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व्हीटस्टोन सेतु क्या है , संरचना चित्र , सिद्धान्त , उपयोग wheatstone bridge in hindi definition diagram use principle

wheatstone bridge in hindi definition diagram use principle व्हीटस्टोन सेतु क्या है , संरचना चित्र , सिद्धान्त , उपयोग किसे कहते है लिखिए |

व्हीटस्टोन सेतु (wheatstone’s bridge) : किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए इंग्लैंड के वैज्ञानिक सी. एफ. व्हीटस्टोन ने चार प्रतिरोध , एक सेल तथा एक धारामापी का उपयोग कर एक युक्ति (परिपथ) बनाई इसे व्हीटस्टोन सेतु कहते है।

इस विशेष परिपथ (युक्ति) का उपयोग करके किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
व्हीटस्टोन सेतु की रचना (structure of Wheatstone bridge)  : इसकी संरचना चित्र में दिखाई गयी है।
चित्रानुसार इसमें चार प्रतिरोध होते है P , Q , R , S
यहाँ प्रतिरोध P तथा Q श्रेणीक्रम में है और इसी प्रकार R व S आपस में श्रेणी क्रम में है।  फिर दोनों श्रेणीक्रम संयोजनों को आपस में समान्तर में जोड़ा गया है।
पॉइंट b तथा d के मध्य एक धारामापी जुड़ा हुआ है।
बिंदु a तथा c के मध्य E विद्युत वाहक बल की बैटरी जुडी हुई है।

 व्हीट स्टोन सेतु का सिद्धान्त (principle of wheatstone bridge)

परिपथ में E विधुत वाहक बल की बैटरी लगी हुई है माना परिपथ में मुख्य धारा I निकलती है जब यह धारा बिंदु a पर पहुँचती है तो इसे दो मार्ग मिलते है इसलिए यह I1 & I2 में विभक्त हो जाती है फिर I1 को b बिंदु पर  तथा Iको d बिंदु पर दोबारा दो मार्ग प्राप्त होते है यहाँ I1 & Iके विभाजन के लिए तीन स्थितियाँ बनती है
1. जब b बिंदु पर विभव (Vb) का मान d बिंदु पर उत्पन्न विभव (Vd) से ज़्यादा है अर्थात Vb > Vइस स्थिति में चूँकि b बिंदु पर विभव का मान ज़्यादा है और d बिंदु पर विभव कम है अतः b से d की तरफ धारा का प्रवाह होगा लेकिन धारा निम्न विभव से उच्च विभव की तरफ नहीं होता अतः d से b की तरफ धारा प्रवाहित नहीं हो सकती।
अतः जब Vb > Vहै इस स्थिति में Iधारा दो तरफ बंट जाती है इसका एक हिस्सा धारा मापी में चला जाता है और दूसरा हिस्सा Q प्रतिरोध में दूसरी तरफ d बिंदु पर विभव कम है अतः यह I2 धारा धारामापी की तरफ नहीं जाती है और सम्पूर्ण धारा S प्रतिरोध में चली जाती है।
2. दूसरी स्थिति पहली स्थिति की विपरीत होगी अर्थात d बिंदु पर विभव ज़्यादा हो सकता है और b बिंदु पर कम अर्थात Vb < Vइस स्थिति में चूँकि d बिंदु पर विभव अधिक है अतः धारा d से b की तरफ बह सकती है लेकिन b से d की तरफ नहीं बह सकती।
अतः इस स्थिति में  Iधारा दो तरफ बंट जाती है इसका एक हिस्सा धारा मापी में चला जाता है और दूसरा हिस्सा S प्रतिरोध में चला जाता है तथा दूसरी तरफ b बिंदु पर विभव कम है अतः यह I1 धारा धारामापी की तरफ नहीं जाती है और सम्पूर्ण धारा Q प्रतिरोध में चली जाती है।
3. तीसरी स्थिति में बिंदु b तथा d पर विभव का मान समान है अर्थात Vb =  Vइस स्थिति में चूँकि दोनों सिरों पर विभव समान है अतः धारा मापी की तरफ कोई धारा नहीं जाती है अर्थात b-d में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है क्योंकि धारा प्रवाहित होने के लिए विभान्तर की आवश्यकता होती है और चूँकि यहाँ दोनों बिंदु पर समान आवेश है।
अतः इस स्थिति में I1 धारा पूर्ण Q प्रतिरोध पर तथा Iधारा पूर्ण S प्रतिरोध पर पूर्ण रूप से पहुंच जाती है तथा धारामापी में शून्य धारा होने से कोई विक्षेप नहीं होता है इसे सेतु की संतुलन की स्थिति कहते है।
सेतु की संतुलन की अवस्था में  इस
Vb =  Vd

Va – Vb = Va – Vd
I1P = I2R

I1/I2 = R/P
दूसरी तरफ
Vb =  Vd

Vb – Vc = Vd – Vc
I1Q = I2S

I1/I2 = S/Q
I1/I2 की समीकरणों की तुलना करने हम पाते है 
R/P  S/Q
इस समीकरण का उपयोग किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए की जाती है जैसे मान लीजिये व्हीट सेतु ब्रिज में S प्रतिरोध अज्ञात है तो
S = QR/P
इसमें P , Q , R का मान रखते ही अज्ञात S प्राप्त हो जाता है। 
इस प्रकार व्हीटसेतु ब्रिज की सहायता से अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात किया जाता है।