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शिराविन्यास (Venation in hindi) | शिरा विन्यास कितने प्रकार का होता है समांतर शिरा-विन्यास के उदाहरण
(Venation in hindi) शिरा विन्यास कितने प्रकार का होता है समांतर शिरा-विन्यास के उदाहरण ?
शिराविन्यास (venation of leaf)
पत्तियों की शिराओं या संवहन बंडलों का व्यवस्थाक्रम शिराविन्यास कहलाता है | यह निम्नलिखित प्रकार का होता है –
- समानान्तर (Parallel) : शिराविन्यास का ऐसा प्रारूप जिसमें पत्ती की प्रमुख शिराएँ परस्पर समान्तर अथवा लगभग समानान्तर होती है , जैसे – केला |
- जालिकावत (Reticulate) : जिसमें पर्णशिराएँ एक जाली के रूप में अनियमित रूप से फैली होती है , जैसे – पीपल |
- एकशिरीय (unicostate) : जिसमें केवल एक मुख्य शिरा हो , जैसे – केला और पीपल |
- बहुशिरीय (Multicostate) : जिसमें एक से अधिक मुख्य शिराएँ हो , इसे भी दो वर्ग में रखते है –
- अभिसारी (Convergent) : शिराएँ पर्णफलक के आधार से शीर्ष की तरफ वक्रित ढंग से फैलती है , जैसे गेहूँ और स्माइलेक्स |
- अपसारी (Divergent) : शिराएँ पर्णफलक के आधारीय भाग से निकलती है तथा फिर पत्ती के किनारे की तरफ पहुंचती हुई एक दूसरे से दूर हट जाती है , जैसे कद्दू |
पर्ण की समग्र संरचना (overall structure of leaf) :
- चर्मिल (Leathery or coriaceous) : जब पत्ती चमड़े के समान मोटी तथा कड़ी हो , जैसे – केलोट्रोपिस |
- झिल्लीमय (Membranous) : एक ऐसी पत्ती जो पतली झिल्ली के समान लचीली हो , जैसे – मकोय |
- शल्की (Scarious) : एक पतली तथा सूखी पत्ती जो हरी नहीं हो , जैसे – शतावर |
- माँसल (Fleshy) : कोमल और मोटी पत्ती , जैसे – स्पर्गुला |
- गूदेदार (Succulent) : एक मांसल और रसीली पत्ती , जैसे – पत्थरचिट्टा |
पुष्पक्रम (Inflorescence)
पुष्पक्रम : पौधे के पुष्पावली वृंत अथवा शीर्ष अथवा उपांत पर पुष्पों का व्यवस्थाक्रम पुष्पक्रम कहलाता है |
- असीमाक्षी (Racemose) : ऐसा पुष्पक्रम जिसमें पुष्पीय अक्ष की वृद्धि असीमित अथवा लगातार होती है और इस पर पुष्प अग्राभिसारी क्रम में व्यवस्थित रहते है अर्थात छोटे पुष्प नीचे की तरफ होते है | यह निम्नलिखित प्रकार का होता है –
- असीमाक्ष (Raceme) : एक सरल , सुदिर्घित , असीमित पुष्पक्रम , जिस पर सवृंत पुष्प , अग्राभिसारी क्रम में होते है , जैसे – मूली , सरसों , क्रोटोलेरिया आदि |
- यौगिक असीमाक्ष अथवा पुष्पगुच्छ (Panicle) : जब असीमाक्ष पुष्पक्रम शाखित हो जाता है तो इसे यौगिक असीमाक्ष कहते है , जैसे – गुलमोहर |
- कणिश (spike) : सामान्यतया अशाखित दीर्घित , सरल तथा असिमित पुष्पीय अक्ष वाला पुष्पक्रम जिसमें अवृंत पुष्प अग्राभिसारी क्रम में व्यवस्थित होते है , जैसे – अडूसा |
- कणिशिका (spikelet) : घासों के यौगिक पुष्पक्रम की इकाई जिसमें एक अथवा अधिक पुष्पों और उनके सहपत्रों का गुच्छा होता है , जैसे – दूब |
- नतकणिश (catkin) : केवल काष्ठीय पौधों में मिलने वाला एकलिंगी पुष्पों का नीचे की तरफ लटका हुआ कणिश , जैसे – शहतूत और सेलिक्स |
- स्पेडिक्स (Spadix) : एक आवरण अथवा स्पेथ में लिपटा , मोटा अथवा माँसल कणिश पुष्पक्रम , जैसे – मक्का |
- समशिख (Corymb) : ऐसा असीमित पुष्पक्रम जिसका पुष्पाक्ष छोटा तथा चौड़ा होकर शीर्ष पर न्यूनाधिक चपटा हो जाता है तथा जिसमे बाहरी पुष्प पहले विकसित होते है , जैसे – केन्डीटफ्ट |
- पुष्पछत्रक (Umbel) : ऐसा पुष्पक्रम जिसमें पुष्पों के वृन्त एक ही स्थान से विकसित होते है और खुले छाते की तिल्लियों के समान दिखाई देते है , जैसे – अम्बेलीफेरी कुल के सदस्यों में |
- मुंडक (Capitulum) : सामान्यतया अवृंत पुष्पों के पुंज से बना एक सघन पुष्पक्रम जिसमें पुष्प उत्तल पुष्पावली वृंत पर लगे रहते है , जैसे – सूर्यमुखी |
- समुंड (Capitate) : जब काफी अधिक अवृंत पुष्प एक समानित त्रिज्या से निकलकर एक गोलाकार संरचना बनाते है , जैसे एकेशिया और माइमोसा | यह मुंडक से पुष्पासन की स्थिति के कारण भिन्न होता है |
- ससीमाक्षी पुष्पक्रम (cymose) : एक ऐसा पुष्पक्रम जिसमें मुख्य अक्ष की वृद्धि उसके शीर्ष पर पुष्प के विकसित होने से शीघ्र ही रुक जाती है | पाशर्वीय अक्ष जो शीर्षस्थ पुष्प के नीचे से निकलता है वह भी पुष्प में समाप्त होता है | अत: उसकी वृद्धि भी सिमित हो जाती है | उदाहरण – आँकड़ा | यह निम्न प्रकार का होता है –
- एकशाखी अथवा एकलशाखी (Uniparous or monochasial) : मुख्य अक्ष की वृद्धि एक पुष्प के विकसित होने के साथ रुक जाती है , फिर उससे केवल एक पाशर्वीय अक्ष का विकास होता है जिसकी समाप्ति भी पुष्प में होती है |
- कुटिल (scorpoid cyme) : एकशाखी ससीमाक्षी पुष्पक्रम जिसमें पाशर्व अक्ष , दोनों पाशर्वों से एकान्तर क्रम में निकलती है , जैसे – रेननकुलस , इसमें पुष्पक्रम का एक टेढ़ा मेढ़ा आकार बन जाता है |
- कुंडलनी रूप ससीमाक्षी (Helicoidcyme) : एक शाखी ससिमाक्षी पुष्पक्रम , जिसमें पाशर्व अक्ष , सदैव एक ही तरफ से निकलती है तथा इस प्रकार कुंडलनुमा संरचना बनाती है , जैसे हीलियोट्रोपियम |
- द्विशाखी (Biparous or dichasial) : ऐसा निश्चित पुष्पक्रम , जिसमें मुख्य अक्ष दो संतति अक्षों को अथवा पुष्प विकसित कर स्वयं अवरुद्ध हो जाता है | जैसे – इक्जोरा और सैपोनेरिया |
- बहुशाखी (multiparous or polychasial) : एक ऐसा निश्चित पुष्पक्रम , जिसमें मुख्य अक्ष के पुष्प में समाप्त होने से पूर्व पाशर्व अक्षों का एक चक्र बनता है , जैसे – आँकड़ा अथवा मदार |
- विशिष्ट प्रकार के पुष्पक्रम (special type) :
- सायेथियम (cyathium) : यह पुष्पक्रम युफोर्बिया वंश का विशेष पहचान का लक्षण है | यह पुष्पक्रम एक पुष्प के समान प्रतीत होता है | इसका निर्माण सहपत्रों के संयुक्त होने से बने माँसल प्यालेनुमा इन्वोल्यूकर अथवा सहपत्र चक्र में स्थित नर और मादा पुष्पों से होता है | नर पुष्पों की संख्या सहपत्रों के बराबर होती है | प्रत्येक नर पुष्प अत्यंत हासित होकर केवल एक पुंकेसर द्वारा निरुपित होता है | इसमें बाह्यदल पुंज , दलपुंज और जायांग नहीं होते है | सहपत्र चक्र के एकदम मध्य में पुष्प होता है है | यह भी केवल एक त्रिअंडपी , युक्तान्डपी जायांग का बना होता है |
- कूटचक्रक (Verticillaster) : यह पुष्पक्रम लेबियेटी अथवा लेमियेसी का प्रारूपिक विशिष्ट लक्षण है | यह एक विशेष प्रकार का ससीमाक्षी पुष्पक्रम है | पुष्पावली वृंत की पर्वसंधियों पर सम्मुख क्रम में कुटिल एकशाखी ससीमाक्षी छोटे पुष्पक्रम व्यवस्थित होते है | प्रत्येक और पुष्पों की संख्या 3 , अर्थात एक पर्वसंधि पर कुल 6 होती है |
- हाइपेन्थोडियम (Hypanthodium) : यह पुष्पक्रम फाइकस वंश का विशेष पहचान का लक्षण है | बरगद , पीपल , अंजीर में यही पुष्पक्रम पाया जाता है | पुष्पावली वृंत रूपान्तरित होकर माँसल और कुम्भाकार हो जाता है , जिसके शीर्ष पर एक रन्ध्र होता है | कुम्भ की भीतरी सतह पर एकलिंगी पुष्प लगे होते है | रन्ध्र के समीप नर पुष्प जबकि शेष सतह पर मादा पुष्प होते है |
- एकल पुष्प (Solitary flower) : अकेला विकसित पुष्प |
- एकल अंतस्थ (solitary terminal) : शीर्ष के अंतिम सिरे पर विकसित एकल पुष्प , जैसे – लिलि और पॉपी |
- एकल कक्षस्थ (solitary axillary) : पत्ती के कक्ष में विकसित एकल पुष्प , जैसे – कुकुरबिटा और गुडहल |
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