Fundamentalism in hindi meaning and definition कट्टरपंथी किसे कहते हैं , कट्टरपंथ की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए ?
कट्टरपंथ क्या है ? (What is Fundamentalism?)
‘कट्टरपंथ‘ शब्द का उल्लेख होते ही हमारे दिमाग में एक आधुनिकतावाद-विरोधी, उदारतावाद-विरोधी और धर्मनिरपेक्षता-विरोधी विचार की तस्वीर उभरती है।
कट्टरपंथ या नवजागरणवाद धार्मिक विवेचकों का उनकी दृष्टि में शुद्ध एवं मौलिक मूल्यों और व्यवहारों की ओर लौटने का प्रयास है।
सामाजिक बदलाव की शक्तियाँ कट्टरपंथ के उदय के लिए महत्वपूर्ण हैं। जब कभी समाज में भारी बदलाव आते हैं और बदलाव के कारण समुदाय में उथल-पुथल होती है तो, बहुधा लोगों में अस्मिता का हृास होता है और जड़विहीनता की स्थिति बनती है। इस प्रकार की स्थितियों में लोगों को सांत्वना के लिए जो भी सहारा मिलता है वे उसे पकड़ लेते हैं। कट्टरपंथ किसी अधिक अच्छे पूर्ववर्ती युग की वापसी का वादा करता है। इसके मनोवैज्ञानिक आकर्षण से बचना लोगों के लिए कठिन होता है।
ऐसे अधिक अच्छे युग की वापसी के लिए कट्टरपंथी व्यापक और निरंकुश, कठोर विश्वास पद्धति और आचार-व्यवहारों को जन्म देते हैं जिनमें खुशहाली लाने का वायदा होता है और इसे माननेवालों में गहरी वचनबद्धता लाने की क्षमता रखते हैं। यह वचनबद्धता इतनी प्रबल होती है कि इसे न मानने वालों को उनके अधिकारों से ही वंचित कर दिया जाता है। इसलिए अक्सर कट्टरपंथ उग्र रूप धारण कर लेता है जहाँ हत्या करना और आंतक फैलाना सही माना जाता है। अंततः अपने लिए अलग देश की मांग करना (जैसे इस्राइल और खालिस्तान) अपने लक्ष्य को सही ठहराते हैं।
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जार्ज मार्सडेन ने अपनी पुस्तक फंडामेंटेलिज्म एंड अमेरिकन कल्चर: द शेपिंग ऑफ ट्वेंटिथ सेंचुरी एवेन्जेलकैलियम 1870-1925, में कट्टरपंथ के आरंभिक प्रयोग पर विस्तार से चर्चा की है। उनके अनुसार ईसाई मत के कट्टरपंथी तत्वों की खोज करने के क्रम में अनेक पुस्तकें लिखी गईं और इन्हीं पुस्तकों में कट्टरपंथ, कट्टरपंथी आदि शब्दों का प्रयोग बार-बार हुआ। इन पुस्तकों में खासकर विज्ञान के विकासवाद के सिद्धांत, उदारवादी दर्शन और यहाँ तक कि उदारवादी धर्मशास्त्रों पर भी प्रहार किया गया। उनके अनुसार ये सब ‘लोकप्रिय अमेरिकी संस्कृति‘ के प्रमुख तत्व ‘संतों में निष्ठा के भाव‘ को नष्ट कर रहे हैं। इन कट्टरपंथियों का उद्देश्य अमेरिकी संस्कृति की पुरातनता को पुनर्जीवित करना था।
संक्षेप में कहा जाता तो, 1910-1915 के बीच कट्टरपंथ को केंद्र बनाकर बारह पुस्तकें प्रकाशित हुईं जिन्हें कैलिफोर्निया के धनी भक्तों ने वित्तीय सहायता प्रदान की। इनका संपादन लोकप्रिय एवेंजेलिस्टों और शिक्षकों ने किया जो पंथ की आधारशिला के आधारभूत तथ्यों को खोजने का प्रयास कर रहे थे। लगभग तीस लाख प्रतियाँ वितरित की गईं। जब इस वितरण के बावजूद जनता पर गंभीर प्रभाव नहीं पड़ा तब विभिन्न धार्मिक पुनरुत्थानवादी आंदोलनों के विश्लेषण के क्रम में कट्टरपंथी/ कट्टपंथ शब्दों का इस्तेमाल किया गया। (फ्राइकेनबर्ग, 1988: 21-22)
ईरान में व्याप्त कट्टरपंथ (Fundamentalism in Iran)
इस अनुभाग में हमने ईरान में व्याप्त कट्टरपंथ की चर्चा की है। जैसा कि आप जानते होंगे, 1979 में ईरान के शाह का तख्ता पलट दिया गया था और उन्हें देश से भागने पर मजबूर कर दिया गया था। उनकी जगह अयातुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में इस्लामी तंत्र ने सत्ता की बागडोर संभाल ली थी।
इस घटना ने पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। व्यापक विदेशी समर्थन वाले इस एक सबसे मजबूत राजतंत्र को कुछ मुल्लाओं ने उखाड़ फेंका था। बहुतों ने तब यह अपेक्षा की थी कि इससे अफरा-तफरी मच जाएगी और इस्लामी शासन कुछ दिनों से अधिक नहीं चल पाएगा। लेकिन यह शासन चला । वे कौन से कारक थे जिन्होंने धर्म को राजनीति के केंद्र में ला दिया? क्या ईरान का यह इस्लामी कट्टरपंथ आधुनिकता से पलायन था ? क्या यह मध्य युग की ओर वापसी थी ? क्या यह रचनात्मक शक्ति बन सकी ?
आगे हम इन्हीं कुछ मुद्दों की चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि ईरान के हाल के इतिहास में किस प्रकार विदेशी वर्चस्व ओर स्थानीय निर्मम नेतृत्व का बोलबाला रहा। हम देखेंगे कि किस प्रकार अत्यंत विकृत रूप में विकास हुआ और अब हम यह भी देखेंगे कि सामाजिक प्रक्रिया में किस प्रकार धर्म ने अहम भूमिका निभाई है।
ईरान में राजतंत्र (The Monarchy in Iran)
ईरान के राजतंत्र का इतिहास 2500 वर्ष पुराना है। इसका अंत 17 फरवरी, 1979 को पहलवी वंश को उखाड़ फेंकने के साथ हुआ ।
यहाँ हम तीन वंशों की चर्चा राजनीतिक संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता के कारण करेंगे।
प) अकेमिंड वंश (।बीमउपदके क्लदंेजल)- इस्लाम पूर्व युग में ईरान पर शासन करता था। इस वंश के दो शासक साइरस (553-521 ई.पू.) और डेरियस (521-496 ई.पू.) ने अपने साम्राज्य को उत्तर भारत से यूनान तक फैलाने का सपना देखा था। यह सपना उस समय चकनाचूर हो गया जब सिकंदर ने 321 ई.पू. में फारसी साम्राज्य को नष्ट कर दिया । पहलवी (Pahlavi) वंश के राजा इस्लाम पूर्व की फारसी सभ्यता से गूढ़ रूप से प्रभावित थे।
पप) साफाविद वंश (Safavid Dynasty) (550-1779) मध्ययुगीन ईरान पर राज्य करता था । इस्लाम उस समय प्रमुखता प्राप्त कर चुका था। साफविदों ने शिया धर्म को राज्य धर्म बनाया और ऑटोमन साम्राज्य से संबंध रखने वाले सुन्नी संप्रदाय का शुद्धिकरण किया। साफाविद और ऑटोमन साम्राज्य दोनों ने ही शिया-सुन्नी तनाव का लाभ उठाया। इस तरह उन्होंने दोनों संप्रदायों के बीच नफरत भड़का कर अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाया।
इस्लामी धार्मिक सत्ता पर नियंत्रण बनाने के लिए साफाविदों ने यह दावा किया वे पैगम्बर मोहम्मद के वंशज थे। इस तरह उन्होंने धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व दोनों को अपने हाथों में लेने का प्रयास किया। बाद में पहलवियों ने साफविदों के इसी खेल को जारी रखते हुए इस्लाम को राजकीय धर्म बनाया और साथ ही इसकी ताकत को भी कम किया।
पपप) कजार वंश (Qajar Dynasty) (1795-1924) के नेता सक्षम नहीं थे। उन्होंने जब चाहा तब अपने राजनीतिक प्रतिदंद्वियों की हत्या की। वे मनमानी ब्याज दरों पर ऋण देने और ईरान में अपने हितों को मजबूत करने वाली विदेशी ताकतों पर अत्यधिक निर्भर थे।
पअ) पहलवी वंश (Pahlavi Dynasty) की जड़े कुलीनतम में नहीं थी। इसके संस्थापक रजा खान सेना में कर्नल थे। उन्होने 1923 में कजार शाह सरकार का तख्ता पलटा और 1925 में ईरान के नए शाह बन गए।
आकेमिंड (।बीमउपदके) वंश से प्रेरित हो कर उन्होंने अपने वंश का नाम ‘पहलवी‘ रखा। यह पुराना फारसी नाम था। साफाविदों की परंपरा का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी इस्लाम को राजकीय धर्म बनाए रखा और साथ ही इसकी ताकतों पर लगाम लगाने का भी प्रयास किया। कजार वंश के पदचिह्नों पर चलते हुए, पहलवियों ने ईरान को विदेशी ताकतों पर और भी अधिक निर्भर कर दिया।
पश्चिम का प्रभाव (The Impact of the West)
पश्चिम एशिया के अन्य देशों की तरह ईरान में तेल पाए जाने से विदेशी ताकतों के आर्थिक हित उस ओर आकर्षित हुए। रूस और इंगलैंड, ईरान में आर्थिक और राजनीतिक वर्चस्व के लिए संघर्ष करने वाली प्रमुख ताकत थीं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश नौ सेना ने कोयले की जगह तेल का इस्तेमाल शुरू किया और ब्रिटिश शासक ईरान के संसाधनों का लाभ उठाने के लिए रणनीतियों की तलाश करने लगे।
ईरानियों के माध्यम से तेल का उत्पादन अच्छी खासी गति से बढ़ा, फिर भी ईरानी खुद उसका फायदा नहीं उठा सके। ईरान में भारी बेरोजगारी होने के बावजूद ईरान से मजदूर न लेकर इंगलैंड ने भारत से मजदूर मंगवाए। सभी महत्वपूर्ण पदों पर ब्रिटिश लोगों को नियुक्त किया गया और कपड़ा, खाना, फल और सीमेंट जैसी उनकी जरूरत की सारी चीजें ईरानी व्यापारियों से न खरीद कर इंगलैंड से मंगवाई गईं। इस कारण ईरान में विदेशियों के प्रति काफी चिढ़ पैदा हो गई।
अंग्रेजों ने अपने हितों की रक्षा के लिए कर्नल रजा ज्ञान का समर्थन किया और उन्हें शाह (सम्राट) बनने में मदद की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकियों ने ईरान में पैठ कर ली। उनकी तेल की जरूरत इंगलैंड से भी ज्यादा थी। इंगलैंड, अमेरिका तेल कंपनियों और पहलवियों ने एक दूसरे से सहयोग किया और आपस में एक समझौता किया। इस समझौते में कागजी तौर पर तो तेल उद्योग का स्वामी ईरान को रखा गया लेकिन वास्तव में इस उद्योग का पूरा नियंत्रण विदेशी हाथों में चला गया। तेल का उत्पादन, मूल्य निर्धारण और विपणन सभी कुछ विदेशी हाथों में था। ईरान को राजनीतिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर परेशानी उठानी पड़ी। विदेशी ताकतों की दखलांदाजी का एक नतीजा यह हुआ कि ईरानी समाज के सभी तबकों में राष्ट्रवाद की भावना उभरने लगी। ईरानियों को विदेशी ताकतों के कारण स्वायत्तता से वंचित होने और शोषण के सिवाय कुछ न मिला।
पश्चिमी देशों के साथ संपर्क होने से धर्मनिरपेक्षता अथवा धर्म और राजनीति के अलगाव का विचार भी आया । इसके परिणामस्वरूप अध्ययन की अनेक संस्थाएं कायम हुई। 1851 में स्थापित होने वाला कला एवं विज्ञान संस्थान (दर-अल-फनून) इसका एक उदाहरण है। अंग्रेजी और फ्रांसीसी के क्लासिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद हुआ और इसके आदर्शों का अग्रणी बौद्धिक वर्ग ने प्रचार किया।
पहलवी शासन के दौरान पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण के घोर प्रयास हुए। पश्चिमी वेशभूषा, अंग्रेजी और फ्रांसीसी के इस्तेमाल और पश्चिमी शिक्षा पर जोर दिया गया । रजा खान ने शैक्षिक और वैधानिक सुधारों के माध्यम से राजनीतिक तंत्र को धार्मिक प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास किया । ‘मकतबों‘ (मस्जिदों स्कूलों) और मदरसों (धार्मिक स्कूलों) को राज्य के केंद्रीकृत नियंत्रण के अधीन कर दिया गया। यह इस्लामी परंपरा से बहुत हट कर था। ‘शरीअत‘ या धार्मिक कानूनों की जगह फ्रांसीसी नागरिक संहिता पर आधारित नई विधि संहिता लागू की गई। मोहम्मद रजा के शासन के दौरान, मौजूदा शिक्षा प्रणाली की समीक्षा का काम एक अमेरिकी फर्म को सौंपा गया।
पहलवी वंश के शासन का कुल परिणाम दो विरोधी वर्गों के जन्म के रूप में सामने आया। एक ओर तो ईरान में शिक्षित, धर्मनिरपेक्ष अभिजात वर्ग था और दूसरी ओर गरीब, वफादार मुसलमानों का वह जनसमूह था जिसका पश्चिमी शिक्षा प्राप्त युवकों की अपेक्षा गांव के मुल्लाओं में अधिक विश्वास था।
पहलवी वंश ने ईरान को वस्तुतः पश्चिम के हाथों में बेच दिया था। इसकी स्वदेशी प्रतिमा, परपंराओं और जीवन शैली को किनारे कर दिया गया था विशेषकर मोहम्मद शाह पहलवी ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को ऊपर से नीचे की ओर जबरन लागू करने का प्रयास किया । ये नीतियाँ विदेशी ताकतों के इशारे पर लागू की गई थी और अभिजात वर्ग के लाभ के लिए थी। मोहम्मद शाह पहलवी को उस बहुसंख्यक आबादी को अलग करने में सफलता मिली जो अपनी विरासत और मूल्यों के कहीं अधिक निकट थी। इस्लाम पुनर्जागरण ने यह विकल्प प्रदान किया।
ईरान में इस्लाम का पुनरुत्थान (The Resurgence of Islam in Iran)
बर्नार्ड लुईस के अनुसार, हमें अगर इस विषय में कुछ भी समझना है कि मुस्लिम जगत में क्या हुआ और क्या हो रहा है तो, हमें दो बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना होगा। पहला है, मुस्लिम लोगों की जिंदगियों में एक कारक के रूप में धर्म की सार्वभौमिकताय और दूसरा है उनके धर्म की निश्चितता ।
लुईस के अनुसार, अंततः राज्य से अलग हो जाने वाले यहूदी और ईसाई धर्मों के विपरीत, इस्लाम, पैगम्बर मोहम्मद के जीवनकाल से ही राज्य का पर्याय रहा है। इस्लाम के इतिहास, अनुभव और पवित्र ग्रंथों से यही तथ्य उजागर होता है। मोहम्मद केवल पैगम्बर नहीं थे, वे सिपाही और राजनयिक भी थे, और उनके अनुयायियों का विश्वास था कि वे परमेश्वर के दैवीय विधान को समूची दुनिया में कायम करके उसे पसंद आने लायक हो सकते थे।
मुसलमानों का धर्म केवल सार्वभौमिक नहीं बल्कि इस अर्थ में केंद्रीय भी था कि यह अस्मिता और निष्ठा का आधार और आकर्षण केंद्र प्रदान करने वाला था। जैसा कि हम देख चुके हैं, ईरान में राजतंत्र ने इस्लाम को ईरानियों के जीवन में उसके महत्व के कारण और इस कारण भी समाप्त करने का प्रयास किया कि मुल्ला लोग उस किसी भी उपाय का विरोध करते थे जिनसे उनके विचार में दैवीय बिधान का उल्लंघन हो सकता था।
इसी पृष्ठभूमि में हम 1979 में मोहम्मद रजा शाह के तख्ता पलटने की घटना को समझ सकते हैं, जैसा कि हम देख चुके हैं, शाह ने जनसाधारण को सफलतापूर्वक अलग-थलग कर दिया। अपने शासन के दौरान, मस्जिद राजनीतिक असंतोष का एकमात्र शरण स्थान रह गई थी और लोग सहायता के लिए केवल धार्मिक संस्था की ओर जा सकते थे। आम लोगों से निकटता के कारण मुल्ला लोग शाह के विरूद्ध पनप रहे आक्रोश और कुंठा से अच्छी तरह परिचित थे। इसी विकट स्थिति में आयातुल्लाह खोमैनी (1900-1989) ने नेतृत्व प्रदान किया। खोमैनी ने वर्षों तक शाह की नीतियों और गतिविधियों का विरोध किया था। उनके 1964 के भाषण का अंश है:
“आप ईरान को आधुनिक बनाने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं जबकि आप बुद्धिजीवियों को कैद कर रहे हैं और उनकी हत्या कर रहे हैं ? ईरानियों को राज्य और अपने विदेशी मालिकों की सेवा में दब्बू, निरीह साधनों में बदलना चाहते हैं।
इस्लामी मूल की ओर वापसी (A Return to Islamic Roots)
इस्लाम में सामाजिक न्याय (अदल्लाह) की धारणा गहराई तक बैठी है। शाह के शासनकाल में ईरान में जो संपदा की भारी विषमताएँ मौजूद थी वे बुनियादी संसाधनों की स दायिक साझेदारी की इस्लामी नीति के पूर्णतः विपरीत थीं।
ईरान में मौजूद भ्रष्ट राजनीतिक नेतृत्व और विकृत आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए हमें यह बात समझ में आ सकती है कि इस्लाम को सामाजिक-आर्थिक न्याय लाने वाला विकल्प क्यों माना गयाः
इस्लामी कट्टरपंथ को आधुनिकता से पलायन के रूप में खारिज करना सरल बयानी होगी। इसके विपरीत, कुछ मुसलमान इस्लाम को सामाजिक न्याय पर आधारित सामाजिकराजनीतिक बदलाव लाने वाले सार्थक माध्यम के रूप में देखते हैं दूसरी ओर, कुछ मुसलमान इस्लाम का आव्हान बदलाव रोकने के लिए भी करते हैं। ईरान और अन्य मुस्लिम राष्ट्रों के सामने चुनौती संतुलन बनाने की है, कि वे उन मूलभूत धार्मिक मूल्यों की ओर लौटें जो समाज के कल्याण के पोषक हैं, उसके कल्याण की दिशा में बाधक नहीं है।
बोध प्रश्न
1) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
क) साइरस………………..वंश का प्रसिद्ध शासक था
ख) ………………….का 1979 में तख्ता पलट दिया गया ।
ग) इस्लाम में अदाला (।कंसंी) अथवा………………..की धारणा गहराई तक बैठी है।
पप) संक्षेप में उत्तर दीजिए:
क) ईरान में तेल की खोज के प्रभाव का वर्णन कीजिए। अपना उत्तर पांच पंक्तियों में दीजिए।
ख) धर्मनिरपेक्षीकरण के पश्चिमी विचार ने ईरानी समाज पर क्या प्रभाव डाला?
अपना उत्तर पांच पंक्तियों में दीजिए।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) रिक्तं स्थानों की पूर्ति
क) साइरस आकेमिंड वंश का प्रसिद्ध शासक था
ख) मोहम्मद रजा शाह का 1979 में तख्ता पलट दिया गया।
ग) इस्लाम में ‘अदाला‘ अथवा सामाजिक न्याय की धारणा गहराई तक बैठी है।
2) क) ईरान में तेल की खोज ने विदेशी ताकतों की दिलचस्पी ईरान की ओर पैदा की। ईरान में आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष करने वाली मुख्य ताकतें रूस और इंगलैंड थीं: ईरान में तेल का उत्पादन काफी बढ़ जाने के बावजूद ईरानी स्वयं उसका लाभ नहीं उठा सके। बेरोजगारी के बावजूद तेल मजदूरों को ईरान से न लेकर बाहर से बुलाया गया। सभी महत्वपूर्ण पद अंग्रेजों के पास रहें बाद में अमेरिकी भी आ गए। इंगलैंड, अमेरिका और पहलवियों ने मिल कर समझौता कर लिया, जिसमें कागजी तौर पर तेल उद्योग का स्वामित्व ईरान को दे दिया गया, लेकिन व्यवहार में तेल उद्योग का पूरा नियंत्रण विदेशी ताकतों के हाथों में गया । उत्पादन, मूल्य निर्धारण और विपणन सभी कुछ विदेशी ताकतों के हाथों में रहा । ईरान को कुल मिलाकर राजनीतिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर हानि ही हुई।
ख) पश्चिमी देशों के साथ अन्योन्यक्रिया से धर्मनिरपेक्षीकरण के विचारों का भी ईरान में प्रवेश हुआ । इस विचार में धर्म और राजनीति को अलग रखने की धारणा थी। इसके परिणामस्वरूप कला एवं विज्ञान संस्थान (1851) जैसी ज्ञान की अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई। वाल्तेयर, रूसो, मांटेस्क्यू, बेंथम आदि के विचारों का प्रमुख बुद्धिजीवियों ने प्रचार किया। पहलवी राजा शाह रजा खान ने शैक्षिक और कानूनी सुधारों के माध्यम से राजनीतिक तंत्र को धर्म के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास किया। ‘मकतब‘ (मस्जिदी स्कूल) और ‘मदरसा‘ (धार्मिक स्कूल) को राज्य के केंद्रीकृत नियंत्रण में ले लिया गया। शरियत अथवा धार्मिक कानूनों के स्थान पर फ्रांसीसी नागरिक संहिता पर आधारित एक नई कानून संहिता को लागू किया गया। यह इस्लामी परंपरा से बिल्कुल हट कर था।