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बीज की परिभाषा क्या है | बीज किसे कहते हैं , का विकास (development of seed) what is seed in hindi

(development of seed) what is seed in hindi definition meaning बीज की परिभाषा क्या है | बीज किसे कहते हैं , का विकास ?

प्रस्तावना : बीजधारी पौधों में बीज का निर्माण इनका विशिष्ट लक्षण है। विभिन्न भ्रूणविज्ञानियों और आकारिकी विज्ञानियों के अनुसार बीज एक अनूठी संरचना है जो एक साथ तीन पादप पीढियों क्रमशः जनक पीढ़ी , वर्तमान बीजाणुदभिद पीढ़ी और आगामी पादप पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है। एक बीज में माता और पिता दोनों जनक पौधों के गुण निहित होते है , इसलिए इसे भाषी पौधे की लघु और निलम्बित अनुकृति या निलम्बित सजीवन (suspended animation) भी कहा जा सकता है। 

बीज वस्तुतः एक विभाज्योतकीय अक्ष होता है जो कि अक्सर एक विशेष प्रकार के संग्रही भोज्य ऊतक से युक्त रहता है। यह झिल्लियों और कभी कभी दृढ खोलों की एक श्रृंखला द्वारा आवृत्त रहता है जिसे बीज चोल कहते है। गार्डिनर के अनुसार , बीज भ्रूणीय पादप की एक इकाई होती है जिसमें पौधे की भावी संरचनाओं के आद्यक स्वयमेव अवस्थित होते है। इसमें पूर्व की पादप पीढियों द्वारा प्राप्त पोषक ऊतक एक सुरक्षात्मक कवच के अन्दर विद्यमान होता है। बीज को एक अध्यावरण युक्त परिपक्व गुरुबीजाणुधानी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सभी पुष्पीय पादपों में बीज विकसित होता है और वस्तुतः यह एक पौधे का सूक्ष्म प्रारूप होता है। प्रत्येक बीज में एक सुषुप्त निष्क्रिय भ्रूण मौजूद होता है और अनुकूल परिस्थितियों में यह भ्रूण सक्रीय होकर एक नावोद्भिद के रूप में अंकुरित होता है जो कालान्तर में वृद्धि करके परिपक्व पादप के रूप में विकसित होता है।

बीज का विकास (development of seed)

आवृतबीजी पौधों के भ्रूण कोष में द्विनिषेचन के संपन्न होने के साथ ही घटनाक्रम बहुत तेजी से आगे बढ़ता है जिसकी अंतिम परिणति बीजाण्ड से बीज के निर्माण में जाकर समाप्त होती है। इस प्रकार बीजाण्ड के भ्रूणकोष में भ्रूण और भ्रूण कोष का विकास और विभेदन परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित होता है और इन दोनों का परिवर्धन और विभेदन एक निश्चित क्रम में सम्पन्न होता है।

उदाहरण के तौर पर मटर के पुष्प में निषेचन के बाद ही , बीजाण्ड में भ्रूणपोष का विकास और विभेदन प्रारम्भ हो जाता है। भ्रूणपोष की कोशिका संख्या में वृद्धि के साथ इसके आयतन और आमाप में भी वृद्धि होती है। इन सभी संरचनाओं में भ्रूण की वृद्धि सबके बाद में प्रारम्भ होती है। जब भ्रूणपोष पूर्णतया विकसित और विभेदित हो जाता है और अपना पूरा आकार ग्रहण कर लेता है तो इसके साथ ही भ्रूण की वृद्धि भी बड़ी तेजी से होती है। जब बीज अपने आकार का 50 प्रतिशत ही ग्रहण कर पाता है , लगभग उसी समय भ्रूण के सभी विभाजन पूर्ण हो चुके होते है। अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण के कोशिका विभाजन जल्दी ही पूरे हो जाते है लेकिन भ्रूण के आकार में जो वृद्धि होती है वह मुख्यतः इसकी कोशिकाओं के सुदीर्घीकरण के कारण सम्भव होती है।

परिवर्धनशील भ्रूण को पोषण प्रदान करने का कार्य भ्रूणपोष द्वारा ही किया जाता है। अनेक आवृतबीजी पौधों में जैसे जैसे भ्रूण का विकास आगे बढ़ता जाता है तो इसके साथ ही भ्रूणपोष के आकार में भी कमी आती है। इस तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि भ्रूणपोष की कोशिकाओं से भ्रूण अपना पोषण प्राप्त करता है। इसे रेडियोधर्मी कार्बन को प्रयुक्त कर किये गए अध्ययनों से भी साबित किया जा सकता है। बीज के परिवर्धन के दौरान बीजाण्ड और भ्रूणकोष के विभिन्न घटकों में बदलाव आते है और इसके अलावा बीजांड आवरणों की संरचना में भी बहुत अधिक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते है। विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों का संक्षिप्त विवरण देने से पहले इस तथ्य का उल्लेख कर देना आवश्यक है कि बीजाण्ड के अध्यावरण आगे चलकर बीज चोल (सीड कोट) में परिवर्तित हो जाते है।

बीजाण्ड अध्यावरण का बीज चोल में परिवर्तन (transformation of integument in seed coat) : अधिकांश आवृतबीजी पौधों के बीजाण्डो में प्राय: दो अध्यावरण पाए जाते है। अनेक पौधों में ये दोनों संयुक्त रूप से मिलकर बीज चोल को विकसित करते है जैसे मटर और कपास। लेकिन कुछ अन्य पौधों में जैसे कुकुरबिटेसी कुल के सदस्यों के बीजांड में दोनों में से केवल एक अध्यावरण ही विकसित होकर बीज चोल का निर्माण करता है। इसके विपरीत कुछ बीजधारी पौधों के बीजाण्डो में केवल एक ही अध्यावरण पाया जाता है जो बीजचोल को विकसित करता है। अध्यावरण से बीज चोल के विकास के क्रम को समझने के लिए हम कपास के बीज चोल परिवर्धन का उदाहरण ले सकते है। कपास के बीजाण्ड का बाहरी अध्यावरण तीन सुस्पष्ट क्षेत्रों में विभेदित होता है जो निम्नलिखित प्रकार से है –

(i) बाहरी बाह्यत्वचा

(ii) वर्णक युक्त कोशिकाओं की दो से पाँच पंक्तियाँ जिनमें टैनिन और स्टार्च होता है।

(iii) आंतरिक बाह्य त्वचा।

इसके अतिरिक्त आंतरिक अध्यावरण में , कोशिकाओं की 8 से 15 पंक्तियाँ पायी जाती है।

यहाँ बीजाण्ड की आकृति में वृद्धि के साथ ही बाह्य अध्यावरण की कोशिकाओं का आकार भी बढ़ जाता है और बाहरी परतों की कोशिकाओं में स्टार्च की मात्रा बढ़ जाती है और टैनिन जमा होने लगता है।

परागण के लगभग एक सप्ताह बाद ही बीजांड के आंतरिक अध्यावरण की कोशिकाएँ अरिय रूप से सुदिर्घित होने लगती है और लगभग तीन सप्ताह की अवधि के पश्चात् ये अपनी प्रारंभिक आकृति की तुलना में बहुत अधिक वृद्धि कर लेती है। इन कोशिकाओं की भित्तियाँ स्थुलित हो जाती है और इनसे एक खम्भऊतक परत बन जाती है। एक प्रारूपिक बीज में आंतरिक अध्यावरण निम्न क्षेत्रों में स्पष्टतया विभेदित होता है –

(i) बाह्य खम्भोतक परत

(ii) आंतरिक वर्णक युक्त क्षेत्र : यह 4 से 5 स्तरीय होता है।

(iii) आंतरिक रंगहीन क्षेत्र : यह 9 से 10 स्तरीय होता है।

(iv) झालरदार अथवा फ्रिन्ज परत

इस प्रकार परिपक्व बीज चोल में बाह्य अध्यावरण से तीन और आंतरिक अध्यावरण से चार अर्थात कुल सात क्षेत्र परिलक्षित होते है। कपास के बीज में रेशे अथवा तन्तु बाह्य बीज चोल की बाह्य त्वचा से विकसित होते है। ये एकल कोशिकीय पतली भित्ति युक्त संरचनाएँ होती है और दो प्रकार के क्रमशः लिन्ट और फज कहलाते है।

कुकुरबिटेसी कुल के सदस्यों में बीजाण्ड का आन्तरिक अध्यावरण अपहासित हो जाता है। इसके बाह्य अध्यावरण में कोशिकाओं की 10 से 15 पंक्तियाँ पायी जाती है जो कि आगे चलकर चार क्षेत्रों में विभेदित हो जाती है। इसी प्रकार लेग्यूमिनोसी कुल के सदस्यों का बीज चोल भी बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से विकसित होता है। वही दूसरी तरफ कुल ब्रेसीकेसी के सदस्यों में बीजाण्ड के दोनों अध्यावरण मोटे होते है। बाहरी अध्यावरण 2 से 5 कोशिका पंक्तियों का और भीतरी अध्यावरण 10 पंक्तियों का बना होता है। बाह्य अध्यावरण की बाहरी बाह्य त्वचा में म्यूसीलेज का जमाव हो जाता है जबकि बाह्यत्वचा के नीचे की कोशिका पंक्तियाँ कुचल जाती है या ये मोटी कोशिका भित्ति वाली हो जाती है। बाह्य अध्यावरण की आन्तरिक परत से खम्भ ऊतक परत का निर्माण होता है। इन कोशिकाओं की अरीय और स्पर्श रेखीय भित्तियों पर निक्षेपण पाया जाता है। आंतरिक अध्यावरण की परतें नष्ट हो जाती है।

कपास में बीजाण्ड अध्यावरण का बीज चोल में रूपान्तरण

अध्यावरण बीजाण्ड परिपक्व बीज
बाहरी अध्यावरण बाहरी बाह्यत्वचा

मध्य स्तर (1-3 कोशिका पंक्ति)

आंतरिक बाह्यत्वचा

बाहरी बाह्यत्वचा (कपास के रेशे विकसित )

बाहरी वर्णकी क्षेत्र (2-5 कोशिका पंक्ति)

बाहरी रंगहीन क्षेत्र (2 – 3 कोशिका पंक्ति)

आन्तरिक अध्यावरण बाहरी बाह्यत्वचा

मध्य स्तर (7-15 कोशिका पंक्ति)

आंतरिक बाह्यत्वचा

खंभ ऊतक परत (4-5 कोशिका पंक्ति)

आन्तरिक वर्णकी क्षेत्र (4-5 कोशिका पंक्ति)

आंतरिक वर्णक हीन क्षेत्र (9-11 कोशिका पंक्ति)

फ्रिंज अथवा झालरदार परत

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