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प्राथमिक प्ररोह का संवहनीकरण (vascularization of primary shoot in hindi) द्विबीजपत्री और द्विबीजपत्री तने
(vascularization of primary shoot in hindi) प्राथमिक प्ररोह का संवहनीकरण :
द्विबीजपत्री तने में संवहनीकरण : विभिन्न द्विबीजपत्री तनो के संवहनीकरण में व्यापक विविधता देखने को मिलती है। यहाँ प्राथमिक संवहन ऊतक एक ठोस या खोखले बेलन के रूप में और अन्ततोगत्वा पतले और अलग अलग संवहन पूलों के रूप में हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि विकासीय क्रम के दौरान प्राथमिक संवहन ऊतक की मोटाई अरीय दिशा में कम होती गयी और इसके साथ ही पर्ण अंतराल और शाखा अंतराल के फलस्वरूप सतत सिलिंडर विभिन्न खंडों या संवहन पूलों में टूट जाता है। यह संरचना द्विबीजपत्री तने में स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है। मज्जा का विकास भी संभवत: संवहन ऊतक से ही हुआ है।
तने में जाइलम का विकास सामान्यतया अपकेन्द्री क्रम में अर्थात केंद्र से परिधि की तरफ होता है जबकि मूल में सदैव अभिकेन्द्री होता है। चूँकि तने में जाइलम का विभेदन केन्द्र से प्रारंभ होकर परिधि की तरफ जाता है अत: प्रोटोजाइलम केंद्र की तरफ और मेटाजाइलम परिधि की तरफ स्थित होता है। इस प्रकार का संवहन पूल अन्त: आदिदारुक कहलाता है। इसके विपरीत मूल में प्रोटोजाइलम परिधि की तरफ और मेटाजाइलम केंद्र की तरफ स्थित होते है अत: जाइलम पूल बाह्य आदिदारूक कहलाते है।
तने में फ्लोयम का विकास अभिकेन्द्रीय अर्थात परिधि अथवा बाहर से केंद्र की तरफ (जाइलम की ओर) होता है। इस प्रकार प्रोटोफ्लोयम बाहर की तरफ और मेटाफ्लोयम अन्दर की तरफ स्थित होता है। वही दूसरी तरफ कुकुरबिटेसी कुल के सदस्यों के तनों में समद्विपाशर्विक संवहन पूलों में आंतरिक फ्लोयम ऊतक का विकास अपकेंद्री क्रम में अर्थात केंद्र से परिधि की तरफ होता है।
द्विबीजपत्री तने में परिरंभ वल्कुट और संवहन ऊतक के मध्य पूर्ण घेरे के रूप में या छोटे छोटे खंडो के रूप में पायी जाती है। द्विबीजपत्री तने में यह प्राय: सघन व्यवस्थित तंतुओं से बनी होती है।
सामान्यतया परिरंभ बहिफ्लोयमी उत्पत्ति वाले ऊतक को माना गया है जो फ्लोयम और अंत:त्वचा के मध्य होता है लेकिन अनेक वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा किये गए अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि परिरंभ वास्तव में संवहन ऊतक का एक हिस्सा है क्योंकि परिरम्भीय तंतु प्राथमिक फ्लोयम में उत्पन्न होता है अत: ऐसे पौधों की परिरंभ को सत्य परिरंभ नहीं माना जा सकता है।
जैसा कि विदित है , तने का संवहन ऊतक प्ररोह शीर्ष पर उपस्थित प्रोकेम्बियम से होता है। इस प्रक्रिया में प्रोकेम्बियम के विभाजन से निर्मित अपकेंद्री कोशिकाएं प्राथमिक जाइलम और अभिकेंद्री कोशिकाएं प्राथमिक फ्लोयम बनाती है। द्विबीजपत्री तने में प्रोकेम्बियम की सभी कोशिकाएं जाइलम और फ्लोयम (संवहन ऊतक) में विभेदित नहीं होती है। इसकी कुछ कोशिकाएँ प्राथमिक फ्लोयम और जाइलम के मध्य अवशिष्ट विभाज्योतक के रूप में रहती है जिसे अन्त: पुलीय कैम्बियम कहते है। ऐसे संवहन पूल जिनमें अन्त: पुलीय कैम्बियम उपस्थित होती है , वर्धी पूल कहलाते है। वर्धी पूल द्विबीजपत्री तने का लाक्षणिक गुण है। इसके विपरीत एकबीजपत्री पौधों में सम्पूर्ण प्रोकैम्बियम का उपयोग जाइलम और फ्लोयम के निर्माण में हो जाता है अत: संवहन पूल में कैम्बियम अनुपस्थित होता है। ऐसे संवहन पूल अवर्धि कहलाते है। संवहन पूल में जाइलम समूह केंद्र की तरफ जबकि फ्लोयम समूह बाहर की तरफ एक ही त्रिज्या में होते है। इस प्रकार के संवहन पूल बहि: पोषवाही कहलाते है। कुकुरबिटेसी कुल के तनों में जाइलम के भीतर की तरफ भी एक फ्लोयम समूह उपस्थित होता है जिसे आंतरिक फ्लोयम कहते है। यह भी आंतरिक कैम्बियम द्वारा जाइलम से पृथक रहता है। इस प्रकार संवहन पूल समद्विपाशर्विक संवहन पूल या उभयफ्लोयमी संवहन पूल कहलाते है। एपोसाइनेसी और एस्क्लेपिडेसी कुलों के पौधे में भी आंतरिक फ्लोयम पाया जाता है लेकिन यह जाइलम से घनिष्ठ सम्पर्क में नहीं होता और समद्विपाशर्विक संवहन पूल नहीं बनता है।
अनेक द्विबीजपत्रियों में सामान्य संवहन सिलिंडर के अतिरिक्त वल्कुट क्षेत्र में भी संवहन पूल पाए जाते है जिन्हें वल्कुट संवहन पूल कहते है। (उदाहरण : निक्टेंथस , केजुराइना) |
एक मत के अनुसार ये वल्कुट में उपस्थित पर्ण अनुपथ है जो पर्व संधि से काफी पहले पृथक हो जाते है और अगली पर्व संधि पर पर्णवृंत में प्रवेश करने से पूर्व वल्कुट में से होकर गुजरते है।
इसके अतिरिक्त कुछ द्विबीजपत्री पादपों में तने की मज्जा में भी संवहन पूल उपस्थित होते है , इन्हें मज्जा संवहन पूल कहते है। इसकी संख्या निश्चित (उदाहरण : एकाइरेंथस , बोरहाविया ) या अनिश्चित (उदाहरण : मिराबिलिस , पाइपर) होती है।
कुछ द्विबीजपत्री पौधों में सुस्पष्ट संवहन सिलिंडर का अभाव होता है। इनमें संवहन पूल भरण ऊतक में अनियमित बिखरे हुए होते है , जैसे – पैपेवर , पेपरोमिया और थैलिक्ट्रम आदि।
एकबीजपत्री तने में संवहनीकरण
एकबीजपत्री पौधों के तनों में संवहन पूलों की संख्या प्राय: अनिश्चित होती है। संवहन पूल भरण ऊतक में बिखरे हुए पाए जाते है। इनमें संवहन पूल तने के आधारीय भाग से इसके शीर्ष सिरे तक अपना व्यक्तिगत लक्षण या अपनी अलग पहचान बनाये रखते है। विभिन्न अमाप (प्राय: छोटे , बड़े और मध्यम आमाप) के उधर्व संवहन पूल नियमित अंतराल पर पर्ण अनुपथ का निर्माण करते है। बड़े संवहन पूलों की तुलना में छोटे संवहन पूल अधिक पर्ण अनुपथों का निर्माण करते है। इसके अतिरिक्त इनसे आनुषंगिक पूल विकसित होते है जो पुष्पक्रम की तरफ अभिगमन करते है और सेतु पूल बनते है जो नजदीकी पूलों को आपस में जोड़ते है। परिधि की ओर छोटे संवहन पूल और केंद्र की तरफ बड़े संवहन पूल होते है जिसके परिणामस्वरूप बाहरी भरण ऊतक में संवहन पुलों की संख्या अधिक होती है।
एकबीजपत्रियों विशेषकर पोएसी कुल के सदस्यों के संवहन बंडलों की जटिल व्यवस्था पत्तियों के बंडलों की तने में अवस्थिति के कारण दिखाई पड़ती है। मक्का के तने में तीन प्रकार से संवहन पूल पाए जाते है –
(a) मध्य शिरा और बड़ी पाशर्व शिराओं से उत्पन्न संवहन पूल तने के भीतर तक जाते है और निचली पर्व सन्धियों पर बाहर की तरफ निकलते है।
(b) पतली पाशर्व शिराओं से उत्पन्न होने वाले पर्ण अनुपथ बंडल जो परिधि के पास आकर परिधीय बंडलों से जुड़ जाते है।
(c) छोटे पहले संवहन पूल जो वल्कुट में पहुँचकर पर्व संधि के पास वल्कुट क्षेत्र में विलुप्त हो जाते है।
एकबीज तनों के संवहन पूल संयुक्त , बहि: पोषवाही और अवर्धी प्रकार के होते है। प्रत्येक संवहन पूल में एक दृढोतकी आच्छद उपस्थित होता है।
संवहन पूल में जाइलम अंग्रेजी अक्षर Y के आकार में होता है जिसमें चार वाहिकाएं होती है। दो मेटाजाइलम वाहिकाएँ Y की दो भुजाओं के शीर्ष पर और दो प्रोटोजाइलम वाहिकाएं Y के आधार पर स्थित होती है। कभी कभी तने की लम्बाई में वृद्धि के कारण प्रोटोजाइलम विघटित होकर लयजात गुहिका का निर्माण करते है। फ्लोयम Y की भुजाओं के मध्य स्थित होता है। प्रोटोजाइलम वाहिकाओं की द्वितीय भित्ति पर सर्पिल या वलयाकार स्थूलन पाए जाते है जबकि मेटाजाइलम वाहिकाओं की भित्तियों गर्तमय होती है। फ्लोयम चालनी नलिका और सहचर कोशिकाओं से निर्मित होता है। इसमें फ्लोयम मृदुतक तत्व अनुपस्थित होते है।
कुछ एक बीजपत्री तनों में संवहन पूल संकेंद्री प्रकार के होते है। एकोरस में प्राथमिक पूल और ड्रेसीना में द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप बने संवहन पूल पोषवाही केन्द्री प्रकार के होते है। इनमें फ्लोयम केन्द्र में स्थित होता है और चारों से जाइलम द्वारा घिरा रहता है।
कुछ एकबीजपत्री तनों में संवहन पूलों की असंगत व्यवस्था भी पायी जाती है। ट्रिटीकम एसफ़ोडिलस और रेमस आदि में संवहन पूल द्विबीजपत्री तनों के समान एक वलय में व्यवस्थित पाए जाते है।
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