ज्वालामुखी उद्गार के कारण क्या है , ज्वालामुखी क्या है उनके उद्गार के कारणों एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए

ज्वालामुखी क्या है उनके उद्गार के कारणों एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए ज्वालामुखी उद्गार के कारण क्या है ?

ज्वालामुखी
(VOLCANO)
ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह के वे छिद्र है, जिनसे धरातल के नीचे का मेग्मा, तरल पदार्थ व गैस, रूख बाहर निकलकर जमा हहोता है, ये हमेशा से ही मानव का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। अपने विनाशकारी स्वरूप के कारण मानव को भयभीत करते रहे है। चिरकाल से ही ज्वालामुखी पर्वतों की पूजा होती रही है भू-विज्ञान की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण घटना है जिससे पृथ्वी के आन्तरिक भाग के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
ज्वालामुखी क्या है ?
ज्वालामुखी क्या है इस संबंधी में अनेक विद्ववानों ने अपनी-अपनी परिभाषा प्रस्तुत की है।
(1) वारसेस्टर के अनसार, “ज्वालामुखी सामान्यतः एक गोल अथवा लगभग गोल आकार वाला छिद्र है, जिससे पृथ्वी के अत्यन्त गर्म भूगर्भ से गैस, जल, तरल लावा एवं चट्टानों के टुकड़ों के रूप में गर्म पदार्थ पृथ्वी की सतह पर निकलते हैं।‘‘
(2) लावेल और फ्लिट के अनुसार, “ज्वालामुखी एक अथवा कई एक छिद्रों का समूह है, जिससे होकर गहरे स्थित स्रोत से गर्म गैस तथा चट्टानी पदार्थ पृथ्वी की सतह पर पहुंचते हैं।‘‘
(3) मोंकहाउस के अनुसार, “ज्वालामुखी भूपटल के वे छिद्र हैं, जिनसे भूगर्भ का मेग्मा आदि पदार्थ उद्गार के रूप में बाहर आता है।‘‘
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ज्वालामुखी एक छिद्र है जिससे भूगर्भ से उद्गार होता है। पृथ्वी के गर्भ में ताप एकत्रित हो जाने पर चट्टानें तरल लावा में परिवर्तित हो जाती हैं तथा भूमिगत जल भाप में परिवर्तित हो जाता है। इससे ऊपरी चट्टानों पर दबाव पड़ता है और दरार या कमजोर क्षेत्र से यह बाहर आने की चेष्टा करता है। जब गैस बाहर की तरफ निकलने का प्रयास करती है तब मार्ग की चट्टानों को ताड़कर अपने साथ बाहर ले आती हैं। इसी (force) के साथ तत्व लावा भी सतह पर आ जाता है।
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ज्वालामुखी क्रिया (Volcanism) या (Volcanic eruption) कहते है। बाहर निकला हुआ आन्तरिक पदार्थ छिद्र के आस-पास जमा हो जाता है और एक शंकुनुमा पर्वत का निर्माण होता है। जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी क्रियाओ को दो भागों में रखा जा सकता है-
(1) अन्तर्वेधी क्रियायें (Intrusive Activities),
(2) बहिर्वेधी क्रियाएं (Extrusive activities)
(1) अन्तर्वेधी क्रियाएँ :- भूपटल के नीचे होने वाली समस्त क्रियायें इस श्रेणी में आती हैं। भूगर्भ में ताप की अधिकता, चट्टानों का पिघलना, गैस का एकत्रित होना तथा तीव्र शक्ति के साथ बाहर निकलने की चेष्टा करना मुख्य आन्तरिक क्रियायें हैं। इनके द्वारा मार्ग में चट्टानों को तोड़ना, दरारों में लावा का प्रविष्ट होकर विभिन्न आकृति की चट्टानों का निर्माण होता है।
(2) बहिर्वेधी क्रियाएँ :- भूपटल के ऊपर लावा का प्रसार, गैसों का बादल बनना, ज्वालामुखी उभेदन तथा पदार्थों का एकत्रीकरण बाह्य क्रियाओं के अन्तर्गत रखा जाता है। इनसे ज्वालामुखी शंकू, क्रेटर व गीजर आदि का निर्माण होता।

ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
(Material Erupted from Volcanoes)

ज्वालामुखी उद्गार से सम्बन्धित जो भी साहित्य उपलब्ध है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि ज्वालामुखी का उद्गार अपने आप में काफी डरावना होता है। क्योंकि यह उद्गार ज्यादातर एकाएक होता है और इसके साथ एक छिद्र से गैस, तरल पदार्थ और ठोस चीजें तेजी से बाहर आने लगती है। गैस और धल से बनी गोभी के आकार के बादल क्रेटर पर छा जाते हैं, आस-पास का क्षेत्र तीच्र गर्जन से भर जाता है, धरती कांपने लगती है और प्रकाश की जगह धीरे-धीरे अन्धकार का साम्राज्य छाने लगता है। ज्वालामुखी में से निम्नलिखित पदार्थ निकलते हैं।
जसके आधार पर यह कहा जा सकता
(1) ठोस पदार्थ (Solid material) :- ज्वालामुखी में भीषण उद्गार के साथ लावा सतह के बाहर आता है। अतः यह मार्ग चट्टानों को तोड़कर साथ ले लेता है साथ ही मार्ग में लावा से गैस पृथक हो जाती है व लावा ठण्डा होकर ठोस चट्टान में बदल जाता है। ये शिलाखण्ड उद्गार की तीव्रता के कारण कई मीटर ऊपर उछाल दिये जाते हैं, जिससे यह विभिन्न आकार में बदल जाते हैं। बहुत छोटे सुपारी के आकार के पिंड ‘लैपली‘ (Lapilli)कहलाते हैं। जब लावा से बनी चट्टानों का आकार गोलाकार हो जाता है तो इन्हें ‘बम‘ (Bomb) कहा जाता है। कई मीटर बड़े नुकीले शिलाखण्ड को ‘पिण्ड‘ कहा जाता है (Black)। बहुत छोटे मटर के दाने के समान चट्टानों को स्कोरिया (Scoria) कहते हैं व सबसे महीन कण राख (dust of ash) कहलाते है। लावा उद्गार के साथ गैस भी बाहर आती है व लावा से पृथक हो जाती है जिससे ये ठोस पिण्ड दूर तक ऊपर उछल जाते हैं व कई आकृति के बनते हैं।
(2) तरल पदार्थ (Liquid matter) :- ज्वालामुखी छिद्र से तरल रूप में चट्टानें सतह पर फैल जाती हैं, इन्हें ‘लावा‘ या मेग्मा (Magma) कहा जाता है।
इसके साथ गैस व अन्य पदार्थ भी घुले रहते हैं। अतः लावा के रासायनिक गुण स्थान-स्थान पर भिन्न होते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
(i) एसिड लावा (Acid lava) – इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है, अतः इसका द्रवणांक ऊँचा होता है। यह गाढ़ा होता है व सतह पर मंद गति से प्रवाहित होता है अतः ज्वालामुखी के छिद्र से बहुत दूर नहीं जा पाता व डोम आकृति में शंकु की रचना करता है।
(ii) बेसिक लावा (Basic lava) – इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है अतः पतला होता है। यह उद्गार केन्द्र से काफी दूर तक फैल जाता है। इससे लोहे व मैग्नेशियम की मात्रा अधिक होती है।
(3) गैस व वाष्प :- ज्वालामुखी उद्गार में गैस व जलवाष्प प्रमुख होते हैं। 80 से 90% इसी के मेग्मा का उद्गार बाहर होता है। जब ये ऊपर वायुमण्डल में मिलती है बादलों का निर्माण होता है व तीच्र वर्षा होती है। गैसों में प्रमुख रूप् से कार्बन डाइऑक्साइड, गन्धक, अमोनिया, हाइड्रोजन, हाइड्रोकार्बन आदि होते है।

ज्वालामुखी क्रिया के कारण (Causes of Volcanicity) –

ज्वालामुखी क्रिया के निम्नलिखित कारण हैं –
(1) आन्तरिक उष्मा: केल्विन के अनुसार गहराई में प्रति कि.मी. 1 से.ग्रे. तापमान बढ़ता है। अतः पृथ्वी का गर्भ अत्यधिक गर्म व तरल है। इसके अतिरिक्त भूगर्भ में विभिन्न रेडियोएक्टिव तत्व पाये जाते है जो विखण्डन द्वारा ऊष्मा व ऊर्जा उत्पन्न करते है। जिसके कारण चट्टानें अधिक ताप से पिघल जाती है तथा जहाँ भी इन्हें दरार या कमजोर क्षेत्र मिलता है वहाँ से मेग्मा भूपृष्ठ पर बाहर निकल आता है व ज्वालामुखी विस्फोट हो जाता है।
(2) गैस व जलवाष्प की उत्पत्ति:- भूगर्भिक जल जब तप्त चट्टानों से संपर्क में आता है तब परिवर्तित हो जाता है। भूगर्भ में जब वाष्प अत्यधिक मात्रा में जमा हो जाती है तो ऊपर की तरफ दबाव डालती है व बाहर आने का प्रयत्न करती है। ग्रेगरी इसी वाष्प को ज्वालामुखी का कारण मानते हैं। वाष्प के साथ मेग्मा भी सतह पर बाहर आ जाता है।
(3) प्लेट टेक्टॉनिक के अनुसार जब दो प्लेट एक दूसरे से विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हैं तब भूपृष्ठ पर तनाव पड़ता है व दरार पड़ जाती है, जिससे मेण्टल से तप्त लावा सतह पर आ जाता है। तनाव से चट्टानों के दबाव में कमी आती है, ऐसी स्थिति में भूगर्भ का मेग्मा कमजोर क्षेत्र से चट्टानों को भेद कर बाहर आ जाता है व ज्वालामुखी विस्फोट हो जाता है। प्रशान्त महासागीय ज्वालामुखी इसी कारण बने हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *