प्रत्यावर्ती धारा के स्रोत क्या है Alternating Current Source in hindi प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए

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उत्तर : जलविद्युत , विंड टर्बाइन , स्टीम टरबाइन , साइन वेव इन्वेर्टर , ac generator आदि |

अध्याय  विद्युत स्त्रोत तथा विद्युत उपकरण
[Electric Sources & Accessories]

प्रत्यावर्ती-धारा स्त्रोत (Alternating Current Source)
परिवर्तनशील निश्चित आवृत्ति का प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत होता है। जिसकी आवृत्ति अल्प होती है। यह एक ट्रांसफार्मर की सहायता से बनाया जाता है। सामान्यतया इसको बनाने के लिए अपचायी ट्रांसफार्मर का उपयोग करते हैं।
अपचायी ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली पर 220 वोल्ट व 50 हर्ट्ज आवृत्ति की प्रत्यावर्ती वोल्टता आरोपित करते हैं। ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुण्डली पर विभिन्न वोल्टताओं (10, 20, 30 ……….. 100 वोल्ट) के टर्मिनल जोड़ दिये जाते हैं। द्वितीयक कुण्डली का एक सिरा उभयनिष्ठ टर्मिनल का कार्य करता है।
प्रत्यावी वोल्टमीटर (A.C.K Voltmeter) -प्रत्यावर्ती वोल्टमीटर वोल्टता के वर्गमाध्य मूल प्रत्यावर्ती स्त्रोत मान (rms) को दर्शाते हैं। यह मीटर विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धान्त पर कार्य करते है। प्रत्यावर्ती वोल्टमीटर, दिष्ट (D.C.) तथा प्रत्यावर्ती (a.c.) दोनों वोल्टताओं को नाप सकते हैं। इनका पैमाना अरेखिक होता है। प्रयोगशाला में साधारणतया नापे जाने वाली प्रत्यावर्ती वोल्टता को सेतू दिष्टकारी द्वारा दिष्ट (d.c.) वोल्टता में रूपान्तरित करके दिष्ट वोल्टमीटर द्वारा इसका पाठयांक लिया जाता है। इस वोल्टमीटर की भिन्न परास के विभिन्न टर्मिनल (10, 15, 20, 25, 30, ……………… 100) वोल्ट जुड़े रहते हैं।
प्रत्यावर्ती अमीटर (A.C.K Ammeter) – प्रत्यावर्ती अमीटर प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग माध्य मूल मान (तउे) को बताते हैं। यह मीटर धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं। इस उपकरण में पाये जाने वाली प्रत्यावर्ती धारा को सेतु दिष्टकारी द्वारा दिष्ट धारा (क्ण्ब्ण्) में रूपान्तरित करके दिष्ट धारामापी द्वारा पाठयांक लिया जाता है। इस अमीटर में भिन्न परास के लिए विभिन्न टर्मिनल (5, 10, 15, …………. 50mA) जुड़े होते हैं। इसका स्केल अरेखीय होता है।
 प्रेरक कुण्डली (Induction Coil)
किसी पतले ताँबे के तार को वृत्ताकार कण्डली के रूप में क्रोड पर लपेट कर इसे बनाया जाता है।
कुण्डली में फेरों की संख्या कुण्डली के प्रेरकत्व (L) को प्रदर्शित करती है। किसी कुण्डली का प्रेरकत्व (L) फेरों की संख्या, कुण्डली की त्रिज्या तथा कुण्डली की लम्बाई घटाकर बढ़ाया जा सकता है।
उच्च पारगम्यता (μ) के लौह चुम्बकीय पदार्थ को क्रोड के रूप में उपयोग करके कुण्डली का स्वप्रेरकत्व आवश्यकतानुसार बढ़ाया जा सकता है। भंवर धाराओं के कारण उत्पन्न क्षति को कम करने के लिए सामान्यतया पटलित (Laminated) क्रोड का उपयोग करते हैं। यदि कुण्डली का प्रतिरोध नगण्य माना जाय तो यही कुण्डली चोक (Chocke) कुण्डली कहलाती है। श्रव्य आवृत्ति के लिए प्रयुक्त कुण्डली लौह क्रोडित होती है। इस कुण्डली का प्रेरकत्व 1 से 25 हेनरी की परास का होता है। इस कारण निम्न आवृत्तियों पर भी प्रतिघात (XL, = ωL) का मान अधिक होता है। रेडियो-आवृत्ति के लिए अल्प स्वप्रेरकत्व की कुण्डली का उपयोग करते है। सामान्यतया यह कुण्डलियाँ वायु क्रोडित होती है। जिनका प्रेरकत्व मिली अथवा माइक्रो हेनरी की परास का होता है।
 अमीटर (Ammeter)
1. अमीटर (Ammeter)ः किसी भी विद्युत परिपथ में धारा की प्रबलता मालूम करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह धारामापी की कुण्डली के समान्तर क्रम में एक कम प्रतिरोध का मोटा तार (शन्ट) जोड़ देने से बनता है, जिससे उसका तुल्य प्रतिरोध कम से कम हो जाये। अमीटर को परिपथ में सदैव श्रेणीक्रम में लगाया जाता है। अमीटर की रचना चित्र में दिखाई गई है।
इसकी रचना धारामापी की भाँति है। शन्ट का मान बदलकर अमीटर की परास (range) बदली जा सकती है।
अमीटर में विक्षेप सदैव एक ही दिशा में हो सकता है, इसलिये इसमें धारा भी केवल एक ही दिशा में प्रवाहित की जाती है। इसी कारण सम्बन्धक पेचों पर धन (+) तथा ऋण (-) चिन्ह लगा देते हैं। आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होता है।
 वोल्टमीटर (Voltmeter):
यह यन्त्र विद्युत परिपथ में किन्हीं भी दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर नापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह धारामापी की कुण्डली के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध का तार जोड़ देने से बनता है। जिससे इसका तुल्य प्रतिरोध उच्च हो जाए।
इसकी रचना भी धारामापी की भाँति है, जैसा कि चित्र में दिखलाया गया है। उच्च प्रतिरोध का मान बदल कर वोल्टमीटर की परास (Range) बदली जा सकती है।
वोल्टमीटर में धारा (+) चिन्ह वाले सिरे से प्रवेश करके (-) चिन्ह वाले सिरे से बाहर निकलती है।
विद्युत परिपथ के जिन दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर नापना होता है उनके बीच वोल्टमीटर को समान्तर क्रम में इस प्रकार जोड़ते हैं कि वोल्टमीटर का धन सम्बन्धक पेंच उच्च विभव वाले बिन्दु से तथा ऋण सम्बन्धक पेंच निम्न विभव वाले बिन्दु से जुड़े। वोल्टमीटर को परिपथ में सदैव समान्तर क्रम में लगाते हैं। आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध ∞ (अनन्त) होता है।

अमीटर और वोल्टमीटर में अन्तर
अमीटर                                   वोल्टमीटर
यह परिपथ में धारा नापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
इसे धारामापी की कुण्डली के समान्तर क्रम में कम प्रतिरोध का तार जोड़कर बनाया जाता है।
इसे विद्युत परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है।
इसका स्केल ऐम्पियर में अंकित रहता है।

1. यह परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर
नापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
2. इसे धारामापी की कुण्डली के श्रेणी क्रम में उच्च
प्रतिरोध का तार जोड़ कर बनाया जाता है।
3. इसे विद्युत परिपथ में सदैव समान्तर क्रम में जोड़ा
जाता है।
4. इसका स्केल वोल्ट में अंकित रहता है।