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निम्नलिखित में से किस मार्शल आर्ट में एक अवलंब के रूप में तीर-धनुष का उपयोग किया जाता है ?

पिछले वर्षों के प्रश्न – प्रारंभिक परीक्षा
1. भारत की संस्कृति और परंपरा के अनुसार, ‘कलारिपयाटू‘ क्या है?
(a) यह दक्षिण भारत के कुछ भागों में अभी भी प्रचलित शैव धर्म का एक प्राचीन भक्ति पंथ है।
(b) यह कोरोमंडल क्षेत्र के दक्षिणी भाग में अभी भी मिलने वाली एक प्राचीन शैली वाली कांसे और पीतल की कलाकृति है।
(c) यह मालाबार के उत्तरी भाग में नृत्य और नाटक का एक प्राचीन रूप और एक जीवनयापन परंपरा है।
(d) यह दक्षिण भारत के कुछ भागों में एक प्राचीन मार्शल आर्ट और एक जीवनयापन परंपरा है।

उत्तर
1. (d) कलारिपयाट्ट केरल, तमिलनाडु और मलेशिया के मलयाली समुदाय में प्रचलित एक प्राचीन मार्शल आर्ट है।

अभ्यास प्रश्न – प्रारंभिक परीक्षा
1. भारत के निम्नलिखित मार्शल आर्ट पर विचार करें:
(i) कलारिपयाटू (ii) सिलाम्बम
(iii) गतका
उपर्युक्त में से कौन-से ब्रिटिश शासन में प्रतिबंधित थे?
(a) (i) और (ii) (b) केवल (i)
(c) केवल (ii) (d) (i), (ii) और (iii)
2. निम्नलिखित में से किसका मिलान सही ढंग से नहीं किया गया है?
(a) कलारिपयाटू – केरल (b) गतका – पंजाब
(c) सिलाम्बम – कर्नाटक (d) काथी सामू – आंध्र प्रदेश
3. थांग-टा मार्शल आर्ट से संबंधित निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार करें:
(i) इसकी उत्पत्ति अरुणाचल प्रदेश राज्य में हुई थी।
(ii) इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा निषिद्ध कर दिया गया।
(iii) हो सकता है कि इसकी उत्पत्ति 500 ईसा पश्चात् के आसपास हुई हो।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) (i) और (ii) (b) केवल (ii)
(c) केवल (ii) (d) (i), (ii) और (iii)
4. निम्नलिखित में से कौन-सा मार्शल आर्ट, छऊ लोक नृत्य का आधार है?
(a) चेइबी गद-गा (b) थोडा
(c) परी-खंडा (d) थांग-टा
5. निम्नलिखित में से किस मार्शल आर्ट में एक अवलंब के रूप में तीर-धनुष का उपयोग किया जाता है?
(a) गतका (b) मुष्टि युद्ध
(c) कुटू वरिसाई (d) थोडा
6. संगम साहित्य में निम्नलिखित में से किस मार्शल आर्ट का उल्लेख है?
(a) कुटू वरिसाई (b) काथी सामू
(c) बंदेश (d) कलारिपयाटू

उत्तरः
1. ;a) 2. ;c) 3. ;b) 4. ;c)
5. ;d) 6. ;a)

थोडा
हिमाचल प्रदेश राज्य में उत्पन्न होने वाला थोडा मार्शल आर्ट्स, खेल और संस्कृति का एक मिश्रण है। इसे प्रतिवर्ष बैसाखी (13 और 14 अप्रैल) के दौरान खेला जाता है। प्रधान देवी-देवता, देवी माशू और दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अनगिनत सामुदायिक प्रार्थनाएं की जाती हैं। यह खेल नारकंडा ब्लॉक, थियोंग डिविजन (शिमला जिला), चैपाल डिविजन, सोलन और श्रीमौर जिला सहित राज्य के विभिन्न भागों में काफी लोकप्रिय है।
मार्शल आर्ट एक खिलाड़ी के धनुर्विद्या कौशल पर निर्भर करता है। थोडा के चिन्ह महाभारत से भी प्राप्त होते है जिस समय कुल्लू और मनाली की घाटियों में लड़े गए बड़े-बड़े युद्धों में तीर-धनुष का उपयोग किया जाता था। अतः, थोडा की उत्पत्ति कुल्लू में हुई थी। इसका नाम एक तीर के सर पर लगे गोल लकड़ी के टुकड़े से लिया गया है जो कि उसकी घातक क्षमता को कम करने के लिए प्रयुक्त होता है। इस खेल के लिए आवश्यक उपकरण, अर्थात् लकड़ी के धनुष और तीर, पारंपरिक कुशल कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते हैं। धनुर्धारी की ऊंचाई के आधार पर धनुष की लम्बाई 1.5 से 2 मीटर होती है। तीरों की लम्बाई धनुष के समानुपातिक होती है।
खेल में, दो समूह होते हैं जिनमें से प्रत्येक समूह में प्रायः 500 लोग होते हैं। इनमें से अधिकांश लोग धनुर्धारी नहीं बल्कि नर्तक होते हैं जो अपने-अपने दल का मनोबल बढ़ाने के लिए सम्मिलित होते हैं। इस खेल को एक चिन्हित आगन में खेला जाता है ताकि एक निश्चित सीमा तक अनुशासन को बनाए रखा जा सके। दोनों दलों को पशिस और साथिस कहा जाता है जिन्हें महाभारत के पांडवों और कौरवों का वंशज माना जाता है। धनुर्धारी पैरों पर, घटने के नीचे. निशाना लगाते हैं क्योंकि शरीर के किसी अन्य अंग पर प्रहार करने पर ऋणात्मक अंक मिलते हैं।

गतका
गतका एक हथियार आधारित मार्शल आर्ट है जिसका प्रदर्शन पंजाब के सिखों द्वारा किया जाता है। ‘गतका‘ का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जिसकी स्वाधीनता का सम्बन्ध अनुग्रह से होता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि ‘गतका‘ शब्द एक संस्कृत शब्द ‘गदा‘ से आया है, जिसका अर्थ होता है-सोटा। गतका में हथियारों का कौशलपूर्ण उपयोग देखने को मिलता है, जिनमें सम्मिलित हैं-छड़ी, कृपाण, तलवार और कटार। इस कला रूप में आक्रमण और रक्षा का निर्धारण, हाथों और पैरों की विभिन्न स्थितियों और उपयोग किए गए हथियार की प्रकृति के आधार पर किया जाता है। इसका प्रदर्शन मेले सहित राज्य के अनगिनत त्यौहारों में किया जाता है।

मर्दानी खेल
यह एक पारंपरिक महाराष्ट्रीय सशस्त्र मार्शल आर्ट है जिसका प्रचलन व्यापक रूप से कोल्हापुर जिले में है। मर्दानी खेल मुख्यतः हथियारों के कौशल पर केन्द्रित है जिसमे विशेष रूप से तलवारों, द्रुत चालों, जो कि इसके उत्पत्ति स्थल पर्वतीय क्षेत्रों के अनुकूल है, को प्रदर्शित किया जाता है जो शारीरिक मुद्राओं के उपयोग पर केन्द्रित होता है जो उसके उत्पत्ति स्थल, पहाड़ी शृंखलाओं के लिए अनुकूल है। इसे अद्वितीय भारतीय पाटा (तलवार) और विटा (डोरीदार बी) के उपयोग के लिए जाना जाता है।

लाठी
यह देश का एक प्राचीन सशस्त्र मार्शल आर्ट रूप है। लाठी मार्शल आर्ट्स में उपयोग होने वाले विश्व के सबसे पुराने हथियारों में से एक है। लाठी का अर्थ है एक ‘छड़ी‘ (सामान्यतया बांस की छड़ी), जो सामान्य रूप से 6 से 8 फीट लम्बी होती है और कभी-कभी धातु की नोंक से युक्त होती है। भारतीय पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ऐसी लाठियों का उपयोग करते हुए देखा जा सकता है। मुख्य रूप से पंजाब और बंगाल में प्रचलित यह लाठी अभी भी देश के गाँवों में खेले जाने वाले लोकप्रिय खेलों में से एक है।

इन्बुआई कुश्ती
मिजोरम के इस देशी मार्शल आर्ट, का उद्भव मान्यता के अनुसार 1750 इसवी में डंग्टलैंड गाँव में हुआ है। इसमें बहुत कड़े नियम हैं, जिसके अंतर्गत वृत्ताकार क्षेत्र से बाहर पैर रखने, लात चलाने और घुटने मोड़ने पर मनाही है। उस खेल में विजय प्राप्त करने के लिए नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए प्रतिद्वंद्वी के पैरों को उठाना पड़ता है। इसमें पहलवानों द्वारा बेल्ट (कमर में पहने गए) को पकड़ना भी सम्मिलित है। इस कला रूप को सिर्फ तभी एक खेल की मान्यता दी गई जब मिजोरम के लोग बर्मा से लुशाई की पहाड़ियों पर प्रवास कर गए।

कुटू वरिसाई
सर्वप्रथम संगम साहित्य में उल्लिखित (पहली या दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) कुटू वरिसाई का अर्थ है ‘खाली हाथ से संग्राम‘। कुटू वरिसाई का परंपरा मुख्यतः दक्षिण भारत में है, हालांकि यह श्रीलंका और मलेशिया के उत्तरी-पूर्वी भाग में भी काफी लोकप्रिय है। यह एक निःशस्त्र द्रविड़ी मार्शल आर्ट है जिसका उपयोग श्वेतसार, योग, व्यायाम और श्वास अभ्यास के माध्यम से दंगल और पग कार्य को उन्नत बनाने के लिए किया जाता है। इस कला में उपयोग की जाने वाले प्रमुख तकनीकों में सम्मिलित है दबोचना, प्रहार करना और उलझाना। इसमें सांप, बाज, बाघ, हाथी और बन्दर सहित कई पशु आधारित शैलियों का भी उपयोग होता है।

मुष्टि युद्ध
देश के सबसे पुराने शहर, वाराणसी में उत्पन्न मुष्टि युद्ध एक निःशस्त्र मार्शल आर्ट है। इसमें लात, घंसे घटने और कोहनी से वार करने जैसी तकनीकों का उपयोग होता है। हालांकि अब शायद ही कभी दिखाई देने वाला यह मार्शल आर्ट 1960 के दशक में काफी लोकप्रिय था। मुष्टि युद्ध में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों पहुलओं का समागम था।
इस कला में होने वाली लड़ाइयों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है और उनका नामकरण हिन्दु देवताओं के आधार पर किया गया है जो एक विशेष प्रकार के कला रूप में श्रेष्ठ थे। पहला है जम्बुवंती जिसका अर्थ है प्रतिद्वंदी का उलझाकर और पकड़कर रखते हुए आत्मसमर्पण करने के लिए विवश करना। दूसरा है हनुमती, जो तकनीकी श्रेष्ठता के लिए है। तीसरा है भीमसेनी जो विशुद्ध शक्ति पर केन्द्रित है और चैथा है जरासंधि जो अंग और अस्थिसंधि को तोड़ने पर केन्द्रित है।

मार्शल आर्ट का नाम उत्पत्ति स्थल विवरण
पैका अखाड़ा ओडिशा नत्य और संग्राम का एक संयोजन। इसका उपयोग पहले योद्धाओं द्वारा किया जाता था, अब इसका अभ्यास एक प्रदर्शन कला के रूप में किया जाता है।
स्काय कश्मीर तलवार और ढाल का उपयोग
काथी सामू आंध्र प्रदेश प्राचीन कौशल जिसमें राज्य की राजसी सेना प्रवीण थी।
बंदेश भारत प्राचीन निःशस्त्र मार्शल आर्ट जिसमें प्रतिद्वंद्वी की हत्या किए बिना उसके विरुद्ध विभिन्न उलझाव वाली पकड़ का उपयोग होता है।
मल्ल युद्ध दक्षिण भारत नबन सहित अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई कुश्ती शैलियों से संबंधित पारंपरिक संग्राम कुश्ती।