प्रकाश अभिक्रिया की Z स्कीम का वर्णन कीजिए z scheme of photosynthesis in hindi

z scheme of photosynthesis in hindi प्रकाश अभिक्रिया की Z स्कीम का वर्णन कीजिए ?

प्रकाश रासायनिकी (Photochemistry)
प्रकाश संश्लेषण को प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं का एक चक्र कहा जा सकता है जिसमें कि कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन मिलकर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इन तत्वों के स्रोत CO2, H2O है एवं ऊर्जा का स्रोत प्रकाश होता है। वॉन नील (Van Niel) के अनुसार जल प्रकाश संश्लेषण में हाइड्रोजन प्रदाता है। रूबेन (Ruben, 1941) ने यह सिद्ध किया कि जब पादपों को H2O18 (जिसमें समस्थानिक आक्सीजन O18 होती है) की आपूर्ति दी जाती है तब उस जल से O18 हमेशा आणविक आक्सीजन (O218) के रूप में विमोचित होती है जबकि CO2 की आक्सीजन हमेशा कार्बोहाइड्रेट में समायोजित होती है। इस क्रिया में कार्बन एवं ऑक्सीजन दोनों का स्रोत CO2 होती है परन्तु H2O केवल हाइड्रोजन का । इसलिए जल H एवं O में विघटित हो जाता है तथा यह अभिक्रिया निम्न प्रकार होनी चाहिए-
चरण 1: 2H2O प्रकाश ऊर्जा → 2H2] + O2 ( उत्पाद)
चरण 2: CO2 + [2H2] → [CH2O] + H2O (उत्पाद)
कार्बोहाइड्रेट इकाई
प्रथम चरण में जल कच्चे माल की तरह उपयोग होता है तथा जल दूसरे चरण में उत्पाद के रूप में प्राप्त हो जाता है
प्रथम चरण प्रकाश रासायनिक स्थिति (photochemical phase) होता है जिसमें पर्णहरित द्वारा प्रकाश ऊर्जा को प्राप्त करके जल का प्रकाशिक जल अपघटन (photolysis of water) होता है। इसे हिल (Hill, 1937) के नाम पर हिल अभिक्रिया (Hill reaction) भी कहते हैं। यह प्रकाश आधारित आक्सीकरण प्रास्थिति होती है।
दूसरे चरण को विघटनीय CO2 स्थिरीकरण अथवा ब्लैकमेन अभिक्रिया भी कहते हैं। इस अभिक्रिया में CO2 के कार्बन एवं ऑक्सीजन से जल के प्रकाशिक जल अपघटन से प्राप्त हाइड्रोजन जुड़ जाती है। यह क्रिया प्रकाश पर आधारित नहीं होती इसलिए इसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) भी कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण के प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए साक्ष्य (Evidences for light and dark reactions in photosynthesis)
निम्न तथ्य प्रकाशसंश्लेषण एवं अप्रकाशिक अभिक्रियाओं की उपस्थिति को प्रमाणित करते हैं।
1. प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रियाओं का पृथक्कीरण (Physical separation of light and dark reactions) : यदि पृथक किये गये क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना को उपयुक्त हाइड्रोजन ग्राहियों की उपस्थिति तथा CO2 की अनुपस्थिति में उद्भासित किया जाए तो ऑक्सीजन मुक्त होती है तथा ATP एवं NADP. 2H के रूप में संग्रहण ऊर्जा ( assimilatory power) उत्पन्न होती है। इन्हें जब CO2 की उपस्थिति में स्ट्रोमा को प्रदान किया जाता है तथा अन्धकार में रखा जाता है तब कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। यह प्रयोग स्पष्ट रूप से प्रकाश संश्लेषण में प्रकाशिक अभिक्रिया (ग्रेना में) एवं अप्रकाशिक अभिक्रिया (स्ट्रोमा में) की उपस्थिति को प्रमाणित करता है।
2. तापमान गुणांक (Q10) अध्ययन (Temperature coefficient (Q10) studies)
किसी अभिक्रिया की दर का किसी तापमान पर तथा उस से 10°C कम तापमान पर अभिक्रिया की दर के अनुपात को तापमान गुणांक (Q10) (temperature coefficient) कहते हैं। Q10 का मान शुद्ध रसायनिक अभिक्रिया के लिए 2 अथवा इससे अधिक होता है परन्तु प्रकाशिक अभिक्रिया के लिए इकाई अर्थात् Q10 = 1 होता है।
ब्लैकमैन (Blackman) ने पाया कि जब प्रकाश संश्लेषण की गति तेज होती तब Q10 का मान 2 से अधिक तथा धीमी होने पर इसका मान 2 से कम, 1 तक भी गिर जाता है। इन प्रयोगों से सिद्ध होता है कि प्रकाश संश्लेषण क्रिया में अप्रकाशिक अभिक्रिया (Q10 = 2 से अधिक ) एवं प्रकाश रसायनिक अभिक्रियाऐं (Q10 = 1) होती है।
3. आंतरायिक प्रकाश के साथ प्रयोग (Experiments with intermittent light)
वारबर्ग (Warburg, 1919) ने एक प्रयोग में क्लोरेला (Chlorella) के पादपों को सतत तथा अन्य प्रयोग में आंतरायिक (intermittent) प्रकाश दिया। दोनों ही प्रयोगों में कुल प्रकाश समान समय के लिए दिया गया था। परन्तु दूसरी स्थिति प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है। उन्होंने पाया कि आंतरायिक प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ जाती है। सतह प्रकाश में प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद (NADP. 2H एवं ATP) का प्रयोग उस दर से नहीं हो पाता जिस दर से वे उत्पन्न होते हैं। परिणमस्वरूप इनका संग्रहण हो जाता है। परन्तु आंतरायिक प्रकाश में प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद CO • कार्बोहाइड्रेट में स्थिरीकरण में प्रकाश तथा अप्रकाशिक स्थिति दोनों में प्रयुक्त हो जाते हैं। NADP. 2H एवं ATP का यह संग्रहण नहीं होता क्योंकि यह अंधकार में उत्पन्न नहीं होते ।
1. प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया अथवा प्रकाश अभिक्रिया (Photochemical reaction or light reaction)
प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया को हिल अभिक्रिया भी कहते हैं तथा यह हरित लवक के ग्रेना (grana) में सम्पन्न होती है । इस अभिक्रिया के लिए प्रकाश अतिआवश्यक होता है। यह निम्न प्रकार से होती है:
(1) पर्णहरित के इलेक्ट्रॉन का प्रकाशिक उत्तेजन (Photoexcitation of an electron of chlorophyll)
पर्णहरित अणु प्रकाश क्वान्टम के अवशोषण से उत्तेजित हो जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्ज स्तर में चले जाते हैं। इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा अपव्यय न होकर किसी तरह ग्रेना द्वारा पकड़ ली जाती है। यह ऊर्जा सीधे है। जल को H एवं OH समूहों (आयन में नहीं) में पृथक करने में प्रयुक्त होती है। इसके पश्चात् हाइड्रोजन परमाणु H+ तथ e- में आयनीकृत हो जाते हैं। OH- मूलक (radical) पुनः विन्यासित होकर H2O तथा O2 बनाते हैं।
प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया में दो फोटोएक्ट जिन्हें फोटोएक्ट-I ( प्रकाश तंत्र -1 ) ( photo act I= photosystem के एवं फोटोएक्ट II (प्रकाश तंत्र – II) (photoact-II = photosystem – II) कहते हैं। यह फोटोएक्ट विभिन्न प्रकार तंत्र द्वारा सम्पन्न होते हैं। फोटोएक्ट I, वर्णक तंत्र I में तथा फोटोएक्ट-II वर्णक तंत्र – II में घटित होता है।
प्रकाश अभिक्रिया में दो वर्णक तंत्रों की उपस्थिति के साक्ष्य
(Evidence for the existence of two pigment systems in light reactions)
रोबर्ट एमर्सन (Robert Emerson) एवं उनके सहयोगियों ने प्रकाश अभिक्रिया में दो प्रकाश तंत्रों की उपस्थिति के साक्ष्य प्रस्तुत किये। प्रकाश संश्लेषण में एक ऑक्सीजन अणु के उत्पादन में आवश्यक फोटोन अथवा क्वांटा की संख्या को क्वांटम आवश्यकता (quantum requirement) कहते हैं। एक क्वांटम प्रकाश अवशोषित करने पर मुक्त आक्सीजन अणुओं की संख्या को क्वांटम लब्धि (quantum yield) कहते हैं। इमर्सन (Emerson, 1958) ने बताया कि CO2 अणु के कार्बोहाइड्रेट में अपचयन एवं एक O2 अणु बनने में कम से कम 8 क्वान्टा प्रकाश की आवश्यकता होती है इसलिए क्वान्टम यील्ड 1/8 = 0.125 होगी।
लाल पतन ( एमरसन का प्रथम प्रयोग ) [ Red drop (Emerson’s first experiment)]
एमरसन एवं लुइस (Emerson and Lewis, 1943) ने क्लोरेला (Chlorella) के पादपों को एकवर्णी प्रकाश में रखा अर्थात एक बार में एक तरंगदैर्घ्य का प्रकाश दिया तथा क्वान्टम लब्धि (quantum yield) को नापा अर्थात किस तरंगदैर्ध्य पर प्रकाश संश्लेषण प्रबल (vigrous) होता है। ग्राफ से पता चलता है कि लाल प्रकाश से ऊपर (680 nm) के क्षेत्र में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है। इसलिए इसे रेड ड्राप (red drop ) कहा जाता है।
संवृद्धि प्रभाव (एमरसन का द्वितीय प्रयोग)
एमरसन एवं उनके साथियों (1957) ने अवलोकन कर बताया कि क्लोरेला (Chorella) में यदि असक्षम अवरक्त प्रकाश 680 mp से अधिक तरंगदैर्घ्य के साथ यदि छोटी तरंग दैर्ध्य का प्रकाश भी दिया जाये तो इसे अधिक सक्षम बनाया जा सकता है। उन्होंने पाया कि क्वान्टम उत्पाद की मात्रा दो प्रकाश में अलग अलग क्वान्टम उत्पादों की मात्रा के योग से अधिक होता है ।
यदि अवरक्त तरंग दैर्ध्य (far red wave length) 680 nm से अधिक पर प्रकाश संश्लेषण की दर A हो, लाल तरंग दैर्घ्य पर B एवं यदि दोनों तरंग दैर्घ्य दिये जाने पर यह C होती है तब C का मान A + B के मान से अधिक होता है । प्रकाश संश्लेषण में इस संवृद्धि को एमरसन का संवृद्धि प्रभाव (Emerson’s enhancement effect) कहते हैं।
उपर्युक्त दोनों प्रयोगों से यह प्रमाणित हुआ कि प्रकाश संश्लेषण में दो प्रकाश-रासायनिक तंत्र (photo-chemical systems) जो कि आगे-पीछे अलग-अलग समुचित तरंगदैर्घ्य पर कार्य करते हैं। वर्णक्रम के लाल क्षेत्र में एक प्रकार की प्रकाशीय अभिक्रिया होती है जिसे प्रकाश तंत्र-I (Photo system -1) कहते हैं। इसमें मुख्यतया अवरक्त प्रकाश (far red light) जिनकी तरंगदैर्घ्य 680nm से अधिक होती है, अवशोषित होता है। दूसरे प्रकार की प्रकाशीय अभिक्रियायें जिसे प्रकाश तंत्र -II (Photysystem-II) कहते हैं, 680 nm तरंगदैर्घ्य का प्रकाश में अवशोषित करता है परंतु अवरक्त प्रकाश में बहुत ही कम कार्य करता है। यह प्रकाश तरंगदैयों पर आधारित निष्कर्ष लाल पतन एवं संवृद्धि प्रभाव को समझने में सहायक हैं।
प्रकाश तंत्र – I (पी एस-I) [ Photosystem-I (PS-I)]
स्रकाश तंत्र—I (phostosystem, PS-I) सामान्यतः लम्बी तरंग दैर्ध्य अवशोषित करने वाले वर्णकों से युक्त (Chl-660, Chi–670, Chl–680, Chl-690) होता है। पर्णहरित a (Chla) के अलावा PS-I में पर्णहरित b, केरोटिनाइड, जैन्थोफिल एवं फाइकोबिलिन भी होते हैं । PS-I के केन्द्रीय (core) संकुल में P700 (विशेष Chl a अणु जो 700 nm के निकट प्रकाश अवशोषित करता है) एवं दो लौह युक्त फेरिडोक्सिन समान प्रोटीन जिसे Fe-S प्रोटीन कहते हैं भी होते हैं। Fe-S प्रोटीन PS-I के प्राथमिक इलेक्ट्रॉन ग्राही होते हैं। PS-I में वर्णकों की सही संख्या का ज्ञान अभी नहीं है तथापि यह 110 प्रति अभिक्रिया केन्द्र आकलित की गई है ।
PS-I लाल एवं अवरक्त दोनों ही प्रकाश में सक्रिय होता है। यहाँ NADP+ का अपचयन होता है। यह तंत्र चक्रिक इलेक्ट्रॉन अभिगमन से संबन्धित होता है तथा स्ट्रोमा पटलिकाओं (stroma lamellae) तथा ग्रेना के किनारे पर उपस्थित होते हैं ।
प्रकाश तंत्र II (पीएस – II) [ Photosystem II (PS – II)]
प्रकाश तंत्र II _ (photosystem, PS-II) सामान्यतः छोटी तरंग दैर्ध्य युक्त प्रकाश को अवशोषित करने वाले वर्णकों (Chl- 650, Chl–660, Chl−670, Chl – 678) से युक्त होता है। इसमें विभिन्न संख्या में Chla, Chl b एवं कैरोटिनाइड भी होते है। . PS-II के केन्द्रिय संकुल में अभिक्रिया केन्द्र Chla (अर्थात P680 ) का होता है। इसमें दो या अधिक इलेक्ट्रॉन दाता जो आक्सीकारी अथवा उपचायक संकुल (अज्ञात) पर क्रिया करते हैं, एक मध्यस्थ इलेक्ट्रॉन ग्राही (प्रायः फीयोफायटिन pheophytin) तथा दो बद्ध क्यूनोन (quinone) (QA एवं QB) PS-II के प्राथमिक एवं द्वितीयक इलेक्ट्रॉन ग्राही के रूप में क्रियाशील होते हैं, भी उपस्थित होते हैं ।
PS-II संकुल अवरक्त प्रकाश (680 nm से अधिक ) में निष्क्रिय होता है। इसमें हिल ऑक्सीकारकों की उपस्थिति में आण्विक O2 मुक्त होती हैं तथा हिल अभिक्रिया सम्पन्न होती है। यह अचक्रिक इलेक्ट्रॉन अभिगमन में भाग लेता है तथा PS- I के अभिक्रिया केन्द्र को अपचयित कर देता है।
तालिका – 2 : वर्णक तंत्र – I एवं वर्णक तंत्र-II के मध्य अन्तर
वर्णक तंत्र – I (PS-I)
वर्णक तंत्र – II (PS-II)

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7. PS-I थायलेकॉइड की बाहरी सतह पर उपस्थित होता है।

इस तंत्र में लगभग 200 से 400 पर्णहरित अणु, 50 | केरोटिनाइड, p700 के अभिक्रिया केन्द्र का एक अणु (Chl a700) तथा दो लौह युक्त प्रोटीन FeS प्रोटीन जो फेरिडोक्सिन के समान होते हैं उपस्थित होते हैं।

इस तंत्र में तीव्र अपचायक उत्पन्न होते हैं जो NADP को NADPH + H + में अपचयित करते हैं।

यह चक्रिक एवं अचक्रिक दोनों ही फोटोफास्फो- राइलेशन प्रकाश फास्फेटीकरण में प्रयुक्त होता है।

इसमें आण्विक ऑक्सीजन मुक्त नहीं होती है।
जब पर्णहरित का द्रुत अपकेन्द्रण (ultra centrifu gation) होता है तो यह हल्के अंश में आता है।

क्लोरोफिल b अणुओं की संख्या सामान्यतः कम होती है

यह थायलेकॉइड की अन्तः सतह पर उपस्थित होते हैं।

इस तंत्र में 200 पर्णहरित अणु, 50 केरोटिनाइड, एक P680 अभिक्रिया केन्द्र का अणु (Chl a 680) शामक यौगिक Q (क्वीनोन) Mn + +, CI- तथा एक अज्ञात जल ऑक्सीजन विकर होता है।

PS-II, NADP + के अपचयन के दौरान अपने इलेक्ट्रॉन PS-I को दान कर देते हैं।

यह अचक्रिक प्रकाश फास्फेटीकरण में प्रयुक्त होता है।

यह तंत्र जल के विघटन एवं आण्विक ऑक्सीजन के मुक्त होने के लिए उत्तरदायी है।

यह भारी अंश में आता है।

क्लोरोफिल b अणुओं की संख्या सामान्यतः अधिक होती है।

दोनों ही प्रकाश तंत्र (वर्णक तंत्र) मिलकर आकारिकीय सुस्पष्ट संरचना (physical entities) बनाते हैं। इनकी खोज . पार्क एवं बिगिन्स (Park and Biggins, 1964) ने की थी तथा इन्होंने इसे क्वान्टासोम (quantosoms) नाम दिया यह दोनों ही तंत्र परस्पर सम्बन्धित होते हैं तथा ATP एवं NADPH बनाते हैं। इसमें प्रकाश ऊर्जा से ATP प्रकाश फास्फोरिलीकरण (photophosphorylation) नामक क्रिया से उत्पन्न होती है।
(Z – स्कीम ) ( Z-scheme)
PS-I में एटीपी (ATP) निर्माण को चक्रिक प्रकाश फास्फोरिलीकरण (cyclic photophosphorylation) तथा PSIL में अचक्रिक प्रकाश फास्फोरिली करण (non cyclic photophosphorylation) कहते हैं NADP से NADPH का उत्पादन PSI में होता है परन्तु जल से NADP तक इलेक्ट्रॉन अभिगमन (transport) में दोनों ही तंत्र प्रयुक्त होते हैं। इन पथों का ग्राफ में निरूपण अंग्रेजी वर्णमाला के Z (जेड) अक्षर के समान अर्थात zig zag दिखता है इसलिए इसे Z – स्कीम (Z-scheme) भी कहते हैं।