who discovered protozoa in hindi first name scientist प्रोटोजोआ की खोज किसने की थी
अध्याय १ प्रोटोजोमा
३. इनफसोरिया पैरामीशियम
प्रोटोजोआ की खोज – लगभग ३०० वर्ष पहले सुप्रसिद्ध डच वैज्ञानिक ऐंथोनी प्रोटोजोया की लेवेनहुक ने प्रोटोजोआ की खोज की। लेवेनहुक जीवन-भर खोज वृहदाकारक शीशे तैयार करने के कार्य में व्यस्त रहे। बहुत ही उद्योगशील और जिज्ञासु होने के कारण उन्होंने जो भी चीज हाथ लगी उसका परीक्षण अपने शीशों द्वारा किया। एक दिन वह एक तेज खुर्दबीन के जरिये बरसात के पानी की एक बूंद की ओर देख रहे थे। यह पानी कुछ समय से एक पीपे में पड़ा हुआ था। इसी बूंद में उन्हें ऐसे सूक्ष्म प्राणियों का पता लगा जो उस समय तक अज्ञात थे। उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ। आज इनमें से सबसे परिचित प्राणी है पैरामीशियम। इसी के साथ हम प्रोटोजोमा अर्थात् सबसे सरल संरचनावाले प्राणियों का परिचय प्राप्त करना आरम्भ करेंगे।
पैरामीशियम – एककोशिकीय प्राणी – पैरामीशियम (आकृति २) मुख्यतया ऐसे ताजे जलाशयों में पैरामीशियम रहते हैं जहां उथला और बंधा हुआ पानी संचित हो। एककोशिकीय प्राणी ऐसे जलाशयों में तृण-कीटाणु (ींल इंबपससप) नामक अनगिनत बैक्टीरिया खूब पलते हैं। यही कीटाणु पैरामीशियम का भोजन हैं। प्रयोगशालाओं में पैरामीशियम का संवर्द्धन सूखी घास के काढ़े में किया जाता है। इसी लिए वे इनफ्सोरिया अर्थात् क्वाथ कीटाणु कहलाते हैं।
पैरामीशियम का शरीर लम्बा-सा और नन्हे-से स्लिपर के आकार का होता है। वह जीवद्रव्य (चतवजवचसंेउ) नामक जेलीनुमा अर्द्धपारदर्शी पदार्थ का बना हुआ होता है और उसमें दो वृत्ताकार कणिकाएं होती हैं । ये हैं बड़ा और छोटा नाभिक। जीवद्रव्य की ऊपरी परत गाढ़ी होती है और उसी से बाह्यत्वक बनता है जिससे पैरामीशियम के शरीर का स्थायी आकार बना रहता है।
जीवद्रय, नाभिक और वाह्यत्वक से मिलकर एक कोशिका बनती है। अतः संरचना की दृष्टि से पैरामीनियम एक एककोशिकीय जीव है।
पोषण – वैरामीशियम का पूरा शरीर अनगिनत रोमिकामों से प्रावृत पोषण होता है। अपनी झूलती हुई गति के कारण ये रोमिकाएं नन्हे नन्हें डांडों का काम देती हैं जिससे यह प्राणी तैर सकता है। पैरामीशियम तैरते हुए सतत अपने शरीर की लम्बी धुरी के चारों ओर चक्कर खाता रहता है।
आकृति २-पैरामीशियम
१ (1). पोषक घोल सहित टेस्ट-ट्यूब में पैरामीशियम य
२ (2). खुर्दबीन द्वारा उसी टेस्ट-ट्यूब का ऊपरी सिरा यों दिखाई देता है य
३ (3). माइक्रोस्कोप के नीचे पैरामीशियम , कुछ बड़े आकार में य
४ (4). पैरामीशियम की संरचना-
बहुत बड़े आकार में य
(क) बड़ा नाभिक य (ख) छोटा नाभिक य (ग) रोमिका य (घ) वक्त्रीय खांच य (ङ) भोजन रसधानियां य (च) अनपचे शेषांश का उत्सर्जन य (छ) विकिरक नालियों सहित संकुचनशील रसधानियां।
पैरामीशियम का मुख-द्वार वक्त्रीय खांच में होता है। वक्त्रीय खांच को घेरनेवाली रोमिकाओं की गति के कारण पानी का एक अखंडित प्रवाह जारी रहता है। यह पानी बैक्टीरिया सहित सब प्रकार के कणों को पैरामीशियम के मुख-द्वार तक लाता है।
जब वक्त्रीय खांच की गहराई में बहुत-से वैक्टीरिया इकट्ठा हो जाते हैं तो पैरामीशियम उन्हें निगल जाता है। भोजन का थक्का जीवद्रव्य में प्रवेश करता है। यहां एक पाचक रस का स्राव होता है जो भोजन को घेरे रहता है। इस प्रकार भोजन रसधानी का उदय होता है। भोजन के नये थक्के फिर दूसरी, तीसरी और इसी प्रकार एक के बाद एक कई रसधानियों से घेरे जाते हैं। वे एक के बाद एक जीवद्रव्य में घूमते रहते हैं। रसधानियों का भोजन पच जाता है। पचा हुआ भोजन बराबर पैरामीशियम के शरीर-द्रव्यों में परिवर्तित होता रहता है। भोजन के अनपचे शेषांश का शरीर के एक निश्चित स्थान से उत्सर्जन होता है (आकृति २, च )।
श्वसन यदि पैरामीशियम को उबालकर ठंडे किये हुए और घुली हुई। हवा से खाली पानी में डाल दिया जाये तो वह नष्ट हो . जायेगा। इसका अर्थ यह है कि उसे जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है – अर्थात् पैरामीशियम श्वसन करता है।
पैरामीशियम अपने शरीर की सारी सतह के द्वारा श्वसन करता है। जीवद्रव्य में तैयार होनेवाले कारबन डाइ-आक्साइड का उत्सर्जन होता है।
उत्सर्जन पैरामीशियम के शरीर में नये द्रव्यों के सतत निर्माण के साथ साथ विघटन की क्रिया जारी रहती है। इसी के दौरान जीवद्रव्य में धीरे धीरे पानी एकत्रित होता है जिसमें हानिकर द्रव्य घुले हुए होते हैं। इसे दो संकुचनशील रसधानियां शरीर से बाहर कर देती हैं।
प्रत्येक रसधानी एक कोष देती है जिसमें नालियां जीवद्रव्य में तैयार होनेवाले हानिकर द्रव्य पहुंचा देती हैं। आगे चलकर हम इन पदार्थों को तरल उत्सर्जन कहेंगे। जब इनसे कोष भर जाता है तो वह संकुचित होता है और उसमें संचित पदार्थ शरीर से बाहर फेंका जाता है।
उद्यीपन और उत्तेजन कई वार घास के काढ़े की सतह पर एक झिल्ली तैयार उद्दीपन और हो जाती है जो तृण-कीटाणु नामक वैक्टीरिया की बड़ी भारी संख्या से बनी हुई होती है। यदि ऐसी झिल्ली कोई हिस्सा पैरामीशियम सहित पानी को बूंद में रखा जाये तो यीघ्र ही सारे इनामोरिया उसके चारों ओर इकट्ठे हो जायेंगे। वे उक्त हिस्से के किनारे किनारे तैरते रहेंगे और उससे अलग होनेवाले नन्हे नन्हे टुकड़ों को निगलते जायेंगे।
इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि पैरामीशियम पर भोजन का कुछ असर पड़ता है और वह उसे अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है।
हम पैरामीशियम सहित पानी की दो बूंदें ऑब्जेक्ट ग्लास पर रखकर देखें (आकृति ३)।
आकृति ३-पैरामीशियम की उत्तेजनशीलता क- सूखी घास के काढ़े की दाहिनी प्रोरवाली बूंद में एकत्रित पैरामीशियमय
ख-दाहिनी ओर की बूंद में नमक के केलास रखने पर पैरामीशियम बायीं ओर की बूंद में चले जाते हैं जो नमक से खाली है।
यदि एक बूंद में नमक का केलास रखा जाये तो पैरामीशियम नाली के जरिये तैरकर दूसरी बंद में चले जायेंगे। गरज यह कि नमक भी इनफसोरिया पर प्रभाव डालता है लेकिन यह भोजन के प्रभाव से भिन्न होता है – पैरामीशियम नमक से दूर हटते हैं।
प्राणि-शास्त्रियों द्वारा किये गये प्रयोगों से स्पष्ट हुआ है कि पैरामीशियम केवल भोजन और नमक से ही नहीं बल्कि प्रॉक्सीजन , प्रकाश और पानी के तापमान से भी प्रभावित होते हैं।
जीवित शरीर पर पड़नेवाले ये सभी प्रभाव उद्दीपन कहलाते हैं। उद्दीपन के कारण जीवद्रव्य में उत्तेजन उत्पन्न होता है अर्थात् वह सक्रिय अवस्था में परिवर्तित होता है। जीवद्रव्य में उत्पन्न होनेवाला उत्तेजन पैरामीशियम की गतियों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।
जनन जब जलाशय में पर्याप्त भोजन होता है और पानी का जनन तापमान १४ सेंटीग्रेड के ऊपर होता है उस समय पैरामीशियम तेजी के साथ बड़े होते हैं और विभाजन के द्वारा उनका जनन होता है। पहले पहल नाभिकों का विभाजन होता है जिनके हिस्से शरीर के किनारों की ओर हट जाते हैं । इसके बाद शरीर पर एक तिरछी सिकुड़न पैदा होती है जो अधिकाधिक गहरी होती जाती है। जब आखिरकार वह टूट जाती है तो मातृ-कोशिका से दो नये पैरामीशियम बन जाते हैं (आकृति ४)।
प्रश्न – १. पैरामीशियम के जीवन के लिए कैसी स्थितियां आवश्यक हैं ? २. पैरामीशियम की संरचना का वर्णन करो। ३. पैरामीशियम किस प्रकार खाता है, श्वसन करता है और गति प्राप्त करता है ? ४. पैरामीशियम में उत्सर्जन-क्रिया कैसे चलती है ? ५. पैरामीशियम का जनन कैसे होता है ?
व्यावहारिक अभ्यास – स्मरण से पैरामीशियम का चित्र खींचने का प्रयत्न करो।