JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

केंचुआ का लक्षण क्या है जानकारी | केंचुआ का जीवन चक्र के बारे में | केंचए का स्वरूप और जीवन-प्रणाली

केंचए का स्वरूप और जीवन-प्रणाली केंचुआ का लक्षण क्या है जानकारी | केंचुआ का जीवन चक्र के बारे में लिखिए ?

कृमि
 केंचए का स्वरूप और जीवन-प्रणाली
जीवन-प्रणाली अन्य सभी प्राणियों की तरह जीवन-प्रणाली केंचुआ (आकृति १८) भी विशिष्ट जीवन-स्थितियों में ही जिंदा रह सकता है। केंचुए के लिए ऐसी स्थितियां हैं – ढीली मिट्टी जिसमें यह सहारा लेता है य सड़ती हुई वनस्पतियां जो उसका भोजन हैं य नमी और हवा य गरमी।
रात में जब ओस पड़ती है उस समय केंचुए धरती की सतह पर निकल आते हैं। दिन में वे बिलों में छिपे रहते हैं। वसंत या ग्रीष्म में कुनकुनी बारिश के बाद जब जमीन पानी से तर रहती है उस समय केंचुए दिन में भी ऊपर निकल आते हैं। इसी कारण उनका एक नाम वर्षा-कृमि भी है।
स्वरूप केंचुए का नलिका सदृश शरीर बहुत-से छल्लों में बंटा हुआ होता है। शरीर के अगले सिरे में मुखद्वार होता है और पिछले सिरे में गुदा। अगले सिरे से केंचुआ मिट्टी के कण दूर हटाता है। उदर का हिस्सा सपाट होता है और पीठ का हिस्सा फूला हुआ। शरीर के अगले हिस्से के पास एक पेटीनुमा सूजन होती है।
गति हाइड्रा की तरह केचुत्रा भी बहुकोशिकीय प्राणी है। उसकी नम त्वचा एपीश्रीलित्रम नामक आवरण ऊतक की बनी होती है जिसमें कोशिकाओं की एक परत होती है। हाइड्रा से भिन्न इस कृमि में पेशीय ऊतक भी होता है जो तीथीलियम से पृथक् होता है। पेशीय ऊतक की कोशिकाएं लंबे तुकुएनुमा रेशों-सी लगती हैं। इनमें से कुछ जो त्वचा में से दिखाई देती हैं छल्लों में व्यवस्थित होती हैं। इन रेशों के संकुचन के कारण इस कृमि का शरीर अधिक लंबा और पतला हो जाता है। पेशीय छल्लों के नीचे लंबाई के रुख में पेशीय रेशे होते हैं जिनके संकुचन के कारण शरीर अधिक छोटा और मोटा हो जाता है।
पेशियों के संकुचन के कारण यह कृमि चल सकता है।
केंचुए की गति में अनगिनत नन्हे नन्हे कड़े बाल सहायक होते हैं। इसके उदर के हिस्से पर उंगली फेरने से इन बालों का आसानी से पता लगता है।
वृत्ताकार पेशियों के संकुचन के समय कड़े बाल शरीर का पिछला हिस्सा अचल रखते हैं और अगला सिरा आगे फैलता है। जब अगला सिरा अपने बालों को मिट्टी के खुरदरे हिस्सों में थाम देता है तो लंबान की पेशियां संकुचित होती हैं और पिछला सिरा आगे सरकता है। वृत्ताकार पेशियां फिर संकुचित होती हैं और यही क्रम जारी रहता है।
यदि मिट्टी ढीली हो तो केंचुए का अगला सिरा पच्चड़ का काम देता हुआ मिट्टी के कणों को दूर हटाता है। सख्त मिट्टी में यह कृमि मिट्टी खाकर अपनी राह बना लेता है। वह मिट्टी निगलता है, अपनी आंत में से उसे गुजरने देता है और गुदा से बाहर फेंक देता है।
वातावरण से संपर्क यदि हम केंचुए के शरीर का स्पर्श करें तो वह फौरन रेंगने लग जाता है। इसका अर्थ यह है कि इस कृमि की त्वचा में संपर्क ऐसी संवेदनशील इन्द्रियां हैं जो स्पर्श से प्रभावित होती हैं। इन्हें स्पर्श-तन्त्रिका-कोशिकाएं कहते हैं। इस कृमि का स्पर्शज्ञान इतना सुविकसित होता है कि मिट्टी में जरा-सा कम्पन होते ही वह रेंगकर अपने बिल में या किसी चीज के नीचे आश्रयार्थ चला जाता है। शरीर का अगला हिस्सा विशेष संवेदनशील होता है। रास्ते में पड़नेवाली विभिन्न चीजों का वास्ता सबसे पहले इसी हिस्से से पड़ता है।
विख्यात ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्लस डार्विन ने सिद्ध कर दिया था कि कृमि अपने भोजन की पत्तियां उनकी गंध से पहचान सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि कृमियों के घ्राणेंद्रियां होती हैं। इसके अलावा कृमियों के रसनेंद्रियां भी होती हैं। उनके आंखें नहीं होती और न वे चीजों को देख सकते हैं। पर उजाले और अंधेरे का फर्क वे जान सकते हैं। केंचुआ सुन नहीं सकता। केंचुए के भूमिगत अस्तित्व में दृष्टि और श्रवण का कोई महत्त्व नहीं और इसी लिए ये इंद्रियां अविकसित होती हैं। इसके उल्टे गंध, स्पर्श और रस की ज्ञानेंद्रियां, जिनके सहारे वे अंधेरे में चीजों को पहचान सकते हैं , इन कृमियों में बहुत ही विकसित होती हैं। इसके फलस्वरूप कृमियों में अपने को इर्द-गिर्द की परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने की अच्छी शक्तियां होती हैं। भोजन की खोज में और शत्रुओं से छुटकारा पाने में उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती और वे जमीन के सूखे हिस्से से रेंगकर नम हिस्से में चले जाते हैं।
केंचुए का उपयोग केंचुए अपने भोजन के काम आनेवाली पत्तियां अपने बिलों में खींच लाते हैं। इसके फलस्वरूप वे जमीन में कार्बनीय पदार्थों की मात्रा बढ़ाते हैं। जमीन के अंदर घूमते-घामते हुए वे उसे ढीली कर देते हैं और उसके स्तरों को उलट-पुलटकर मिला देते हैं। कृमियों द्वारा पीछे छोड़ी गयी सुरंगें जमीन में हवा और पानी के प्रवेश के लिए बहुत ही सुविधाजनक होती हैं। इस प्रकार भूमि-रचना में केंचुए महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं जिससे धरण संचय में सहायता मिलती है।
चार्लस डार्विन ने कृमियों के भूमि-रचना कार्य की तुलना हल के काम से . की थी। उन्होंने लिखा था कि मनुष्य द्वारा हल का प्रयोग किया जाने से पहले कृमियों द्वारा जमीन की ‘जोताई‘ होती थी और अनंत काल तक होती रहेगी।
प्रश्न – १. केंचुए के लिए कौनसी जीवन-स्थितियां आवश्यक हैं ? २. केंचुए की बाह्य संरचना का वर्णन करो। ३. केंचुआ किस प्रकार चलता है ? ४. केंचुए का उपयोग क्या है?
व्यावहारिक अभ्यास – १. शीशे के एक बर्तन को दो तिहाई हिस्से तक पहले काली मिट्टी के, फिर बालू के और फिर एक बार काली मिट्टी के स्तर से भर दो। बर्तन में कई केंचुए छोड़ दो और देखो वे किस प्रकार बालू और मिट्टी को मिला देते हैं। प्रयोग से निष्कर्ष निकालो। २. केंचुए को देखकर उसका चित्र बनायो। ३. केंचुए की गति का निरीक्षण करो।
१०. केंचुए को भीतरी इंद्रियां
पचनेंद्रियां यदि केंचुए के शरीर को त्वचा और पेशियों के साथ खड़ा चीर दिया जाये तो इससे उसकी द्रवपूर्ण शरीर-गुहा दिखाई देगी जिसमें उनकी भीतरी इंद्रियां होती है (आकृति १६)। यह गुहा खड़े विभाजकों से ऐसे हिम्मों में बंटी हुई होती है जो शरीर के बाहरी वृत्तखंडीय विभाजन से मेल खाते हैं। आंत और अन्य भीतरी इंद्रियां इन हिस्सों में से गुजरती हैं। शरीर-गुहा का आवरण त्वचा और पेशीय ऊतक का बना होता है।
केंचुए के पचन तंत्र में एक नलिका होती है जो मुख-द्वार से आरंभ होकर पेशीय गले तक जाती है। इसके बाद आती है पतली ग्रसिका और फिर बड़ा अन्नग्रह जिसमें भोजन एकत्रित और आर्द्र होता है। अन्नग्रह से भोजन मोटे आवरणवाले पेशीय पेट में चला जाता है। यहां पिस जाने के बाद वह प्रांत में चला जाता है। पाचक रसों के प्रभाव से प्रांत में भोजन का पाचन होता है , और उसके आवरण द्वारा अवशोषित होकर वह रक्त में चला जाता है। भोजन के अनपचे अवशेष गुदा से बाहर फेके जाते हैं।
हाइड्रा में केवल एक जठर संवहनीय गुहा होती है पर केंचुए के कई पाचक इंद्रियां होती हैं जो निश्चित रूप से व्यवस्थित होती हैं। यही उसकी पचनेंद्रियां हैं।
श्वसन और रक्त-परिवहन इंद्रियां केंचुए की त्वचा बहुत ही पतली, श्लेष्म से आवृत और रक्त और से भरपूर होती है। त्वचा ही श्वसनेंद्रिय का काम देती है और उसके द्वारा ऑक्सीजन का अवशोषण और कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन होता है।
केंचुए का रक्त एक लाल द्रव होता है जो इंद्रियों के बीच के संचार-साधन का काम देता है। रक्त प्रांत से आनेवाले पोषक पदार्थों और त्वचा द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन को शरीर में वितरित कर देता है। इसी के साथ साथ रक्त ऊतकों में से कारबन डाइ-आक्साइड लेकर त्वचा में पहुंचा देता है।
रक्त-परिवहन तंत्र में दो मुख्य खड़ी नलिकाएं होती हैं। ये हैं-पृष्ठीय और औदरिक रक्त-वाहिनियां। इन वाहिनियों से अनगिनत छोटी छोटी शाखाएं निकलकर सभी इंद्रियों तक पहुंचती हैं। ग्रसिका को घेरी हुई बड़ी वृत्ताकार वाहिनियों अथवा तथाकथित हृदयों के संकोच के फलस्वरूप रक्त का परिवहन होता है।
उत्सर्जन इंद्रिया केंचुए के शरीर के लगभग प्रत्येक वृत्तखंड में मरोड़ी हुई नलिकाओं का एक जोड़ा होता है। यही इंद्रियां केंचुए का उत्सर्जन तंत्र हैं। ये नलिकाएं शरीर-गुहा में कीप के आकार के एक उभार से शुरू होती हैं जिसके किनारों पर चारों ओर रोमिकाएं होती हैं। हर नलिका का दूसरा सिरा शरीर के औदरिक हिस्से पर बाहर की ओर खुलता है। रोमिकाओं की गति के कारण शरीर-गुहा से द्रव का प्रवाह निकलकर कीप में गिरता है और वहां से नलिकाओं के जरिये बाहर फेंका जाता है। इस प्रकार शरीर में एकत्रित होनेवाले तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है।
तंत्रिका-तंत्र हाइड्रा के उल्टे केंचुए की तंत्रिका-कोशिकाएं सारे शरीर में बिखरी हुई नहीं होती बल्कि तंत्रिका-गुच्छिकाओं में व्यवस्थित होती हैं। इनमें से सबसे बड़ी गुच्छिका गले के ऊपर होती है और अधिग्रसनीय तंत्रिका-गुच्छिका कहलाती है। यहां से बड़ी भारी संख्या में पतली तंत्रिकाएं फूट निकलती हैं। इसी कारण शरीर का अगला सिरा बहुत ही संवेदनशील होता है। अधिग्रसनीय गुच्छिका उपग्रसनीय गुच्छिका से संबद्ध रहती है और इस प्रकार परिग्रसनीय तंत्रिका-मंडल तैयार होता है। उपग्रसनीय गुच्छिका से औदरिक तंत्रिका-रज्जु निकलती है जो प्रांत के नीचे रहती है। यह बहुत-सी परस्पर संबद्ध तंत्रिका-गुच्छिकाओं से बनी हुई होती है। गुच्छिकाओं से तंत्रिकाएं निकलकर शरीर की हर इंद्रिय में पहुंचती हैं (आकृति २०)।
हम तंत्रिका-तंत्र की कार्यविधि दिखानेवाले एक उदाहरण को जांचकर देखें। यदि हम मुई से केंचुए के शरीर का स्पर्श करें तो बाहरी उद्दीपन त्वचा में अवस्थित नंत्रिकाओं के मिरों को उत्तेजित कर देगा। यहां से उत्तेजन तंत्रिकाओं के जरिये औदरिक तंत्रिका-रज्जु की एक गुच्छिका में पहुंच जायेगा। गुच्छिकाओं से यह उत्तेजन तंत्रिकाओं के जरिये पेशियों में पहुंचेगा। उत्तेजन के पहुंचते ही पेशियों में संकोच होगा। फिर केंचुआ मूई से दूर हटने लगेगा। इस प्रकार संरक्षक प्रतिवर्ती क्रिया प्रारंभ होगी।
हाइड्रा की अपेक्षा तंत्रिका-तंत्र और ज्ञानेंद्रियों के ज्यादा अच्छे विकास के कारण केंचुए का बर्ताव अधिक जटिल होता है।
जनन हर केंचुए के दो लैंगिक ग्रंथि-समूह होते हैं – अंडाशय जिसमें अंड-कोशिकाएं विकसित होती है, और वृषण जिनमें शुक्राणुओं का विकास होता है। इस प्रकार केंचुआ भी हाइड्रा की तरह द्विलिंगी प्राणी है।
संसेचित अंड-कोशिकाएं एक लसलसे पदार्थ से बनी हुई मजबूत आस्तीन में रखी रहती हैं। यह आस्तीन केंचुए के शरीर से खिसक जाती है, उसके दोनों सिरे मिलकर चिपक जाते हैं और अंडे अपने को नीबू के आकारवाले एक पक्के कोए में पाते हैं (प्राकृति १८)। कोपा जमीन के अंदर रहता है। ठीक हाइड्रा की तरह इनमें से प्रत्येक अंडा क्रमशः दो, चार, आठ कोशिकाओं में और इसी प्रकार आगे विभाजित होता है । यथाक्रम ऊतक और इंद्रियां दिखाई देने लगती हैं और एक नन्हे-से केंचुए का बहुकोशिकीय शरीर विकसित होने लगता है।
हाइड्रा की तरह केंचुए में अलिंगी जनन नहीं है। फिर भी उसके शरीर के अलग अलग हिस्सों से पूरा नया शरीर तैयार हो सकता है। अतः यदि संयोगवश हम फावड़े से किसी केंचुए का शरीर तोड़ डालें तो भी उसके दोनों हिस्सों में खोया हुआ हिस्सा विकसित होगा (अगला हिस्सा जल्दी से और पिछला कुछ धीरे से) और दोनों हिस्से जीवित रहेंगे।
प्रश्न- १. पाचन तंत्र में कौनसी इंद्रियां होती हैं? २. केंचुए की श्वसन-क्रिया का वर्णन करो। ३. रक्त का क्या महत्त्व है ? ४. किस संरचना में रक्तपरिवहन तंत्र होता है ? ५. किस संरचना में उत्सर्जन-तंत्र होता है ? ६. केंचुए के शरीर में तंत्रिका-तंत्र का क्या स्थान है ? ७. केंचुए के सूई के पास से हट जाने की क्रिया को हम प्रतिवर्ती क्रिया क्यों कहते हैं ? ८. केंचुओं में जनन कैसे होता है ?

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

12 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

12 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now