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digestive system of palaemon in hindi जठर-निर्गम आमाशय (Pyloric stomach in hindi) , यकृताग्नाशय (Hepato-pancreas) या पाचक ग्रन्थि (digestive gland)

पढ़िए digestive system of palaemon in hindi पैलीमॉन / पेलीमोन में जठर-निर्गम आमाशय (Pyloric stomach in hindi) , यकृताग्नाशय (Hepato-pancreas) या पाचक ग्रन्थि (digestive gland)

जठर-निर्गम आमाशय (Pyloric stomach)

यह आमाशय का पश्च छोटा व संकीर्ण भाग होता है। यह जठरागमी आमाशय (carding stomach) आमाशय के ठीक पीछे स्थित होता है। इस भाग की दीवारें अत्यधिक पेशीय होती है तथा भीतर की ओर उभरी रहती है। इससे इस भाग की गुहा डम्बल का आकृति (dumbelshaped) की दिखाई देती है तथा आमाशय दो असमान भागों में स्पष्ट रूप से विभेदित हो जाता है। इनमें से एक भाग बड़ा व अधर की तरफ होता है, अधर प्रकोष्ठ (ventral-chamber) कहलाता है तथा दूसरा भाग जो छोटा व पृष्ठ की तरफ होता है पृष्ठीय प्रकोष्ठ (dorsal chamber) कहलाता है। दोनों प्रकोष्ठ एक संकीर्ण ऊर्ध्वाधर (narrow verticle) मार्ग द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं। अधर प्रकोष्ठ के फर्श की क्यूटिकल मध्यवर्ती क्षेत्र में उभर कर एक मध्यवर्ती अनुदैर्घ्य कटक (median longitudinal ridge) का निर्माण करती है। इसकी वजह से अधर प्रकोष्ठ की गुहा दो पार्वीय कक्षों (lateral chambers) में विभक्त हो जाती है। अधर प्रकोष्ठ का फर्श एक उल्टे (A) के आकृति की या अधखुली पुस्तक के रूप में उपस्थित, निस्यन्द प्लेट (filter plate) द्वारा आच्छादित रहता है। इस प्लेट का प्रत्येक पार्श्व आयताकार आकृति का होता है तथा इस पर एकान्तर क्रम में कटक तथा खाँचें (ridges and grooves) पायी जाती है। कटकों के ऊपर कंघी जैसे शकों की क्षैतिज पंक्तियां होती हैं जो खाँचों के ऊपर एक नरम नम्दे (felt) जैसी परत बना लेती है। अधर प्रकोष्ठ की दायीं तथा बायी भित्ति पर भी घने शूक पाये जाते हैं जो निस्यन्दक प्लेट साथ की मिलकर एक प्रभावी चलनी (strainer) या छन्ने (filter) का निर्माण करते हैं। पाइलोरिक आमाशय  का यह निस्यन्दन उपकरण (filter apparatus) एक उच्च श्रेणी की चलनी का कार्य करता है तथा केवल तरल भोजन को ही आगे जाने देता है। अधर प्रकोष्ठ के पश्च भाग में निस्यन्दन उपकरण के पीछे एक जोडी यकतनाग्शयी वाहिकाओं के छिद्र (openings of hepato-pancreatic ducts) पाये जाते हैं। ये दोनों छिद्र लम्बे-लम्बे शूकों द्वारा सुरक्षित रहते हैं।

पृष्ठ प्रकोष्ठ (dorsal chamber) में ऊपर की तरफ एक अन्धनाल (caecum) निकली रहती है जो पीछे की तरफ मध्य-आंत्र (mid gut) में खुलती है। इस छिद्र की सुरक्षा, तीन समूहों में व्यवस्थित लम्बे-लम्बे शूक, करते हैं। इनमें से एक मधयवर्ती-पृष्ठीय तथा दो पाीय होते हैं। ये भोजन को पृष्ठ प्रकोष्ठ से मध्य आंत्र में जाने देते हैं परन्तु मध्य आंत्र से वापस आने से रोकते हैं।

मध्य आंत्र (Mid gut)

मध्यांत्र एक लम्बी, संकरी, सीधी व पतली नलिकाकार संरचना होती है जो उदर की पृष्ठ सतह पर मध्य रेखा में स्थित होती है तथा उदर के छठे खण्ड तक चली जाती है। इसका आन्तरिक अस्तर एन्डोथीलियम का बना होता है जो पश्च भाग में अनेक अनुदैर्घ्य वलनों के रूप में उठा होता है। इससे मध्य-आंत्र की गुहा बहुत संकरी हो जाती है।

पश्च-आंत्र (Hind gut)

यह आहार नाल का सबसे छोटा भाग होता है। यह मध्यआंत्र से गुदा तक फैली रहती है। पश्च आंत्र का आन्तरिक अस्तर क्यूटिकल का बना होता है। आगे की तरफ यह एक मोटे पेशीय थैले के रूप में फूली रहती है इसे आंत्रीय बल्ब (intestinal bulb) कहते हैं। इससे पिछले भाग को मलाशय (rectum) कहते हैं। मलाशय संकरी व नलिकाकार होती है यह गुदाद्वार द्वारा बाहर खुलती है। मलाशय में अनेक अनुदैर्घ्य वलन पाये जाते हैं। गुदा एक अनुदैर्घ्य दरार के रूप में बाहर खुलती

(II) यकृताग्नाशय (Hepato-pancreas) या पाचक ग्रन्थि (digestive gland)

यकृताग्नाशय एक नारंगी रंग की द्विपालित संरचना होती है। यह एक ग्रंथिल संरचना होती है। जो सिरोवक्ष गुहा के अधिकांश भाग में फैली रहती है। यह आमाशय को पार्श्व, अधर तथा पश्च की ओर से घेरे रहता है। परिवर्धन की दृष्टि से यह मध्य आंत्र से निकली एक जोड़ी पार्श्व नलिकाकार बहिवद्धियों से बनता है। इन बहिवृद्धियों को यकृत अन्धनाल (hepatic caeca) कहते हैं। इसकी प्रत्येक पालि असंख्य रेसीमोज रूप से शाखित नलिकाकार संरचनाओं की बनी होती है।

ये नलिकाएं परस्पर एक संयोजी ऊतक द्वारा बंधी रहती है। प्रत्येक नलिका एक स्तरीय उपकला कोशिकाओं द्वारा आस्तरित रहती है। इस स्तर में कोशिकाएँ निम्न प्रकार की हो सकती हैं-स्तम्भाकार (columnar), यकृति (hepatic), एन्जाइमी (ferment) तथा प्रतिस्थापी (replacing)। ये महीन नलिकाएं परस्पर मिलकर दो बड़ी नलिकाओं का निर्माण करती है, जिन्हें यकृताग्नाशयी वाहिकाएँ (hepato-pancreatic ducts) कहते हैं। प्रत्येक पालि से एक वाहिका निकल कर पाइलोरिक आमाशय के अधर प्रकोष्ठ में निस्यन्दन उपकरण (filter aparatus) के पीछे जाकर खुलती है।

प्रॉन में यकृताग्नाशय उच्च श्रेणी के प्राणियों के यकृत, अग्नाशय एवं छोटी आंत्र का कार्य करता है। अग्नाशय की तरह यह पाचक रसों का प्रावण करता है जो कार्बोहाइड्रेटों, प्रोटीनों एवं वसा को पचाने में सहायक होते हैं। छोटी आंत्र की तरह यह पचे हुए भोजन का अवशोषण करता है तथा यकृत की तरह यह ग्लाइकोजन, कैल्शियम तथा वसा का संग्रह करता है।

भोजन एवं अशन (Food and feeding):

प्रॉन एक सर्व-आहारी जन्तु होता है जो जलीय पादप, शैवाल, मॉस, छोटे-छोटे कीट, डायटेम, छोटे-छोटे जलीय जन्तु जैसे घोंघे, भेक-शिश, मछलियों तथा तली में एकत्रित मलबे (debris) को भोजन के रूप में ग्रहण करता है।

प्रॉन रात्रिचर प्राणी होता है अतः भोजन की खोज में रात्रि को ही निकलता है। यह तीसरे जम्भिका पादों (third pair of maxillipedes) तथा कीलाभ टांगों (chelate legs) की सहायता से भोजन को पकड़ कर मुख तक ले जाता है। दूसरे जोड़ी जम्भिका पादों की सहायता से यह भोजन को मुख में ले जाता है जिससे मेडिबल के कृन्तक प्रवर्ध (incisor process) उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है। मुख-गुहा में मेडिबल के चर्वण प्रवर्ध (molar process) भोजन को पीस देते हैं और इसे ग्रसिका मार्ग से जठरागम आमाशय में पहुँचा दिया जाता है।

पाचन अवशोषण एवं बहिःनिक्षेपण (Digestion absorption and egestion)

पाचन की मुख्य क्रिया जठरागम आमाशय (cardiac stomach) में ही होती है। जठरागम आमाशय में भोजन के छोटे-छोटे कण ग्रसिका से तथा यकृताग्नाशयी वाहिकाओं द्वारा पाचक रस, निर्गम जठर (pyloric stomach) से होता हुआ आता है। पाचक रस तथा भोजन के कण आपस में घुल मिल जाते हैं। जठरागम आमाशय में होने वाले संकुचन तथा प्रसार से भोजन को अच्छी तरह मथा जाता है जिससे पाचक रस अच्छी तरह पाचन का कार्य कर सके। जब यह भोजन हेस्टेट प्लेट पर से होकर गुजरता है तो कंकत प्लेट (combed plate) के गतिशील शूक इसे और महीन कणों में तोड देते हैं। इस तरह अर्द्धतरल एवं अर्द्धपाचित भोजन कंकत प्लेट के शूकों द्वारा छन कर पार्श्व खांचों में चला जाता है जहां से यह जठरागम-निर्गम छिद्र में होकर पाइलोरिक आमाशय के अध र प्रकोष्ठ में आ जाता है। यहां इसे, पाइलोरिक आमाशय के अधर प्रकोष्ठ में उपस्थित निस्यन्दक उपकरण (filter apparatus) द्वारा, छाना जाता है। तरल एवं पाचित भोजन यकृताग्नाशयी वाहिकाओं द्वारा यकृताग्नाशय में ले जाया जाता है जहां भोजन का अवशोषण हो जाता है।

बिना पचे भोजन के कणों को शूकों की सहायता से पाइलोरिक आमाशय के पृष्ठ प्रकोष्ठ में । पहँचा दिया जाता है जहाँ से वे मध्यांत्र में भेज दिये जाते हैं। मध्य आंत्र में भी थोड़ा बहुत अवशोषण होता है शेष पदार्थ मलाशय में एकत्र होते हैं जहां, इसमें से जल अवशोषित कर, शुष्क मल पदार्थ को गुदाद्वार द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

श्वसन तंत्र (Respiratory System)

पेलीमॉन में मुख्य श्वसन अंग गिल या क्लोम (gills) तथा अधिपादांश (epipodites) होते हैं। इनके अलावा क्लोमावरक या गिलावरक (branchiostegite or gillcover) भी श्वसन में भाग लेता है। इस तरह प्रॉन या पैलिमॉन में श्वसन अंग सुविकसित होते हैं।