भारत में कुटीर उद्योग के पतन के कारण , अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय व्यापार के पतन का क्या कारण था

अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय व्यापार के पतन का क्या कारण था ,  भारत में कुटीर उद्योग के पतन के कारण पर निबंध लघु कुटीर उद्योग के हास पर विभिन्न इतिहासकारों के मतों की समीक्षा करें ?

प्रश्न : 18वीं 19वीं शताब्दी में भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य के पतन के कारणों का परीक्षण करते हुए, उसके सामाजिक प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर: भारत में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था और नीतियों का इतना घातक प्रभाव पड़ा कि भारतीय उद्योग अपना आकार एवं स्वरूप् भार खोने लगे। इनके कारण भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। कृषि की अवनति हुई एवं उद्योग-धन्धों का विनाश हुआ। कुटरी उद्योगों के स्थान पर अब मशीनों की तरफ उन्मुखता बढ़ी और आधुनिक उद्योगों का विकास प्रारम्भ हुआ।
प्रारम्भ में भारतीय वस्त्रों की माँग विदेशी बाजार में अधिक थी जिसके कारण अंग्रेज भारतीय वस्त्रों को बेचकर अत्यधिक लाभ अर्जित करते थे तथा उस लाभ से अन्य वस्तुओं को खरीदकर भारतीय बाजारों में लाभ अर्जित करते थे। यही कारण था कि इन्होंने प्रारम्भ में विदेशों में भारतीय वस्तुओं के लिए बाजार तैयार किया एवं साथ-साथ देशी उद्योगों को भी प्रश्रय दिया। इसमें ‘ददनी‘ प्रथा का व्यापक प्रयोग किया गया। ब्रिटेन में भारतीय वस्त्रों की लोकप्रियता ने अंग्रेजी वस्त्र-उद्योग को संकटग्रस्त कर दिया। इस स्थिति से उबरने के लिए ब्रिटिश वस्त्र-निर्माताओं ने सरकार पर अंग्रेजी वस्त्र-उद्योग को संरक्षण देने के लिए दबाव डाला। सरकार के निर्णयानुसार, ब्रिटेन में भारतीय वस्त्रों के प्रयोग एवं व्यापार पर रोक लगा दी तथा भारतीय वस्त्रों के आयात शुल्क में वृद्धि की। इस प्रक्रिया से हस्तनिर्मित वस्त्र मशीनी वस्त्रों की तुलना में महंगे होने लगे और उनकी मांग घटने लगी।
नवीन व्यवस्था एवं आर्थिक नीति के द्वारा निर्मित माल के स्थान पर कम्पनी ने कच्चा माल के आयात पर बल देना शुरू कर दिया। बंगाल पर आधिपत्य के बाद यह कार्य सुगम हो गया। इस हेतु कुटीर उद्योगों के विनाश की रूपरेखा तैयार की गई और कम्पनी के अधिकारियों ने बंगाल के बुनकरों को लागत से भी कम कीमत पर अपना माल कम्पनी को बेचने को बाध्य कर दिया। वस्त्र उद्योग में संलग्न दस्तकारों एवं श्रमिकों को कम मजदूरी पर कम्पनी के अन्तर्गत काम करने को विवश किया गया। अब वे देशी उद्योगपतियों एवं व्यापारियों के यहां कार्य नहीं कर सकते थे। उन पर कठोर प्रतिबंध लगा दिये गए। कपास के व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार हो जाने से बुनकरों को कच्चे माल की अनुपलब्धता हो गई, अतः व्यवसाय से पलायन प्रारम्भ हो गया।
कुटरी उद्योगों को प्रभावित करने के लिए कम्पनी के कर्मचारियों ने निजी व्यापार द्वारा इंग्लैण्ड में निर्मित वस्त्रों को भारत में बेचना प्रारम्भ किया। चूँकि इनकी कीमत हस्तनिर्मित वस्त्रों से कम थी इसलिए देशी वस्त्रों की मांग घटती गई। इन सभी का देशी वस्त्र-उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा और 19वीं शताब्दी तक वे नष्ट हो गई।
1813 ई. के चार्टर द्वारा भी भारतीय उद्योग को हानि पहुँची। इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया और मुक्त व्यापार की नीति अपनाई गई। फलस्वरूप, अब ब्रिटेन का निर्मित माल निःशुल्क या नाममात्र के सीमा-शुल्क पर भारत आने लगा। जो भारतीय माल की तुलना में सस्ता था अतः देशी वस्तुओं की माँग घटी और देशी उद्योग मन्दी का शिकार हो गया।
देशी उद्योग के विनाश में रेल के विकास ने भी योगदान दिया। रेल की सहायता से ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं की सुगमता से देश के प्रत्येक भाग में पहुँचाया जाने लगा। इनका प्रभाव देशी उद्योगों पर पड़ा। सस्ती वस्तुओं के कारण लगभग सभी देशी उद्योग, वस्त्र, शीशा, कागज, चमड़ा, रंगाई आदि पिछड़ने लगे और अन्ततः ये पतन की ओर अग्रसर हुए।
अन्य कारणों में, अनेक देशी रियासतों के विलय हो जाने से दस्तकारों को संरक्षण देने वाला और उनके द्वारा तैयार किये गए माल का एक बड़ा ग्राहक वर्ग स्वतः ही समाप्त हो गया। इस संरक्षण के अभाव में देशी उद्योग अपना अस्तिव बनाए नहीं रख सके। एक अन्य कारण जिसने देशी उद्योगों का पतन अवश्यम्भावी बना दिया वह था बड़ी मात्रा में इंग्लैण्ड को कच्चे माल का निर्यात करना। फलस्वरूप, एक तरफ तो भारत में इनका मूल्य बढ़ गया और दूसरी तरफ दस्तकारों और शिल्पियों को अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल मिलना कठिन हो गया। फलतः देशी औद्योगिक केन्द्र नष्ट होने लगे और दस्तकारों और शिल्पियों को बाध्य होकर कृषि पर अपना ध्यान लगाना पड़ा।
भारतीय उद्योगों के पतन के कारण निश्चित रूप से सामाजिक संरचना प्रभावित हुई क्योंकि अब समाज स्पष्ट रूप से तीन वर्गों उच्च मध्य एवं निम्न में विभाजित हो गया। उच्च वर्ग के अधीन जमींदारों एवं रियासतदारों का समूह था जिन्ह अंग्रेजों से लाभान्वित होने के पश्चात् स्थायी भूखण्ड प्राप्त हो चुके थे। मध्यम वर्ग के अन्तर्गत तेजी से उभरता साहूकार एवं महाजन वर्ग था जो ग्रामीण संरचना को प्रभावित करने में सक्षम था, तथा निम्न वर्ग के अन्तर्गत कृषक एवं मजदूरी का समह था। इस प्रकार इनके सामाजिक स्तर के बदलाव ने विभिन्न सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक प्रभाव भी डाले। आथिक अक्षमता ने निम्न वर्ग को शैक्षणिक रूप से कमजोर कर दिया अतः वे लगातार शोषण का शिकार होते गए तथा आवश्यकता पड़ने पर पददलित अवस्था में इनमें धर्मान्तरण जैसी प्रक्रिया में भी तीव्रता आई।
अतः उद्योगों के पतन ने निश्चित ही एक ऐसी सामाजिक संरचना को निर्मित कर दिया जो आश्रित होते हुए भी निराश्रित ही रही।
महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: बाजीराव द्वितीय
उत्तर: बाजीराव द्वितीय रघुनाथ राव का पुत्र था। यह अंतिम पेशवा था। बाजीराव द्वितीय ने नाना फडनवीश को अपना प्रधानमंत्री बनाया। लाई हेस्टिंग (ब्रिटिश की सर्वोच्चता स्थापित की) ने 1818 में पेशवा पद समाप्त कर, बाजीराव को आठ लाख रुपए वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के पास बिठूर भेज दिया।
प्रश्न: चार्ल्स मेटकाफ
उत्तर: चार्ल्स मेटकाफ (1835-36) के समय तय हुआ कि यूरोपीयन लोगों की तरह हिन्दुस्तानी भी न्याय पाने में बराबर का दर्जा रखते हैं। इसे काला कानून भी कहते हैं। इसने प्रेस से नियंत्रण हुआ दिया, इसलिए इसे ‘‘समाचार पत्रों का मुक्तिदाता‘‘ कहते हैं।
प्रश्न: थियोडोर बैक
उत्तर: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रधानाचार्य, जिन्होंने भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता को जन्म दिया। मुस्लिम लीग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न: तात्या टोपे
उत्तर: महाराष्ट्र के इस वीर योद्धा ने 1857 के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कानपुर के नाना साहब पेशवा की सेना का प्रतिनिधित्व किया था, जिन्हें 1859 में शिवपुरी में फांसी दे दी गयी।
प्रश्न: सी.एफ. एन्ड्रयूज
उत्तर: ‘दीनबंधु‘ के नाम से प्रसिद्ध एंड्रयूज एक अंग्रेज थे, जो भारत में आकर बस गये थे। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण कार्य किये तथा भारतीयों की सहायतार्थ- दक्षिण अफ्रीका गये।
प्रश्न: बिरसा मुंडा
उत्तर: बिरसा मुंडा, मुंडा आंदोलन (1895-1900) के प्रवर्तक थे। जमींदारों तथा साहूकारों के शोषण के खिलाफ तथा अंग्रेजी आर्थिक नीति के विरुद्ध छोटा नागपुर के मुंडा आदिवासियों ने विद्रोह किया और इसी दौरान बिरसा ने आन्दोलन को ऊर्जा प्रदान की।
प्रश्न: गोविंद गुरू
उत्तर: गोविन्द गुरू ने सम्प सभा का गठन करके अंग्रेजों तथा बांसवाड़ा व दुर्गापुर के रजवाड़ों से मुक्ति हेतु अभियान चलाया। दिसंबर, 1908 को आदिवासियों, दलितों और अन्य कुछ समूहों ने गोविन्द गुरू के नेतृत्व में उपर्युक्त शक्तियों के विरुद्ध स्वतंत्रता का झंडा बुलंद किया।
प्रश्न: बंकिमचंद्र चटर्जी
उत्तर: बंकिमचंद्र चटर्जी 19वीं शताब्दी के बंगाल के प्रकांड विद्वान, महान कवि, विख्यात उपन्यासकार, साहित्यकार एवं राष्ट्रवादी थे। उन्होंने देशभक्ति के विचार को धर्म के आवश्यक अंग के रूप में प्रस्तुत किया। 1865 में अपना उपन्यास ‘दुर्गेश नंदिनी‘ तथा ‘‘आनन्दमठ‘‘ लिखा। उन्होंने अपना प्रसिद्ध गीत ‘वंदे-मातरम‘ 1874 में लिखा था जिसे बाद में अपने उपन्यास ‘आनंद मठ‘ में शामिल कर दिया।
प्रश्न: अमृता प्रीतम
उत्तर: पंजाबी भाषा की प्रमख कवयित्री और कथाकार, साहित्यिक उपलब्धियों के लिए साहित्य अकादमी, पदमश्री और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। विभाजन के बाद दिल्ली में निवास। जीवन के अंतिम समय तक पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका ‘नागमणि‘ का संपादन।
प्रश्न: रवीन्द्र नाथ टैगोर
उत्तर: विश्व के महानतम कवि, लघु कहानियां, उपन्यास आदि के लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941 ई.) 1913 ई. में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। बंगाल के शांतिनिकेतन (बोलपूर) में अंतर्राष्ट्रीय शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना की। जलियांवाला बाग दुःखद हत्याकांड के बाद अपनी ‘सर‘ की उपाधि लौटा दी थी। महात्मा गांधी ने इन्हें श्गुरूदेवश् कह कर संबोधित किया था।
प्रश्न: अवनीन्द्रनाथ टैगार
उत्तर: अवनीन्द्रनाथ टैगार (1871-1951) प्रमुख कलाकार तथा इण्डियन सोसाईटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट के निर्माता थे। भारतीय कला में पहले स्वदेशी मूल्यों को प्रतिपादित किया। इन्होंने आधुनिक भारतीय चित्रकला का विकास किया।
प्रश्न: नन्दलाल बोस
उत्तर: नन्दलाल बोस (1882-1966) अवनीन्द्रनाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ग्रहण की तथा उनके द्वारा स्थापित इण्डियन स्कल ऑफ आर्ट में अध्यापन किया। 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन में कलाभवन के प्रधानाअध्यापक रहे। इन्होंने भारतीय कला को नई ऊँचाईयों पर पहुंचाया।
प्रश्न: शांति निकेतन
उत्तर: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की जो 1921 में विश्व भारतीय विद्यालय (राष्ट्रीय विश्वविद्यालय) के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस संस्था ने राष्ट्रीय शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अभी भी निभा रही है।
प्रश्न: सेरमपुर की त्रयी
उत्तर: बंगाल की सेरमपुर बस्ती में डॉ. केरे, वार्ड तथा मार्शमैन ईसाई मिशनरियों द्वारा शिक्षा शुरू की गई, इन्हें ‘बंगाल की त्रयी‘ या ‘सेरमपुर त्रयी‘ के नाम से जाना जाता है। जो 1799 में अस्तित्व में आई।
प्रश्न: जे.ई.डी. बेथून
उत्तर: भारतीय बालिकाओं के लिए 1849 में जे.ई.डी.बेथून द्वारा कलकत्ता में श्बेथून महिला कालेजश् की स्थापना की। इससे भारतीय महिला शिक्षा को प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न: लार्ड एल्गिन प्रथम
उत्तर: लार्ड एल्गिन प्रथम (1862-63 ई.). ‘डरहम रिपोर्ट‘ (कनाडा पर स्वशासन रिपोर्ट) के लेखक लार्ड डरहम के दामाद थे। धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में इनकी पद पर रहते हुए 1863 में मृत्यु हो गई। इसके कार्यकाल में वहाबियों का विद्रोह हुआ।
प्रश्न: लार्ड नार्थब्रुक
उत्तर: 1873-74 ई. में बिहार व बंगाल के कुछ भाग में भीषण अकाल व बर्मा से चावल का आयात किया गया। 1872 ई. में पंजाब में कूका विद्रोह हुआ। बड़ौदा के गायकवाड़ को गद्दी से हुआया गया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डिजरैली द्वारा अफगान सरदार शेर अली से सन्धि वार्ता हेतु जोर दिये जाने के कारण नार्थ ब्रूक ने 1876 में त्यागपत्र दे दिया।
प्रश्न: लार्ड एल्गिन द्वितीय
उत्तर: एग्गिन द्वितीय के समय 1896-97 का महान् दृर्भिक्ष एवं प्लेग महामारी फैल। जेम्स लायल की अध्यक्षता में अकाल आयोग का 1897 में गठन किया गया।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सर जॉन लारेन्स द्वारा अफगानिस्तान के साथ कौनसी नीति अपनाई गई?
उत्तर: इसके समय में भूटान के साथ 1865 में युद्ध हुआ। अफगानिस्तान के मामले में ‘कुशल अकर्मण्यता‘ या ‘शानदार निष्क्रियता‘ (Policy of mastrly inacitvity) की नीति जो कि ‘स्पष्ट अहस्तक्षेप की नीति‘ थी। वैसे इस नीति की शुरुआत लार्ड एलनबरो को काल से मानी जाती है।
उडीसा में 1866 में अकाल व भारत का पहला अकाल आयोग जान कैम्पबेल की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया। 1868-69 में राजपूताना व बुन्देलखण्ड में भयानक अकाल पड़ा। बड़ी मात्रा में रेलवे लाईनों व नहरों का निर्माण हुआ। 1868 में पंजाब काश्तकारी अधिनियम व अवध काश्तकारी अधिनियम पारित हुए।
प्रश्न: लार्ड मेयो
उत्तर:
ऽ महारानी विक्टोरिया के द्वितीय पुत्र ड्यूक ऑफ एडिनबरा ने 1869 में भारत की यात्रा की।
ऽ 1810 के मेयो प्रस्ताव (Moyo’s resolution of 1870) द्वारा भारत में स्थानीय स्वशासन व वित्तीय विकेन्द्रीकरण की शुरुआत।
ऽ 1872 में भारत में पहली जनगणना की शुरुआत हुई।
ऽ भारतीय राजाओं के बालकों की शिक्षा के लिए अजमेर में 1744 में मेयो कॉलेज की स्थापना, वैसे मेयो कॉलेज की विधिवत शुरुआत 1875 में हुई।
ऽ कार्यकाल के दौरान ही अंडमान द्वीप में 1872 में एक धर्मान्ध अफगान पठान द्वारा छुरा घोंप कर हत्या।
प्रश्न: लार्ड डफरिन
उत्तर:
ऽ भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना, 1885 में हुई।
ऽ तृतीय आंग्ल बर्मा युद्ध, 1885 में और बर्मा का अन्तिम रूप से पूर्ण अधिग्रहण 1886 में कर दिया गया।
ऽ डफरिन के समय बंगाल, अवध व पंजाब में क्रमशः 1885, 1886 व 1887 में टेनेंसी एक्ट पारित किये गये।
ऽ 1886 में डफरिन ने सिंधिया को ग्वालियर पुनः सौंप दिया।
ऽ डफरिन के समय ‘इंपीरियल सर्विस कोर‘ की स्थापना हुई।
ऽ 1886 में एचिनसन के नेतृत्व में ‘लोकसेवा आयोग की स्थापना‘ की।
प्रश्न: लार्ड लैंस डाउन
उत्तर:
ऽ इसके समय में 1891 में दूसरा फैक्ट्री एक्ट तथा 1892 का भारतीय परिषद अधिनियम पारित हुआ।
ऽ इसके समय में भारत व अफगानिस्तान के बीच सर मोर्टीमर ड्यूरेंड ने सीमा रेखा तय की जो ड्यूरेंड रेखा कही जाती है। 1891 में मणिपुर विद्रोह हुआ।
ऽ भारतीय रियासतों की सेनाओं को संगठित किया गया व उन्हें ‘साम्राज्य सेवा सेना‘ (Imperial Service Army) का नाम दिया गया।
ऽ 1891 में ‘सम्मति आयु अधिनियम‘ (Age of consent act) पारित हुआ जिसके द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष तय की गई।

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