, वे हिन्दी व्याकरण के साधारण नियमों तक से या तो परिचित ही नहीं होते या अपने अज्ञान, अभ्यास आदि के कारण बहुत बुरी तरह से उनकी उपेक्षा करते हैं। और तो और, अनेक अवसरों पर उच्चारण भी प्रायः बहुत अशुद्ध होते हैं । हमारे विश्वविद्यालयों में ‘डॉक्टर‘ गढ़ने की होड़-सी लगी है, और हिन्दी की ऐसी शिक्षा से पारंगत होने वाले श्डॉक्टरोंश् में से ही विश्वविद्यालयों के लिए अध्यापक तथा प्राध्यापक चुने जाते हैं।

शीर्षक-भाषा के शुद्ध प्रयोग की आवश्यकताश् संक्षेपण-

हिन्दी के अधिकाधिक छात्र ‘अर्थ‘, ‘व्याख्या‘, ‘सारांश‘, ‘स्पष्टीकरण‘ जैसे परस्पर भिन्नार्थक शब्दों में कोई भेद नहीं करते। प्रतिष्ठित लेखक, वक्ता और उच्च कक्षाओं के अध्यापक भी हिन्दी की वर्तनी एवं उच्चारण की अशुद्धियाँ करते हैं । डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त अध्यापक स्वयं भी भाषा का शुद्ध प्रयोग नहीं जानते । अतः हिन्दी की दुर्दशा के लिए अकेले छात्र ही नहीं, अपितु अयोग्य शिक्षक भी उत्तरदायी हैं।

संक्षेपण के अभ्यास के लिए कुछ अवतरण-

1. अंग्रेजी पढ़ना खराब नहीं, पर अंग्रेजी पढ़कर अंग्रेज हो जाना खराब है। अंग्रेजी पढ़कर अपने देश को, अपनी भाषा को, अपनी संस्कृति को भूल जाना खराब है। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आज के अधिकतर अंग्रेजी पढ़े-लिखे सज्जन अपने देश की प्रत्येक चीज को असम्मान की दृष्टि से देखते हैं, उसकी आलोचना करते हैं और उसे अपनाने में अपनी मानहानि समझते हैं । पर्व को ही लीजिए। पढ़े-लिखे लोग कहते हैं यह स्त्रियों का ढोंग है, यह पंडितों की पोंगापंथी है। वे कहते हैं, ये फिजूलखर्ची के साधन हैं।

2. कवि का काम है कि वह प्रकृति-विकास को खूब ध्यान से देखे । प्रकृति की लीला का कोई ओर-छोरं नहीं, वह अनन्त है। प्रकृति अद्भुत खेल खेला करती है । एक छोटे से फूल में वह अजीब कौशल दिखलाती है । वे साधारण आदमियों के ध्यान में नहीं आते। ये उनको समझ नहीं सकते, पर कवि अपनी सूक्ष्म दृष्टि से प्रकृति के कौशल अच्छी तरह देख लेता है, उनका वर्णन भी वह करता है । उनसे नाना प्रकार की शिक्षाएँ भी वह ग्रहण करता और संसार को लाभ भी पहुंचाता है । जिस कवि में प्राकृतिक दृष्टि और प्रकृति के कौशल देखने और समझने की जितनी ही अधिक शक्ति होती है, वह उतना ही महान् कवि होता है ।