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भ्रूणकोष के प्रकार (types of embryo sac in hindi) एकबीजाणुक भ्रूणकोष (monosporic embryo sac)

(types of embryo sac in hindi) भ्रूणकोष के प्रकार :

1. एकबीजाणुक भ्रूणकोष (monosporic embryo sac) : एकबीजाणुक भ्रूणकोष की लाक्षणिक विशेषता यह है कि इसका परिवर्धन चार में से केवल एक गुरुबीजाणु द्वारा होता है। शेष तीन निष्क्रिय होकर नष्ट हो जाते है।
यह पुन: दो प्रकार के होते है –
(i) पोलीगोनम प्रकार
(ii) ओइनोथीरा प्रकार।
(i) पोलीगोनम प्रकार (polygonum type) : अधिकांश एन्जियोस्पर्म पादपों में इसी प्रकार का भ्रूणकोष मिलता है। अत: इसे एक प्रारूपिक प्रकार माना गया है। सर्वप्रथम इस प्रकार के भ्रूणकोष का वर्णन स्ट्रासबर्गर ने पोलीगोनम डाइवेरिकटम में किया था। इसमें निभाग की तरफ वाला क्रियात्मक गुरुबीजाणु केन्द्रक तीन उतरोत्तर समसूत्री विभाजनों से आठ केन्द्रकी भ्रूणकोष बनाता है।
भ्रूणकोष के प्रत्येक ध्रुव पर चार केन्द्रक होते है। प्रत्येक ध्रुव से एक एक केन्द्रक भ्रूणकोष के मध्य भाग की तरफ अभिगमन करता है जिन्हें ध्रुवीय केन्द्रक कहते है। ये दोनों संयुक्त होकर मध्य भाग में द्वितीयक केन्द्रक का निर्माण करते है। बीजाण्डद्वारी केन्द्रक तीन कोशिक अंड उपकरण बनाते है , जबकि विभागीय ध्रुव के केन्द्रक तीन प्रतिमुखी कोशिकाएं बनाते है। इस प्रकार परिपक्व भ्रूणकोष 7 कोशिक और 8 केन्द्रकी संरचना होती है।
(ii) ओइनोथीरा प्रकार या ओनाग्रेड  (oenothera type of embryo sac) : इस प्रकार के भ्रूणकोष का निर्माण बीजाण्डद्वारीय गुरुबीजाणु से होता है। यहाँ गुरुबीजाणु का केन्द्रक पहले बीजाण्ड द्वारिय सिरे की तरफ स्थानान्तरित हो जाता है। इसके बाद यह समसूत्री विभाजन द्वारा दो बार विभाजित होता है , जिससे चार केन्द्रक बनते है। परिपक्व भ्रूणकोष में बीजाण्डद्वारिय सिरे पर तीन केन्द्रक संगठित होकर अंड समुच्चय का निर्माण करते है। शेष एक केन्द्रक मध्य भाग में स्थानांतरित होकर ध्रुवीय केन्द्रक बनाता है। यहाँ प्रतिमुखी कोशिकाएँ अनुपस्थित होती है। इस प्रकार यहाँ चार कोशिकीय अवस्था में भ्रूणकोष संगठन पाया जाता है। ऐसे भ्रूणकोष प्राय: ओनेग्रेसी कुल के पौधों में पाए जाते है।

II. द्विबीजाणुक भ्रूणकोष (bisporic embryo sac)

इन पौधों में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में प्रथम अर्धसूत्री विभाजन के बाद कोशिका भित्ति का निर्माण हो जाता है जिससे दो कोशिकाएँ बनती है। बाद में दोनों कोशिकाओं में उपस्थित अगुणित केन्द्रक समसूत्री रूप से विभाजित होते है लेकिन संतति केन्द्रकों के बीच भित्ति का निर्माण नहीं होता , परिणामस्वरूप दो , दो अगुणित केन्द्रकों वाली दो कोशिकाएँ बनती है। इन कोशिकाओं को द्वयक कहते है। प्रत्येक द्वयक में दो अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक पाए जाते है।
आगे चलकर एक द्वयक कोशिका विघटित हो जाती है। जबकि दूसरी द्वयक कोशिका के दोनों केन्द्रक दो बार समसूत्री विभाजन करके आठ कोशिकीय (3+2+3) भ्रूणपोष का निर्माण करते है। इसकी प्रारूपिक संरचना पोलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष के समान होती है। लेकिन इसके निर्माण में क्योंकि दो गुरुबीजाणु केन्द्रक भाग लेते है। अत: इसे द्विबीजाणुक भ्रूणकोष कहा जाता है। चूँकि द्विबिजाणुक भ्रूणकोष के चार केन्द्रक एक गुरुबीजाणु और दुसरे चार केन्द्रक दुसरे बीजाणु केन्द्रक से बनते है। अत: आनुवांशिक के आधार पर चार केन्द्रक एक प्रकार और शेष चार केन्द्रक दूसरी प्रकार के होते है। आवृतबीजी पौधों में द्विबिजाणुक भ्रूणकोष भी दो प्रकार के होते है –
(i) एलियम प्रकार
(ii) एंडीमियोन प्रकार
(i) एलियम प्रकार (allium type of embryo sac) : इस प्रकार का भ्रूणकोष गुरुबीजाणु मातृ कोशिकाओं अर्धसूत्री विभाजन के परिणामस्वरूप निर्मित दो द्वयकों में से निभागीय सिरे वाले द्वयक से विकसित होता है। द्वयक के दोनों केन्द्रक दो समसूत्री विभाजनों द्वारा 8 केन्द्रक बनते है इनकी संरचना पोलीगोनम प्रकार के समान होती है।
इस प्रकार के द्विबीजाणुज भ्रूणकोष के परिवर्धन का वर्णन सर्वप्रथम स्ट्रासबर्गर ने 1879 में एलियम फिस्टूलोसम में किया था।
(ii) एण्डीमियोन प्रकार (endymion type embryo sac) : इस प्रकार के भ्रूणकोष की खोज बेटागलिया (1958) द्वारा एंडीमियोन हिस्पेनिकस में की गयी। यह केवल एक भिन्नता के अतिरिक्त पूर्णतया एलियम प्रकार जैसा ही है। एलियम प्रकार के द्विबीजाणुक भ्रूणकोष का विकास निभागीय द्वयक से होता है जबकि एंडीमियान प्रकार का भ्रूणकोष बीजाण्डद्वारीय द्वयक से बनता है।

III. चतुष्कीबीजाणुक भ्रूणकोष (tetrasporic embryo sac)

यदि गुरुबीजाणुक मातृ कोशिका के अर्धसूत्री विभाजन के बाद कोशिका द्रव्य का विभाजन नहीं होता है और और चारों अगुणित सन्तति केन्द्रकों के मध्य भित्ति निर्माण नहीं होता तो इस प्रकार चारों अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक एक ही कोशिका में रहते है। इस कोशिका को सीनोमेगास्पोर अथवा संकोशिकी गुरुबीजाणु कहते है।
जब भ्रूणकोष इस सीनोमेगास्पोर से विकसित होता है तो ये चारों केन्द्रक उसमें सहयोगी होते है।
इस प्रकार के भ्रूणकोष को चतुष्कीबीजाणु भ्रूणकोष कहते है क्योंकि इस प्रकार के भ्रूणकोष का विकास अर्धसूत्री विभाजन के बाद निर्मित चारों अगुणित गुरूबीजाणु केन्द्रकों से होता है अत: आनुवांशिकी के आधार पर इस प्रकार का भ्रूणकोष विषमांगी होता है।
सीनोमेगास्पोर में –
(i) चार अगुणित केन्द्रकों की उपस्थिति
(ii) इनमें विभाजनों की संख्या
(iii) परिपक्व भ्रूणकोष की केन्द्रकों की व्यवस्था
उपर्युक्त तीन विशेषताओं के आधार पर आवृतबीजी पौधों में अनेक प्रकार के चतुष्कीबीजाणुक भ्रूणकोष पाए जाते है , ये है –
  1. एडोक्सा प्रकार
  2. प्लम्बेगो प्रकार
  3. पीनिया प्रकार
  4. पेपेरोमिया प्रकार
  5. डूसा प्रकार
  6. फ्रिटिलेरिया प्रकार
  7. प्लेम्बेजैला प्रकार
(1) एडोक्सा प्रकार (adoxa type of embryo sac) : इस प्रकार का भ्रूणकोष आठ केन्द्रकी होता है। संकोशिकी गुरुबीजाणु में उपस्थित चार अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रकों में से दो गुरुबीजाणु केन्द्रक परिवर्धनशील भ्रूणकोष के दोनों सिरों पर व्यवस्थित हो जाते है इनमें एक समसूत्री विभाजन होता है , जिसके कारण दोनों सिरों पर चार चार केन्द्रक बन जाते है। आगे चलकर इसका संगठन पोलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष जैसा हो जाता है।
(2) प्लम्बेगो प्रकार (plumbago type embryo sac) : इस प्रकार के भ्रूणकोष में गुरुबीजाणु मातृकोशिका के अर्धसूत्री विभाजन से बने चारों अगुणित गुरूबीजाणु केन्द्रक परिवर्धनशील भ्रूणकोष में चार सिरों पर व्यवस्थित हो जाते है अर्थात एक निभागीय सिरे , एक बीजाण्डद्वारीय सिरे और शेष दोनों पाशर्वीय सिरों पर होते है। अब प्रत्येक केन्द्रक में एक समसूत्री विभाजन होता है , परिणामस्वरूप चारों सिरों पर दो दो केन्द्रक अर्थात कुल आठ केन्द्रक हो जाते है। चारों सिरों से एक एक केन्द्रक मध्य भाग में स्थानांतरित होता है और चार ध्रुवीय केन्द्रक बन जाते है।
बीजाण्डद्वारीय सिरे पर अंड कोशिका पायी जाती है लेकिन सहायक कोशिका अनुपस्थित होती है। शेष तीनों सिरों पर अर्थात निभागीय सिरे और पाशर्व सतहों पर उपस्थित केन्द्रक प्राय: विलुप्त हो जाते है लेकिन कभी कभी ये केन्द्रक विलुप्त नही होते और अपने अपने स्थानों पर एक कोशिका बनाते है। यह कोशिका अतिरिक्त अंड कोशिका के समान प्रतीत होती है।
(3) पीनिया प्रकार (penaea type embryo sac) : इस प्रकार के भ्रूणकोष के विकास में सीनोमेगास्पोर के चारों अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक चारों सिरों पर पहुँच जाते है और इनमें से दो दो समसूत्री विभाजन होते है , परिणामस्वरूप सोलह कोशिकीय भ्रूणकोष बन जाता है। चारों सिरों पर उपस्थित 4-4 अगुणित केन्द्रक में से एक एक केन्द्रक अर्थात कुल 4 केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रकों के रूप में मध्य भाग में स्थानांतरित हो जाते है और बीजाण्डारीय सिरे पर तीन केन्द्रक अंड समुच्चय के रूप में विकसित होते है जिसमें एक अंड और दो सहायक कोशिकाएं होती है और शेष तीन समूह जिनमें तीन तीन केन्द्रक थे , सामान्यतया विघटित हो जाते है। चार ध्रुवीय केन्द्रकों के कारण यहाँ द्विक निषेचन के बाद बहुगुणित भ्रूणपोष बनता है। इस प्रकार के भ्रूणकोष सामान्यत: पीनिएसी कुल के पौधों में पाए जाते है। पिनिएसी कुल के अतिरिक्त यह भ्रूणकोष संरचना मेलपीगिएसी और यूफोर्बिएसी कुल के सदस्यों में भी देखि जा सकती है।
(4) पेपरोमिया प्रकार (peperomia type of embryo sac) : यहाँ सीनोमेगास्पोर के चार अगुणित केन्द्रकों में दो बार समसूत्री विभाजन होता है , जिससे सोलह अगुणित केन्द्रक बन जाते है। इनमें से दो केन्द्रक बीजाण्डद्वारीय सिरे पर अंड कोशिका और एक सहायक कोशिका बनाते है अर्थात अंड समुच्चय द्विकेन्द्री होता है। आठ केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक के रूप में मध्य भाग में स्थानान्तरित हो जाते है और संलयित होकर अष्टगुणित (8N) द्वितीयक केन्द्रक बनाते है। शेष छ: केन्द्रक निभागीय सिरे पर छ: कोशिकाओं का निर्माण करते है , जिनकी तुलना प्रतिमुखी कोशिकाओं से की जा सकती है।
(5) ड्रुसा प्रकार (drusa type embryo sac) : इस प्रकार के चतुष्कीबीजाणुक भ्रूणकोष का विकास अम्बेलीफेरी कुल के सदस्य ड्रुसा अपोजिटीफोलिया में देखा गया है। इसका सर्वप्रथम अध्ययन हैकेन्सन (1923) द्वारा किया गया था।
इसके भ्रूणकोष परिवर्तन के अंतर्गत सीनोमेगास्पोर के तीन केन्द्रक निभागीय सिरे पर स्थानान्तरित हो जाते है और एक अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक बीजाण्डद्वारीय सिरे पर रहता है। इन केन्द्रकों में दो समसूत्री विभाजन होते है , परिणामस्वरूप बीजाण्डद्वारीय सिरे पर चार और निभागीय सिरे पर बारह गुरूबीजाणु केन्द्रकों का निर्माण होता है अर्थात यहाँ भ्रूणकोष संगठन सोलह केन्द्रकी होता है। बीजांडद्वारीय सिरे की तरफ उपस्थित चार में से तीन केन्द्रकअंडसमुच्चय बनाते है और एक केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक के रूप में मध्य भाग में स्थानान्तरित हो जाता है।
निभांगीय सिरे की तरफ उपस्थित बारह केन्द्रकों में से एक केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक के रूप में मध्य भाग में आ जाता है और शेष ग्यारह केन्द्रक प्रतिमुखी कोशिकाएँ बनाते है। इस प्रकार यहाँ भ्रूणकोष संगठन (3+2+11) के विन्यास में होता है।
इस प्रकार का भ्रूणकोष ड्रुसा के अतिरिक्त यूफोर्बियेसी के सदस्य मेलोटस जेपोनिकस और रुबियेसी कुल के सदस्य रुबिया ओलिओसा में पाया जाता है।
(6) फ्रिटिलेरिया प्रकार (fritillaria type of embryo sac) : इस प्रकार के भ्रूणकोष का सर्वप्रथम अध्ययन ट्रूब और मेलिंक द्वारा लिलिएसी कुल के पौधे लिलियम बल्बीफेरम में किया गया था। इसके बाद इस प्रकार के भ्रूणकोष परिवर्धन का विस्तृत विवरण बेम्बीसियानी द्वारा लिलियेसी कुल के अन्य पौधे फ्रिटिलेरिया परसिका में दिया गया।
इस भ्रूणकोष में सीनोमेगास्पोर के चार अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रकों में से एक केन्द्रक ऊपर बीजाण्डद्वारीय सिरे की तरफ और शेष तीन केन्द्रक नीचे निभागीय सिरे की तरफ व्यवस्थित हो जाते है। निभागीय सिरे की तरफ व्यवस्थित तीन केन्द्रक संलयित होकर एक त्रिगुणित केन्द्रक बना लेते है। इसके बाद ऊपर वाला अगुणित केन्द्रक और नीचे वाला त्रिगुणित केन्द्रक दोनों ही समसूत्री विभाजन द्वारा दो दो बार विभाजित होते है। परिणामस्वरूप बीजाण्डद्वारीय सिरे पर चार अगुणित केन्द्रक और नीचे विभागीय सिरे पर चार त्रिगुणित केन्द्रक पाए जाते है। इस आठ केन्द्रकी अवस्था में भ्रूणकोष का संगठन होता है। ऊपर वाले केन्द्रकों से तीन अगुणित केन्द्रक बीजाण्डद्वारीय सिरे पर अंड समुच्चय का निर्माण करते है और निचे की तरफ तीन त्रिगुणित केन्द्रक प्रतिमुखी कोशिकाएँ बनाते है। दोनों सिरों से बचा एक एक केन्द्रक अर्थात बीजाण्डद्वारीय सिरे का अगुणित केन्द्रक और विभागीय सिरे का त्रिगुणित केन्द्रक मध्य भाग में ध्रुवीय केन्द्रकों के रूप में व्यवस्थित हो जाते है। अत: भ्रूणपोष संगठन 3+2+3 के विन्यास में होता है लेकिन अंड समुच्चय अगुणित , द्वितीयक केन्द्रक 4N और प्रतिमुखी कोशिकाएँ त्रिगुणित (3N) होती है।
लिलिएसी कुल के उक्त सदस्यों के अतिरिक्त इस प्रकार का भ्रूणकोष पाइपर , टेमेरिक्स , रुडबेकिया और गिलार्डिया आदि पौधों की कुछ जातियों में पाया जाता है।
(7) प्लेम्बेजैला प्रकार (plumbagella type embryo sac) : सर्वप्रथम इसका अध्ययन फेगरलिंड और बॉयस द्वारा प्लम्बैजेला माइक्रेन्था में किया गया। इस भ्रूणकोष के विकास में फ्रिटीलेरिया के समान ही सीनोमेगास्पोर का एक अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक बीजाण्ड द्वारीय सिरे की तरफ और शेष तीन गुरुबीजाणु केन्द्रक निभागीय सिरे की तरफ स्थानांतरित हो जाते है। निभागीय सिरे पर व्यवस्थित तीन अगुणित केन्द्रक संलयित होकर एक त्रिगुणित केन्द्रक बना लेते है। अब दोनों सिरों के दोनों केन्द्रकों में केवल एक समसूत्री विभाजन होता है , परिणामस्वरूप बीजाण्डद्वारीय सिरे पर दो अगुणित केन्द्रक और निचे निभागीय सिरे पर दो त्रिगुणित केन्द्रक बन जाते है।
अब बीजाण्डद्वारीय सिरे से एक अगुणित केन्द्रक और निभागीय सिरे से एक त्रिगुणित केन्द्रक मध्य भाग में स्थानान्तरित होते है और संलयित होकर एक 4N द्वितीयक केन्द्रक बना लेते है। बीजांडद्वारिय सिरे पर एक अगुणित केन्द्रक अंड कोशिका के रूप में और निभागीय सिरे पर उपस्थित त्रिगुणित केन्द्रक प्रतिमुखी कोशिका के रूप में विकसित होता है। इस प्रकार यहाँ परिपक्व भ्रूणपोष में केवल चार ही केन्द्रक बनते है। भ्रूणकोष संगठन (1+2+1) प्रकार का होता है।
यह आवश्यक नहीं है कि किसी एक प्रजाति के पौधे में केवल एक ही प्रकार का भ्रूणकोष पाया जाए अपितु एक ही प्रजाति में दो या इससे अधिक प्रकार के भ्रूणकोष मिल सकते है। इसके अतिरिक्त भ्रूणकोष में केन्द्रकों की संख्या तापमान के द्वारा भी प्रभावित हो सकती है। अधिक तापमान में (26-29 डिग्री सेल्सियस में) केन्द्रकों का विभाजन अपेक्षाकृत तेजी से होता है जबकि निम्न तापमान (10 डिग्री सेल्सियस) में केन्द्रकों के विभाजन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और इस कारण भ्रूणकोष में केन्द्रकों की संख्या पर भी असर पड़ता है।
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