प्रॉन जोड़ी तृतीय जोड़ी जम्भिका पाद देहभित्ति (Body Wall) Palaemon Third pair of Maxillaepedes in hindi

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जोड़ी जम्भिका पाद

(iii) तृतीय जोड़ी जम्भिका पाद (Third pair of Maxillaepedes)

ये लम्बे तथा देखने में टांग समान उपांग दिखाई देते हैं। ये भी द्वितीय जोड़ी जम्भिका पादों के समान खण्डों के ही बने होते हैं। इनमें कक्षांग के बाहरी किनारे पर एक अधिपादांश (epipodite) जुड़ा रहता है। आधार के बाहरी किनारे पर एक लम्बा अखण्डित बहिदांश पाया जाता है जो शूकों से ढका रहता है। आधार पर ही तीन खण्डों वाला अन्त:पादांश पाया जाता है। इन खण्डों के नाम निम्न प्रकार है-निकटवर्ती खण्ड, श्रोणिखण्ड (ischium) तथा ऊरु खण्ड (merus) के संगलित  स्वरूप को निरूपित करता है। मध्यवती खण्ड मणिबन्ध (carpus) होता है तथा दरस्थ खण्ड पर्व खण्ड (propodus) तथा अंगुलिखण्ड (dactylus) के संगलित स्वरूप को निरूपित करता है।

(B) चलन टांगें (Walking legs) : प्रॉन में पांच जोड़ी चलन टांगें पायी जाती है। इनमें बहिदांश (exopodite) अनुपस्थित होता है। प्रत्येक टांग में एक क्रम में व्यवस्थित सात खण्ड पाये है। इनमें से प्रथम खण्ड कक्षांग को द्वितीय खण्ड आधार को तथा शेष पाँच खण्ड अन्त:पादांश (endopodite) को निरूपित करते हैं। इस तरह प्रत्येक टांग में एक द्वि खण्डीय अधिपादांश (protopodite) तथा पांच खण्डीय अन्त:पादांश पाया जाता है। अन्तःपादांश के पांच खण्ड निम्न प्रकार हैं-श्रोणिखण्ड (ischium), ऊरुखण्ड (merus), मणिबन्ध (carpus), पूर्व खण्ड (propodus) तथा अंगुलिखण्ड (dactylus)। एक प्रारूपी टांग में सातों खण्ड एक रेखा में उपस्थित होते हैं। प्रॉन में टांगें दो प्रकार की होती हैं- (a) कीलाभ टांगें (chelate legs) (b) अकीलाभ टांगें (non chelate legs)

(a) कीलाभ टांगें (Chelate legs) : प्रॉन में प्रथम व द्वितीय जोड़ी टांगें कीलाभ टांगे (chelate legs) कहलाती है। इनमें बाकी सभी खण्ड तो प्रारूपी टांगों की तरह होते हैं परन्तु पूर्व खण्ड (propodus) लम्बा होकर अंगुलिखण्ड (dactylus) के सम्मुख इस तरह बढ़ जाता है कि दोनों खण्ड लिकर एक चिमटी की भुजाओं की तरह कार्य करने लगते हैं अतः इन्हें कीलाभ टांगें कहते हैं। ये टांगें भोजन को पकड़ कर मुख में पहँचाने, आक्रमण तथा सुरक्षा के अंगों की तरह कार्य करती है। नर प्रॉन की द्वितीय जोड़ी कीलाभ टांग अधिक लम्बी एवं शक्तिशाली होती है।

(b) अकीलाभ टांगें (Nonchelate legs) : प्रॉन की तीसरी, चौथी व पांचवी जोड़ी टांगें प्रारूपी प्रकर की अकीलाभ टांगे होती है। इनमें चिमटी समान संरचना का अभाव होता है। मादा प्रॉन में तीसरी जोड़ी टांगों पर मादा जनन छिद्र उपस्थित होता है। नर प्रॉन में पांचवीं जोड़ी टांगों पर नर जनन छिद्र पाया जाता है।

  1. उदरीय उपांग (Abdominal appendages) : प्रॉन के उदरीय भाग में छ; जोड़ी उपांग पाये जाते हैं। इनमें से प्रथम पांच जोड़ी उपांग तो तैरने के काम आते हैं अतः इन्हें प्लव पाद (pleopods) कहते हैं। छठी जोड़ी उपांग पुच्छपाद (uropod) कहलाता है जो पुच्छखण्ड के साथ मिलकर पुच्छ पंख का निर्माण करती है। सभी उदरीय उपांग द्विशाखी (biramous) प्रकार के होते हैं। उदरीय उपांगों का संरचनात्मक वर्णन निम्न प्रकार है

(i) प्रारूपी प्लव पाद (Typical pleopod) : तीसरी जोड़ी प्लवपाद एक प्रारूपी प्लवपाद को निरूपित करता है। इसमें अधिपादांश (protopodite), एक वलयाकार कक्षाग (coxa) तथा बेलनाकार आधार (basis) का बना होता है। आधार पर ही दो पत्ती समान चपटे अन्त:पादांश तथा बहिर्यादांश पाये जाते हैं। अन्त:पादांश छोटा तथा बहिदांश बड़ा होता है। अन्तः तथा बहिर्पादांश के किनारों पर शूक पाये जाते हैं। अन्त:पादांश के भीतरी आधारी किनारे की तरफ एक छड़नुमा संरचना पायी जाती है जिसे आन्तर पाद वर्ध (appendix interna) कहते हैं। इसके घुण्डी समान सिर पर अनेक हुक समान प्रवर्ध पाये जाते हैं। जननकाल में मादा प्रॉन में आमने-सामने के उपांगों के आन्तर पाद वर्ध परस्पर जुड़कर पुलनुमा संरचना बनाते हैं जो अण्डे ढोने का कार्य करते हैं। चौथी, पांचवीं तथा मादा के दूसरी जोड़ी उपांग भी संरचना में इसी प्रारूपी, तीसरी जोड़ी, उपांग के समान ही होते

(ii) प्रथम जोड़ी प्लवपाद (First pair of Pleopod) : ये संरचना में तो प्रारूपी प्लवपाद के समान ही होते हैं। इनमें आन्तर पाद वर्ध (appendix interna) का अभाव होता है तथा अन्त:पादांश आकार में बहुत छोटा होता है।

(i) नर के द्वितीय जोड़ी प्लव पाद (Second par of pleopods of male): मादा के द्वितीय जोड़ी प्लवपाद तो प्रारूपी प्लव पाद के समान ही होते हैं। नर के द्वितीय जोड़ी प्लवपाद में मादा से कुछ भिन्नता होती है। नर के द्वितीय जोड़ी प्लवपाद में एक छड़ समान शूक धारी प्रवर्ध और पाया जाता है जिसे पुंपाद वर्ध (appendix masculina) कहते हैं। यह अन्त:पादांश तथा आन्तर पादवर्ध के बीच स्थित होता है। शेष संरचना प्रारूपी प्लवपाद के समान ही होती है।

(iv) पुच्छ पाद (Uropod) : छठी जोड़ी उदरीय उपांग बड़े तथा मजबूत होते हैं तथा पुच्छपाद (uropod) कहलाते हैं। ये पुच्छ खण्ड (telson) के दोनों तरफ स्थित होते हैं। प्रत्येक पुच्छ पाद में कक्षांग तथा आधार परस्पर संगलित होकर त्रिभुजाकार संपाद (sympod) का निर्माण करते हैं। संपाद पर पतवार नुमा अन्तः व बहिदांश पाये जाते हैं। इनमें से बहिर्पादांश अपेक्षाकृत बड़ा होता है तथा एक अनुप्रस्थ खांच द्वारा आशिक रूप से विभक्त रहता है। दोनों पादांशों के बाहरी किनारों पर शूक पाये जाते हैं।

देहभित्ति (Body Wall)

इसकी देह भित्ति निम्नलिखित तीन स्तरों की बनी होती है-1. क्यूटिकल (Cuticle), 2. अधिचर्म (Epidermis), 3. चर्म (Dermis)।

1.क्यूटिकल (Cuticle): यह देहभित्ति का सबसे बाहरी स्तर होता है तथा यह प्रॉन के बाह्य कंकाल का निर्माण करती है। यह दो स्तरों की बनी होती है- (i) अधिक्यूटिकल (ii) अन्त:क्यूटिकल

(i). अधिक्यटिकल : यह बाहर की तरफ स्थित होती है तथा काइटिन रहित होती है। इसमें बाहर की तरफ वसीय स्तर (lipoid layer) तथा भीतर की तरफ प्रोटीन स्तर (protein laver) पाये जाते हैं। इनमें से वसीय स्तर गैसों के लिए तो पारगम्य होती है किन्तु जल के लिए अपारगम्य होती है। प्रोटीनी स्तर मोटा कठोर तथा वर्णकित (pigmented) होता है। सभी शूक तथा कटिकाएँ इसी तरह से बने होते हैं।

(ii) अन्त:क्यूटिकल : यह क्यूटिकल का भीतरी स्तर होता है तथा तीन पर्तों का बना होता है। पहली वर्णकित पर्त (pigmented layer), दूसरी कैल्शियमी पर्त (calcified layer) तथा तीसरी अकैल्शियमी पर्त (uncalcifieid layer)।

  1. अधिचर्म (Epidermis ): यह एक स्तरीय ग्रन्थिल स्तम्भी उपकला कोशिकाओं से बना स्तर होती है। यह स्तर एक आधारी झिल्ली द्वारा आस्तरित रहता है। इस स्तर की कोशिकाओं के केन्द्रक मध्य में पाये जाते हैं तथा ये कोशिकाएँ क्यूटिकल का स्रावण करती है।
  2. चर्म (Dermis) : यह स्तर एक ढीले ढाले संयोजी ऊत्तक का बना होता है। इसमें उनके रूधिर रिक्तिकाएँ (blood lacunae) पायी जाती है। इसी स्तर में तीन प्रकार की अध्यावरक ग्रन्थियाँ (tegumental glands) पायी जाती हैं जो महीन वाहिका द्वारा बाहर की तरफ खुलती हैं।

पाचन तन्त्र (Digestive System)

प्रॉन के पाचन तंत्र दो भागों में विभेदित किया जा सकता है।

(I) आहार नाल (Alimentary canal)

(II) पाचक ग्रंथि (Digestive gland)

  1. आहार नाल (Alimentary Canal)

प्रॉन की आहार नाल एक लम्बी नलिकाकार संरचना होती है जो शरीर के अग्र भाग से पश्च भाग तक फैली रहती है। इसे तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है।

  • अग्रआंत्र या स्टोमोडियम (Fore gut or stomodaeum )
  • मध्य आंत्र या मीजेन्टेरॉन (Mid gut or mesenteron)

(iii) पश्च आंत्र या प्रोक्टोडियम (Hind gut or proctocdacum)

अग्र व पश्च आंत्र का अस्तर आन्तरक (entcma) नामक क्यूटिकल से बना होता है जो एक्टोडर्म द्वारा स्रावित की जाती है। यह क्यूटिकल भी त्वचा निर्मोचन के समय नवीनीकृत होती है। मध्य आंत्र भीतर से एण्डोडर्म द्वारा आस्तरित होती है।

अग्र आंत्र वाले क्षेत्र में-मुख, मुख गुहा ग्रसिका एवं आमाशय आते हैं।

मुख एवं मुख गुहा (Mouth and buccal cavity)

मुख, अग्र सिरे की मध्य अधर रेखा पर अनप्रस्थ दरार के रूप में पाया जाता है। यह तीसरे। व चौथे खण्ड के मध्य स्थित होता है। मुख में सामने की तरफ ढालनुमा लेब्रम (labrum) पाया जाता है। दोनों पार्श्व में मेंडिबल के कृन्तक प्रवर्ध (incisor processes) तथा पीछे की तरफ लेबियम पाया जाता है।

मुख एक छोटी मुख गुहा में खुलता है। मुख गुहा आगे से पीछे की तरफ सम्पीड़ित होती है तथा एक मोटी अनियमित रूप से वलित क्यूटिकल द्वारा आस्तरित रहती है। मुख गुहा में भोजन का चबाने के लिए मेडिबल के चर्वणक प्रवर्ध (molar processes) पाये जाते हैं।

ग्रसिका (Oesophagus)

ग्रसिका एक छोटी नलिका होती है जो सीधी ऊर्ध्वाधर (verticle) रूप में ऊपर आमाशय में खुलती है। इसकी दीवार मोटी व पेशीय होती है। भीतर की तरफ पेशीय दीवार में चार बड़े-बड़े अनुदैर्घ्य वलन पाये जाते हैं। जो ग्रसिका की गुहा में उभरे रहते हैं। इनमें से एक अग्र एक पश्च तथा दो पार्वीय वलन होते हैं। अग्र वलन सबसे छोटा होता है। ग्रसिका की भीतरी क्यूटिकल के अस्तर पर ब्रश समान ब्रिसल (bristles) पाये जाते हैं जो भोजन को आगे खिसकाने में सहायक होते हैं।

आमाशय (Stomach)

आमाशय एक बड़े थैलेनुमा संरचना होता है, जो सिरोवक्ष गुहा के अधिकांश भाग में फैला रहता है। आमाशय की भित्ति बहुत पतली होती है तथा क्यूटिकल द्वारा आस्तरित रहती है। आमाशय पावा से अधर से एवं पश्च से यकृताग्नाशय (पाचक ग्रंथि) से घिरा रहता है। आमाशय दो असमान भागों का बना होता है

(i).अगला भाग, जो बड़ा व थैले समान होता है, जठरागमी आमाशय (cardiac stomach) कहलाता है।

(ii). पिछला छोटा भाग जठर निर्गमी आमाशय (pyloric stomach) कहलाता है।

जठरागमी आमाशय (Cardiac stomach)

जठरागमी आमाशय का आन्तरिक अस्तर या आन्तरक (intema) में असंख्य, अस्पष्ट अनुदैर्घ्य वलन पाये जाते हैं जो छोटे-छोटे शूकों से ढके रहते हैं। आमाशय की भित्ति में कुछ क्यूटिकल की प्लेटें पायी जाती हैं जो इसे आलम्बन प्रदान करती है। ये प्लेंटें निम्न प्रकार की होती हैं

(i) वृत्ताकार प्लेट (Circular plate)- यह वृत्ताकार प्लेट ग्रसिका छिद्र के सामने पायी जाती है तथा यह इस छिद्र का अगला किनारा बनाती है।

(ii) बल्लमाकार प्लेट (Lanceolate plate)- आमाशय की छत पर वृत्ताकार प्लेट के पीछे बल्लम के आकार की प्लेट पायी जाती है।

(iii) हेस्टेट प्लेट या कुन्ताभ प्लेट (Hastate plate):-यह आमाशय के फर्श के मध्य में स्थित होती है। यह प्लेट त्रिभुजाकार भाले के आकार की होती है। इस प्लेट का मध्य भाग एक कटक (ridge) के रूप में उभरा रहता है इसे मध्यवर्ती कटक (median ridge) कहते हैं। इसके मध्य से दोनों किनारों की तरफ ढलान (slope) पाये जाते हैं। इस प्लेट का पिछला भाग थोड़ा दबा हुआ त्रिभुजाकार होता है इसके किनारों पर शूकों की घनी पंक्ति पायी जाती है। यह भाग जठरागम-निर्गम छिद्र (cardio-pyloric aperture) का अग्र वाल्व बनाता है। हेस्टेट प्लेट की सम्पूर्ण ऊपरी सतह पर कोमल शूक पाये जाते हैं। हेस्टेट प्लेट के दोनों किनारों पर आधारी छड़ (supporting rod) पायी जाती है जो क्यूटिकल की बनी होती है। प्रत्येक आधारी छड़ के दोनों तरफ एक-एक खाँच प्लेट (grooved plate) पायी जाती है।

(iv) खाँच-प्लेट (Grooved plate):- प्रत्येक खाँच प्लेट एक खुली नाली के समान होती है। ये पार्वीय खाँच भी कहलाती है।

(v) कंकत प्लेट (Combed plate):- प्रत्येक पार्वीय खाँच (lateral groove) के बाहरी किनारे पर कंकत प्लेट या कटक प्लेट (combed polate or ridged plate) पायी जाती है। आगे की तरफ दोनों कंकत प्लेटें आपस में मिल जाती हैं परन्तु पीछे की तरफ दोनों प्लेटें एक दूसरे से अलग रहती है प्रत्येक कंकत प्लेट के भीतरी किनारे से लम्बे-लम्बे कोमल शूक (bristles) पाये जाते हैं। व कंघी या कंकत (comb) के समान संरचना बनाती है अत: इन्हें कंकत प्लेट (combed plate) कहते हैं। कंकत प्लेट के लम्बे शूक पार्श्व खाँच को ढके रखते हैं तथा इसे पार कर हेस्टेट प्लेट या कृताभ प्लेट के पार्वीय किनारों पर चढ़ जाते हैं। ये शूक गतिशील होते हैं तथा जीवित प्रॉन में ये निरन्तर गति करते रहते हैं।

कंकत प्लेट के बाहर की ओर जठरागमी आमाशय की पार्श्व भित्ति एक जोड़ी पार्श्व अनुदैर्घ्य वलनों (lateral longitudinal folds) के रूप में उभरी रहती है इन्हें निदेशक कटक (guiding ridges) कहते हैं। ये भोजन का जठरागम निर्गम छिद्र की ओर मार्ग निर्देशन करती है। ये दोनों वलन आगे की तरफ छोटे होते हैं परन्तु पीछे की तरफ इनका परिमाण बड़ा होता जाता है तथा ये जठरागम निर्गम छिद्र के पार्श्व कपाट (lateral valves) बनाते हैं।

जठरागम-निर्गम छिद्र (cardio pyloric aperture) “X” के आकार का होता है। यह चार कपाटियों (valves) द्वारा सुरक्षित रहता है। इनमें से अग्र कपाट (anterior valve) हेस्टेट प्लेट के पश्च भाग से, पश्च कपाट (posterior valve) आमाशय की भित्ति के अर्द्ध चन्द्राकार वलन से तथा पार्श्व कपाट (lateral valves) निदेशक कटकों (guiding ridges) से बनाते हैं।