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Types of neurons in hindi , न्यूरॉन्स के प्रकार कितने होते है , न्यूरॉन के विभिन्न प्रकार क्या है समझाइये

पढ़िए Types of neurons in hindi , न्यूरॉन्स के प्रकार कितने होते है , न्यूरॉन के विभिन्न प्रकार क्या है समझाइये  ?

न्यूरॉन्स के प्रकार (Types of neurons)

प्रवध की संख्या के आधार पर (On the basis of the number of processes) : न्यूरान के कोशीय-काय भाग से निकलने वाले प्रबर्धी की संख्या के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं :

  • अध्रुवीय (Apolar) : ये सबसे अधिक (primitive) प्रकार के न्यूरॉन होते हैं जिनमें कोई भी प्रबर्ध नहीं पाया जाता है। ये सामान्यतया भ्रूणीय तंत्रिकीय एक्टोडर्म (neuro ecoderm कोशिकाओं के रूप में पाये जाते हैं।

चित्र 6.4 : विभिन्न प्रकार के तन्त्रिका कोशिकायें

(ii) एकध्रुवीय (Unipolar) : इस प्रकार के न्यूरॉन में कोशीयाकाय से मात्र एक प्रवर्ध बाहर निकलता है जो एक्सॉन होता है। इनमें डेन्ड्रॉन का अभाव होता है। ये सामान्यतया स्पाइनल तंत्रिकाओं के पश्च भागों तथा कुछ कपाल तंत्रिका (cranial nerves) जैसे ट्राइजेमिनल (trigeminal ), ग्लोसोफैरेन्जियल (glossopharyngeal) एवं वेगस (vegus) इत्यादि में पाये जाते हैं।

(ii) द्विध्रुवीय (Bipolar) : इनमें कोशिय-काय के एक ओर एक एक्सॉन तथा दूसरी ओर एक डेन्ड्रॉन पाया जाता है। ये नेत्र के रेटीना (retina) भाग में पाये जाते हैं।

(iv) बहुध्रुवीय (Multipolar) : इनमें एक एक्सॉन एवं अनेक डेन्ड्रन उपस्थित रहते हैं। ये मस्तिष्क एवं मेजरज्जू में पाये जाते हैं।

चित्र 6.5: तंत्रिका-पेशी संधि का आरेखी निरूपण 2. कार्यिकीय या क्रियात्मक आधार पर (On the basis of function) : न्यूरॉन्स  का क्रियाओं के आधार पर निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किया जाता है :

(i) अभिवाही या संवेदी न्यूरॉन (Afferent or sensory neuron) : ये ग्राही अंगों से संवेदना ग्रहण करके उन्हें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचाते हैं।

(ii) अपवाही या चालक न्यूरॉन (Efferent or motor neuron) : यन्यून्स आव केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से प्रभावी या कार्यकारी अंगों (पेशियों अथवा ग्रन्थियों) हैं।

(iii) सम्बद्ध न्यूरॉन या इन्टरन्यूरॉन या एडजस्टर न्यूरॉन (Assoclation or interneury or adjustor neurons ) : ये संवेदी एवं चालक न्यूरॉल्स के बीच में उपस्थित रहते हैं। ये संवेदनाओं को अनेक दिशाओं में प्रसारित करते हैं तथा आवश्यकतानुसार इसमें परिव कर सकते हैं। इनका सम्बन्ध विचार (thought), भावनाओं (feelings) एवं भाष (language) से होता है।

(iv) तंत्रिका स्त्रावी न्यूरॉन (Neuro-secretory neurons ) : ये तंत्रिकी हार्मोन्स (neurohormones) का स्त्रावण करते हैं। इनके एक्सॉन का अन्तिम सिरा रूधिर धारा के समीप होता है। ये तंत्रिका तंत्र में आवेगों को स्वतंत्र रूप से प्रसारित करने की क्षमता रखते हैं।

उद्दीपन (Stimulus)

यह शरीर के बाहरी या आन्तरिक वातावरण में होने वाला परिवर्तन होता है जो तंत्रिका या पेश या सम्पूर्ण जन्तु को उत्तेजित करने हेतु सक्षम होता है। यदि संवेदन ऊत्तक में आवश्यक परिवर्तन या उत्तेजन उत्पन्न करने में सक्षम होता है तो उसे देहली उद्दीपन (theshhold stimulus) कहा जाता है। यह उद्दीपन तंत्रिका में आवेग उत्पन्न करने हेतु पर्याप्त होता है । सामान्यतया निम्नलिखित प्रकार के सवंदन पाये जाते हैं :

  1. यांत्रिक उद्दीपन (Mechanical stimulus ) : यदि कोई ऊत्तक यांत्रिक कारणों से उत्तेजनाशीलता दर्शाता है तो उस कारक को यांत्रिक उद्दीपन कहा जाता है, जैसे : स्पर्श (touch)।
  2. भौतिक उद्दीपन (Physical stimulus ) : इसमें ऊष्मा (heat), ताप (temperature), आद्रता (humidity) आदि संवेदन आते हैं।
  3. रासायनिक उद्दीपन (Chemical stimulus ): इसमें अम्ल (acid) एवं क्षार (base) जैसे उद्दीपन आते हैं।
  4. विद्युत उद्दीपन (Electrical stimulus ) : विद्युत धारा (electric currents) इस प्रकार के उद्दीपन का उदाहरण है जो जीवित ऊत्तकों में उत्तेजना कर सकती है।

तंत्रिका आवेग (Nerve impulse)

प्रोसर (Prosser) के अनुसार, “तंत्रिका आवेग (nerve impulse) किसी उद्दीपन के पर तंत्रिका आवेग के प्रसारण के समय आवेग की गति में प्रतिरोधकता के कारण गति में कमी आती है। सामान्यतया तंत्रिका आवेग के वेग तन्तुं के व्यास का अनुक्रमानुपाती (directly proportional) होता है। स्तनधारियों में मज्जा युक्त तन्तुओं में यदि तन्तु का व्यास एक माइक्रोन बढ़ा दिय जाये तो आवेग का वेग 6 मीटर/ सैकण्ड बढ़ जाता है।

  1. तंत्रिका को विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक कारक प्रभावित करते हैं। तंत्रिका पर दबाव पड़ने से या तंत्रिका को ठण्डा करने से या तंत्रिका पर कुद रसायन जैसे क्लोरोफॉर्म, ईथर इत्यादि डालने से तंत्रिका आवेग का अवरोधन (inhibition) हो सकता है। तंत्रिका पर से अवरोधन का

कारक हटा देने पर उसकी क्रियाशीलता पुनः प्राप्त हो जाती है ।

  1. तंत्रिका आवेग के निरन्तर संवहन हेतु लगातार ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसेस ऊर्जा उत्पन्न होती है। तंत्रिका को लगातार ऊर्जा मिलने पर इसमें श्रांति या थकान (fatigue) नहीं देखी जाती है। ऑक्सीजन की अनुपस्थित से लगातार संवेदना देने पर अनेक तंत्रीय विकार देखे जाते

हैं।

  1. तंत्रिका आवेग की गति पर मज्जा – आच्छद का प्रभाव देखा जाता है। इस आच्छद की उपस्थिति के कारण, विद्युत विभव (electrical-potential ) वाली एक्सॉन कला (axolemma) का सम्पर्क बाहरी वातावरण से केवल रेन्वियर की पर्व- संधियों (nodes of Ranvier) पर सीमित हो जाता है। पर्व (internode) वाले भाग पर रोधक (insulator) की उपस्थिति के कारण यह देखा नहीं जाता है। इस प्रकार मज्जायुक्त तन्तुओं में आवेग एक इन्टरलोड से दूसरे तक नृत्य (dance) या उछल (jump) करके जाता है जबकि यही आवेग मज्जा-रहित तन्तुओं में एक सतत तरंग (continuous wave) के रूप में जाता है। इस प्रकार होने वाला आवेग प्रेषण ( impulse transmission), वल्गी चालन (saltatory action) कहलाता है। इस प्रकार के प्रेषण में आवेग की गति भी बढ़ती है तथा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  2. सामान्यतया तंत्रिका तन्तु अनेक आवेगों को प्रसारित करने की क्षमता रखते हैं। ये एक नियमित क्रम में संवहन करते हैं। मस्तिष्क में आने वाले विभिन्न संवेदन आवेग की प्रकृति पर निर्भर नहीं करते उन्हें बल्कि ये मस्तिष्क के उस भाग में प्रभावित होते हैं जहाँ पर ये ग्रहण किये जाते

हैं।

  1. मज्जा-आच्छद आवेग की गति को तीव्र करता है तथा संलग्न तन्तुओं में आवेग क्षय (impulse loss) को खोजता है। ऐसा माना जाता है कि रेनिवयर पर्व – संधि (node of Ranvier) पर स्थित झिल्ली 500 गुणा अधिक पारगम्य होती है।
  2. किसी भी मज्जा-युक्त तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचारण मज्जा-रहित एक्सॉन में, तन्तु का व्यास अधिक होने पर आन्तरिक प्रतिपरोधकता (internal resistance) कम हो जाती है जिससे प्रेषण वेग (conduction velocity) अधिक होती है। यह गति कुछ मीटर/सैकण्ड से लेकर लगभग 100 मीटर/सैकण्ड तक होती है। यह गति कुछ मीटर/सैकण्ड से लगभग 100 मीटर/सेकण्ड तक होती है। प्रेक्षण की यह सबसे अधिक गति अधिकतम व्यास (thickest) वाले तंत्रिका-तन्तु में देखी जाती है।
  3. मज्जा-वृत्त तन्तुओं में आवेग प्रेषण की गति तंत्रिका तन्तु के व्यास के सीधे समानुपाती होती है क्योंकि पर्व-संधियों के मध्य की दूरी तंत्रिका तन्तु के व्यास के समानुपाती होती है। इनमें प्रेषण की गति (मीटर/सेकण्ड तन्तु के व्यास (11 में) के लगभग 6 गुणा अधिक होती है।
  4. इस प्रकार के प्रेषण से न केवल प्रेषण वेग ही बढ़ता है बल्कि सामान्य स्थिति को पुनः है अर्थात् ऐसे चालन के समय एक्सॉन कला (axolemma) के केवल कुछ ही भाग का विध्रुवण प्राप्ति के लिए उपापचयी क्रियाओं (metabolic activities) की आवश्यकता में भी कमी हो जाती (depolarization) होगा जिसके कारण आयनों के विनिमय हेतु कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

तंत्रिका आवेग का प्रेषण (Conduction of nerve impulse )

जैसा कि पूर्व में वर्णन किया जा चुका है कि न्यूरॉन का एक्सॉन एक खोखले बलन के समान घोता है जिसमें उपस्थित कोशिकाद्रव्य एक्सोप्लाज्म कहलाता है। एक्सॉन के चारों ओर उपस्थित नाज्मा झिल्ली, एक्सोलेमा (axolemma) कहलाती है। यह झिल्ली लिपोप्रोटीन की बनी होती है तथा 100A° मोटी होती है। एक्सोलोमा पर अनेक 7 से 10A° व्यास के छिद्र उपस्थित रहते हैं जिनसे जल एवं अन्य पदार्थ आसानी से विनिमय कर सकते हैं अतः एक्सोलेमा एक आर्द्ध-पारगम्य (sem- permeable) झिल्ली की तरह कार्य करती है।

तंत्रिका तन्तु पर तंत्रिका आवेग का प्रेषण ‘झिल्ली सिद्धान्त’ (membrance theory) द्वारा समझाया जा सकता है। इसके अनुसार तंत्रिका आवेग का चालन एक विद्युत रासायनिक (electro- chemical) घटना है जिसके अन्तर्गत विद्युत विभव (electrical potential) में परिवर्तन होता है। अन्य कोशिकाओं के समान तंत्रिका कोशिकायें अर्थात् न्यूरॉन भी तरल माध्यम में उपस्थित होती हैं तथा इस माध्यम को अन्तराली (interstitial fluid) कहते हैं।

तंत्रिका आवेग के उत्पादन एवं प्रेषण को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है :

  1. विराम कला विभव (Resting membrane potential) : जब तंत्रिका – आवेग का संचरण न हो रहा होता है तब ऐक्सान का बाहरी तल (outer surface), भीतरी तल (inner surface) की अपेक्षा अधिक धन विद्युती (electropositive) होता है। इस प्रकार एक्सोलेमा के दोनों और पाये जाने वाला आवेग का अन्तर विभवान्तर (potential difference) कहलाता हैं। यह अन्तर झिल्ली के दोनों ओर सोडियम एवं पोटेशियम आयन (Na+ एवं K+) के समान वितरण के कारण होता है। विश्रामावस्था (resting stage) में Na+ सक्रिय रूप से तंत्रिका तन्तु के अन्दर उपस्थित एक्सोप्लाज्म से बाहर अन्तरालीय द्रव की ओर प्रवाहित होते रहते हैं। इसे सोडियम पम्प | (sodium pump) कहा जाता है। इसके फलस्वरूप बाहर की आरे इनकी सान्द्रता लगभग 10 गुण अधिक तथा अन्दर की ओर कम होती है। इसी प्रकार एक्सोप्लाज्म में उपस्थित K+ की सान्द्रता बाहर अन्तरालीय द्रव से लगभग 30 गुणा अधिक होती है। इसी के साथ न्यूरॉन के कोशिकाद्रव्य में अनेक उपस्थित रहते हैं जो प्लाज्मा झिल्ली से विसरित नहीं हो पाते हैं अथवा बहुत ही कम मात्रा

में विसरित होते हैं। सोडियम आयन (Na+) की उपस्थिति के कारण एक्सोलेमा की बाहरी सतह पर धन आवेश (positive charge) होता है तथा अन्दर की ओर क्लोराइड आयन (Cl) की उपस्थिति के कारण ऋण आवेश (negative charge) उपस्थित रहता है। यद्यपि बाहरी अन्तरालीय द्रव से K+ लगातार अन्दर की ओर प्रवेश करते रहते हैं, परन्तु ये एक्सोप्लाज्म में उपस्थित CI आयन | को उदासीन नहीं कर पाते हैं तथा अन्दर की ओर कुल आवेश ऋणात्मक बना रहता है।

इस प्रकार चालन न करने वाले न्यूरॉन के बाहरी तथा भीतरी तलों पर आवेश में जो परिशुद्ध (net) अन्तर होता है उसे विराम कला विभव (resting membrane potential) कहते हैं। इस स्थिति में न्यूरॉन के एक्सॉन भाग पर उपस्थित प्लाज्मा झिल्ली को ध्रुवित (Polarized) कहा जाता है। प्लाज्मा झिल्ली पर उपस्थित विभवान्तर को गेल्वेनोमीटर (galvanometer) या केथोड किरणों वाले ऑसिलोस्कोप (oscilloscope) द्वारा मापा जा सकता है। इसका मान लगभग -70 से -85 mv होता है। विराम विभव भौतिक रासायनिक समत्व (Physico-chemical equillibrium) पर निर्भर करता है जिसे डोनान साम्यवस्था (Donnan equilibrium) कहा जाता है। इसके द्वारा जीव कोशिका से अन्दर एवं बाहर की ओर Na+, K+ तथा CH के गमन को समझाया जा सकता है। इस प्रकार Na+ एवं K+ के गमन को सक्रिय परिवहन (active transport) की श्रेणी में रखा जाता है जो सान्द्रता प्रवणता परिवहन (concentration gradient) के विपरीत होता है तथा इस क्रिया में कोशिका के द्वारा उत्पन्न सम्पूर्ण ऊर्जा का लगभग 40 प्रतिशत भाग काम में आता है। इसे कोशिका का सोडियम पौटेशियम पम्प (sodium potassium pump) कहते हैं। यह Na+ , K+ – ATP ase एन्जाइम द्वारा संचालित रहता है जो कोशिका झिल्ली पर उपस्थित रहता है।

 

चित्र 6.6 : तन्त्रिका आवेग का प्रारम्भ एवं प्रेषण

विभिन्न जन्तुओं में विराम-कला विभव का मान अलग-अलग होता है। उदाहरणार्थ, स्किव्ड (squid) के ऐक्सॉन पर -65mv, मेंढ़क के ऐक्सॉन पर -71 mv तथा बिल्ली के मस्तिष्क में कॉर्टेक्स भाग पर लगभग -60 mv होता है।

  1. सक्रिय कला विभव (Active membrane potential) : जब एक्सॉन को कोई भी पर्याप्त यांत्रिक, रासायनिक या विद्युत उद्दीपन मिलता है तो एक्सोलेमा तुरन्त ही अधुवि (depolarized) हो जाती है जिससे सोडियम पम्प बन्द हो जाता है। इस स्थिति में एक्सॉन भित्ति की पारगम्यता (permeability) सोडियम आयनों (Na+ ) के लिये यकायक बढ़ जाती है। यह वृद्धि पौटेशियम आयनों की अपेक्षा लगभग 10 गुणा अधिक होती है जिससे सोडियम आयन बाहर उपस्थित अन्तरालीय द्रव से अन्दर एक्सोप्लाज्म में विसरित होना प्रारम्भक करते हैं। सोडियम (Na+) आयनों का गमन अन्दर की ओर इतना अधिक होता है कि एक्सॉन भित्ति न केवल अध्रुवीय होती है बल्कि यह अन्दर की ओर धनावेशित (positively charged) हो जाती है। इस प्रकार प्राप्त

विश्रामवस्था के ठीक विपरीत होती है तथा इसे उत्क्रम विभव (reversible potential) या उत्क्रम ध्रुवीयकरण (reversible polarization) अर्थात् विध्रुवण (depolarization) कहते हैं।

इस परिवर्तन के अन्तर्गत सर्वप्रथम विराम-कला विभव (resting membrane potential) उस स्थान पर शीघ्र लुप्त हो जाता है। इसके पश्चात् विराम कला विभव के स्थान पर एक नया विभव उत्पन्न होता है जिसे सक्रिय कला-विभव (membrane action potential) कहते हैं। इस क्रिया में पूर्व विभव प्लाज्मा झिल्ली के अन्दर की सतह की ओर – 70 से शून्य की ओर हाता है। इस स्थिति में विभव के आने पर ही इसे विध्रुवीय (depolarized) कहा जाता है। इसके पश्चात् यह विभव सोडियम आयन्स के लगातार अन्दर प्रवेश करने के कारण बढ़ता रहता है तथा बढ़कर + 30 m हो जाता है। अतः एक्सोलेमा पर सक्रिय कला-विभव + 30 mv के बराबर होता है। यह परिवर्तन मात्र 0.001 सैकण्ड के लिये ही होता है तथा एक्सोलेमा के एक बहुत ही छोटे भाग (लगभग 0.1 से 10 से.मी.) पर ही उत्पन्न होता है। इसी के साथ न्यूरॉन का शेष भाग पूर्व की तरह विराम-का विभव अर्थात् ध्रुवीय अवस्था में ही रहता है। जैसे ही तंत्रिका आवेग न्यूरॉन पर आगे की ओर गमन / करता है कोशिका कला का यह भाग अपनी पूर्वास्था अर्थात् प्रारम्भिक विराम-कला विभव की की स्थिति में आ जाता है।

 

चित्र 6.7 : स्थानीय विद्युत परिपथ

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