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पेशाब में कौन सा अम्ल पाया जाता है | which acid is present in human urine in hindi मनुष्य के मूत्र में पाया जाने वाला अम्ल का नाम
which acid is present in human urine in hindi पेशाब में कौन सा अम्ल पाया जाता है | मनुष्य के मूत्र में पाया जाने वाला अम्ल का नाम ?
मानव का मूत्र निम्नलिखित पदार्थो या घटकों से मिलकर बना होता है –
- जल = 95-96%
- यूरिया = 2%
- अन्य अपशिष्ट जैसे यूरिक अम्ल , हिप्यूरिक अम्ल , क्रिएटिनिन , K+ , H+ , फास्फेट , ऑक्सेलेट = 2-3%
वृक्क की परासरण नियमनकारी भूमिका : वर्टीब्रेट के वृक्क क्रियाविधि में अत्यधिक लचीले होते हैं | जब एक जन्तु का जल अंतर्ग्रहण बहुत उच्च होता है तब यह बड़ी मात्रा में हाइपोटोनिक मूत्र उत्सर्जित करता है | जब जल की कमी होती है और संरक्षण की आवश्यकता होती है तो यह हाइपरटोनिक मूत्र की सूक्ष्म मात्रा उत्सर्जित करते हैं | रीनल नलिका की कार्यशीलता का लचीलापन स्थलीय और जलीय जीवों विशेषकर पक्षी और स्तनधारियों में अच्छी तरह दिखाई देता है |
- जब शरीर द्रव्य में जल की अधिकता हो : ऐसी स्थिति में अधिक जल को बाहर निकालने के लिए शरीर द्रव्य में अधिक तनु मूत्र शरीर से बाहर उत्सर्जित किया जाता है | इसमें दो प्रक्रम सम्मिलित हैं –
- परानिस्यन्दन बढ़ाकर : शरीर द्रव्य में जल की अधिकता रक्त आयतन को बढ़ा देती है जो कि जल स्थैतिक दाब को बढ़ा देती है तत्पश्चात जो सूक्ष्मनिस्यन्दन की दर को बढ़ाती है और अधिक नेफ्रिक छनित्र ग्लोमेरूल केशिकाओं से बोमेन केप्सूल में छनित्र होता है |
- पुन: अवशोषण घटाकर : DCT और संग्रह नलिका की भित्ति की पारगम्यता पियूष ग्रंथि के पश्च पिण्ड से स्त्रावित वेसोप्रेसिन अथवा (ADH)हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है | शरीर द्रव्य में जल स्तर का बढ़ने से और इस प्रकार रक्त आयतन के बढ़ने से पश्च पियूष ग्रंथि से ADH का स्त्रावण कम हो जाता है | रक्त में ADH का कम स्तर DCT और संग्रह नलिका की दीवार की पारगम्यता कम करता है | जिससे जल का अवशोषण कम हो जाता है और नेफ्रिक छनित्र अधिक हाइपोटोनिक हो जाता है |
जल अधिक रक्त बहने , भारी व्यायाम अथवा उच्च वातावरणीय तापमान के कारण तीव्र पसीना आने के कारण सामान्य से कम हो जाता है | सूक्ष्म निस्यन्दन की दर रक्त आयतन और जल स्थैतिक दाब ग्लोमेरूलर केशिका में निम्न जल स्थैतिक दाब के कारण कम हो जाती है और जल के अवशोषण की दर DCT और संग्रह की भित्ति की पारगम्यता बढ़ने से पश्च पियूष ग्रंथि से ADH स्त्रावण बढ़ने के कारण पारगम्यता बढ़ने से जल का अवशोषण बढ़ता है |
यदि ADH की कमी हो तो यह रोग डायबिटिज इन्सीपीडस कहलाता है जो कि diuresis द्वारा दर्शाया जाता है |
- Renin – angiotensinogen aldosterone तंत्र (RAAS) की भूमिका : वृक्क रेनिन एन्जियोटेन्सिन तंत्र द्वारा अंतरकोशिकीय द्रव्य में Na+आयन की सान्द्रता का नियमन कर नेफ्रिक छनित्र से जल के अवशोषण की मात्रा भी नियंत्रित करता है जो कि एक तालिका रूप में प्रदर्शित किया गया है |
Role of renin angiotensinogen system in osmoregulation –
Decreased blood volume à decreased renal arterial pressure à Juxtaglomerular cells of kidneys à renin (an enzyme) à angiotensinogen (plasma protein) à angiotensin (a decapeptide) à angiotensin II (an octapeptide) à adrenal cortex of adrenal gland àएल्डोस्टेरोन स्त्रावण बढेगा à नेफ्रिक छनित्र से Na+का अवशोषण बढेगा à रक्त आयतन बढ़ जायेगा
इस प्रकार वृक्क शरीर की आवश्यकतानुसार हाइपरटोनिक मूत्र अथवा हाइपोटोनिक मूत्र का बहिष्करण कर समपरासरण में मदद करता है |
अम्ल क्षार नियमन– बाह्य कोशिकीय द्रव में उपस्थित बाइकार्बोनेट सान्द्रता अम्ल-क्षार नियमन में भूमिका निभाती है और बाह्य कोशिकीय द्रव की H+सांद्रता के नियंत्रण में मदद करता है |
क्षारीय स्थिति में HCO3–और कार्बन डाइ ऑक्साइड अनुपात बढ़ जाता है | i.e. pH क्षारीय हो जाती है | इस प्रकार HCO3– की उच्च बाह्य कोशिकीय सान्द्रता भी छनित्र में इसकी सांद्रता बढ़ा देता है जबकि CO2की निम्न सांद्रता H+का स्त्रावण घटा देती है | इन गतिविधियों में छनित्र में HCO3– आयन्स , स्त्रावित H+के बिना अवशोषित नहीं हो सकते हैं | इसलिए अधिकतर HCO3– , Na+अथवा अन्य –ve आयन्स के साथ संयुग्मित होकर मूत्र में गुजरने हैं | HCO3– की हानि से HCO3– की सांद्रता कम हो जाती है | इस प्रकार pH फिर से सामान्य हो जाती है |
एसिडोसिस में , कार्बन डाइ ऑक्साइड से HCO3– का अनुपात बाह्य कोशिकीय द्रव में बढ़ जाता है इसलिए H+स्त्रावण की दर HCO3–की दर से बहुत ज्यादा बढ़ जाती है | इसलिए मुक्त H+नलिका की गुहिका में स्त्रावित होते हैं | जिनके पास क्रिया करने के लिए अतिरिक्त HCO3–नहीं होता | अतिरिक्त H+नलिकीय द्रव में बफर के साथ जुड़ जाता है और मूत्र में उत्सर्जित हो जाता है |
याद रखने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु है कि नलिका में प्रत्येक समय H+स्त्रावित होते रहते हैं | यहाँ दो घटनाएं घटित होती है –
HCO3– आयन नलिकीय एपिथिलियम कोशिकाओं में बनते हैं |
एपिथिलियम कोशिका में छनित्र से Na+अवशोषित होता है |
Na+और HCO3– एपिथिलियम कोशिका से पैरीट्यूबलर द्रव में साथ साथ विसरित होते हैं | यहाँ मूत्र में अतिरिक्त H+के परिवहन के लिए ट्यूबलर द्रव में दो महत्वपूर्ण बफर उपस्थित होते हैं
- फास्फेट बफर
- अमोनिया बफर
अतिरिक्त स्त्रावित H+फास्फेट बफर के साथ जुड़कर मूत्र में NaH2PO4के रूप में उत्सर्जित हो जाते है | अमोनिया बफर नलिका अतिरिक्त H+निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | एक अतिरिक्त H+स्त्रावित होने पर एक Cl–भी मूत्र में आता है और निरंतर एक HCO3– नलिकीय कोशिका में बनकर बाह्य कोशिकीय द्रव में जाता है | जब क्षारीयता उत्पन्न होती है , अमोनिया बफर कार्यप्रणाली रोक देता है और तब HCO3– H+के साथ मूत्र में जाने लगता है |
मूत्र में असामान्य घटक–
- प्रोटीन (एल्बुमिन) –renal tract की injury
- पित्त लवण – पीलिया
- ग्लूकोज – डायबीटीज मैलाइटस
- कीटोन बॉडीज (एसीटोएसिटीक एसिड , B – हाइड्रोक्सीब्यूटाइरिक अम्ल)
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