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आजीवक सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे ? आजीवक संप्रदाय के प्रमुख सिद्धांत का वर्णन who was the founder of ajivika sect in hindi
who was the founder of ajivika sect in hindi आजीवक सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे ? आजीवक संप्रदाय के प्रमुख सिद्धांत का वर्णन ? निम्नलिखित में से कौन मक्खलि गोशाल द्वारा स्थापित आजीवक संप्रदाय का सिद्धांत था? ?
प्रश्न: आजीवक सम्प्रदाय
उत्तर: महावीर के परम ज्ञान के शोध के दौरान छः वर्षों तक उनके साथ-साथ कठोर तप करने वाला गांशाल मक्खलिपुत्त था। ये नालन्दा में महावीर स्वामी से मिले तथा उनके शिष्य बन गए, किन्तु शीघ्र ही इन्होंने महावीर को छोड़कर एक नवीन सम्प्रदाय आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की। इस सम्प्रदाय का उल्लेख तत्कालीन धर्मग्रन्थों तथा अशोक के अभिलेखों के अलावा मध्यकाल के स्त्रोतों तक में मिलता है। गोशाल ने नियतिवाद तथा भाग्यवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका मानना था कि संसार की प्रत्येक वस्तु भाग्य से नियंत्रित है तथा व्यक्ति के कार्यों का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ता।
प्रश्न: शैव संप्रदाय
उत्तर: शैव धर्म शिव को ही सृष्टि का प्रमुख देवता मानता है। सृष्टिकर्ता के कारण ही इन्हें अर्द्धनारीश्वर एवं संहारकर्ता के कारण इन्हें महेश्वर कहा जाता है। शिव व उसके परिवारजनों के अनुयायी शैव कहलाये। मैगस्थनीज ने डायोनीसस (शिव) की पर का उल्लेख किया है। गुप्त काल में भूमरा में शिव मंदिर व नाचना कुठार में पार्वती मंदिर की स्थापना की गई। दक्षिण भारत में नैयनार संतों द्वारा शैव धर्म का प्रचार-प्रसार किया गया जिनकी संख्या 63 बताई है। इनके द्वारा जो भक्ति गीत लिखे गये वे “देवारम” कहलाये। विख्यात पुराणों के आधार पर काव्यावरोहण स्थान भगवान शिव द्वारा अपने लकली अवतार के लिए चुना गया था। शैवों के सबसे प्राचीन सम्प्रदाय पाशुपत सम्प्रदाय की स्थापना ई.पू. दूसरी शताब्दी में लकुलीश नामक ब्रह्मचारी ने की थी। इस सम्प्रदाय के अनुयायी लकुलीश को शिव का अवतार मानते हैं। इसका प्राचीनतम अंकन कुषाण शासक हुविष्क की एक मुद्रा पर मिलता है। लकुलीश ने पंचार्थ नामक ग्रंथ की रचना की थी।
प्रश्न: लकुलीश-पाशुपत संप्रदाय
उत्तर: इसके प्रवर्तक लकुलिश थे। यह शैवों का सबसे प्राचीन सम्प्रदाय है जिसकी उत्पत्ति ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुई थी। इसमें ध्यान, योग, साधना आदि द्वारा शिव भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने पर जोर दिया गया है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी लकुलीश को शिव का अवतार मानते हैं। श्रीकरपण्डित पाशुपत मत के प्रसिद्ध आचार्य थे। मथुरा स्तम्भ लेख, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के शासनकाल के पाँचवें वर्ष का है। इस स्तम्भ लेख से लकुलीश-पाशुपत सम्प्रदाय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसमें आर्य उदिताचार्य का भगवान कुशिक के वंशज के रूप में उल्लेख है, जिन्हें लकुलीश का शिष्य माना गया है। उदिताचार्य ने दो लिंगों की स्थापना करवायी थी।
प्रश्न: कापालिक
उत्तर: भैरव को अवतार मान कर पूजने वाले कापालिक कहलाये। ये अतिमार्गी थे। मांस, मदिरा, सुंदरी आदि का प्रयोग करते थे। कमण्डल, त्रिशूल, मृगचर्म धारण करते थे। इसी में नीलपट्ट एक उपसंप्रदाय हुआ, जो अति से अतिमार्गी थे। इसी में अघोरी तंत्र विकसित हुआ। जो तंत्रों द्वारा संथ को अपने वश में करना चाहते थे। भवभूतिकृत ‘मालतीमाधव‘ कापालिकों के अध्ययन के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है। ‘मालतीमाधव‘ नाटक में कापालिकों को जटाधारण किए हुए दिखाया गया है। वे अपने साथ खट्वांग (एक शस्त्र) रखते थे।
प्रश्न: पार्श्वनाथ
उत्तर: 24 तीर्थकरों में से पार्श्वनाथ 23वें जैन तीर्थकर थे। वे महावीर स्वामी से 250 वर्ष पूर्व हये। इनके पिता काशी के राजा अण्वसेन थे व माता का नाम बामा था। इनका विवाह राजकुमारी प्रभावती से हुआ। इन्हें सम्यक पर्वत पर ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद ये निग्रंथ कहलाये। सत्य, अहिंसा, अस्तेय व अपरिग्रह स्थापित किये। इन्होंने ही कर्म. पनर्जन्म, मोक्ष आदि के बारे में विचार किये। इनके समय में जैन संघ अस्तित्व में आया जिसमें भिक्ष व भिक्षणी तथा व श्रावकी हुआ करते थे। कुल मिलाकर जैन धर्म के प्रारम्भिक सिद्धांत पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित थे। महावीर स्वामी के माता-पिता भी इनके अनुयायी थे। पाश्र्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा गया है अर्थात् जो सभी बंधनों से सोया हो। इन्हें प्रथम ऐतिहासिक जैनाचार्य माना जाता है।
प्रश्न: बौद्ध संघ की व्यवस्था के बारे में बताइए।
उत्तर: बौद्ध संघ की सभा में प्रस्ताव प्रस्तुति (कम्मवाचा) से पहले उसकी सूचना सम्बद्ध अधिकारियों को दी जाती थी। जिसमें सभी सदस्य स्वतंत्रतापूर्वक मत (छन्द) प्रदान कर सकते थे। मत वैभिन्नय होने पर मतों का विभाजन विभिन्न रंगों वाली शलाकाओं से ‘शालाकागाहपाक‘ द्वारा किया जाता था। किसी प्रस्ताव (वृत्ति) या समस्या पर निर्णय बहमत से होता था। सभी प्रस्ताव सभा में तीन बार प्रस्तुत और तीन बार स्वीकृत किये जाते थे।
प्रश्न: तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कैसे हुआ?
उत्तर: 7वीं शताब्दी में तिब्बत में सन गेम्पों नामक एक अत्यन्त शक्तिशाली राजा हुआ। जिसने मध्य एशिया पर आक्रमण कर वहां अपना अधिकार स्थापित कर लिया। नेपाल पर भी उसका अधिकार था। उसने चीन तथा नेपाल की बौद्ध राजकुमारियों के साथ विवाह किया और इस प्रकार तिब्बत बौद्ध धर्मानयायी हो गया। भारत से अनेक विद्वान तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने गये। उन्होंने बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। ऐसे ग्रंथों में तंग्युर तथा कंग्युर के नाम बड़े प्रसिद्ध हैं।
अनेक तिब्बती यात्री भारत आये तथा नालन्दा बौद्ध विहार में गहन अध्ययन किया। तिब्बती चित्रकला में भारतीय धर्म का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ। दीपंकर नामक बौद्ध विद्वान तिब्बत गये और वहां पर उन्होंने इस धर्म का प्रचार-प्रसार किया। तिब्बत से कुछ ऐसे दुर्लभ ग्रंथ प्राप्त होते हैं जो भारत में भी ज्ञात नहीं है। वहां की सामाजिक परम्पराओं में भारतीय सभ्यता का प्रभाव स्थापित हुआ।
प्रश्न: दिगम्बर व श्वेताम्बर सम्प्रदायों में अंतर
उत्तर: दिगम्बर का अर्थ है कि आकाश (दिशाएँ) ही जिनका वस्त्र है। श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धारण करते थे। दोनों में कुछ अन्य बातों पर भी मतभेद था। दिगम्बर महावीर को अविवाहित मानते हैं, जबकि श्वेताम्बर उनकी पत्नी यशोदा और पुत्री प्रियदर्शना को स्वीकार करते हैं। श्वेताम्बर स्त्रियों को जीवन में निर्वाण प्राप्ति सम्भव मानते हैं जबकि दिगम्बर नहीं मानते। दिगम्बर मल्लीनाथ को पुरुष मानते हैं जबकि श्वेताम्बर स्त्री मानते हैं।
श्वेताम्बर – दिगम्बर ,
ऽ श्वेतवस्त्र धारण – निःवस्त्र (नग्न)
ऽ मूर्तिपूजक – प्रारंभ में नहीं
ऽ स्त्री निर्वाण प्राप्त कर सकती है – स्त्री निर्वाण की अधिकारी नहीं
ऽ 19वें तीर्थकर महिला थी – पुरुष थे.
ऽ महावीर विवाहित एवं उनकी पुत्री प्रियदर्शना थी। – अविवाहित
ऽ उपसम्प्रदाय पूजेरा, दूंढ़िया, तेरापंथी – बीसपंथी
ऽ लौकिक साहित्य – आगम साहित्य
प्रश्न: हीनयान व महायान में दार्शनिक मतभेद क्या है?
उत्तर:
ऽ हीनयान से तात्पर्य निम्न मार्गी, बुद्ध एक महापुरुष के रूप में, मोक्ष व्यक्तिगत प्रयासों से, मूर्तिपूजा व बुद्ध की भक्ति में विश्वास नहीं, पाली भाषा का प्रयोग। आदर्श पद प्राप्त करना। (‘‘अर्हत‘‘ बौद्धिसत्व)
ऽ महायान से तात्पर्य उच्च मार्गी, परोपकार पर विशेष बल, बुद्ध देवता रूप में, बुद्ध की मूर्ति पूजा ‘‘आदर्श‘‘ बौद्धिसत्व, संस्कृत भाषा का प्रयोग।
ऽ महायान अवसरवादी, भक्तिवादी व अवतारवादी है, जबकि हीनयान में इसका स्थान नहीं है।
ऽ हीनयान का आधार दार्शनिकता व अपरिवर्तनशीलता है, जबकि महायान व्यावहारिक व परिवर्तनशील है।
ऽ हीनयान में निर्वाण व्यक्तिगत जबकि महायान में विश्ववादी भावना है।
ऽ हीनयान प्रज्ञा. (ज्ञान) पर जोर देता है जबकि महायान करूणा पर।
ऽ हीनयान स्वभाविक रूप से कठोर जबकि महायानी उदार हैं।
ऽ हीनयान के अधिकांश ग्रंथ पाली में जबकि महायान के संस्कृत में।
ऽ हीनयान बुद्ध की मूर्तिपूजा व भक्ति द्वारा मोक्ष की बात नहीं करता, जबकि महायान का आधार यही है।
प्रश्न: बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन बताइए।
उत्तर:
ऽ भारतीय जनमानस को लोकप्रिय धर्म प्रदान किया।
ऽ मूर्तिकला से अवगत करवाया।
ऽ समाज में संघ एवं संघाराम का प्रचलन।
ऽ निःस्वार्थ सेवाभावना व धर्म भावना का प्रारंभ।
ऽ विशाल साहित्य एवं परिष्कृत भाषा।
ऽ स्थापत्य कला के क्षेत्र में स्तूप, चैत्य, गुफाएँ आदि।
ऽ भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का विदेशों में प्रचार-प्रसार।
ऽ देश-विदेश में दया एवं अहिंसा की भावना का प्रसार।
ऽ राजधर्म अहिंसावादी हो गया (अशोक)।
ऽ मांसाहार का निषेध कर प्राणी हिंसा का परित्याग।
ऽ यज्ञवाद का विरोध कर पशुबलि को रोकने का प्रयास।
ऽ रूढ़िवादी एवं अनुदारवादी तत्व की जगह स्वस्थ एवं उदारवादी दृष्टिकोण की स्थापना।
प्रश्न: बौद्ध धर्म के हस के कारण बताइए।
उत्तर:
1. संघ में भिक्षुणियों को प्रवेश देना।
2. बौद्ध सम्प्रदायों में आतंरिक संघर्ष व आपसी मतभेद।
3. ब्राह्मण धर्म का पुनरूद्धार तथा बौद्ध धर्म में तंत्रवाद (कालचक्रायन, वज्रयान) उत्पन्न होना जिससे बौद्ध मठ अय्याशी के अड्डं हो गये।
4. राजकीय संरक्षण का अभाव।
5. राजपूतों के पारस्परिक मुद्दों एवं संघर्ष में अव्यवहारिक।
6. अंतिम रूप से मुस्लिम आक्रमण का आघात
निंबधात्मक प्रश्न
प्रश्न: भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं बताइए।
उत्तर: भारतीय समाज व संस्कृति मानव समाज की एक अमूल्य निधि है। भारतीय संस्कृति अपनी समस्त आभा और प्रतिभा के साथ चिरकाल से स्थायी है। समय के साथ भारतीय संस्कृति व सभ्यता का विकास हुआ है। जो मौलिक व अद्वितीय तथा विश्व की अन्य संस्कृतियों से भिन्न है। भारतीय संस्कृति की विशेषताएं निम्नवत हैं-
ऽ भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। अन्य संस्कृतियों के अवशेष मात्र ही बचे है, परन्तु हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है। विदेशी आक्रमणों के बावजूद भारतीय संस्कृति नष्ट नहीं हुई अपितु उसने आक्रान्ताओं की संस्कृति व सभ्यता के साथ समन्वय स्थापित किया।
ऽ धर्म व आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति की आत्मा है। भारतीय संस्कृति में शारीरिक सुख व आध्यात्मिक आनंद को सर्वोपरि माना गया है। भारत में सभी धर्मों, जातियों, प्रजातियों व सम्प्रदायों के प्रति उदारता व सहिष्णुता के भाव पाये जाते हैं।
ऽ भारतीय संस्कृति में अनुकूलनशीलता का तत्व पाया जाता है, भारतीय संस्कृति विश्व को एकता का पाठ पढ़ाती है और सबको एक सूत्र में बाँधती है।
ऽ वर्ण व्यवस्था के माध्यम से समाज में श्रम- विभाजन की आवश्यकता को पूरा करवाया जाता है, वही आश्रम व्यवस्था के माध्यम से पुरुषार्थ की प्राप्ति सुनिचित करने पर बल दिया जाता है। कर्म व पुनर्जन्म के सिद्धान्तों द्वारा लोगों को सदैव अच्छे कार्यों को करने की प्रेरणा दी जाती है। भारतीय संस्कृति किसी एक वर्ग, जाति, धर्म या व्यक्ति विशेष से संबंधित न होकर समाज के सभी पक्षों से संबंधित है। यह एकता में अनेकता का सर्वोत्तम उदाहरण है।
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