जल संवहनी तंत्र किसे कहते हैं , संरचना संवहन तंत्र किसकी विशेषता है संघ , water vascular system is found in hindi

water vascular system is found in hindi जल संवहनी तंत्र किसे कहते हैं , संरचना संवहन तंत्र किसकी विशेषता है संघ ?

तारा मछली का जल-संवहनी तंत्र (Water-Vascular System of Star-fish)

एकाइनोडर्म जीवों में सीलोम से व्युत्पन्न एक विशेष तंत्र पाया जाता है। यह तंत्र जल – संवहनी तंत्र कहलाता है। इसमें पक्ष्माभ रेखित नलिकाएँ पाई जाती हैं तथा इन नलिकाओं में तरल भरा रहता है। यह संवहनी तंत्र एस्टेरॉइड एकाइनोडर्म (Asteroids) में सुविकसित होता है तथा यह गमन में मदद करता है।

जल – संवहनी तंत्र की संरचना

जल संवहनी तंत्र की विस्तृत रचना जानने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम यह जान लें कि तारा-मछली (star-fish) का शरीर चपटा व तारे के समान होता है। इसका एक भाग आधार की ओर रहता है। इस सतह पर मुख पाया जाता है। इसे मुखीय तल (oral surface) कहते हैं। इसके विपरीत भाग पर गुदा पाया जाता है यह तल अपमुखीय (aboral) तल कहलाता है। जल-संवहनी तंत्र का अधिकांश भाग आन्तरिक होता है परन्तु इसका प्रारम्भिक भाग या प्ररन्ध्रक अपमुखी तल पर पाया जाता है तथा मुखीय तल पर नाल पादों के चूषक पाए जाते हैं। इस संवहनी तंत्र के विभिन्न भागों का अध्ययन हम सुविधा की दृष्टि से निम्न आठ भागों में बांट कर सकते हैं।

  1. प्ररन्ध्रक (Madreporite )

तारामीन के अपमुख तल पर भुजाओं के बीच एक अस्पष्ट केन्द्रीय बिम्ब पाई जाती है। इस बिम्ब में प्ररन्ध्रक या मेड्रीपोराइट पाया जाता है। यह प्ररन्ध्रक बिम्ब के केन्द्र से कुछ हटा हुआ होता है तथा तारा मीन की दो पास की भुजाओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा के बीच स्थित होता है। इन दो भुजाओं को सम्मिलित रूप से द्विभुजिका (bivium) कहते हैं। शेष बची तीन भुजाएँ त्रिभुजिका (trivium) कहलाती है।

मेड्रीपोराइट एक बटन की तरह दिखाई देता है परन्तु इसमें अनेक खांचे अरीय रूप से व्यवस्थित होती है। इन खांचों में कशाभी उपकला कोशिकाएँ पाई जाती हैं। हर खांच के पैंदे पर छिद्र (pores) या रंध्र पाए जाते हैं। प्ररन्ध्रक की खड़ी काट का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि प्रत्येक रंध्र से एक महीन रंध्र नाल (pore canal) जुड़ी होती है। रंध्र नालें आपस में मिल कर संग्राहक नाल (collecting canal) बनाती है। संग्राहक नाल मिलकर एक तूम्बे जैसी रचना में खुलती हैं जिसे तुंबिका या एम्पुला (ampulla) कहा जाता है (चित्र 2)।

एक प्ररंध्रक में कुल 250 तक रंध्र हो सकते हैं। इस तरह प्ररंध्रक एक छलनी (sieve) जैसी रचना होती है।

  1. अश्म-नाल (Stone-canal)

प्ररन्ध्रक की तुम्बाका से एक कैल्शियमी नाल प्रारम्भ होती है जो लगभग लम्बवत् नीचे उतर कर एक वलय नाल (ring canal) से मिल जाती है। यह वलय नाल मुखीय तल से अधिक नजदीक होती है। इस नाल को अश्म ( अश्म = पत्थर) नाल इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस नाल की भित्ति पर चूने का जमाव होने के कारण यह पत्थर की तरह सख्त हो जाती है।

अश्म – नाल की अवकाशिका (lumen) पूरी खोखली नहीं होती है बल्कि इसकी दीवार वृद्धि कर अवकाशिका को दो भागों में विभाजित करती है। इस कारण ही नाल में जल एक भाग से नीचे से ऊपर जा सकता है तो दूसरे भाग से ऊपर से नीचे आ सकता है।

अश्म-नाल एक अक्षीय कोटर (axial sinus) में स्थित होती है जिसमें इसके साथ अक्षीय ग्रन्थि (axial gland) भी पाई जाती है। यह सम्पूर्ण रचना अक्षीय जटिल (axial complex) कहलाती है।

  1. वलय नाल ( Ring Canal )

तारा-मीन के शरीर में मुखीय तल ( अधर तल) की ओर एक पंचभुजीय वर्तुल नाल पाई जाती है। इसे जल – संवहनी वलय (water vascular ring), जल वलय (water ring) आदि नाम भी दिए गए हैं। चूँकि यह ग्रसिका (oesophagus ) के चारों ओर पाई जाती है अत: इसे परिग्रसिका नाल (circum-oesophageal canal) भी कहते हैं। इस परिग्रसिका नाल की अवकाशिका भी तारा-मीनों की अनेक जातियों में अलग-अलग विभाजित होती है । वलय नाल का जो भाग अरीय नालों के आधारों के मध्य स्थित होता है वह अन्तरार ( अन्तर अर या inter radius) कहलाता है । इस तरह से वलय नाल में कुल पांच अन्तरार होते हैं। एक अन्तरार पर अश्म-नाल आकर जुड़ती है।

प्रत्येक अन्तरार पर एक जोड़ी अन्तर्वलित पिण्ड पाए जाते हैं परन्तु जिस अन्तरार पर अश्म नाल मिलती है उसे सिर्फ एक ही पिण्ड पाया जाता है। इन पिण्डों का एकाइनोडर्मेटा पर शोध करने वाले शोधकर्त्ता एफ. टीडमान ( F. Tiedmann ) के नाम पर टीडमान – पिण्ड नाम दिया गया है। इन्हें द्राक्षगुच्छाभ ग्रन्थि या रेसीमोम ग्लैण्ड (recemose gland) भी कहा जाता है। इस तरह के कुल नौ पिण्ड वलय नाल पर पाए जाते हैं। इन पिण्डों में सम्भवतः संवहनी तंत्र में पाई जाने वाली भक्षक-प्रगुहाणुओं (phagocytic coelomecytes) की उत्पत्ति होती है ।

  1. पोलीय आशय (Polian vesicle)

अन्तरार पर ही कुछ पेशीय थैले समान संरचनाएँ जुड़ी रहती हैं, इनकी संख्या एक से पांच तक ( जाति के अनुसार) हो सकती है। ये आशय पोलीय आशय कहलाते हैं। वंश ऐस्टेरिआस में ये अनुपस्थित होते हैं। ये रचनाएँ जल – संवहनी तंत्र के जलाशय का काम करती है तथा जल दाब नियंत्रण में अपनी भूमिका निभाती है।

  1. अरीय नाल (Radial Canal)

वलय नाल से प्रत्येक भुजा के मध्य में एक-एक नाल निकलती है। यह नाल भुजा की पूर्ण लम्बाई तक फैली रहती है तथा अन्ततः भुजा के किनारे पर एक अन्तस्थ स्पर्शक ( terminal tentacle) के रूप में समाप्त हो जाती है। अरीय – नाल पक्ष्माभ युक्त होती है।

  1. पार्श्व नाल ( Lateral canal)

इसे पदीय नाल (podial canal) भी कहते हैं। प्रत्येक अरीय – नाल में दांए – बाए दोनों ओर पार्श्व नालों की एक-एक पंक्ति पाई जाती है। ये पदीय या पार्श्व नाल सम्पूर्ण भुजा में पाई जाती है। ये नाले सांतरित विन्यास (staggered arrangement) प्रदर्शित करती है। यानि दाएँ-बाएँ की नालें आमने-सामने नहीं होती है। एक ओर की दो पार्श्व नालों के बीच के स्थान से दूसरी ओर की नाल निकलती है। इसी तरह सभी जातियों में पार्श्व नालों की लम्बाई भी एक सी नहीं होती है। कुछ जातियों में लम्बी व छोटी पार्श्व नालों का एकान्तरण पाया जाता है। प्रत्येक पार्श्व नाल पर एक कपाट या वाल्व (valve) मिलता है। यह वाल्व एकतरफा द्वार की तरह कार्य करता है।

  1. नाल-पाद (Tube-feet)

प्रत्येक पार्श्व या पदीय नाल एक खूंटी या ड्रापर जैसी रचना में खुलती है। इसका ऊपरी भाग घुण्डी की तरह होता है। इसे तुम्बा या एम्पुला (ampulla) कहते हैं। यह भाग आन्तरिक होता है।

तथा भुजा की प्रगुहा में मिलता है।

एम्पुला के नीचे पादक या पोडियम (podium) पाया जाता है। इसका निचना सिरा तारा-मीन की मुखीय तल की ओर निकला रहता है। इसका अन्तिम छोर चूषक (sucker) कहलाता है। यह बाहर निकला भाग भी शेष त्वचा की तरह बाहर की ओर कशाभी उपकला से आस्तरित रहता है। इसकी आन्तरिक परत पेरीटोनियम की होती है तथा मध्य में संयोजी ऊत्तक व अनुदैर्घ्य पेशियाँ पाई जाती है। पादक के एक ओर की पेशिया संकुचित हो सकती हैं। पादक के एक ओर की पेशियाँ संकुचित होने पर पादक मुड सकता है।

मुखीय तल पर नाल पादों की दो या चार पंक्तियाँ दिखाई देती है। यदि पार्श्व नालों की लम्बाई समान हो तो वीथि खांच (ambulacral groove) के दोनों ओर एक-एक पंक्ति ही दिखाई देती है। यदि पार्श्व नालों की लम्बाई असमान हो तो वीथि खांच के दोनों ओर इनकी दो-दो पंक्तियाँ दिखाई देती है।

कार्य विधि (Mechanism)

समस्त जल संवहनी तंत्र या वीथि तंत्र (ambulacral system) में जल भरा रहता है। यह तंत्र मुख्य रूप से गंमन का कार्य करता है। एकाइनोडर्मेटा के अलावा ऐसा तंत्र किसी अन्य संघ में नहीं पाया जाता है।

(i) एम्पुला की पेशियाँ सिकुड़ती हैं जिसके कारण इनमें मौजूद तरल पादक में चला जाता है क्योंकि पार्श्व नाल में उपस्थित वाल्व इन्हें वापस पार्श्व-नाल में जाने से रोकता है।

(ii) अतिरिक्त तरल के आ जाने कारण पादक की लम्बाई में वृद्धि होती है जिसके कारण यह धारातल के सम्पर्क में आ जाता है। चूषक का मध्य भाग आधार के सम्पर्क में आने के उपरान्त ऊपर उठ जाता है जिसके कारण निर्वात उत्पन्न होता है तथा पादक दृढ़ता से

आधार पर चिपक जाता है। इनके कारण पादक गति के दौरान फिसलने से बच जाता है।

(iii) पादक की अनुदैर्घ्य पेशियों के सिकुडने से इनके अन्दर का तरल पुनः एम्पुला में चला जाता है अत: पादक पुनः छोटा होकर धरातल को छोड़ देता

(iv) अगली बार पादक जब एम्पुला के सिकुड़ने से लम्बा होता है तो वह पहले स्थान से कुछ आगे की ओर इस तरह मुड़ जाता है जैसे कि हम कदम बढ़ाते हैं । इस तरह की गति एक ही नहीं बल्कि अनेक नाल पादों में होती है। गति के दौरान उनके नाल पाद एक सेना के जवानों की तरह समन्वित गति करते हैं यदि पांचों भुजाओं में एक सी ही गति होगी तो तारा-मीन आगे नहीं बढ़ पायेगी। अतः गमन करते समय दो भुजाएँ मार्गदर्शक की भाँति कार्य करती है और समस्त नाल पाद एक समन्वित ढंग से उसी दिशा में गति करती है। इस कार्य में न सिर्फ जल – संवहनी तंत्र का पूर्ण योगदान चाहिए वरन इसमें उपस्थित तंत्रिकाओं व पेशियों के पूर्ण सहयोग की भी आवश्यकता होती है।

तारा मीन के नाल-पाद के चूषकों की पकड़ इतनी मजबूत होती है कि यह खड़ी सतह पर भी चढ़ लेती है। यही नहीं, यह मजबूती से बन्द जीवित सीपियों का कवच भी अपनी भुजाओं से इन्हीं चूषकों के आसंजन के कारण खोल पाती है।

जल संवहनी तन्त्र का मुख्य कार्य गमन में सहायता प्रदान करता है गमन नाल पादों द्वारा होता है और यह तन्त्र नाल पादों में जल स्थैतिक दाब उत्पन्न करता है ।

प्रश्न (Questions)

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer type Questions)

  1. जल – संवहनी तंत्र के विभिन्न भागों के नाम लिखिये |
  2. प्ररन्ध्रक क्या व कैसा होता है?
  3. अश्मनाल पर टिप्पणी लिखिये ।
  4. टीड्डमैन के काय किसे कहते हैं?
  5. पोलियत आशय क्या होते हैं?
  6. नाल पाद की संरचना बताइये ।
  7. तारा मछली के गमन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions )

  1. तारा मछली में पाए जाने वाला जल संवहनी तन्त्र भ्रूण के किस भाग से उत्पन्न होता है ? इसकी संरचना व कार्यविधि पर एक निबन्ध लिखिए ।
  2. क्या वंश ऐस्टरिआस के जलसंवहनी तंत्र में पोलीय आशय (Polian vesicle) पाए जाते हैं। जल संवहनी तंत्र का कार्य क्या है तथा यह कैसे होता है ? स्पष्ट कीजिए ।
  3. जल – संवहनी तंत्र का चित्र बना कर इसके विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए ।
  4. तारा मछली में जल संवहनी तन्त्र को समझाइये |