टिंडल प्रभाव : जब किसी कोलाइड विलयन में से किसी प्रकाश पुंज को प्रवाहित करने पर , इसे प्रकाश की दिशा के लम्बवत देखने पर , कोलाइड विलयन में प्रकाश पुंज का मार्ग चमकता हुआ दिखाई देता है , इसी परिघटना को टिंडल प्रभाव कहते है।
विस्तार से : चित्रानुसार दो विलयन लेते है एक साधारण विलयन और एक कोलाइड विलयन , चित्रानुसार दोनों विलयनों में से होकर एक तीव्र प्रकाश पुंज को गुजारा जाता है तो हम देखते है कि साधारण विलयन में यह प्रकाश अदृश्य रहता है लेकिन कोलाइड विलयन में जिस मार्ग से प्रकाश गुजरता है वह प्रकाश का मार्ग चमकता हुआ प्रतीत होता है इसी प्रभाव को टिण्डल प्रभाव कहते है जैसा चित्र में दिखाया गया है –
कारण : चूँकि साधारण या वास्तविक विलयन के कणों का आकार बहुत ही सूक्ष्म होता है इसलिए जब वास्तविक विलयन से प्रकाश गुजारा जाता है तो प्रकाश प्रकिर्णित नहीं हो पाता है और हमारी आँखों तक नहीं पहुँच पाटा है जिसे हमें यह प्रकाश दिखाई नहीं देता है।
दूसरी तरफ जब प्रकाश पुंज को किसी कोलाइडी विलयन से गुजारा जाता है तो कोलाइड विलयन में कणों का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है जिससे जब प्रकाश इनसे टकराता है तो वह प्रकिर्नित हो जाता है और जिसके कारण यह प्रकाश प्रकीर्नित होकर हमारी आँखों तक पहुच जाता है और हमें इस प्रकाश का मार्ग चमकता हुआ दिखाई देता है अर्थात हमें प्रकाश दृश्य रहता है।
नोट : यहाँ प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता परिक्षेपण माध्यम और परिक्षिप्त प्रावस्था के अपवर्तनांक के अंतर पर निर्भर करती है।