कार्य – ऊर्जा प्रमेय (Work energy theorem in hindi)

(Work energy theorem in hindi) कार्य – ऊर्जा प्रमेय : कार्य की परिभाषा हमारी दैनिक जीवन की परिभाषा से अलग होती है , जैसे यदि कोई व्यक्ति दो घंटे से बैठे हुए किताब पढ़ रहा है तो दैनिक जीवन में इसे कहते है कि यह दो घन्टे से पढने का कार्य कर रहा है लेकिन भौतिक विज्ञान में व्यक्ति के द्वारा किया गया कार्य शून्य होगा।
भौतिक विज्ञान में जब तक किसी बल द्वारा उसमे विस्थापन का मान शून्य हो तब तक किया गया कार्य का मान भी शून्य होगा , यहाँ किताब पढ़ रहा व्यक्ति अपनी स्थिति में परिवर्तन नहीं करता है अर्थात विस्थापन शून्य रहता है इसलिए यहाँ किया गया कार्य शून्य होगा।
कार्य की परिभाषा : किसी बल द्वारा वस्तु में उत्पन्न विस्थापन तथा आरोपित बल के गुणनफल को कार्य कहा जाता है।
माना एक वस्तु पर F बल आरोपित हो रहा है जिससे वस्तु में s विस्थापन हो रहा है तो बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य (w) = बल x विस्थापन
W = F x S

कार्य – ऊर्जा प्रमेय (Work energy theorem)

जैसा की हमने ऊपर पढ़ा की जब किसी वस्तु पर बल आरोपित किया जाता है तो उसमे विस्थापन उत्पन्न हो जाता है और हम जानते है कि जब वस्तु गति कर रही हो तो उसमे गतिज ऊर्जा विद्यमान रहती है।
अत: बल द्वारा वस्तु पर कार्य किया जा रहा है क्यूंकि बल आरोपित करने से इसमें विस्थापन उत्पन्न हो रहा है तथा विस्थापन हो रहा है इसका मतलब है कि वस्तु गति कर रही है और गतिशील वस्तु में गतिज ऊर्जा विद्यमान रहती है अत: स्वभाविक रूप से इस कार्य और गतिज ऊर्जा में कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य पाया जायेगा।
वस्तु के कार्य और ऊर्जा में सम्बन्ध को ही कार्य-ऊर्जा प्रमेय कहा जाता है।
“वस्तु पर आरोपित सभी बलों द्वारा किया गया कार्य या योग वस्तु की गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। “
वस्तु पर किया गया कार्य का मान वस्तु की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है इसे ही कार्य-ऊर्जा प्रमेय कहते है।
माना किसी वस्तु पर बल आरोपित करने से इस बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य का मान W हो तथा इस बल द्वारा या किये गए कार्य के कारण वस्तु की गतिज ऊर्जा में ΔK परिवर्तन हो जाता है तो कार्य-ऊर्जा प्रमेय के अनुसार इनमे निम्न संबंध होगा –
यहाँ W = जूल में किये गए कार्य का मान
ΔK = पिण्ड की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन का मान।