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यूरोकॉड्रेटा / ट्युनिकेटा , सैफेलोकॉड्रेटा , वर्ग – साइक्लोस्टेमिटा , वर्रीब्रेटा महावर्ग – पिसीज वर्ग – कोंड्रीक्थिंज
संघ – यूरोकॉड्रेटा / ट्युनिकेटा :
1. इन्हे सामान्यत: प्रोटोकॉड्रेटा कहते है।
2. ये समुद्रवासी होते है।
3. इन जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु केवल लार्वा की पुंछ में पायी जाती है। इसलिए इन्हे यूरोकॉड्रेटा कहते है।
उदाहरण – एनसीडिया , सैल्फा।
1. इन्हे सामान्यत: प्रोटोकॉड्रेटा कहते है।
2. ये समुद्रवासी होते है।
3. इन जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु केवल लार्वा की पुंछ में पायी जाती है। इसलिए इन्हे यूरोकॉड्रेटा कहते है।
उदाहरण – एनसीडिया , सैल्फा।
सैफेलोकॉड्रेटा
1. इन्हें भी सामान्यत: प्रोटोकॉड्रेटा कहते है।
2. ये समुद्रवासी होते है।
3. इन जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु सिर से पूँछ तक आजीवन रहती है।
उदाहरण – एम्फीऑक्सस (Amphioxus)
वर्रीब्रेटा :-
वर्ग – साइक्लोस्टेमिटा
सामान्य लक्षण :
1. इस वर्ग के सदस्य समुद्री होते है , परन्तु जनन के लिए जल वर्णीय जल में प्रवास करते है।
2. कुछ सदस्य मछलियों के परजीवी होते है।
3. शरीर लम्बा तथा बिना जबड़ो का चुम्बक रूपी गोल मुख होता है।
4. इनमे श्वसन हेतु 6-15 जोड़ी क्लोम दरारें होती है।
5. शरीर पर शल्क व पंख अनुपस्थित होते है।
6. इनमे कपाल व मेरुदण्ड उपस्थित होती है।
7. परिसंचरण तन्त्र बंद प्रकार का होता है।
8. ये एकलिंगी , बाह्य निषेचन तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन करने वाले प्राणी है।
9. लार्वा कायान्तरण के बाद समुद्र में लौट जाते है।
उदाहरण – पैट्रोमाइजॉन (लैम्प्रे) , मिक्सिन (हैग फिश)
वर्रीब्रेटा :-
महावर्ग – पिसीज
वर्ग – कोंड्रीक्थिंज
सामान्य लक्षण –
1. ये समुद्रवासी मछलियाँ है।
2. इनका अंत: कंकाल उपास्थि का बना होता है।
3. इनका मुख अधर सतह पर होता है।
4. इनमें श्वसन हेतु पांच से सात जोड़ी क्लोम दरारे पायी जाती है , जो ऑपर कुलम से ढकी हुई नही होती है।
5. इनकी त्वचा दृढ व पट्टाम शल्क युक्त होती होती है।
6. इनके जबड़े शक्तिशाली व दांत पीछे की और मुड़े होते है।
7. इनमें वायुकोष अनुपस्थित होते है , अत: लगातार तैरती रहती है।
8. इनमे ह्रदय द्विकोष्ठीय होता है।
9. इनके कुछ सदस्यों में विद्युत अंग पाये जाते है , जैसे – टोरपिड़ो तथा कुछ सदस्यों में विषदंत पाये जाते है जैसे ट्राईयगोन
10. ये असमतापी , एकलिंगी प्राणी होते है।
11. इनमे निषेचन आंतरिक तथा जरायुज मछलियाँ होती है।
उदाहरण – स्कॉलियोडोन , प्रिस्टिस (आरा मछली ) , ट्रायगोन , टॉरपिडो (विद्युत मछली) , कारकेरोडॉन (सफ़ेद सार्क )
वर्ग – ऑस्टि कथींज
1. ये मछलियाँ दोनों प्रकार के जल (लवणीय व अलवणीय) में पायी जाती है।
2. इनका अंत: कंकाल अस्थियों का बना होता है।
3. इनका मुख अग्र शिरे पर स्थित होता है।
4. इनमे श्वसन हेतु चार जोड़ी क्लोम दरारे पायी जाती है , जो ऑपर कुलम से ढकी होती है।
5. इनमें वायुकोष उपस्थित होते है जो तैरने में सहायक होते है।
6. इनकी त्वचा पर साइक्लोइड प्रकार के शल्क पाये जाते है।
7. इनमें ह्रदय द्विकोष्ठीय होता है।
8. ये असमतापी , एकलिंगी , अंडज प्राणी है।
9. इनमे बाह्य निषेचन व प्रत्यक्ष परिवर्धन होता है।
उदाहरण – एक्सोसिट्स (उडन मछली )
हिपोकेम्पस (समुद्री छोड़ा )
लेम्बियो (रोहू ) , कतला आदि।
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