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कृत्रिम किडनी क्या है ? कृत्रिम किडनी प्रत्यारोपण कैसे होता है फर्स्ट आर्टिफिशियल किडनी ट्रांसप्लांट इन इंडिया
first artificial kidney transplant in india in hindi कृत्रिम किडनी क्या है ? कृत्रिम किडनी प्रत्यारोपण क्या कैसे होता है फर्स्ट आर्टिफिशियल किडनी ट्रांसप्लांट इन इंडिया ?
उत्तर : भारत में प्रथम वृक्क प्रत्यारोपण 1 december 1971 में Christian medical college , vellor , tamil nadu में 35 वर्ष मरीज shanmughan में किया गया |
कृत्रिम वृक्क
जब वृक्क पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते है और कार्य नहीं करते तो मरीज को प्राय: Haemodialysis से गुजरता पड़ता है |
हीमोडायलाइसिस (कृत्रिम वृक्क के साथ उपचार) कुछ निश्चित पदार्थो का रक्त से चयनात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक्करण है | झिल्ली में उपस्थित छिद्र कुछ निश्चित पदार्थो को निकलने देता है और अन्य को रोक देता है | मरीज को एक नलिका से एक धमनी (प्राय: रेडियस धमनी) से जोड़कर एक मशीन से जोड़ा जाता है | धमनी से रक्त ट्यूब में पम्प किया जाता है जो कि डायलाइजर से होते हुए गति करता है | डाइलाइजर डाइलाइसिस द्रव से भरा होता है जिसमें इलेक्ट्रोलाइट की मात्रा सामान्य प्लाज्मा के समान होती है लेकिन अपशिष्ट पदार्थ नहीं होते | cellophane tube (पतली झिल्ली द्वारा घिरी एक नलिका) डायलाइसिस द्रव में रखी जाती है | सेलोफैन नलिका डायलाइसिस द्रव में रक्त से प्रोटीन और रूधिर कोशिकाओं की गति नहीं होने देते लेकिन पर्याप्त बड़े छिद्र छोटे अणुओं को द्रव में विसरित होने देते हैं | अपशिष्ट पदार्थो के अणु जैसे यूरिया , अमोनिया और अपशिष्ट डायलाइसिस द्रव में विसरित होते हैं | अन्य पदार्थो जैसे ग्लूकोज , एमीनो एसिड और इलेक्ट्रोलाइट का विसरण इन पदार्थो की डायलाइसिस द्रव में सामान्य प्लाज्मा के समान सांद्रता की उपस्थिति द्वारा रोका जाता है और अब रक्त मरीज के शरीर में एक शिरा सामान्यत: रेडियल शिरा द्वारा वापस को लौटा दिया जाता है |
जब रक्त लिया जाता है तो यह 0o C पर ठण्डा कर प्रतिस्कंदक के साथ मिलाया जाता है और तब कृत्रिम वृक्क में पम्प किया जाता है | कृत्रिम वृक्क से आ रहे रक्त का तापमान शरीर तापमान के समान बढ़ा दिया जाता है और हिपेरिन के साथ मिश्रित होता है और शिराओं में लौट जाता है |
वृक्क प्रत्यारोपण
जब दोनों वृक्क पूरी तरह क्षतिग्रस्त (damage)हो जाते है तो वृक्क प्रत्यारोपण किया जाता है | संसार का प्रथम सफल अंग प्रत्यारोपण , वृक्क प्रत्यारोपण था जो कि 1954 में पेटरबेंट हॉस्पिटल david hume और joseph Kelly की देखरेख में किया गया है | भारत में वृक्क प्रत्यारोपण दिसम्बर 1 , 1971 क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज , वेल्लोर (तमिलनाडु) में 35 वर्ष के मरीज shanmughan पर किया गया था |
अधिकांश मरीजों के प्रत्यारोपण से पहले अतिरिक्त द्रव आयतन को कम करने और ऑपरेशन के बाद हाइपरकैलेमिया को कम करने के लिए डायलाइज्ड किया जाता है | ऑपरेशन से पहले एन्टीबायोटिक और immunosuppressive drugs दी जाती है | ऑपरेशन के बाद ही देखभाल बहुत जरूरी होती है |
उत्सर्जन में फेफड़ों , यकृत और त्वचा की भूमिका :
- फेफड़े – वृक्क कार्बन डाइ ऑक्साइड और जल को बाहर निकालने में सहायक होते हैं | सामान्य आराम की स्थिति में फेफड़े लगभग 18 लीटर कार्बन डाइ ऑक्साइड प्रति घंटे और लगभग 400 ml जल प्रतिदिन बाहर निकालते हैं | विभिन्न वाष्पशील पदार्थ भी फेफड़े द्वारा बाहर निकाले जाते हैं |
- त्वचा – त्वचा में बड़ी संख्या में स्वेद ग्रंथियां होती है जो कि रक्त केशिकाओं द्वारा रक्त प्राप्त करती है जिससे ये स्वेद और कुछ उपापचयी अपशिष्ट उत्सर्जित करती है | इस प्रकार त्वचा जल और सूक्ष्म मात्रा में लवण बाहर निकालती है | अत: त्वचा उत्सर्जी अंग की तरह कार्य करती है | त्वचा में सिबेसियस ग्रंथियां सीबम उत्सर्जित करती है जो कि स्टेरोल , मोम और कुछ हाइड्रोकार्बन और वसीय अम्ल युक्त होता है |
- यकृत – यह पित्त वर्णक उत्पन्न करता है | जो कि मृत B.Cs के हिमोग्लोबिन का उपापचयी अपशिष्ट है | यह कोलेस्ट्रोल , स्टीरोइड हार्मोन का निष्क्रिय पदार्थ , कुछ विटामिन्स और बहुत सी दवाएं उत्सर्जित करता है |
Some diseases of urinary system
- Pyelonephritis – यह वृक्क में मैड्यूलरी उत्तक और रीनल पेल्विस की सूजन है | यह बीमारी सामान्यत: बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होती है जो कि मूत्र मार्ग और मूत्रवाहिनी के रास्ते वृक्क तक पहुँच जाते है | इस बीमारी के लक्षण क्रमिक , दर्दयुक्त मूत्रण बुखार और लम्बर क्षेत्र में दर्द होना है |
- ग्लोमेरूलोनेफ्राइटिस – यह पायलोनेफ्राइटिस की प्रगति द्वारा , वृक्क में क्षति अथवा जन्मजात वृक्क में कोई प्रभाव अथवा बैक्टीरिया जैसे streptococci की टोक्सिन के प्रति एलर्जिक अभिक्रिया द्वारा उत्पन्न होता है | ग्लोमेरूलाई संक्रमित हो जाती है | यह Bright’s disease भी कहलाती है |
- सिस्टाइटीस – यह मूत्राशय सूजन है जो संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है और मूत्र मार्ग से फैलता है अथवा नर में बढ़ी हुई प्रोस्टेट ग्रंथि के द्वारा उत्पन्न दबाव से फैलता है |
- रीनल स्टोन – कैल्शियम ऑक्सेलेट और फास्फेट के इक्कठे होने से पीठ से कोलिक दर्द प्रारंभ होता है और जांघ के आगे अथवा वृषणीय अथवा वल्वा की तरफ स्थानांतरित हो जाता है |
- Incontinence – यह मूत्र उत्सर्जन पर नियंत्रण की अयोग्यता अथवा असमर्थता है |
- रीनल ट्यूब्यूलर एसिडोसिस – इस अवस्था में व्यक्ति हाइड्रोजन आयन्स की पर्याप्त मात्रा स्त्रावित करने में असमर्थ होता है | जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में सोडियम बाइकार्बोनेट मूत्र में नियंत्रित मात्रा में उत्सर्जित किये जाते है |
- डिसयूरिया – दर्दयुक्त मूत्रण
- पालीयूरिया – अधिक मात्रा में मूत्र उत्सर्जन
- ओलिगोयूरिया – अल्प मूत्रता
- नेफ्राइटिस – बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण होता है | जिससे वृक्क में सूजन उत्पन्न हो जाती है |
- यूरेमिया (uraemia) – रक्त में यूरिया की सान्द्रता बढ़ जाती है |
- एल्केप्टोन्यूरिया – यह आनुवांशिक रोग है जिसमें होमोजेन्टिसिक एसिड मूत्र के साथ उत्सर्जित किया जाता है |
- Pyuria – मूत्र में मवाद की उपस्थिति |
- Glycosuria – मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिति
- Haematuria – मूत्र में रक्त की उपस्थिति
- इनुलिन एक फ्रेक्टेन संग्रहित पोलीसेकेराइड है | इसका मानव शरीर में उपापचय नहीं होता है और यह पहले से वृक्क द्वारा फिल्टर हो जाता है | यह वृक्क कार्य की जांच , (विशेषत: ग्लोमेरूलर छनित्र) में काम आता है |
- Tubular maxima – पदार्थो (जो सक्रीय रूप अवशोषित होते हैं) की वह अधिक मात्रा जो मूत्र में स्त्रावित होने के अतिरिक्त अवशोषित हो जाती है |
- एन्युरिया – मूत्र की अनुपस्थिति |
- Nocturia – यह वृक्कीय बीमारी है जिसमें रात के समय मूत्र का आयतन इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति इसे निकालने के लिए जागने को मजबूर हो जाता है |
- Gout – यह आनुवांशिक रोग है जो कि रक्त में यूरिक एसिड के उच्च स्तर से सम्बन्धित है |
- Ptosis – वृक्क का प्रतिस्थापन (displacement)
- भारत में प्रथम वृक्क प्रत्यारोपण 1 december 1971 में Christian medical college , vellor , tamil nadu में 35 वर्ष मरीज shanmughan में किया गया |
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